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राहुल गांधी का अडानी पर हमला, कांग्रेस पार्टी का चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से MOU और यूरोप की डिफेंस लॉबी में क्या संबंध?

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कांग्रेस नेता राहुल गांधी की जब संसद सदस्यता रद्द हो गई तो उसके बाद प्रेस कांफ्रेस में सबको यही उम्मीद थी कि संसद सदस्यता रद्द होने पर वह अपना पक्ष रखेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वह अडानी पर ही बोलते रहे और जब वह अडानी पर बोलते हैं तो समझ लीजिए की अडानी की रक्षा क्षेत्र की कंपनियों पर ही हमला होता है। अडानी समूह रक्षा क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहा है। इससे दुनिया में एक तो चीन परेशान है और दूसरा यूरोप की डिफेंस कंपिनयों को दिक्कत है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से कांग्रेस पार्टी का MOU है। हालांकि MOU किस बात को लेकर यह आज तक सार्वजनिक नहीं है। लेकिन हाल के समय में राहुल के बयानों पर गौर करें तो पाएंगे या तो वे चीन की बात करते हैं या फिर अडानी का मुद्दा उठाते हैं। चीन से कांग्रेस का MOU है और यूरोप से अडानी पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट आ चुका है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट लाने में यूरोपीय डिफेंस लॉबी और अमेरिकी अरबपति जार्ज सोरोस का हाथ था। वही जार्ज सोरोस जिसने राष्ट्रवाद से लड़ने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाने के लिए 100 करोड़ डॉलर खर्च करने की बात कही है।

चीनी MOU की लाज बचाने के लिए अडानी पर हमला

राहुल चीन के एजेंडे पर काम करते हुए देश में रक्षा उत्पादन और निर्यात को चौपट करके चीन को खुश करना चाहता है, ताकि उस चीनी MOU की लाज बचाई जा सके! राहुल ने अडानी के ड्रोन विमानों के निर्माण, मिसाइलों के निर्माण और लॉजिस्टिक्स पर जमकर जहर उगला ताकि देश का मान ना बढ़ पाए।

राहुल ने चीन के इशारों पर राफेल विमान में रोड़े अटकाए

राहुल ने चीन के इशारों पर काम करते हुए राफेल युद्धक विमानों की खरीद में तमाम तरह के रोड़े अटकाए ताकि हमारी सेनाओं को मजबूती ना मिल सके! तब इसी राहुल ने अंबानी को निशाना बनाया, झूठ फैलाया और इल्जाम लगाया कि मोदी ने अम्बानी को फायदा पहुंचाया, जो कि SC में ध्वस्त हुआ! फ्रांस के राष्ट्रपति ने भी इसके झूठ का पर्दाफाश किया।

अडानी मुद्दा उठाने से राहुल के दोनों हाथों में लड्डू

राहुल गांधी की दिल्ली में जब प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई तो उसमें उन्होंने अडानी की रक्षा कंपनियों और रक्षा उत्पादन पर सवाल उठाए थे। और ऐसा करने से उनके दोनों हाथों में लड्डू होता है। एक तो चीन के साथ MOU जिससे उसे भी खुश रखना है। चीन नहीं चाहता कि भारत रक्षा क्षेत्र में मजबूत बने। वहीं राहुल को यूरोप के डिफेंस लॉबी को भी खुश करना है जिन्होंने हिंडनबर्ग रिपोर्ट लाकर उन्हें सरकार पर हमला करने का टूल दिया। यूरोप नहीं चाहता भारत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बने। क्योंकि अगर भारत आत्मनिर्भर बन गया तो उसका एक बड़ा रक्षा बाजार खत्म हो जाएगा।

भारत सैन्य क्षेत्र में सबसे ज्यादा खर्च करने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश

भारत रक्षा क्षेत्र में खुद को लगातार मजबूत बना रहा है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारत दुनियाभर में सैन्य क्षेत्र में सबसे ज्यादा खर्च करने वाले देशों की सूची में तीसरा सबसे बड़ा देश है। इस सूची में भारत से ऊपर अमेरिका और चीन हैं। भारत ने बीते पांच वर्षों में 1.93 लाख करोड़ रुपये मूल्य के सैन्य उपकरण खरीदे हैं। इससे समझा जा सकता है कि भारत जब आत्मनिर्भर हो जाएगा तो यूरोप का कितना बड़ा बाजार छिन जाएगा। यही नहीं, भारत आत्मनिर्भर होकर दूसरे देशों को भी रक्षा उपकरण बेच रहा है। यूरोप इससे भी घबराया हुआ है कि एक तो भारत का बाजार छिन जाएगा वहीं भारत जिन देशों को रक्षा उत्पाद बेचेगा वहां उनका बाजार खत्म हो जाएगा।

