Home समाचार कश्मीर में गिरिजा टिक्कू तो इजरायल में शानी लौक, एक मजहबी सोच...

कश्मीर में गिरिजा टिक्कू तो इजरायल में शानी लौक, एक मजहबी सोच ने यहूदी और हिंदुओं को सदियों से किया तबाह

SHARE

पाकिस्तान प्रायोजित जिहादी आतंकवादियों ने जिस तरह का तांडव 1990 में भारत के कश्मीर में किया था उसी तरह का तांडव 7 अक्टूबर हमास आतंकियों ने इजरायल में किया। भारत से करीब 4 हजार किलोमीटर की दूरी पर इजरायल स्थित है। जगह बदल गया, चेहरे बदल गए लेकिन मजहबी सोच, जिहादी बर्बरता कायम रही। कश्मीर में गिरिजा टिक्कू तो इजरायल में शानी लौक, एक मजहबी सोच ने यहूदी और हिंदुओं को सदियों तक तबाह किया है। कश्मीर में साल 1990 में जिहादी आतंकवादियों ने नंगा नाच किया था। कश्मीरी पंडितों की बस्तियों में सामूहिक बलात्कार और लड़कियों के अपहरण किए गए। नरसंहार में सैकड़ों पंडितों का कत्लेआम हुआ। लाखों कश्मीरी पंडित अपना घर-बार छोड़कर पलायन करने पर मजबूर हुए थे। इसी तरह इजरायल में सैकड़ों यहूदियों की हत्या कर दी गई। जिहादी आतंकवादियों ने लड़कियों, महिलाओं के साथ बलात्कार किया, उनका अपहरण कर लिया। केवल एक गांव में 40 बच्चों को मार दिया गया। जिहादियों ने बर्बरता की सीमा पार करते हुए उनका गला तक काट दिया।

मुंबई हमले के अंदाज में इजरायल पर किया गया हमला
हमास के आतंकियों ने 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमला 26/11 के मुंबई हमले के आतंकियों के स्टाइल में हमला किया। इससे शक की सुई पाकिस्तान भी जाता है कि पाकिस्तानी सेना ने हमास आतंकियों को प्रशिक्षित किया है। हालांकि मुंबई हमले में 10 आतंकवादी शामिल थे जबकि इजरायल पर सैकड़ों आतंकवादियों ने बड़े पैमाने पर हमला किया गया। इजरायल की जमीन पर पहुंचते ही इन आतंकियों ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। गाजा पट्टी के करीब आतंकियों ने एक महिला को भी मार डाला। लेकिन इन आतंकियों को इसे मारने भर से ही सुकून नहीं मिला, बल्कि उन्होंने इसके शव को नग्न किया, हाथ पैर बांध कर गाड़ी पर बांध दिया। इसके बाद आतंकी फिलिस्तीनियों के बीच इसका शव घुमाने लगे। उसके बात पता चला है कि यह इजरायल की नहीं बल्कि एक जर्मन नागरिक थी। हमास ने जो इजराइल में किया उसकी धमकी भारत के जिहादी सोच वाले मुसलमान हिंदुओं को बार-बार देते रहे हैं। हिंदुओं को अपनी जाति भूलना पड़ेगा, एक होना पड़ेगा क्योंकि एक मजहबी सोच वाली किताब में सभी हिंदुओं को काफिर ही कहा गया है। आज हर भारतीयों की इनसे सतर्क रहने की जरूरत है।

