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पीएम मोदी आदि कैलाश का दर्शन करने वाले पहले प्रधानमंत्री, 20 किलोमीटर दूर है चीन की सीमा, पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 अक्टूबर 2023 को पिथौरागढ़ जिले के जोलिंगकोंग पहुंचे, जहां उन्होंने पार्वती कुंड में पूजा-अर्चना की। इसके बाद उन्होंने कैलाश व्यू प्वाइंट से आदि कैलाश के दर्शन किए। यह व्यू प्वाइंट जोलिंगकोंग इलाके में है जहां से कैलाश पर्वत साफ नजर आता है। इसके लिए अब चीन के कब्जे वाले तिब्बत जाने की जरूरत नहीं होगी। यहां से 20 किलोमीटर दूर चीन की सीमा शुरू हो जाती है। नरेंद्र मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने उत्तराखंड से लगी भारत-चीन सीमा पर आदि कैलाश पर्वत का दर्शन किया। पीएम मोदी के आदि कैलाश दर्शन से इस पूरे इलाके में पर्यटन बढ़ने की उम्मीद है। भगवान शिव का घर माने जाने वाले कैलाश पर्वत के दर्शन अब भारत से ही हो सकेंगे। इसके लिए अब चीन के कब्जे वाले तिब्बत जाने की जरूरत नहीं होगी। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की 18 हजार फीट ऊंची लिपुलेख पहाड़ियों से कैलाश पर्वत साफ दिखाई देता है। यहां से पर्वत की हवाई दूरी करीब 50 किलोमीटर है।

पीएम मोदी के आदि कैलाश दर्शन से इलाके में पर्यटन बढेगा
लिपुलेख की जिस पहाड़ी से पर्वत दिखता है, वह नाभीढांग के ठीक 2 किलोमीटर ऊपर है। यहां से 4-5 दिन की यात्रा करके कैलाश पर्वत के दर्शन किए जा सकते हैं। श्रद्धालुओं को सड़क मार्ग से धारचूला और बूढ़ी के रास्ते नाभीढांग तक पहुंचना होगा। इसके बाद दो किलोमीटर की चढ़ाई को पैदल तय करना होगा। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि पीएम मोदी के आदि कैलाश के दर्शन करने से कुमाऊं मंडल में टूरिज्म जरूर बढ़ेगा।

कैलाश व्यू प्वाइंट और पर्यटन सुविधाओं का किया जा रहा विकास
इस नए दर्शन मार्ग को स्थानीय ग्रामीणों ने तलाशा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जब इसकी जानकारी दी गई तो उन्होंने विशेष रुचि लेकर कैलाश व्यू प्वाइंट बनाने और इलाके में पर्यटन से जुड़ी जरूरी सुविधाएं विकसित करने का निर्देश दिया। इसके बाद अफसरों और विशेषज्ञों की टीम ने रोड मैप, लोगों के ठहरने की व्यवस्था, दर्शन के प्वाइंट तक जाने का रूट सहित अन्य व्यवस्थाओं के लिए सर्वे किया और इसे पर्यटन के अनुकूल विकसित करने की योजना बनाई। उत्तराखंड सरकार इस पूरे इलाके का विकास करने का काम कर रही है।

14000 फीट ऊपर बसा गुंजी गांव शिव धाम के रूप में विकसित होगा
उत्तराखंड में धारचूला से 70 किमी दूर और 14000 फीट ऊपर बसा छोटा सा वीरान गांव गुंजी अगले दो साल में बड़े धर्म नगर शिव धाम के रूप में विकसित हो जाएगा। कैलाश व्यू प्वाइंट, ओम पर्वत और आदि कैलाश के दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं का धारचूला के बाद यही सबसे बड़ा और अहम पड़ाव होगा। यहां बड़े यात्री निवास, होटल बनेंगे। भारतीय टेलीकॉम कंपनियों का नेटवर्क भी मिलेगा। गांव में होम स्टे बढ़ाए जाएंगे।

2 किलोमीटर की चढ़ाई के लिए रास्ता बनाना पड़ेगा
पर्यटन विभाग का कहना है कि ओल्ड लिपुलेख पहुंचने के लिए 2 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़नी पड़ती है, जो आसान नहीं है। यहां तक पहुंचने के लिए भी रास्ता बनाया जा सकता है। स्नो स्कूटर की मदद से भी श्रद्धालुओं को दर्शन के लिए पहाड़ी की चोटी तक पहुंचाया जा सकता है।

लिंपियाधूरा चोटी से भी हो सकते हैं आदि कैलाश के दर्शन
पिथौरागढ़ के ही ज्योलिंगकांग से 25 किलोमीटर ऊपर लिंपियाधूरा चोटी से भी कैलाश पर्वत के दर्शन हो सकते हैं। लिंपियाधूरा चोटी के पास ओम पर्वत, आदि कैलाश और पार्वती सरोवर हैं। यहां से कैलाश पर्वत के दर्शन होने से इस क्षेत्र में धार्मिक पर्यटन का स्कोप बढ़ेगा।

गुंजी गांव में अभी रहते हैं 20 से 25 परिवार
गुंजी व्यास घाटी की उस सुरक्षित जमीन पर है, जहां न भूस्खलन का खतरा है और न ही बाढ़ का। अभी यहां 20 से 25 परिवार ही रहते हैं, जो बमुश्किल अपना खर्च चला पाते हैं। गुंजी के दाएं तरफ से नाभीढांग, ओम पर्वत और कैलाश व्यू प्वाइंट का रास्ता जाता है, तो बाएं तरफ से आदि कैलाश और जौलीकॉन्ग का। इसलिए ये गांव कैलाश तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए मुफीद है।

पिथौरागढ़ जिले की व्यास घाटी फिर होने जा रही है गुलजार
मोदी सरकार ने पिछले नौ साल के कार्यकाल में ऐसे कई तीर्थक्षेत्रों का विकास किया है जिससे न केवल देश में पर्यटन को नई ताकत मिली है बल्कि सनातन संस्कृति के उत्थान से अर्थव्यवस्था को भी गति मिल रही है। अब उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की व्यास घाटी के फिर गुलजार होने की बारी है। इस दुर्गम स्थल पर मोदी सरकार ने युद्धस्तर पर काम शुरू कराया हुआ है। बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन (बीआरओ) ने धारचूला से 70 किमी दूर गुंजी और गुंजी से नाभीढांग तक का 19 किमी लंबा रास्ता पहाड़ों को काटकर बना दिया है। नाभीढांग से 7 किमी दूर ओल्ड लिपुलेख पास तक भी कच्ची सड़क बिछ गई है। ओल्ड लिपुलेख से 1800 फीट ऊपर कैलाश व्यू पॉइंट तक 10 से 12 फीट चौड़ा रास्ता भी 70% बन गया है। इस सुरम्य और दुर्गम स्थल पर अगले साल बाद पर्यटक कार से सीधे पहुंच सकेंगे। पूरे रास्ते पर पत्थर बिछा दिए गए हैं। बीआरओ की देखरेख धारचूला से नाभीढांग तक का रास्ता बन रहा है। इसके शुरू होने के बाद चीन बॉर्डर तक भारतीयों की सीधी पहुंच होगी।