कुछ तथ्य:-

1. देश का रक्षा बजट आजादी से लेकर 2013 तक केवल 86 हजार करोड़ ₹/वर्ष तक पहुंच पाया था, जबकि आज 2021-22 में 1 लाख 62 हजार करोड़ ₹/वर्ष का हो चुका है।

2. आजादी के बाद से लेकर 2013 तक रक्षा निर्यात केवल 686 करोड़ ₹ था, जबकि आज भारत अपना रक्षा-निर्यात 13 हजार करोड़ ₹ से अधिक का कर चुका है, और 2025 तक यह 36 हजार करोड़ ₹ से अधिक करेगा।

3. आत्मनिर्भर योजना में भारत रक्षा-उत्पादन में 1 लाख करोड़ ₹ के हथियार और युद्धक सामग्री देश में ही बना रहा है।

4. आज देश में रक्षा उत्पादन से जुड़ी 200 से अधिक निजी क्षेत्रों की कंपनियां अपनी प्रतिभा का लोहा देश विदेश में मनवा रही हैं।

5. इन्हीं निजी क्षेत्रों की रक्षा उत्पादन से जुड़ी कंपनियों में अडानी और अंबानी समूह की कई कंपनियां समेत L&T और अन्य बहुत सारी छोटी बड़ी कंपनियां दिन रात काम कर रही हैं।

6. पूर्व में रक्षा उत्पादन सिर्फ और सिर्फ सरकारी कम्पनी ही कर पाती थी।

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से चंद रोज पहले स्वीडिश कंपनी ने करार तोड़ा

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से चंद रोज पहले स्वीडिश एयरोस्पेस और डिफेंस कंपनी Saab ने अडानी ग्रुप के साथ अपनी एक डील को कैंसल कर दिया। Saab ने यह डील भारत में Gripen E फाइटर बनाने के लिए की थी। कंपनी ने कहा है कि अब कंपनी इस डील के साथ आगे नहीं बढ़ेगी। सवाल ये है कि आखिर किस वजह से कंपनी ने ऐसा किया है? Saab India के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर Mats Palmberg ने कहा कि अब उन्होंने अडानी ग्रुप के साथ डील में आगे नहीं बढ़ने का फैसला किया है। यानी अब ये फाइटर अडानी ग्रुप मैन्युफैक्चर नहीं करेगी। इस टेंडर के तरह 114 मीडियम मल्टीरोल फाइटर एयरक्राफ्ट बनाए जाने हैं। इस टेंडर की वैल्यू करीब 60-70 हजार करोड़ रुपये है।

अडानी समूह ने रक्षा क्षेत्र में एयर वर्क्स ग्रुप में हिस्सेदारी खरीदी

रक्षा क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए बढ़चढ़कर हिस्सा ले रहे अडानी समूह की कंपनी डिफेंस सिस्टम्स एंड टेक्नोलॉजीज लिमिटेड (ADSTL) ने भारत के सबसे बड़े इंडिपेंडेंट एयरक्राफ्ट मेंटनेंस मरम्मत और ओवरहाल (MRO) ऑर्गेनाइजेशन एयर वर्क्स ग्रुप (Air works group) में हिस्सेदारी खरीदने का ऐलान किया है। एयर वर्क्स का 27 शहरों में सबसे बड़ा पैन इंडिया नेटवर्क है। अडानी ग्रुप एयर वर्क्स को टेकओवर करेगा। इसके लिए यह डील 400 करोड़ रुपये की है। अडानी समूह की डिफेंस कंपनी ने एक बयान में कहा कि एयर वर्क्स कंपनी प्रमुख रक्षा और एयरोस्पेस प्लेटफार्म्स के लिए देश के भीतर बड़े स्तर पर कारोबार कर रही है। बयान के मुताबिक, भारतीय वायु सेना के 737 वीवीआईपी विमानों के लैंडिंग गियर पर पहले पी-8आई विमान फेज, फेज 32 से फेज 48 चेक और एमआरओ तक, एयर वर्क्स अपने ईएएसए से विमान के एटीआर 42/72, ए320 और बी737 बेड़े के लिए आधार रखरखाव करता है। मुंबई, दिल्ली, होसुर और कोच्चि में डीजीसीए-प्रमाणित सुविधाएं हैं।

मोदी सरकार भारत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए हर प्रयास कर रही है। इस पर एक नजर-