जिहादी आतंकवादियों की दरिदंगी, बच्चों के सिर काट दिए
इजरायल की सेना एक कस्बे में गई तब वहां 40 बच्चों की लाश मिली जिनमें गर्दन काट दिए गए थे। 20 महिलाओं की लाश मिली जिनके साथ बलात्कार करके मारा गया था। ये जिहादी सोच वाले दरिंदे हैं, यह राक्षस हैं जो पूरी इंसानियत और मानवता के लिए खतरा है और जो इनका समर्थन कर रहे हैं वह इसे भी बड़ा दरिंदा है। दक्षिणी इज़राइल के किबुत्ज़ बेरी में प्रवेश करने वाले आईडीएफ सैनिकों को 100 से अधिक बच्चे मिले जिनके सिर कटे हुए थे, पूरे परिवारों को हमास के आतंकवादियों ने बिस्तर पर ही गोलियों से भून दिया था। यह कट्टरपंथी इस्लामवादियों का असली चेहरा है। आज की सभ्य दुनिया में कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकवाद का समूल नाश जरूरी है।


कश्मीर में गिरिजा टिक्कू के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद हत्या
इस्लामिक आतंकवाद का बर्बर रूप कश्मीर को झेलना पड़ा। 11 जून 1990 को जब गिरिजा कुमारी टिक्कू सैलरी लेने के लिए स्कूल गईं थीं। वह स्कूल में लैब असिस्टेंट का काम करती थीं। स्कूल बांदीपोरा जिले में था और सैलरी लेने के बाद वह उसी दिन उसी गांव में जहां स्कूल था अपनी एक सहकर्मी के घर मिलने गईं। इस बीच उन पर आतंकियों की नजर थी जैसे ही वह उस घर में पहुंची उनका अपहरण हो जाता है। गांव वालों को यह बात पता चली लेकिन आतंकियों के डर से कोई आगे नहीं बढ़ा। आगे गिरिजा कुमारी के साथ क्या हुआ यह सुनकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे। आतंकियों ने न केवल अपहरण किया बल्कि सामूहिक बलात्कार भी किया। दरिंदों का मन जब इससे भी नहीं भरा तो जिंदा आरा मशीन के बीच में रखकर गिरिजा को काट दिया। आतंकी इससे कई संदेश देना चाहते थे और कश्मीरी हिंदुओं के बीच डर बैठाना चाहते थे। एक लंबा अरसा बीत जाने के बाद विवेक अग्निहोत्री की फिल्म कश्मीर फाइल्स में इस दर्द को बयां किया गया।

खून से लथपथ, हिंसा से आक्रांत मजबूर लोगों को घर छोड़ना पड़ा
अमेरिका में कश्मीरी मूल की लेखिका सुनंदा वशिष्ठ का एक वीडियो फिल्म आने के बाद काफी वायरल हो रहा है। जिसमें वह प्रदेश से धारा 370 को समाप्त किए जाने का समर्थन करते हुए कहती हैं कि मेरे माता-पिता कश्मीरी पंडित हैं, मैं हिंदू कश्मीरी पंडित हूं। हम कश्मीर के उस पीड़ित समुदाय से आते हैं जिन्हें इस्लामिक कट्टरपंथ के कारण अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। हिंदू महिलाओं का गैंगरेप किया गया और उनके शव के टुकड़े कर के फेंके गए। खून से लथपथ, हिंसा से आक्रांत हम मजबूर और डरे हुए लोग थे जिन्हें अपना घर छोड़ना पड़ा। सुनंदा ने उस दौर की भयानक हिंसा को याद करते हुए कहा कि हमारे घर जलाए गए, बागों में आग लगाई गई। धार्मिक पहचान के आधार पर निशाना बनाया गया। आतंकियों ने गिरिजा टिक्कू जैसी महिलाओं का गैंगरेप किया, उनके शव के टुकड़े-टुकड़े किए गए। सुनंदा वशिष्ठ का 2019 का वीडियो अब वायरल हो रहा है।