अदम्य जज्बे से दुर्गम स्थल पर भी जनता के लिए बनाए जा रहे राहत के रास्ते
यह पीएम मोदी सरकार का ही अदम्य जज्बा है कि ऐसे दुर्गम स्थल पर भी जनता-जनार्दन के लिए राहत के रास्ते बनाए जा रहे हैं। धारचूला से पिथौरागढ़ मुख्यालय से 92 किमी दूर है। यहां से गुंजी गांव तक का रास्ता बेहद कठिन है। गुंजी से आगे 14372 फीट ऊपर नाभीढांग और 15000 फीट ऊपर जौलीकॉन्ग तक 27 किमी का रास्ता उससे भी जटिल है। इन्हीं हालातों के चलते दोनों स्थलों के बेहद सुरम्य और अलौकिक होने के बाजवूद यहां सालभर में चार-पांच सौ पर्यटक ही पहुंच पाते हैं। इस बार अब तक 290 लोग आए हैं। धारचूला के बाद से रास्तेभर में आईटीबीपी, एसएसबी और सेना के जवानों की तैनाती है। नाभीढांग से ओल्ड लिपुलेख पास से कैलाश व्यू पॉइंट मात्र 6.5 किमी दूर है।

नाभीढांग में पवित्र ओम पर्वत जौलीकॉन्ग में आदि कैलाश के होंगे सुगम दर्शन
नाभीढांग में पवित्र ओम पर्वत, नाग पर्वत के दर्शन पर्यटक करते हैं। जौलीकॉन्ग गुंजी से 19 किमी दूर है। यहां पवित्र आदि कैलाश पर्वत और पार्वती कुंड है। नाभीढांग में पवित्र ओम पर्वत है, जबकि जौलीकॉन्ग में आदि कैलाश पर्वत। पिथौरागढ़ जिला प्रशासन यहां के निर्माण कार्यों की निगरानी की नोडल एजेंसी है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक यहां की कलेक्टर का दावा है कि जुलाई 2024 के बाद दोनों रास्ते लगभग पक्के मिलेंगे। फिलहाल नाभीढांग में कुमाऊं मंडल विकास निगम (केएमवीएन) के हट्स हैं, इनकी बुकिंग धारचूला या पिथौरागढ़ से रही है। तीर्थयात्रियों के बढ़ने के चलते कुछ नए हट्स बढ़ाए जा रहे हैं।

कैलाश मानसरोवर यात्रा में अभी लगते हैं 14 से 21 दिन
कैलाश मानसरोवर यात्रा साल 2019 में हुई थी। उसके बाद पहले कोरोना के कारण, फिर भारी बर्फबारी की वजह से यात्रा रोक दी गई। कैलाश यात्रा 3 अलग-अलग राजमार्ग से होती है। पहला- लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड), दूसरा- नाथू दर्रा (सिक्किम) और तीसरा- काठमांडू। इन तीनों रास्तों पर कम से कम 14 और अधिकतम 21 दिन का समय लगता है। 2019 में 31 हजार भारतीय यात्रा पर गए थे।

भारत का हिस्सा था कैलाश मानसरोवर, अब चीन का कब्जा
चीन के साथ युद्ध से पहले तिब्बत में स्थित कैलाश मानसरोवर पर भारत का ही अधिकार था। 1962 में जब भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ तो चीन ने तिब्बत पर कब्जा करने के साथ ही कैलाश मानसरोवर पर कब्जा कर लिया। अब यहां पहुंचने के लिए चीनी पर्यटक वीजा प्राप्त करना होता है। इसके चलते अब कैलाश जाना आसान नहीं रहा। ITBP के जवान और चीनी सैनिकों के पचासों तरह की चेकिंग के बाद मानसरोवर पहुंचा जाता है।

कैलाश पर्वत की परिक्रमा 52 किलोमीटर
कैलाश पर्वत श्रेणी कश्मीर से भूटान तक फैली हुई है। इसमें ल्हा चू और झोंग चू के बीच यह पर्वत स्थित है। यहां दो जुड़े हुए शिखर हैं। इसमें से उत्तरी शिखर को कैलाश के नाम से जाना जाता है। इस शिखर का आकार एक विशाल शिवलिंग जैसा है। हिंदू धर्म में इसकी परिक्रमा का बड़ा महत्व है। परिक्रमा 52 किमी की होती है। तिब्बत के लोगों का मानना ​​है कि उन्हें इस पर्वत की 3 या फिर 13 परिक्रमा करनी चाहिए। वहीं, तिब्बत के कई तीर्थ यात्री तो दंडवत प्रणाम करते हुए इसकी परिक्रमा पूरी करते हैं। उनका मानना ​​है कि एक परिक्रमा से एक जन्म के पाप दूर हो जाते हैं, जबकि दस परिक्रमा से कई अवतारों के पाप मिट जाते हैं। जो 108 परिक्रमा पूरी कर लेता है उसे जन्म और मृत्यु से मुक्ति मिल जाती है।

भगवान शिव के घर कैलाश पर्वत पर आज तक कोई नहीं चढ़ पाया
हिंदू शास्त्रों में भगवान शिव को कैलाश पर्वत का स्‍वामी माना जाता है। हिंदू धर्म में कैलाश पर्वत का बहुत महत्व है, क्योंकि यह भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। लेकिन सोचने वाली बात ये है कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को अभी तक 7000 से ज्यादा लोग फतह कर चुके हैं, जिसकी ऊंचाई 8848 मीटर है, लेकिन कैलाश पर्वत पर आज तक कोई नहीं चढ़ पाया है जबकि इसकी ऊंचाई एवरेस्ट से लगभग 2000 मीटर कम यानी 6638 मीटर ही है। यह अब तक सबके लिए रहस्य ही बना हुआ है। कैलाश पर्वत के बारे में अक्‍सर ऐसी बातें सुनने में आती हैं कि कई पर्वतारोहियों ने इस पर चढ़ने की कोशिश की, लेकिन वे इसमें सफल नहीं हो सके।

कैलाश पर्वत पर व्यक्ति हो जाता है दिशाहीन
कैलाश पर्वत पर कभी किसी के नहीं चढ़ पाने के पीछे कई किंवदंतियां प्रचलित हैं। कुछ लोगों का मानना है कि कैलाश पर्वत पर भगवान शिव अपने परिवार के साथ रहते हैं और इसीलिए कोई जीवित इंसान वहां ऊपर नहीं पहुंच सकता। ऐसा भी माना जाता है कि कैलाश पर्वत पर थोड़ा सा ऊपर चढ़ते ही व्यक्ति दिशाहीन हो जाता है। बिना दिशा के चढ़ाई करना मतलब मौत को दावत देना है, इसलिए कोई भी इंसान आज तक कैलाश पर्वत पर नहीं चढ़ पाया है।

