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ऑल इंडिया पसमांदा समुदाय की बैठक में पीएम मोदी की तारीफ, कहा- हमारी आवाज उठा रहे हैं प्रधानमंत्री

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास की नीति पर चल रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी बिना किसी भेदभाव के हर धर्म और समुदाय के पिछड़े और वंचित लोगों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। इसके तहत उन्होंने सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े पसमांदा मुसलमानों को इंसाफ दिलाने का प्रयास कर रहे हैं। इससे पसमांदा समज में प्रधानमंत्री के प्रति एक भरोसा जागा है और वे आज प्रधानमंत्री मोदी की जमकर तारीफ कर रहे हैं।

मुस्लिम तुष्टिकरण करने वाली पार्टियों से धोखा खाये पसमांदा समाज आज जाग उठा है। इसकी झलक उत्तर प्रदेश के नोएडा में ऑल इंडिया पसमांदा समुदाय की बैठक में देखने को मिली। इस बैठक में मौजूद ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के राष्ट्रीय प्रवक्ता शमीम अनवर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को हमारी फिक्र है और सबका साथ सबका विकास की नीति पर चलते हुए हमारे लिए भी आवाज उठा रहे हैं। उन्होंने हमें काफी पिछड़ा बताया है।  

शमीम अनवर ने अपने समाज को एकजुट रहने कि अपील की। उन्होंने बताया कि ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज संगठन पिछड़ों की आवाज उठाता आ रहा है। संगठन का विस्तार किया जा रहा है और आने वाले दिनों में जिले में एक बड़ी जनसभा होगी, जिसमें प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर के नेता हिस्सा लेंगे। उन्होंने कहा कि हमारे ही अपने हमें अपनाने को तैयार नहीं है। हम अपने हक को अब लेने की तैयारी में हैं। इस मौके पर जिला अध्यक्ष सरवर अंसारी ने कहा कि प्रधानमंत्री हमारा हौसला अफजाई कर रहे हैं। संगठन पूरी कोशिश कर रहा हैं कि पसमांदा मुस्लिम समुदाय के लोगों को आगे आए, शिक्षित हो।

आइए देखते हैं प्रधानमंत्री मोदी पसमांदा समाज के उत्थान के लिए सरकार और पार्टी के स्तर पर किस तरह प्रयास कर रहे हैं….

पसमांदा समाज की तकदीर बदलने की सलाह 

इस साल जुलाई में हैदराबाद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आर्थिक रूप से गरीब और शिक्षा के मामले में काफी पीछे रहने वाले पसमांदा मुसलमानों का जिक्र किया था। उन्होंने पसमांदा समाज के बीच काम करने की सलाह दी थी। उन्होंने बीजेपी खासकर उत्तर प्रदेश इकाई से यह विश्लेषण करने के लिए कहा था कि पिछड़े-दलित मुस्लिम, जिसे आमतौर पर पसमांदा के रूप में जाना जाता है, सरकार की नीतियों से कैसे प्रभावित होता है, और उनके जीवन को तेजी से ऊपर उठाने और उन तक पहुंचने के लिए क्या काम किया जा सकता है। 

संगठन स्तर पर पसमांदा समाज से जुड़ने का प्रयास

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से कहीं पहले बीजेपी में संगठन स्तर पर एक कमेटी बनी, जिसने प्रदेश में हर बूथ पर पसमांदा मुसलमानों को जोड़ने के लिए रणनीति के तहत काम शुरू किया। बीजेपी ने पसमांदा मुसलमान माने जाने वाले कहार, मल्लाह, कुम्हार, गुज्जर, गद्दी-घोसी, माली, तेली, दर्जी, नट, कुरैशी, धुनिया, मंसूरी, जुलाहा, राज मिस्त्री, मोची आदि समाज पर ध्यान केंद्रित करना शुरू किया। उसने केंद्र और राज्य की सरकारी योजनाओं के माध्यम से भी इस समाज को टार्गेट किया, जिसका उसे विधाानसभा चुनावों में लाभ मिला।

पसमांदा समाज को मिला योजनाओं का लाभ

केंद्र में मोदी सरकार और राज्यों में बीजेपी की सरकारों ने जो योजनाएं चलाईं, उसमें बिना जाति-धर्म देखे सबको लाभ दिया। राशन, शौचालय, प्रधानमंत्री आवास योजना, आयुष्मान योजना का सीधा लाभ पसमांदा समाज के लोगों को मिला है। इससे इस समाज को बीजेपी की सरकारों पर भरोसा बढ़ रहा है, जो प्रधानमंत्री मोदी के सबका साथ और सबका विकास की मूल भावना से प्रेरित है। कोरोना महामारी के दौरान गरीब कल्याण योजना के तहत मुफ्त राशन और महिलाओं और बुजुर्गोंं को जो नकद राशि दी गई, उसने गरीब पसमांदा समाज को महामारी से लड़ने में मदद की।