‘अल्लाह हू अकबर’ के नारों के बीच शानी लौक का शव अर्धनग्‍न घुमाया
कश्मीर में हिंदुओं की नफरत की तरह इजरायल में यहूदी की नफरत में अंधे इन आतंकियों ने सड़क पर मौजूद हर शख्स को गोलियों से भूनना शुरू कर दिया। जब महिला को मारने का वीडियो सामने आया था, तब ऐसी रिपोर्ट थीं कि यह इजराली सेना की एक सैनिक है। लेकिन अब इस लड़की की पहचान जर्मनी की रहने वाली शानी लौक (Shani Louk) के रूप में हुई है। 30 साल की शानी एक संगीत समारोह में थीं, जो शांति के लिए आयोजित किया गया था। लेकिन अचानक से आतंकियों ने यहां तांडव मचाना शुरू कर दिया। एक ट्रक पर शानी लौक की अर्धनग्न डेड बॉडी रखकर आतंकवादी इज़राइल पर अपने हमलों का जश्न मनाते हुए “अल्लाहु अकबर” का नारा लगा रहे थे।


इस्लामी आतंकवाद का क्रूर चेहरा था डायरेक्ट एक्शन डे
भारत ने इस्लामी आतंकवाद का एक क्रूर चेहरा उस वक्त भी देखा था जब आजादी मिल रही थी और मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान की मांग मनवाने के लिए डायरेक्ट एक्शन डे का एलान कर दिया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के ठीक एक साल पहले 16 अगस्त 1946 को भारत ने मजहबी कट्टरपंथ का वह रूप देखा जो दशकों तक याद रखा जाने वाला था। भारत की आजादी की दास्तां खून की स्याही से लिखी गई है। इतिहास के पन्नों में दर्ज कहानियां इसकी गवाह हैं कि ब्रिटिश हूकूमत से स्वाधीनता की लड़ाई में जितना खून बहा था। उससे कहीं ज्यादा खून आजादी मिलने के वक्त मजहबी सोच के कारण बहा था। इसमें अंग्रेजों की बंटवारे और फूट की राजनीति आग में घी का काम किया था। जैसे-जैसे स्वाधीनता की दिन नजदीक आता जा रहा था, नेहरू और जिन्ना में मतभेद और मनभेद भी शुरु हो गये थे। जिन्ना ने 16 अगस्त 1946 को डायरेक्ट एक्शन डे की घोषणा कर दी। बंगाल में उस दिन 16 अगस्त 1946 को सुबह भी सबकुछ सामान्य था। लेकिन मस्जिदों में सामान्य दिनों की तुलना में अधिक भीड़ नजर आ रही थी। इतने सारे लोग कहां से आये थे कोई नहीं जानता था। इसके बाद सड़कों पर हजारों की संख्या लोग हाथों में लाठी-ठंडे और अन्य हथियारों से लैस होकर एकत्रित होने लगे।

डायरेक्ट एक्शन डे में 10 हजार से अधिक हिंदू मारे गए
ख्वाजा नजीमुद्दीन और बंगाल के मंत्री हसन शहीद सुहरावर्दी ने इस भीड़ के बीच में भाषण दिया। इस भाषण के बाद भीड़ बिल्कुल निरंकुश हो गई थी। बंगाल में हुए इस भीषण रक्तपात के लिए इतिहास सुहरावर्दी को ही साजिशकर्ता मानता है। इस सांप्रादायिक हिंसा के दौरान सैकड़ों हिंदू मौत के घाट उतार दिए गए थे। हजारों लोग जख्मी हुए थे और महिलाओं के साथ दुष्कर्म की घटनाओं को अंजाम दिया गया था। यह रक्तपात 22 अगस्त चलता रहा था। इसमें मरने वालों का आंकड़ा 10 हजार के बीच का है। इसके साथ ही बहुत सारे हिंदुओं को मारकर हुगली नदी में फेंक दिया गया। इसके अलावा 1200 के करीब भीषण आगजनी की घटनाएं हुईं. इनमें कितने लोग जिंदा जले, बता पाना मुश्किल है।