माउंट कैलाश को शिव पिरामिड भी कहा जाता है
सन 1999 में रूस के वैज्ञानिकों की टीम एक महीने तक कैलाश पर्वत के नीचे रही और इसके आकार के बारे में शोध करती रही। वैज्ञानिकों ने कहा कि इस पहाड़ की तिकोने आकार की चोटी प्राकृतिक नहीं, बल्कि एक पिरामिड है जो बर्फ से ढकी रहती है। यही कारण है कि माउंट कैलाश को शिव पिरामिड के नाम से भी जाना जाता है। जो भी इस पहाड़ को चढ़ने निकला, या तो मारा गया, या बिना चढ़े वापस लौट आया।

शरीर के बाल और नाखून तेजी से बढ़ने लगते हैं
चीन सरकार के कहने पर कुछ पर्वतारोहियों का दल कैलाश पर चढ़ने का प्रयास कर चुका है। लेकिन उन्हें भी सफलता नहीं मिली और पूरी दुनिया के विरोध का सामना अलग से करना पड़ा। हारकर चीनी सरकार को इस पर चढ़ाई करने से रोक लगानी पड़ी। कहते हैं जो भी इस पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश करता है, वो आगे नहीं चढ़ पाता, उसका हृदय परिवर्तन हो जाता है। यहां की हवा में कुछ अलग बात है। शरीर के बाल और नाखून 2 दिन में ही इतने बढ़ जाते हैं, जितने 2 हफ्ते में बढ़ने चाहिए। शरीर मुरझाने लगता है। चेहरे पर बुढ़ापा नजर आने लगता है।

रूस के पर्वतारोही भी कैलाश के आगे घुटने टेक चुके
चीन ही नहीं रूस भी कैलाश के आगे अपने घुटने टेक चुका है। सन 2007 में रूसी पर्वतारोही सर्गे सिस्टिकोव ने अपनी टीम के साथ माउंट कैलास पर चढ़ने की कोशिश की थी। सर्गे ने अपना खुद का अनुभव बताते हुए कहा था कि कुछ दूर चढ़ने पर उनकी और पूरी टीम के सिर में भयंकर दर्द होने लगा। फिर उनके पैरों ने जवाब दे दिया। उनके जबड़े की मांसपेशियां खिंचने लगीं और जीभ जम गई। मुंह से आवाज़ निकलना बंद हो गई। चढ़ते हुए मुझे महसूस हुआ कि वह इस पर्वत पर चढ़ने लायक नहीं हैं। उन्होंने फौरन मुड़कर उतरना शुरू कर दिया। तब जाकर उन्हें आराम मिला।

मोदी सरकार ने कैलाश पर्वत श्रृंखला के बड़े हिस्से को कब्जे में लिया
29-30 अगस्त 2020 की रात को पैंगोंग-त्सो झील के दक्षिण में भारतीय सेना की प्रीम्टिव-कार्रवाई से भारत को चीन पर सामरिक-बढ़त तो मिली ही साथ ही पहली बार ’62 के युद्ध के बाद भारत को कैलाश पर्वत-श्रृंखला को भी अपने अधिकार-क्षेत्र में करने का बड़ा मौका मिला। भारत के सबसे बड़े और पवित्र तीर्थ-स्थल में से एक कैलाश मानसरोवर की कैलाश-रेंज। 29-30 अगस्त की रात को भारतीय सेना ने पैंगोंग-त्सो झील के दक्षिण में करीब 60-70 किलोमीटर तक का पूरा क्षेत्र अपने अधिकार में कर लिया। चुशुल सेक्टर के अंतर्गत आने वाले इस क्षेत्र की गुरंग हिल, मगर हिल, मुखपरी और रेचिन-ला दर्रा सभी कैलाश रेंज का हिस्सा है। 1962 के युद्ध से पहले ये पूरा इलाका भारत के अधिकार-क्षेत्र में था। लेकिन ’62 के युद्ध में रेजांगला और चुशुल की लड़ाई के बाद दोनों देश की सेनाएं इसके पीछे चली गई थीं और इस इलाके को पूरी तरह खाली कर दिया गया था।

पीएम मोदी के विजन से निखर रहा है प्राचीन भारत का गौरवशाली वैभव
पीएम मोदी के विजन पर चलते हुए सरकार तीर्थयात्रा पर्यटन के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार पर जोर दे रही है। सालों से ऐसे स्थल बुनियादी सुविधाओं की कमी का सामना कर रहे थे। अब पीएम मोदी के नेतृत्व में सरकार इन स्थलों का पुरोद्धार कर रही है। लोग यहां धार्मिक भावनाओं की वजह से जाते रहे हैं। अब जब सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है तो यहां पर्यटन बढ़ने के साथ-साथ रोजगार के अवसर भी बढ़ रहे हैं। पीएम मोदी न सिर्फ भारत में बल्कि दुनिया के दूसरे देशों में भी मंदिरों को भव्य बनाने पर जोर दे रहे हैं। पिछले कुछ सालों में तीर्थ क्षेत्रों में विस्तार और सुविधाओं में बढ़ोतरी से भक्तों की संख्या यहां इतनी अधिक हो गई है कि अब पर्यटन से इतर हिंदू तीर्थ क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था में एक अलग आर्थिक क्षेत्र भी बनता दिख रहा है। यह सब पीएम मोदी के विजन से संभव हो पाया है। भारत की यह अनोखी अर्थव्यवस्था सैकड़ों सालों से चली आ रही है और अब 2014 के बाद पीएम मोदी भारत को प्राचीन वैभव दिला रहे हैं।

पीएम मोदी के विजन प्राचीन भारत का गौरवशाली वैभव निखर रहा है। जी 20 में भी सनातन संस्कृति के भिन्न रूप देखने को मिले थे। इस पर एक नजर-

पीएम मोदी ने जी-20 में सनातन मंत्र से विश्व कल्याण का मार्ग दिखाया
आजादी के बाद पहली बार देश में जी-20 शिखर सम्मेलन जैसा बड़ा आयोजन हुआ। इस महासम्मेलन में चारों तरफ सनातन संस्कृति की छाया रही, जिसे देखकर हर भारतवासी का दिल गौरव से भर उठा। यह सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व में संभव हुआ। पीएम मोदी ने जी-20 जैसे बड़े आयोजन में सनातन संस्कृति का झंडा बुलंद करके भारत माता का मान बढ़ाया। जी-20 में भारत की प्राचीनता और आधुनिकता का अद्भुत संगम दुनिया ने देखा। भारत के सांस्कृतिक दूत और सनातन के सच्चे सेवक पीएम मोदी के विजन से जी-20 आयोजन स्थल सनातन संस्कृति से रचा-बसा नजर आया। नटराज की प्रतिमा, कोणार्क चक्र, रामायण, महाभारत, विष्णु अवतार के दर्शन, गीता ऐप के जरिये जीवन दर्शन आदि सनातन प्रतीक देखकर विदेशी मेहमान भी मोहित हुए बिना नहीं रह सके। 

