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PM Modi की दूरगामी आर्थिक नीतियों ने रुपए को बनाया एशिया की सबसे स्थिर करंसी, कांग्रेस-काल में रुपया माना जाता था सबसे अस्थिर करंसी, डॉलर के मुकाबले दुनियाभर में रुपए की बढ़ रही धाक

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वैश्विक विजन के चलते जहां एक ओर भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के स्थान पर विश्व-व्यापार में अपनी ठसक बनाने के लिए तैयार है, वहीं, दूसरी ओर बीते 10 साल में रुपया एशिया की सबसे स्थिर करंसी में शुमार हो गया है। वरना पीएम मोदी के केंद्र की पहली बार सत्ता संभालने से पहले तो भारतीय रुपया एशिया की सबसे अस्थिर करंसी माना जाता था। भारतीय करंसी की हैसियत में ये बदलाव भारत की बढ़ती आर्थिक ताकत, मोदी सरकार की अनुकूल नीतियों और रिजर्व बैंक के उम्दा मैनेजमेंट को दर्शाता है। प्रधानमंत्री मोदी के देश को तीसरी आर्थिक महाशक्ति बनाने के इरादे के चलते अमेरिकी डॉलर की उड़ान के दिन भी अब कम होने लगे हैं। ऐसे भी कह सकते हैं कि दिनोंदिन कमजोर होते अमेरिकी डॉलर के स्थान पर भारतीय रुपया विश्व-व्यापार में अपनी धाक जमाने लगा है। इसका लोहा विदेशी अर्थशास्त्री भी मान रहे हैं। जाने-माने अर्थशास्त्री नूरील रूबिनी के मुताबिक, भारतीय रुपया आने वाले समय में नया डॉलर हो सकता है। भारतीय अर्थव्यवस्था जिस तरह दिनों-दिन छलांगे मार रही है। शेयर बाजार नित-नई ऊंचाइयों के रिकॉर्ड बना रहा है, उसमें रुपया ही डॉलर की जगह लेने की ताकत रखता है।

मनमोहन सरकार की नीतियां रुपये को अस्थिर करंसी के लिए जिम्मेदार
भारतीय करंसी की पिछली हालत जानने के लिए टाइम मशीन को एक दशक पहले ले चलते हैं। नरेन्द्र मोदी के पहली बार प्रधानमंत्री बनने से पहले भारत की मुद्रास्फीति यानी महंगाई दर करीब 10 प्रतिशत थी। तब सरकार वैश्विक वित्तीय संकट से उबरने के लिए ताबड़तोड़ खर्च कर रही थी। इसके अलावा कच्चा तेल 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर था। भारत को तेल खरीदने के लिए ज्यादा डॉलर खर्च करने पड़ रहे थे। इस बीच अमेरिका ने डॉलर में निवेश बढ़ाया और वह रुपये की तुलना में ज्यादा मजबूत हो गया। इन सब कारणों से जून-अगस्त 2013 के बीच रुपये की वैल्यू में 27प्रतिशत तक की गिरावट आई। रुपये के इस अवमूल्यन के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उनकी यूपीए सरकार की नीतियां जिम्मेवार थीं।पीएम मोदी की दूरगामी आर्थिक नीतियां ने रूपये को एशिया की सबसे स्थिर करंसी बनाया
बड़ा सवाल यह है कि बीते एक दशक में मोदी सरकार ने रुपये की बढ़ती अस्थिरता पर कैसे काबू पाया गया? इसका एक ही जवाब है- पीएम मोदी की दूरगामी आर्थिक नीतियां और बहुआयामी वित्तीय प्रबंधन। यही वजह रही कि अन्य देशों से ज्यादा आर्थिक विकास दर के चलते विदेशी कंपनियों ने भारत में जोरदार निवेश किया। इसके अलावा बड़े ग्लोबल इंडेक्स में भारतीय बॉन्ड के शामिल होने से विदेशी निवेशक आकर्षित हुए। पीएम मोदी के लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने से उन्हें इस बात का भी पक्का यकीन है कि आगामी वर्षों में भारत में नीतियां नहीं बदलेंगी। विदेशी निवेशकों के विश्वास की एक बड़ी वजह यह भी है कि भारत के पास दुनिया का चौथा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार भी है।विदेशी निवेशकों के लिए स्थिर करंसी होने के क्या हैं मायने?