हिंदुओं के खून से लाल हो गया था कलकत्ता
16 अगस्त के एक दिन पहले तक किसी को यह नहीं पता चला था कि आखिरकार मुस्लिम लीग का डायरेक्ट एक्शन डे क्या है? तत्कालीन बंगाल में मुस्लिम लीग का ही शासन था और वहां सत्ता में बैठा हुआ था प्रधानमंत्री हसन शहीद सुहरावर्दी जिसे बंगाल में हिन्दुओं के खिलाफ किए गए भीषण नरसंहार का साजिशकर्ता माना जाता है। उसकी शह पर मुस्लिम लीग ने डायरेक्ट एक्शन के नाम पर बंगाल में खुलकर अपने हिन्दू विरोधी मंसूबे पूरे किए। मुस्लिमों ने जमकर तांडव मचाया। राजा बाजार, केला बागान, कॉलेज स्ट्रीट, हैरिसन रोड और बर्राबाजार जैसे इलाकों में हिन्दुओं के घरों और दुकानों को जलाया जाने लगा। हिंदुओं को चुन-चुन कर मारा गया, हिन्दू महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया, हिंदुओं की संपत्तियों को जला दिया गया। पूर्वी बंगाल के नोआखाली में भी हिन्दुओं का भीषण नरसंहार हुआ। मुस्लिम की भीड़ हिन्दुओं पर भूखे भेड़ियों की तरह टूट पड़ी थी। कलकत्ता में ही 72 घंटों के भीतर लगभग 6 लाख हिन्दू मार दिए गए। मजहबी दंगाइयों के शिकार हुए लगभग 20,000 से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हुए और लगभग 100,000 लोगों को अपना सबकुछ छोड़कर जाना पड़ा।

कलकत्ता की सड़कों पर गूंजते रहे, ‘अल्लाह-हु-अकबर’, ‘लड़ के लेंगे पाकिस्तान’
एक अन्य प्रत्यक्षदर्शी ने बताया था कि 17 अगस्त जो कि डायरेक्ट एक्शन डे का सबसे खतरनाक दिन माना जाता है, उस दिन कलकत्ता की सड़कों पर चारों ओर सिर्फ, ‘अल्लाह-हु-अकबर’, ‘नारा-ए-तकबीर’, ‘लड़ के लेंगे पाकिस्तान’ और ‘कायदे आजम जिंदाबाद’ ही सुनाई दे रहा था। भारत के स्वतंत्रता संग्राम पर गौर से नजर रखने वाले अमेरिकी पत्रकार फिलिप टैलबॉट ने इंस्टीट्यूट ऑफ करंट वर्ल्ड अफेयर्स को भेजे गए अपने खत में डायरेक्ट एक्शन डे के बाद हुई मौतों के बारे में लिखा था, हालांकि जिस तरीके से मुस्लिम भीड़ ने कलकत्ता और उसके आसपास के इलाकों में दंगे को अंजाम दिया था उससे यह नहीं लगता कि मरने वाले हिन्दुओं की संख्या इतनी कम रही होगी। इसके अलावा हिन्दुओं की लाशों को नदी में भी बड़ी संख्या में फेंक दिया गया था। इसलिए मौतों का सही आंकड़ा क्या था, यह कहना बहुत मुश्किल है। जुगल चंद्र घोष नाम के एक स्थानीय प्रत्यक्षदर्शी ने बताया था कि उसने 4 ट्रक देखे थे जिसमें 3 फुट की ऊंचाई तक लाशें भरी हुई थीं और इन लाशों से खून और विभिन्न अंग बाहर आ रहे थे। हर बार की तरह इस बार भी हिन्दुओं की मौतों का आंकड़ा बस इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह गया।