पीएम मोदी ने कोणार्क चक्र के सामने किया विश्व वर्ल्ड लीडर्स का स्वागत
देश की राजधानी दिल्‍ली में 9 सितंबर 2023 को जी-20 शिखर सम्‍मेलन का आगाज हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रगति मैदान के भारत मंडपम में सभी जी-20 नेताओं और प्रतिनिधियों का जिस स्‍थान पर हाथ मिलाकर स्‍वागत किया, वहां पीछे एक बड़ा-सा चक्र बना हुआ था। ये बेहद खास चक्र है, जिसका नाम ‘कोणार्क चक्र’ है। ओडिशा के कोणार्क चक्र को 13वीं शताब्दी के दौरान राजा नरसिम्हादेव-प्रथम के शासनकाल में बनाया गया था। कोणार्क चक्र वही चक्र है, जो भारत के राष्‍ट्रीय ध्‍वज में नजर आता है। 24 तीलियों वाले कोणार्क चक्र को भारत के राष्ट्रीय ध्वज में रूपांतरित किया गया, जो भारत के प्राचीन ज्ञान, उन्नत सभ्यता और वास्तुशिल्प उत्कृष्टता का प्रतीक है। समय हमेशा एक सा नहीं रहता, ये बदलता रहता है। कोणार्क चक्र इस समय का ही प्रतीक है, जो कालचक्र के साथ-साथ प्रगति और परिवर्तन को दर्शाता है।

भारत ने ढाई हजार साल पहले मानव कल्याण का संदेश दिया था: मोदी
दिल्ली के भारत मंडपम में जी-20 शिखर सम्मेलन के पहले सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब अपनी बात शुरू की वह भी सनातन संस्कृति का जयघोष ही था। पीएम मोदी ने कहा कि ढाई हजार साल पहले भारत की धरती ने मानवता के कल्याण का संदेश पूरी दुनिया को दिया था। 21वीं सदी का यह समय पूरी दुनिया को नई दिशा देने वाला है। पीएम मोदी ने भारतीय संस्कृति पर कहा- इस समय जिस स्थान पर हम एकत्रित हैं, यहां से कुछ ही किलोमीटर के फासले पर लगभग ढाई हजार साल पुराना एक स्तंभ लगा हुआ है। इस स्तंभ पर प्राकृत भाषा में लिखा है- “हेवम लोकसा हितमुखे ति, अथ इयम नातिसु हेवम”। अर्थात, मानवता का कल्याण और सुख सदैव सुनिश्चित किया जाए। ढाई हजार साल पहले, भारत की भूमि ने, यह संदेश पूरे विश्व को दिया था। आइए, इस सन्देश को याद कर, इस G-20 समिट का हम आरम्भ करें।

विदेशी मेहमान सनातन संस्कृति के दर्शन कर हुए मोहित 
दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन इस बार सनातन संस्कृति की छाया में हो रहा है। आजादी के बाद पहली बार देश में इतना बड़ा आयोजन हो रहा है। इसी भाव को दृष्टिगत रखते हुए शिखर सम्मेलन स्थल पर भगवान शिव की 28 फीट ऊंची ‘नटराज‘ प्रतिमा को प्रतीक रूप में स्थापित किया गया है। इस प्रतिमा में शिव के तीन प्रतीक-रूप परिलक्षित हैं। ये उनकी सृजन यानी कल्याण और संहार अर्थात विनाश की ब्रह्मांडीय शक्ति का प्रतीक हैं। अष्टधातु की यह प्रतिमा प्रगति मैदान में ‘भारत मंडपम्’ के द्वार पर लगाई गई है। इस प्रतिमा की आत्मा में सार्वभौमिक स्तर पर सर्व-कल्याण का संदेश अंतर्निहित है। इसे देखकर विदेशी मेहमान भी मोहित हो गए। 

मेहमान कर रहे रामायण, महाभारत, विष्णु अवतार के दर्शन
जी-20 सम्मेलन में शामिल होने के लिए आए मेहमानों के स्वागत के लिए समूचे नयी दिल्ली क्षेत्र को विशेष रूप से सजाया-संवारा गया है। दिल्ली की सड़कों पर हर तरफ वॉल पेंटिंग्स बनाई गई है, जहां से डेलीगेट्स के काफिलों को गुजरना है। ये कलाकृतियां भैरो मार्ग रेलवे ब्रिज के नीचे दीवारों पर बनाई गई है। इसमें रामायण, महाभारत और विष्णु अवतार के भव्य रूप को दर्शाया गया है। विभिन्न राज्यों के पारंपरिक नृत्य कला, चित्रकारी की झलक भी इसमें है।

जी-20 के लोगो में सनातन शब्द ‘वसुधैव कुटुंबकम्’
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसी शाश्वत दर्शन से भारतीय संस्कृति के दो सनातन शब्द लेकर ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के विचार को सम्मेलन शुरू होने के पूर्व प्रचारित करते हुए कहा कि ‘पूरी दुनिया एक परिवार है।’ यह ऐसा सर्वव्यापी और सर्वकालिक दृष्टिकोण है, जो हमें एक सार्वभौमिक परिवार के रूप में प्रगति करने के लिए प्रोत्साहित करता है। एक ऐसा परिवार जिसमें सीमा, भाषा और विचारधारा का कोई बंधन नहीं है।

विश्व कल्याण का मंत्र आज तक किसी राष्ट्र प्रमुख ने नहीं दिया
पीएम मोदी के दिए ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ का मंत्र जी-20 की भारत की अध्यक्षता के दौरान यह विचार मानव केंद्रित प्रगति के आह्वान के रूप में प्रकट हुआ है। हम एक धरती के रूप में मानव जीवन को बेहतर बनाने के लिए एक साथ आ रहे हैं। जिससे सब एक-दूसरे के सहयोगी बने रहें और समान एवं उज्ज्वल भविष्य के लिए एक साथ आगे बढ़ते रहें। विश्व कल्याण का यह विचार आज तक किसी अन्य देश के राष्ट्र प्रमुख ने नहीं दिया। क्योंकि ये देश असमानता के संदर्भ में ही अपने पूंजीवादी, बाजारवादी और उपभोक्तावादी एजेंडे को आगे बढ़ाते रहे हैं। पश्चिमी देशों द्वारा हथियारों का उत्पादन और फिर उनके खपाने का प्रबंध कई देशों की प्रत्यक्ष लड़ाई और देशों के भीतर ही धर्म और संस्कृति के अंतर्कलह देखने में आते रहे हैं। अतएव विश्वव्यापी भाईचारे के लिए वसुधैव कुटुंबकम् से उत्तम कोई दूसरा विचार हो ही नहीं सकता।