दरअसल, करंसी में ज्यादा अस्थिरता से बिजनेस की लागत बढ़ सकती है। रुपया कमजोर होने से मशीनरी जैसे आयात महंगे हो जाते हैं। भारत जरूरत का 80प्रतिशत से ज्यादा कच्चा तेल और सोना आयात करता है। रुपया कमजोर होने पर इनके लिए ज्यादा डॉलर खर्च करने पड़ते हैं। दूसरी तरफ आईटी जैसे जो सेक्टर निर्यात करते हैं, उनकी डॉलर में आय बढ़ जाती है। यही वजह है कि रुपया कमजोर होने पर आईटी शेयर चढ़ते हैं, लेकिन मैन्युफैक्चरिंग जैसी कंपनियों के शेयरों में गिरावट आने लगती है। रुपये को मजबूत करने के लिए सरकार को हर तरह के वित्तीय प्रबंधन पर फोकस कर रही है। रिजर्व बैंक भी रुपये की विनिमय दर में स्थिरता और निर्यात के मामले में भारत की प्रतिस्पर्धी क्षमता बनाए रखने के लिए डॉलर मजबूत होने पर अपने भंडार से इसकी बिकवाली करके करंसी मार्केट में संतुलन बना सकता है।अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घट रही है विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर की संपत्ति
यह भी दिलचस्प तथ्य है कि एक ओर जहां भारतीय रुपया दूरदर्शी प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में विश्वपटल पर मजबूती दिखाने को तत्पर है, वहीं दूसरी ओर आईएमएफ के आधिकारिक विदेशी मुद्रा भंडार के आंकड़ो के अनुसार विभिन्न देश अपने आधिकारिक विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर मूल्य वर्ग की संपत्ति को कम कर रहे हैं। इसका समग्र परिणाम यह हुआ है कि वैश्विक आवंटित विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर का हिस्सा पिछले साल घटकर 58.8 प्रतिशत ही रह गया है, जो 1995 के बाद सबसे कम है। भारतीय रुपए का बढ़ता हुआ वर्चस्व इसका सूचक है। मूलतः रुपए को वैश्विक मुद्रा बनाने की शुरुआत वर्ष 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से हुई। मोदी सरकार का शुरुआत से यह लक्ष्य रहा है कि भारत का आर्थिक गौरव भी विश्वपटल पर और बढ़े। अब ऐसे में भारतीय रुपए का अंतरराष्ट्रीयकरण जिस स्तर पर हो रहा है तो वह दिन दूर नहीं जब अमेरिकी डॉलर रसातल में पहुंच जाएगा और सम्पूर्ण विश्व डॉलर के बजाए भारतीय मुद्रा रुपये को वरीयता देगा।आठ देशों में 49 वोस्ट्रो खाते खोलकर रुपये में व्यापार का करार
भारतीय मुद्रा यानी रुपये में विदेश व्यापार को बढ़ावा देने की मोदी सरकार की नीति रफ्तार पकड़ने लगी है। यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद रूस पर पश्चिमी देशों की पाबंदियों को देखते हुए भारत रुपये में विदेशी लेनदेन को बढ़ाने के निरंतर प्रयास कर रहा है। रुपये में कारोबार को लेकर श्रीलंका से बातचीत जारी है। कोलंबो स्थित भारतीय उच्चायोग ने इस पर चर्चा आयोजित की थी। बैंक ऑफ सीलोन, एसबीआई, इंडियन बैंक के प्रतिनिधियों ने अपने अनुभव साझा किए। मोदी सरकार के प्रयासों का ही सुफल है कि अब तक आठ देशों के लिए 49 विशेष रुपया वोस्ट्रो खाते (एसआरवीए) खोले जा चुके हैं। इन खातों के जरिये आठ देशों रूस, मॉरीशस, श्रीलंका, मलयेशिया, म्यांमार, सिंगापुर, इस्राइल और जर्मनी के साथ रुपये में व्यापार हो सकेगा। भारत ने 8 देशों के साथ रुपये में व्यापार करने का करार कर लिया है।वोस्ट्रो खाता यानि देशों के बीच करेंसी एक्सचेंज और व्यापार की सुगमता