मुगलकाल के बाद भारत के हिंदुओं पर मोपला में हुई जिहादी बर्बरता
भारत में इस्लाम अरब व्यापारियों के ज़रिये केरल के मालाबार तट के रास्ते आया था। मालाबार क्षेत्र की चेरामन जुमा मस्जिद, भारत में इस्लाम के प्रवेश का प्रतीक है। उस वक्त जो लोग जाति और वर्ण व्यवस्था से पीड़ित थे उन्होंने इस्लाम अंगीकार कर लिया। 20 अगस्त 1921 को मालाबार इलाके में मोपला विद्रोह की शुरुआत हुई थी। यहां हत्यारे थे मोपला मुसलमान और पीड़ित थे हिन्दू। इसे बड़ी चालाकी से वामपंथी इतिहासकारों के गिरोह ने ‘जमींदारों के खिलाफ किसानों की बगावत’ बता कर कई पीढ़ियों को झूठ की घुट्टी पिलाई। लेकिन सच्चाई यही है कि मोपला में जिहादी सोच वालों ने हिंदुओं का कत्लेआम किया। मोपला मुलसमानों के निशाने पर बड़े पैमाने पर हिंदू आए। इसमें हजारों हिंदुओं की हत्या कर दी गई। हजारों का धर्म परिवर्तन कर मुसलमान बना दिया गया। हिंदू महिलाओं के साथ बलात्कार किए गए। हाल के 100 साल के इतिहास में मोपला विद्रोह को हिंदुओं के खिलाफ मुसलमानों का पहला जिहाद कहा जाता है।

खिलाफत आंदोलन की आड़ में किया गया हिंदुओं का नरसंहार
केरल के मालाबार इलाके में हुआ मोपला विद्रोह खिलाफत आंदोलन के साथ भड़का था। दरअसल प्रथम विश्वयुद्ध में तुर्की की हार हुई थी। इसके बाद अंग्रेजों ने वहां के खलीफा को गद्दी से हटा दिया था। अंग्रेजों की इस कार्रवाई से दुनियाभर के मुसलमान नाराज हो गए। तुर्की के सुल्तान की गद्दी वापस दिलाने के लिए ही खिलाफत आंदोलन की शुरुआत हुई। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल मुस्लिम नेताओं अबुल कलाम आजाद, जफर अली खां और मोहम्मद अली जैसे नेताओं ने खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया। इस आंदोलन को बापू का भी समर्थन प्राप्त था। महात्मा गांधी इस आंदोलन के जरिए अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में हिंदू और मुसलमानों को एकसाथ लाने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन जिहादी सोच वालों के मन में कुछ और चल रहा था और उन्होंने हिंदुओं का नरसंहार कर दिया।

मोपला में हजारों हिंदू मारे गए, स्वामी श्रद्धानंद की भी गोली मारकर हत्या
मोपलाओं ने कई पुलिस स्टेशनों में आग लगा दी। सरकारी खजाने लूट लिए गए। अंग्रेजों को अपने निशाने पर लेने के बाद इन लोगों ने इलाके के अमीर हिंदुओं पर हमले शुरू कर दिए। कहा जाता है कि मोपला विद्रोह के दौरान हजारों हिंदू मारे गए, उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार हुए, हजारों हिंदुओं को धर्म परिवर्तन करना पड़ा। बाद में आर्य समाज की तरफ से उनका शुद्धिकरण आंदोलन चला। जिन हिंदुओं को मुस्लिम बना दिया गया था, उन्हें वापस हिंदू बनाया गया। इसी आंदोलन के दौरान आर्य समाज के नेता स्वामी श्रद्धानंद को उनके आश्रम में ही 23 दिसंबर 1926 को गोली मार दी गई।