बीजेपी ने यूपी सरकार में पसमांदा समाज को दी भागीदारी

उत्तर प्रदेश सरकार में एक मुस्लिम मंत्री दानिश अंसारी हैं और वह इसी समुदाय से आते हैं। योगी सरकार ने दानिश को मंत्री बनाकर इस समाज को संदेश दिया है कि शासन में उनकी भागीदारी बढ़ाने के लिए बीजेपी प्रतिबद्ध है। 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों में इसका परिणाम भी मिला। इस चुनाव में बीजेपी को करीब 8 प्रतिशत वोट मिला। बीजेपी इसी प्रतिशत में उम्मीद देख रही थी। इसके बाद आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनावों में बीजेपी की जीत ने पार्टी नेताओं काे और ऊर्जा से भर दिया है। पसमांदा समाज के 8-10 प्रतिशत गरीब मुसलमानों ने बीजेपी को उसकी लाभार्थी योजनाओं के चलते वोट दिया। लाभार्थी वोटरों में इस समाज के करीब 20-25 प्रतिशत लोग शामिल हैं। 

सेक्युलर पार्टियों ने पसमांदा समाज को दिया धोखा

दरअसल मुसलमानों में भी ओबीसी और दलित मुस्लिमों को पसमांदा मुसलमान कहा जाता है। सेक्युलर पार्टियों, खासकर कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने पसमांदा मुस्लिमों को खूब ठगा। उन्हें खूब सपने दिखाए, वोट लिया, मगर चुनाव के वक्त किए गए वादों को भूल गए। उन्होंने बीजेपी को लेकर खूब डराया, लेकिन धरातल पर मुस्लिमों के लिए कुछ नहीं किया। सपा ने 2012 में घोषणा की थी कि वह सच्चर समिति और रंगनाथ मिश्र आयोग की सिफारिशें लागू करेगी, लेकिन सत्ता में आने पर ऐसा नहीं किया। पसमांदा समाज के नेताओं का मानना है कि कांग्रेस, सपा, बसपा आदि पार्टियों में उनके उत्थान के लिए कुछ खास नहीं किया। राजनीतिक प्रतिनिधित्व भी वैसा नहीं मिला, जितनी जरूरत थी।

अगड़े मुस्लिमों द्वारा पसमांदा समाज का शोषण

मुस्लिम आबादी में 80-85 प्रतिशत पसमांदा मुस्लिम हैं, लेकिन मुस्लिम नेताओं ने अल्पसंख्यकों के नाम पर जो विमर्श चलाया, वह वास्तव में उच्च वर्गीय मुस्लिमों का विमर्श है। मुस्लिमों के उच्च वर्ग के नेता पसमांदा समाज को हाशिये पर रखकर खुद राज करते आ रहे हैं। 20 प्रतिशत अगड़े मुसलमान सामाजिक और आर्थिक तौर पर मजबूत हैं और सभी सियासी दलों में इन्हीं का वर्चस्व रहा है। उनकाे उनकी संख्या के हिसाब से हक नहीं मिलता। अल्पसंख्यकों के तमाम संगठनों, संस्थानों में उच्चवर्गीय मुसलमानों का ही वर्चस्व है। चूंकि यूपी और केंद्र दोनों ही जगह बीजेपी की सत्ता है, ऐसे में तमाम सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने के रास्ते इस समाज में पार्टी अपनी जगह बनाने की कोशिश कर सकती है।

यूपी सहित 18 राज्यों में पसमांदा

पूरे देश में पसमांदा समाज के लोग लगभग 18 राज्यों में फैले हैं। यूपी, बिहार, राजस्थान, तेलगांना, कर्नाटक, मध्य प्रदेश में इनकी संख्या अधिक है। पसमांदा मुसलमानों की सबसे ज्यादा संख्या उत्तर प्रदेश में है। लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इनकी आर्थिक स्थिति पूर्वांचल के मुसलमानों से बेहतर है। हर विधानसभा सीट पर इनकी उपस्थिति अच्छी खासी संख्या में है जो जीत-हार का समीकरण बदलने की हैसियत रखते हैं। इनमें करीब 44 जातियां जैसे राइनी, इदरीसी, नाई, मिरासी, मुकेरी, बारी, घोसी शामिल हैं। बाकी 15 प्रतिशत में चार बड़ी जातियां शेख, सैयद, मुगल और पठान हैं।

 

 

 

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