इसी प्रयास में सबसे पहले रूस के दो सबसे बड़े बैंक स्बेरबैंक (Sberbank) और वीटीबी बैंक (VTB Bank) ने रुपये में ट्रेंड करने के लिए वोस्ट्रो अकाउंट खोला था। 6 महीने में ही इसकी संख्या 50 को छूने वाली है। आपको बता दें कि वोस्ट्रो खाता बैंक द्वारा नियोजित खाता है, जो ग्राहकों को दूसरे बैंक की ओर से पैसा जमा करने की सुविधा प्रदान करता है। विदेश का कोई बैंक वोस्ट्रो खाता खोलने के लिए भारत में बैंक से संपर्क कर सकता है। लेकिन इसके लिए बैंक को RBI से मंजूरी लेनी होती है। इसके बाद दोनों ही पक्ष करेंसी का एक्सचेंज रेट, मार्केट रेट आदि जरूरी चीजें तय कर लेते हैं और व्यापार शुरू कर सकते हैं। वोस्ट्रो एकाउंट खुलवाने की जरूरत तब पड़ती है जब किसी बैंक की विदेश में कोई शाखा नहीं होती है। वोस्ट्रो से ग्राहकों को किसी दूसरे बैंक के खाते में पैसा जमा करने की सुविधा मिलती है। अब जैसे किसी भारतीय आयातक को इजरायल में कारोबार करना है तो पहले उसे डॉलर में ही भुगतान करना होता था। लेकिन अब वह उसे रुपये में भी भुगतान कर सकता है। उसकी भुगतान राशि इस वोस्ट्रो खाते में जमा हो जाती है। इसी तरह, जब किसी भारतीय निर्यातक को माल और सेवाओं के लिए रुपये में भुगतान करना होता है, तो इस वोस्ट्रो खाते से राशि काट ली जाएगी और उसे निर्यातक के नियमित खाते में जमा कर दिया जाएगा।भारत से रुपये में ट्रेड सेटलमेंट के लिए 50 से ज्यादा देश कर रहे बातचीत
काबिले गौर है कि आरबीआई ने जुलाई, 2022 में घरेलू मुद्रा में सीमा-पार कारोबारी लेनदेन पर निर्देश जारी किए थे। इसके बाद रूस के सबसे बड़े बैंक स्बेरबैंक व दूसरे सबसे बड़े बैंक वीटीबी बैंक में रुपये में व्यापार की मंजूरी पाने वाले पहले विदेशी बैंक बने थे। आपदा को अवसर बनाने का पीएम मोदी का मूल मंत्र रूपये को वैश्विक पहचान दिलाने में भी काम आ रहा है। यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद रूस पर पश्चिमी देशों की पाबंदियों को देखते हुए भारत रुपये में विदेशी लेनदेन को बढ़ाने के निरंतर प्रयास कर रहा है। भारतीय मुद्रा तेजी से इंटरनेशनल करेंसी बनने की राह पर है। रूस, इजराइल, जर्मनी मॉरीशस, श्रीलंका, मलेशिया, म्यांमार और सिंगापुर जैसे देश भारत के साथ रुपये में व्यापार करने के लिए तैयार हो चुके हैं। इतना ही नहीं पचास से ज्यादा देश भारत के साथ रुपये में ट्रेड सेटलमेंट के लिए बातचीत कर रहे हैं। अभी तक भारत में 49 वोस्ट्रो खाते खोले जा चुके हैं जो दूसरे देशों के साथ रुपये में व्यापार करने के लिए जरूरी हैं।अमृतकाल में ग्लोबल करेंसी बनने की राह पर रुपया, 30 देश जल्द साथ आएंगे
कोरोना काल में डॉलर के मजबूत होने से दुनिया भर के कई देशों के लिए आयात महंगा हो रहा है। रुपये में कारोबार शुरु करने के पीछे उद्देश्य यही है कि इससे अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम होगी। रुपये में व्यापार बढ़ने के साथ ही भारत को भारतीय मुद्रा के लिए खरीदार तलाशने की जरूरत नहीं होगी। इतना ही नहीं इंटरनेशनल बैंकों को कंवर्जन फीस नहीं देना होगा। इससे भारतीय रुपये की डिमांड में भी इजाफा होगा। गौरतलब है कि चीनी मुद्रा RMB दुनिया में अमेरिकी डॉलर, यूरो, येन और ब्रिटिश पाउंड के बाद पांचवी सबसे बड़ी मुद्रा है। पहली बार यूरोपीय यूनियन में शामिल देश जर्मनी एशिया की किसी मुद्रा यानी भारतीय मुद्रा रुपये के साथ व्यापार करने के लिए आगे आया है। अगर 30 देशों के साथ भारत का रुपए में कारोबार शुरु हो गया तो फिर रुपया अंतरराष्ट्रीय करेंसी बन जाएगा। भारत सरकार की मंशा साल आजादी के 100 साल होने पर 2047 तक इंडियन करेंसी को अंतरराष्ट्रीय करेंसी के तौर पर स्थापित करने की है। आठ दशकों से अमेरिकी डॉलर का दबदबा, अब खत्म होगी बादशाहत