जिहादी बर्बरता भारत में वही, भारत से 4600 किलोमीटर दूर इजरायल में भी वही
एक शिशु था। अपनी मां का स्तनपान कर रहा था। अचानक से कुछ जिहादी दंगाई आते हैं और मां की छाती से लगे उस बच्चे को छीन लेते हैं। फिर उस बच्चे के दो टुकड़े कर देते हैं। यह मोपला में हिंदुओं के साथ की गई बर्बरता की कहानी कहता है। इस घटना के बारे में कांग्रेस पार्टी पार्टी की पूर्व अध्यक्ष एनी बेसेंट ने भी लिखा है। इसी तरह भारत से 4600 किलोमीटर दूर, करीब 102 वर्षों बाद इजरायल में जिहादी सोच वालों की मानसिकता नहीं बदली है। इजरायल के एक गांव में हमास आतंकियों द्वारा बच्चों का गला काट दिया जाता है। उनका अंग-अंग काट डाला जाता है। नन्हे-नन्हे बच्चों को जला दिया जाता है। युद्ध कोई नई बात नहीं है लेकिन इतनी बर्बरता इस जिहादी सोच वालों में क्यों है। क्या किसी मासूम से बच्चे का गला रेतते समय इनके मन में क्षण भर भी ये ख्याल नहीं आता कि इसकी क्या गलती है? जिहादी 102 वर्ष पहले भी वही थे, आज भी वही हैं। भारत में ये वही हैं और भारत से 4600 किलोमीटर दूर भी वही हैं। ऐसे आतताइयों के लिए मानवता दिखाने की बात की जाती है। इन्हें पीड़ित बताया जाता है। इनके लिए भारत में मुसलमान सड़क पर उतरते हैं। धिक्कार है, लानत है!

मुगलकाल में तोड़े गए 60 हजार से ज्यादा मंदिर
जिहादी सोच वालों ने मुगलकाल में भारत में करीब 60 हजार मंदिर तोड़ दिए गए थे। काशी, मथुरा, दिल्ली, आगरा से लेकर मध्य प्रदेश के धार तक मंदिर-मस्जिद का विवाद जारी है। इन विवादों में हिंदू पक्ष का दावा है कि मुस्लिम आक्रांताओं ने हिंदुओं की आस्था पर चोट पहुंचाई थी। 60 हजार से ज्यादा मंदिरों को तोड़ डाला गया था। कई मंदिरों को तोड़कर मस्जिदों का निर्माण कराया गया था। इन मंदिरों में ज्यादा हिंदू, जैन और बौद्ध मंदिरों को तोड़ दिया गया था। मुगलकाल में आक्रांताओं ने काफी तरह से भारत की संस्कृति, हिंदू धर्म की आस्था को खंडित करने की कोशिश की। मंदिरों को तोड़ने का काम इसी में से एक है। मुगल काल में तोड़े गए मंदिरों की एकदम सही संख्या बता पाना मुश्किल है, क्योंकि उस दौरान का इतिहास भी मुगल शासकों ने अपने अनुसार लिखवाया था। ये जरूर कहा जा सकता है कि कई हजार मंदिरों को मुगलों ने तोड़ दिया था। कई के सबूत आज भी मौजूद हैं।

जिहादी सोच वाले मुगल आक्रांताओं द्वारा तोड़े गए 10 प्रमुख मंदिर

1. सोमनाथ मंदिर, काठियावाड़ गुजरात
गुजरात के काठियावाड़ में 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक सोमनाथ मंदिर है। ये समुद्र के किनारे स्थित है। इसका जिक्र महाभारत, श्रीमद्भागवत और स्कंद पुराण में भी विस्तार से है। कहा जाता है कि चंद्रदेव ने भगवान शिव को अपना नाथ मानकर यहां उनकी तपस्या की थी। चंद्रदेव को सोम नाम से भी जाना जाता है। इसलिए इस मंदिर का नाम सोमनाथ पड़ा। आक्रांताओं ने इसे 17 बार लूटा और क्षतिग्रस्त किया, लेकिन हर बार ये उतनी ही मजबूती के साथ फिर खड़ा हुआ। यह मंदिर ईसा पूर्व से पहले ही अस्तित्व में आ गया था। इसका पुनिर्निर्माण 649 ईस्वी में वैल्लभी के मैत्रिक राजाओं ने किया। पहली बार इस मंदिर को 725 ईस्वी में सिंध के मुस्लिम सूबेदार अल जुनैद ने तुड़वाया। इसके बाद राजा नागभट्ट ने इसका पुनिर्निर्माण 815 ईस्वी में करवाया। 1024 में फिर से महमूद गजनवी ने इस पर हमला बोला और मंदिर की पूरी संपत्ति लूटने के बाद इसे नष्ट कर दिया। महमूद गजनवरी के आक्रमण के बाद 1093 ईस्वी में गुजरात के राजा भीमदेव, मालवा के राजा भोज ने इसका पुनिर्निर्माण कराया। 1297 में अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खां, 1395 में मुजफ्फरशाह, 1412 में उसके बेटे अहमद शाह, 1665 ईस्वी और 1706 में औरंगजेब ने इस पर हमला किया। मंदिर को क्षतिग्रस्त किया और लूटपाट की।