‘आस्क गीता’ ऐप से जीवन की शिक्षाओं एवं दर्शन को समझने का मौका
जी-20 सम्मेलन के दौरान भारत मंडपम में यूपीआई जैसे प्रौद्योगिकी मंचों को दर्शाने के साथ ‘गीता’ ऐप के जरिये जीवन को समझने का मौका भी मिलेगा। यहां पर विदेशी मेहमानों को पवित्र ग्रंथ गीता की शिक्षाओं एवं उसके दर्शन को समझने का मौका एक विशेष ऐप के जरिये मिलेगा। ‘आस्क गीता’ एक ऐसा माध्यम है जिसके माध्यम से विदेशी मेहमान इस पवित्र ग्रंथ में उल्लिखित शिक्षाओं के अनुरूप जीवन से जुड़े विविध पहलुओं को समझ सकेंगे।

देश-विदेश से आए मेहमान देखेंगे ऋग्वेद की सबसे पुरानी पांडुलिपि
G20 के कल्चर कॉरिडोर में ऋग्वेद की सबसे पुरानी पांडुलिपि रखने के लिए मंगवाई गई है, ताकि देश-विदेश से आए मेहमान इसे देख और समझ सकें। साल 2007 में यूनेस्को ने ऋग्वेद को वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किया था। ऋग्वेद को दुनिया की पहली पुस्तक और पहला धर्मग्रंथ माना जाता है। ऋग्‍वेद के बारे में कहा जाता है कि ये खुद ईश्‍वर ने ऋषियों को सुनाया था। इसमें कुल 1028 सूक्तियां हैं, जो वेद मंत्रों का समूह हैं। ज्यादातर सूक्तियां देवताओं की स्तुति से जुड़ी हैं। हालांकि कुछ में मानव जीवन के दूसरे पहलुओं पर भी बात की गई है। इसमें करीब 125 औषधियों का जिक्र है, जो शरीर और मन की स्थिति को बेहतर बनाए रखने में मददगार हैं। ऋग्वेद की सबसे पुरानी प्रति भोजपत्र पर लिखी हुई है, जिसे पुणे के भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट में रखा गया। इनमें से एक पांडुलिपि शारदा स्क्रिप्ट में लिखी हुई है, जबकि बाकी 29 मेनुस्क्रिप्ट देवनागरी में हैं।

6000 ईसा पूर्व से भारत के गौरवशाली इतिहास की जानकारी
केंद्र सरकार ने जी20 शिखर सम्मेलन से पहले दो पुस्तिकाएं जारी की हैं, जो 6000 ईसा पूर्व से भारत के गौरवशाली इतिहास की जानकारी देती हैं। ‘भारत, लोकतंत्र की जननी’ और ‘भारत में चुनाव’ शीर्षक वाली ये पुस्तिकाएं आने वाले गणमान्य व्यक्तियों को दी गई। इन दस्तावेजों की सॉफ्ट कॉपी G20 की आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड कर दी गई है। दो पुस्तिकाओं के 40 पृष्ठों में रामायण, महाभारत, छत्रपति शिवाजी, अकबर और आम चुनावों के माध्यम से भारत के सत्ता परिवर्तन के बारे में बात की गई है।

जी20 शिखर सम्मेलन के लिए जारी दोनों पुस्तिकाओं का फोकस इस बात पर है कि लोकतांत्रिक लोकाचार सहस्राब्दियों से भारत के लोगों का हिस्सा रहा है। पुस्तिकाओं से मुख्य अंश-

♦ पहली 26 पेज की पुस्तिका में भारत को ‘लोकतंत्र की जननी’ के रूप में चित्रित किया गया है। इसमें एक नाचती हुई लड़की की मूर्ति की तस्वीर है, जो आत्मविश्वास से खड़ी है और दुनिया को आंखों से आंखें मिलाकर देख रही है, स्वतंत्र और मुक्त है। ये कांस्य प्रतिमा 5,000 वर्ष पुरानी है।
♦ पुस्तिका में चार वेदों में से सबसे प्रारंभिक ऋग्वेद की एक स्तुति भी शामिल है, जो आम लोगों और अन्य प्रतिनिधि निकायों की एक सभा के बारे में बात करती है।
♦ इसमें रामायण और महाभारत के समय के लोकतांत्रिक तत्वों का हवाला देते हुए कहा गया है कि भगवान राम को उनके पिता ने मंत्रिपरिषद की मंजूरी और परामर्श के बाद राजा के रूप में चुना था।
♦ महाभारत में मरते हुए पितामह भीष्म ने युधिष्ठिर को सुशासन के सिद्धांत बताए. पुस्तिका के अनुसार, भीष्म ने कहा, “एक राजा के धर्म का सार अपनी प्रजा की समृद्धि और खुशी को सुरक्षित करना है।”
♦ इसके बाद पुस्तिका बौद्ध धर्म के आगमन और कैसे इसके सिद्धांतों ने भारत में लोकतांत्रिक लोकाचार, अर्थशास्त्र और इसकी शिक्षाओं और अशोक, चंद्रगुप्त मौर्य, कृष्णदेव राय और छत्रपति शिवाजी सहित कई राजाओं के शासन के दौरान लोगों की भागीदारी को प्रभावित किया, इसके बारे में भी बात की गई है।
♦ पुस्तिका में कहा गया है कि आधुनिक समय में भी आजादी के बाद, भारत द्वारा अपनाए गए संविधान ने पिछले लोकतांत्रिक मॉडल को बरकरार रखते हुए एक आधुनिक, लोकतांत्रिक गणराज्य की रूपरेखा तैयार की।
♦ 15 पृष्ठों की दूसरी पुस्तिका 1951 से 2019 तक भारत में चुनावों के इतिहास के बारे में बताती है। उम्मीदवारों की संख्या से लेकर अधिकारियों द्वारा की गई व्यवस्था तक, दस्तावेज़ लोकतंत्र के क्षेत्र में भारत द्वारा की गई प्रगति पर प्रकाश डालता है।

पीएम मोदी भारतीय संस्कृति का मान विदेशों में भी बढ़ाते रहे हैं उन्होंने जून 2023 में अमेरिका का दौरा किया था और वहां उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति को सनातन संस्कृति से जुड़े खास गिफ्ट दिए थे।