अमेरिकी डॉलर दुनिया में हर जगह मान्यता प्राप्त मुद्रा है, इसलिए ज्यादातर लेन-देन डॉलर में ही किए जाते हैं। पूरी वित्तीय दुनिया में 8 दशकों से इसका दबदबा है। द्वितीय विश्व युद्ध के अंत के बाद दुनिया पस्त हो गई थी। तब 1944 में 44 देशों के प्रतिनिधि युद्ध के बाद विश्व अर्थव्यवस्था की मरम्मत के लिए ब्रेटन वुड्स, न्यू हैम्पशायर में मिले। तब इस बात पर सहमति बनी कि दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में अमेरिका, डॉलर के मूल्य को सोने के मुकाबले तय करेगा और अन्य देश बदले में अपनी मुद्राओं को डॉलर के मुकाबले तय करेंगे। देशों को अब अपनी विनिमय दर को बनाए रखने के लिए रिजर्व में डॉलर रखना पड़ा, जिससे यह प्रमुख वैश्विक मुद्रा बन गई।‘डॉक्टर डूम’ का आंकलन, रुपया बनेगा दुनिया की ग्लोबल रिजर्व करेंसी
पीएम मोदी की विजनरी और राष्ट्र प्रथम की सोच के चलते आप इस बात पर विश्वास कर सकते हैं कि आने वाले समय में रुपये की तूती बोलेगी और भारतीय करेंसी अमेरिकी डॉलर के मुकाबले पर आ जाएगी। मशहूर अर्थशास्त्री नूरील रूबिनी का ऐसा मानना है कि भारतीय रुपया भविष्य में अंतरराष्ट्रीय करेंसी बनेगा। एक बिजनेस एंड इकोनॉमी न्यूजपेपर को दिए इंटरव्यू में रूबिनी ने कहा है कि भारतीय रुपया डॉलर की जगह लेने की ताकत रखता है। नूरील रूबिनी (Nouriel Roubini) वही अर्थशास्त्री हैं, जिन्होंने 2008 में आई वैश्विकी मंदी की सटीक भविष्यवाणी की थी और इस कारण अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने उन्हें ‘डॉक्टर डूम’ की उपाधि दी थी। इस प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ने अंग्रेजी बिजनेस अखबार ईटी नाउ को दिए इंटरव्यू में कहा, ‘कोई भी यह देख सकता है कि भारतीय अपनी जिस मुद्रा रुपये के जरिए दुनिया के साथ होने वाले कारोबार को करता है वो रुपया भारत के लिए व्हिकल करेंसी बन सकता है। यह (भारतीय रुपया) पेमेंट का साधन हो सकता है। यह स्टोर ऑफ वैल्यू भी बन सकता है। निश्चित रूप से, समय के साथ रुपया दुनिया में ग्लोबल रिजर्व करेंसी की डायवर्सिटी में से एक बन सकता है।रुपये के सामने कांपेगा डॉलर, पूरी दुनिया में दिखेगी इसकी ताकत- अर्थशास्त्री
पीएम मोदी के कार्यकाल में भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेजी से बढ़ रही है। इसी के साथ भारतीय रुपये की ताकत भी बढ़ रही है। इसका लोहा अब विदेशी अर्थशास्त्री भी मान रहे हैं। अर्थशास्त्री नूरील रूबिनी के मुताबिक, भारतीय रुपया आने वाले समय में नया डॉलर हो सकता है। एक इंटरव्यू में नूरील रूबिनी ने कहा कि आने वाले समय में जल्द ही डी-डॉलरीकरण यानी डॉलराइजेशन की प्रक्रिया होगी। उन्होंने आगे कहा कि अमेरिका की ग्लोबल इकोनॉमी का हिस्सा 40 से 20 फीसदी तक गिर रहा है। ऐसे में अमेरिकी डॉलर के लिए सभी अंतराष्ट्रीय वित्तीय और व्यापार लेनदेन के दो तिहाई होने का कोई मतलब नहीं है। इसका एक हिस्सा जियोपोलिटिक्स है। अर्थशास्त्री ने दावा किया कि अमेरिका राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति के उद्देश्यों के लिए डॉलर को हथियार बना रहा है। अब दुनिया की मुख्य मुद्रा के रूप में अमेरिकी डॉलर की स्थिति खतरे में है।

 

 

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