2. राम जन्मभूमि, अयोध्या, उत्तर प्रदेश 
इतिहासकारों के मुताबिक, 1528 में बाबर के सेनापति मीर बकी ने अयोध्या के राम मंदिर को तुड़वाकर बाबरी मस्जिद बनवाई थी। 1949 में कुछ लोगों ने गुंबद के नीचे राम मूर्ति की स्थापना कर दी थी। 1992 में कारसेवक ने विवादित ढांचे को तोड़ दिया। कोर्ट की लंबी लड़ाई के बाद 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया।

3. काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
कहा जाता है कि द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख काशी विश्वनाथ मंदिर अनादिकाल से काशी में है। 1100 ईसा पूर्व राजा हरीशचंद्र और फिर सम्राट विक्रमादित्य ने इसका जीर्णोद्धार कराया था। 1194 में मुहम्मद गौरी ने मंदिर में लूटपाट की और फिर तुड़वा दिया। बाद में इसे फिर हिंदू राजाओं ने बनवाया, लेकिन 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने इसे फिर तुड़वा दिया। 1585 ई. में राजा टोडरमल की मदद से पं. नारायण भट्ट ने फिर से यहां भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। 1632 में इसे फिर से तोड़ने के लिए शाहजहां ने सेना भेज दी, हालांकि हिंदुओं के विरोध के चलते ये नहीं हो सका, लेकिन काशी के 63 मंदिरों को शाहजहां ने तुड़वा दिया। 18 अप्रैल 1669 में औरंगजेब ने फिर से मंदिर पर आक्रमण कर दिया। दावा है कि मंदिर तोड़कर यहां पर ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई। 1777-80 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होलकर ने मंदिर का फिर से जीर्णोद्धार करवाया।

4. श्रीकृष्ण जन्मभूमि, मथुरा, उत्तर प्रदेश
ऐसा कहा जाता है कि औरंगजेब ने श्रीकृष्ण जन्म स्थली पर बने प्राचीन केशवनाथ मंदिर को नष्ट करके उसी जगह 1660 ईस्वी में शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया था। 1770 में गोवर्धन में मुगलों और मराठाओं में जंग हुई। इसमें मराठा जीते। जीत के बाद मराठाओं ने फिर से मंदिर का निर्माण कराया।

5. मोढेरा सूर्य मंदिर, पाटन, गुजरात
अहमदाबाद से 100 किलोमीटर दूर पुष्पावती नदी के किनारे मोढेरा सूर्य मंदिर स्थापित है। इसका निर्माण सूर्यवंशी सोलंकी राजा भीमदेव प्रथम ने 1026 ईस्वी में करवाया था। कहा जाता है कि मुस्लिम आक्रांता अलाउद्दीन खिलजी ने मंदिर पर आक्रमण किया और इसे तुड़वा दिया। इसमें लूटपाट भी की। कई मूर्तियों को खंडित करवा दिया।

6. हम्मी के मंदिर, हम्पी डम्पी, कर्नाटक
हम्पी मध्यकालीन हिंदू राज्य विजयनगरम् साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी। कर्नाटक में स्थित यह नगर यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थलों की सूची में भी शामिल है। यहां एक समय दुनिया के सबसे बेहतरीन और विशालकाय मंदिर बने थे, लेकिन 1565 में बरार की सेनाओं ने इसपर हमला कर दिया। इसे काफी हद तक नष्ट कर दिया।