पीएम मोदी ने बाइडेन को दिए सनातन संस्कृति से जुड़े खास गिफ्ट!
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 21-24 जून को अमेरिका की राजकीय यात्रा की थी। इस दौरान उन्होंने राष्‍ट्रपति जो बाइडेन को सनातन संस्कृति से जुड़े खास गिफ्ट दिए। इसमें भगवान गणेश की मूर्ति, उपनिषद, ताम्रपत्र, दस दानराशि और सहस्र चंद्र दर्शन प्रमुख रूप से शामिल थे। दृष्टसहस्रचंद्रो (सहस्र चंद्र दर्शन) का बाइडेन की उम्र से खास कनेक्शन है और यह उनके लिए अनमोल तोहफा रहा। सहस्र चंद्र दर्शनम का अर्थ है 1000 पूर्ण चंद्रमाओं को देखना। दरअसल 80 साल 8 महीने जीवित रहने पर कोई भी व्यक्ति 1000 पूर्ण चंद्रमा देख लेता है और बाइडेन 80 साल 7 महीने के हो चुके थे। सहस्र चंद्र दर्शनम में सतभिषेकम के लिए पूजा सामग्री रखी गई थी। इसके साथ ही पीएम मोदी ने ‘द टेन प्रिंसिपल उपनिषद’ के पहले संस्करण की एक प्रति राष्ट्रपति जो बाइडेन को उपहार में दी थी।

पीएम मोदी ने देश में सनातन संस्कृति का गौरव बढ़ाने के लिए कई काम किए हैं। इस पर एक नजर-

पीएम मोदी सनातन संस्कृति के उत्थान से दिला रहे प्राचीन वैभव
भारत में प्राचीन काल से एक अनोखी अर्थव्यवस्था रही है। वह है तीर्थक्षेत्र का अर्थशास्त्र। आजादी के बाद देश पर 60 सालों तक शासन करने वाली कांग्रेस ने इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया और अंग्रेजों की मानसिकता के साथ देश पर शासन किया। वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी ने जब देश की बागडोर संभाली तो तीर्थक्षेत्र के अर्थशास्त्र को नई ऊंचाई देने का काम शुरू किया। मोदी सरकार ने पिछले नौ साल के कार्यकाल में ऐसे कई तीर्थक्षेत्रों का विकास किया है जिससे न केवल देश में पर्यटन को नई ताकत मिली है बल्कि सनातन संस्कृति के उत्थान से अर्थव्यवस्था को भी गति मिल रही है। पिछले कुछ सालों में तीर्थ क्षेत्रों में विस्तार और सुविधाओं में बढ़ोतरी से भक्तों की संख्या यहां इतनी अधिक हो गई है कि अब पर्यटन से इतर हिंदू तीर्थ क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था में एक अलग आर्थिक क्षेत्र भी बनता दिख रहा है और इस पर न रिसेशन की माया है न ही NPA का काला साया। यह सब पीएम मोदी के विजन से संभव हो पाया है। भारत की यह अनोखी अर्थव्यवस्था सैकड़ों सालों से चली आ रही है और अब 2014 के बाद पीएम मोदी भारत को प्राचीन वैभव दिला रहे हैं।

पीएम मोदी के विजन से देश के मंदिरों का हुआ रेनोवेशन 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत की सनातन सभ्यता और संस्कृति के उद्धारक के रूप में सामने आए हैं। उनकी सरकार न सिर्फ देश का भौतिक विकास कर रही है, बल्कि सनातन संस्कृति को दुनियाभर में पहचान भी दिला रही है। दरअसल भारत के पवित्र मंदिर सनातन संस्कृति के मूर्त रूप होते हैं। इन मंदिरों ने आस्था और धर्म को बचाए रखने और समाज के फिर से उत्थान में बड़ी भूमिका निभाई है। इनको मोदी राज में प्राचीन और आधुनिक शैली के संगम से नये स्वरुप में ढाला जा रहा है। पिछले 9 सालों से प्रधानमंत्री मोदी प्राचीन धार्मिक, सांस्कृतिक विरासत और धरोहर रहे मंदिरों का जीर्णोद्धार कर उन्हें अपनी पुरानी गरिमा वापस दिला रहे हैं। आइए जानते हैं उन मंदिरों के बारे में जिनका प्रधानमंत्री मोदी की प्रेरणा और प्रयास से जीर्णोद्धार किया गया है…

1. काशी विश्वनाथ कॉरीडोर और मंदिर परिसर का जीर्णोद्धार
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 13 दिसंबर, 2021 को 500 साधु संतों और मंत्रोच्चार के साथ काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण किया। प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही काशी को उसके स्तर के मुताबिक बुनियादी ढांचा देने का ऐलान कर दिया। 8 मार्च 2019 को प्रधानमंत्री मोदी ने काशी विश्वनाथ कॉरीडोर और मंदिर परिसर के जीर्णोद्धार का काम शुरू कर दिया और चार साल के रिकॉर्ड समय में यह कॉरिडोर बनकर तैयार हो गया। वाराणसी से लोकसभा सांसद प्रधानमंत्री मोदी का यह ड्रीम प्रोजेक्ट था, जिसके निर्माण में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी है। इस भव्य कॉरिडोर में छोटी-बड़ी 23 इमारतें और 27 मंदिर हैं। अब काशी विश्वनाथ आने वाले श्रद्धालुओं को गलियों और तंग संकरे रास्तों से नहीं गुजरना पड़ेगा। गंगा घाट से सीधे कॉ‍रिडोर के रास्‍ते बाबा विश्‍वनाथ के दर्शन किए जा सकते हैं।

2. महाकाल लोक कॉरिडोर धार्मिक पर्यटन को नया आयाम देगी
पीएम मोदी ने 11 अक्टूबर 2022 को मध्य प्रदेश के उज्जैन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर के नवविस्तारित क्षेत्र ‘श्री महाकाल लोक’ का लोकार्पण किया। महाकाल मंदिर के लिए तैयार किए गए मास्टर प्लान का उद्देश्य महाकाल मंदिर को पुरानी पहचान वापस दिलाना है। महाकाल लोक कॉरिडोर काफी भव्य है और अब ये मंदिर के क्षेत्र को 10 गुना तक बढ़ा देगा। कॉरिडोर में भगवान शिव से जुड़ी कई मूर्तियां लगाई गई हैं, जो अलग अलग कहानी बताती है और भक्तों को भगवान शिव से जोड़ती हैं। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर 300 मीटर में बना है, जबकि इसकी लंबाई 900 मीटर है। इसे काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से भव्य माना जा रहा है। इस पर 856 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। जितना भव्य यह कॉरिडोर बना है उससे पता चलता है कि आने वाले दिनों में यह धार्मिक पर्यटन को नया आयाम देगी।