7. रुद्र महालय, पाटन, गुजरात
पाटन जिले के सिद्धपुर में रुद्र महालय है। सरस्वती नदी के किनारे बसा ये काफी प्राचीन नगर है। इसका निर्माण 943 ईस्वी में मूलाराज सोलंकी ने शुरू करवाया था, जो 1140 ईस्वी में राजा सिद्धराज जयसिंह के काल में पूरा हुआ। 1094 में सिद्धराज ने रुद्र महालय का विस्तार करके श्रीस्थल का सिद्धपुर नाम रखा। इतिहासकारों का कहना है कि 1410-1444 ईस्वी के दौरान अलाउद्दीन खिलजी ने इसका कई बार विध्वंस किया। अहमद शाह ने भी इसे तुड़वाया। इस मंदिर को आक्रांताओं ने तीन बार लूटा और बाद में इसके एक हिस्से पर मस्जिद बनवा दी।

8. मदन मोहन मंदिर, वृंदावन, मथुरा उत्तर प्रदेश
वैष्णव संप्रदाय के मदन मोहन मंदिर का निर्माण 1590 ईस्वी से 1627 ईस्वी के बीच रामदासी खत्री और कपूरी के द्वारा करवाया गया था। भगवान श्रीकृष्ण का एक नाम मदन मोहन भी है। भगवान की मूल प्रतिमा आज इस मंदिर में नहीं है। कहा जाता है कि मुगल शासन में प्रतिमा को राजस्थान स्थानांतरित कर दिया गया था। औरंगजेबकाल में इस मंदिर को भी निशाना बनाया गया था।

9. मार्तण्य सूर्य मंदिर, अनंतनाग कश्मीर
कश्मीर घाटी के अनंतनाग में कर्कोटा समुदाय के राजा ललितादित्य मुक्तिपाडा ने लगभग 725-61 ईस्वी में इस ऐतिहासिक और विशालकाय मार्तण्य सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था। ये कश्मीर के सबसे पुराने मंदिरों में शुमार है। अनंतनाग से पहलगाम के बीच एक जगह है, जिसे मटन कहा जाता है। कहा जाता है कि इसे मुस्लिम शासक सिकंदर बुतशिकन ने तुड़वाया दिया था। मुस्लिम इतिहासकार हसन अपनी किताब ‘हिस्ट्री ऑफ कश्मीर’ में लिखते हैं कि 1393 के आसपास सबसे ज्यादा कश्मीरी पंडितों पर सुल्तान बुतशिकन ने कहर बरपाया था। इतिहासकार नरेंद्र सहगल ने भी इसका जिक्र अपनी किताब व्यथित जम्मू कश्मीर में किया है। इसमें उन्होंने लिखा है, ‘पंडितों पर जब अत्याचार हो रहा था तब हजरत अमीर कबीर (तत्कालीन धार्मिक नेता) ने ये सब अपनी आंखों से देखा। उसने मंदिर नष्ट किया और बेरहमी से कत्लेआम किया।’

10. मीनाक्षी मंदिर, मदुरै, तमिलनाडु
भगवान शिव और देवी पार्वती को मीनाक्षी नाम से जाना जाता था। यह मंदिर उन्हीं को समर्पित है। राजा इंद्र ने इसकी स्थापना करवाई थी। हिंदू संत थिरुग्ननासम्बंदर ने इस मंदिर का वर्णन 7वीं शताब्दी से पहले ही कर दिया था। प्राचीन राजा पांडियन मंदिर के लिए लोगों से चंदा लेते थे। कहा जाता है कि 14वीं शताब्दी में मुगल मुस्लिम कमांडर मलिक काफूर ने मंदिर को तोड़ा और इसमें लूटपाट की। यहां से कई मूल्यवान आभूषण और रत्न लूटकर ले गया। बाद में अलग-अलग शासन में इसे हिंदू राजाओं ने बनवाया।

Leave a Reply