3. सोमनाथ मंदिर परिसर का विकास
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 20 अगस्त 2021 को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से गुजरात स्थित सोमनाथ मंदिर के पुननिर्माण के लिए विभिन्न परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया। इन परियोजनाओं में सोमनाथ समुद्र दर्शन पथ, सोमनाथ प्रदर्शनी केंद्र और पुराने (जूना) सोमनाथ का पुनर्निर्मित मंदिर परिसर शामिल हैं। इससे यहां का पर्यटन बढ़ा है और लोगों में समृद्धि आई है। कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्वती मंदिर की आधारशिला भी रखी। इसका निर्माण कुल 30 करोड़ रुपये के परिव्यय से किया जाना प्रस्तावित है। इसमें सोमपुरा सलात शैली में मंदिर निर्माण, गर्भ गृह और नृत्य मंडप का विकास शामिल है। इन परियोजनाओं के अंतर्गत मंदिर के पीछे समुद्र तट पर 49 करोड़ रुपये की लागत से बना एक किलोमीटर लम्‍बा समुद्र दर्शन मार्ग, पुरानी कलाकृतियों से युक्‍त नवनिर्मित सभागार और मुख्‍य मंदिर के सामने बने नवीनीकृत अहिल्‍याबाई होल्‍कर मंदिर यानी पुराना सोमनाथ मंदिर को भी शामिल किया गया है।

4. अयोध्या में भव्य राम मंदिर का पीएम मोदी ने किया भूमि पूजन
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 5 अगस्त 2020 को विधि-विधान के साथ अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर की नींव रखी। प्रधानमंत्री मोदी ने भूमि पूजन के बाद अभिजीत मुहूर्त में श्रीराम मंदिर का शिलान्यास किया। इसके साथ ही मंदिर निर्माण का कार्य शुरू हो गया। अब जल्द ही इसके बनकर पूरी तैयार हो जाने की संभावना है। पीएम मोदी के विजन से आज राम मंदिर के रूप में भारत के गौरव का प्रतिबिंब खड़ा हुआ है। इतिहास से सीखकर, वर्तमान को सुधारने की एक नया भविष्य बनाने की कहानी है। यह केवल भौगोलिक एवं वैचारिक निर्माण नहीं है। यह हमारे अतीत से जोड़ने का प्रकल्प है। हमने अतीत के खंडहरों पर आधुनिक गौरव का निर्माण किया है।

5. पावागढ़ के कालिका मंदिर में 500 साल बाद शिखर पर फहराया ध्वज
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हिन्दू स्वाभिमान के प्रतीक है। उनका शासनकाल हिन्दू धर्म के पुनर्जागरण का काल है। 18 जून, 2022 को हर हिन्दू गर्वान्वित महसूस किया, जब 500 साल बाद प्रधानमंत्री मोदी ने गुजरात के पावागढ़ पहाड़ी पर स्थित महाकाली मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद उसके शिखर पर पताका फहराया। प्रधानमंत्री मोदी के प्रयास से ही 11वीं सदी में बने इस मंदिर का पुनर्विकास योजना के तहत कायाकल्प किया गया। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि महाकाली मंदिर के ऊपर पांच सदियों तक, यहां तक कि आजादी के 75 वर्षों के दौरान भी पताका नहीं फहराई गई थी। लाखों भक्तों का सपना आज उस समय पूरा हो गया जब मंदिर प्राचीन काल की तरह अपने पूरे वैभव के साथ खड़ा है।

6. कश्मीर में प्राचीन मंदिरों का पुनरोद्दार
कश्मीर में 05 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 हटने के बाद मोदी सरकार ने श्रीनगर में कई पुराने मंदिरों का पुनर्निर्माण शुरु किया। मंदिरविहीन हो चुकी घाटी में गुलमर्ग का शिव मंदिर ऐसा पहला मंदिर है, जिसे 1 जून, 2021 को जीर्णोद्धार के बाद जनता के लिए खोल दिया गया। शिव मंदिर को व्यापक जीर्णोद्धार की आवश्यकता थी, क्योंकि लंबे समय से इस मंदिर में कोई जीर्णोद्धार कार्य नहीं हुआ था। गुलमर्ग में आने वाले स्थानीय लोगों और पर्यटकों की एक बड़ी संख्या ने मंदिर को उसकी मूल स्थिति में देखने की इच्छा व्यक्त की थी।

7. कश्मीर में 2300 साल पुराना शारदा पीठ मंदिर का जीर्णोद्धार
कश्मीर में 2300 साल पुराना शारदा पीठ मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कश्मीर में एलओसी के पास माता शारदा देवी मंदिर का 23 मार्च 2023 को वर्चुअल उद्घाटन किया। श्मीर पंडित लंबे समय से सदियों पुराने इस मंदिर के जीर्णोद्धार की मांग कर रहे थे. अब इसे पूरा कर दिया गया है। शारदा पीठ मंदिर कश्मीरी पंडितों की आस्था का प्रतीक रहा है लेकिन सदियों पुराना ये मंदिर खंडहर में बदल चुका था। इसे करीब 2300 साल पुराना बताया जाता है। दिसंबर 2021 के महीने में इस भूमि पर पारंपरिक पूजा की गई। इस मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए सेव शारदा समिति ने एक मंदिर निर्माण समिति का गठन किया था।

8. झेलम नदी के किनारे बने रघुनाथ मंदिर का फिर से निर्माण
मोदी सरकार के आकलन के मुताबिक कश्मीर में कुल 1842 हिंदू मंदिर या पूजास्थल हैं। इनमें से 952 मंदिर हैं जिनमें 212 में पूजा चल रही है जबकि 740 जीर्ण शीर्ण हालत में है। मोदी सरकार ने सबसे पहले झेलम नदी के किनारे बने रघुनाथ मंदिर का फिर से निर्माण किया। भगवान राम का ये मंदिर महाराजा गुलाब सिंह ने 1835 में बनवाया था। इसके अलावा अनंतनाग का मार्तंड मंदिर, पाटन का शंकरगौरीश्वर मंदिर, श्रीनगर के पांद्रेथन मंदिर, अवंतिपोरा के अवंतिस्वामी और अवंतिस्ववरा मंदिर के पुनरोद्धार का काम चल रहा है। अनंतनाग जिले में एएसआई द्वारा संरक्षित मार्तंड सूर्य मंदिर में मई 2022 में सुबह 100 से अधिक तीर्थयात्रियों ने कुछ घंटों तक पूजा-अर्चना की। इस कार्यक्रम के जरिए सूर्य मंदिर में पहली बार शंकराचार्य जयंती मनाई गई। कहा जाता है कि 8वीं शताब्दी के इस मंदिर को सिकंदर शाह मिरी के शासन के दौरान 1389 और 1413 के बीच नष्ट कर दिया गया था।

9. पीएम मोदी की पहल से चार धाम परियोजना का विकास
मोदी सरकार ने देवभूमि उत्तराखंड के लिए चार धाम परियोजना शुरू की है। केदारनाथ बद्रीनाथ की यमुनोत्री और गंगोत्री के चारधाम परियोजना- रणनीतिक रूप से बेहद अहम माने जाने वाली 900 किलोमीटर लंबी इस सड़क परियोजना का उद्देश्य उत्तराखंड के चारों धामों के लिए हर मौसम में सुलभ और सुविधाजनक रास्ता देना है। चारधाम परियोजना एक तरह से ऑल वेदर रोड परियोजना है, जो उत्तराखंड में केवल चार धामों को जोड़ने की परियोजना भर नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय महत्व की परियोजना है। इसके जरिए उत्तराखंड के गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ को जोड़कर पर्यटन को बढ़ावा तो मिलेगा ही, साथ ही पड़ोसी चालबाज देश चीन को चुनौती देने के लिहाज से भी यह महत्वपूर्ण है। इसके अलावा ऋषिकेश को रेल मार्ग से कर्णप्रयाग से जोड़ने का काम चल रहा है। ये रेलवे लाइन 2025 से शुरू हो जाएगी।

10. हिंदू संत रामानुजाचार्य के सम्मान में स्टैच्यू ऑफ इक्वेलिटी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 फरवरी 2022 को हैदराबाद में 11वीं सदी के हिंदू संत रामानुजाचार्य के सम्मान में बनी 216 फीट ऊंची स्टैच्यू ऑफ इक्वेलिटी का उद्घाटन किया था। इस प्रतिमा में 120 किलो सोने का इस्तेमाल किया गया है। जिसकी लागत करीब 400 करोड़ रूपए है। यह 45 एकड़ जमीन पर बना है। मंदिर परिसर में करीब 25 करोड़ की लागत से म्यूजिकल फाउंटेन का निर्माण कराया गया है।

11. संत तुकाराम शिला मंदिर का उद्घाटन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 जून 2022 को संत तुकाराम शिला मंदिर का उद्घाटन किया। पीएम मोदी ने विकास योजनाओं की जानकारी देते हुए कहा, ‘संत ज्ञानेश्वर पालखी मार्ग का निर्माण 5 चरणों में होगा और संत तुकाराम पालखी मार्ग का निर्माण 3 चरणों में होगा। 350 किलोमीटर से ज्यादा बड़े हाइवे बनेंगे, इसमें 11000 करोड़ का खर्च होगा। संत तुकाराम एक वारकरी संत और कवि थे। उन्हें अभंग भक्ति कविता और कीर्तन के माध्यम से समुदाय-उन्मुख पूजा के लिए जाना जाता है। यह मंदिर 36 चोटियों के साथ पत्थर की चिनाई से बनाया गया है। इसमें संत तुकाराम की एक मूर्ति भी स्थापित की गई है।

12. प्रसाद योजना के तहत धार्मिक स्थलों में सुविधाओं का विस्तार
सरकार ने धार्मिक स्थलों का विकास करने के शुरू की गई प्रसाद योजना का विस्तार किया है। फिलहाल इस योजना से 12 धार्मिक स्थलों को जोड़ा गया है। इनमें कामाख्या (असम), अमरावती (आंध्र प्रदेश), द्वारका (गुजरात), गया (बिहार), अमृतसर (पंजाब), अजमेर (राजस्थान), पुरी (ओडिशा), केदारनाथ (उत्तराखंड), कांचीपुरम (तमिलनाडु), वेलनकन्नी (तमिलनाडु), वाराणसी (उत्तर प्रदेश), मथुरा (उत्तर प्रदेश) शामिल हैं। इन 12 स्थलों के अलावा प्रसाद योजना का दायरा और बढ़ा दिया गया है। योजना के तहत स्थलों की संख्या बढ़कर लगभग 41 हो गयी है। बौद्ध तीर्थ यात्रा के लिए कुशीनगर के अलावा झारखंड स्थित देवघर समेत कई तीर्थ स्थलों का प्रसाद योजना के तहत बुनियादी सुविधाओं का निर्माण कराया जा रहा है। इस योजना का मकसद बुनियादी सुविधाओं का विकास किया जाना है। प्रवेश स्थल (सड़क, रेल और जल परिवहन), आखिरी छोर तक कनेक्टिविटी, पर्यटन की बुनियादी सुविधाएं जैसे सूचना केंद्र, एटीएम, मनी एक्सचेंज, पर्यावरण अनुकूल परिवहन के साधन, क्षेत्र में प्रकाश की सुविधा और नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत से रोशनी, पार्किंग, पीने का पानी, शौचालय, अमानती सामान घर, प्रतीक्षालय, प्राथमिक चिकित्सा केंद्र, शिल्प बाजार, हाट, दुकानें, कैफेटेरिया, मौसम से बचने के उपाय, दूरसंचार सुविधाएं, इंटरनेट, कनेक्टिविटी आदि शामिल हैं।

13. रामायण सर्किट और बुद्ध सर्किट को भी जोड़ने का काम
रामायण सर्किट और बुद्ध सर्किट को भी जोड़ने का काम चल रहा है। देश में कोरोना की रफ्तार में कमी होने के बाद घरेलू पर्यटन में बढोतरी हुई है। पर्यटन मंत्रालय की माने तो दुर्गम इलाकों में कनेक्टिविटी में सुधार तथा पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कई विकास कार्य तेज कर दिया गया है, जिससे आने वाले यात्रियों को असुविधा न हो। बेहतर सुविधाएं मिलने से जहां पर्यटकों को सहुलियत होगी, वहीं रोजगार के भी अवसर बढ़ेंगे। स्थानीय सरकार को इससे कमाई भी बढ़ेगी।

14. दूसरे देशों में भी मंदिर बनाने में योगदान दे रहे पीएम मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न सिर्फ भारत में बल्कि दुनिया के दूसरे देशों में भी मंदिरों को भव्य बनाने पर जोर दे रहे हैं। साल 2019 में पीएम मोदी की सरकार ने मनामा और अबू धाबी में भगवान श्रीकृष्ण श्रीनाथजी के पुनर्निर्माण के लिए 4.2 मिलियन डॉलर देने का ऐलान किया था। इसके साथ ही 2018 में उन्होंने अबू धाबी में बनने वाले पहले हिंदू मंदिर की आधारशिला रखी थी। उन्होंने 16 मई, 2022 को नेपाल के लुंबिनी में नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेर बहादुर देवबा के साथ भारत अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध संस्कृति और विरासत केंद्र का शिलान्यास किया। यही नहीं पीएम मोदी के व्यक्तिगत प्रयासों से ऐसे सैकड़ों प्राचीन वस्तुओं एवं मूर्तियों को विदेशों से वापस लाने में सफलता मिली है, जिन्हें दशकों पहले चोरी और तस्करी के जरिए विदेश भेज दिया गया था।

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