डीआरडीओ 55 ‘मिशन मोड’ परियोजनाओं पर काम कर रहा

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) कुल स्वीकृत 73,942.82 करोड़ रुपये की 55 ‘मिशन मोड’ परियोजनाओं पर काम कर रहा है। ये परियोजनाएं परमाणु रक्षा प्रौद्योगिकी, एआईपी, लड़ाकू सूट, टारपीडो, लड़ाकू विमान, क्रूज मिसाइल, मानव रहित हवाई वाहन, गैस टरबाइन इंजन, असॉल्ट राइफल, वारहेड, लाइट मशीन गन, रॉकेट और उन्नत के क्षेत्र की आर्टिलरी गन सिस्टम, इन्फैंट्री कॉम्बैट व्हीकल कमांड, सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल, एंटी-शिप मिसाइल, एंटी-एयरफील्ड हथियार और ग्लाइड बम हैं।

डिफेंस प्रोडक्शन हब बनाने पर काम

भारत को यह भी ध्यान में रखना होगा कि अगर वह रक्षा क्षेत्र से जुड़े हर जरूरत के लिए रूस पर ही निर्भर रहेगा तो अमेरिका के साथ उसके संबंधों में मजबूती नहीं आ पाएगी। इस नजरिए से भी भारत खुद को डिफेंस प्रोडक्शन हब बनाने की दिशा में लगातार कदम उठा रहा है, ताकि दुनिया की बड़ी हथियार कंपनियां उसकी ओर आकर्षित हो सकें। भारत की अब ये मंशा नहीं है कि वो दुनिया के शीर्ष हथियार आयातक देशों की श्रेणी में शामिल रहे। अब रक्षा क्षेत्र में निर्यातक भी बन रहा है।

बाहरी दबाव से मिल जाएगी निजात

ऐसे हालात किसी भी देश के लिए दुविधाजनक बन जाते हैं, जब वो अपनी रक्षा जरूरतों के लिए आत्मनिर्भर नहीं हो। वर्तमान सरकार रक्षा क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य की दिशा में पुरजोर कोशिश कर रही है। इससे देश सामरिक तौर से ज्यादा मजबूत होगा और अंतरराष्ट्रीय संकट के दौरान ज्यादा मुखर होकर कोई भी स्टैंड ले सकता है। अगर भारत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो जाता है, तो कोई भी देश उस पर रक्षा जरूरतों का हवाला देकर दबाव नहीं बना सकता।

निवेश को आकर्षित करने पर फोकस

भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए, बड़े पैमाने पर निवेश को आकर्षित करने की आवश्यकता है। इसके साथ-साथ रक्षा उद्योगों के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र और पर्याप्त बुनियादी ढांचे को खड़ा करने की भी जरूरत होगी। इसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारतीय रक्षा मंत्रालय मेक इन इंडिया पहल की दिशा में आगे बढ़ा। इसके तहत उदार नीतियां बनाई गईं। भारत सरकार सशस्त्र बलों के लिए हथियारों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए बहुराष्ट्रीय हथियार कंपनियों को देश में ही अपना उत्पादन इकाई लगाने और भारत को निर्यात का बड़ा केंद्र बनाने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।

रक्षा क्षेत्र में भारत बना एक महत्वपूर्ण निर्यातक

पिछले कुछ वर्षों में रक्षा उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए किए गए प्रयासों ने भारत को रक्षा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण निर्यातक भी बना दिया है। विगत समय में भारत और फिलीपींस के बीच अत्यधिक उन्नत ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों की आपूर्ति करने को लेकर हुए एक समझौते से भारतीय हथियार उद्योग को बल मिला है। आठ साल पहले भारत का रक्षा निर्यात महज 900 करोड़ रुपये का था, जो अब रिकॉर्ड 14,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। अब भविष्य में भारत में बने रक्षा प्रणाली जैसे पनडुब्बियों या लड़ाकू विमानों के निर्यात को लेकर भी सौदे तय किए जा सकते हैं।

अमेरिका से GE-414 इंजन प्रौद्योगिकी हासिल करना कूटनीतिक जीत

आईसीईटी के तहत अमेरिका की ओर से GE-414 इंजन प्रौद्योगिकी के 100 प्रतिशत हस्तांतरित करने का निर्णय भारत के कूटनीतिक प्रयासों का एक उदाहरण है कि किस तरह से उच्च तकनीक को हासिल किया जा सके। इससे भारत को हथियार निर्माण के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में मदद मिलेगी। इससे भारत को उन्नत पांचवीं पीढ़ी की लड़ाकू परियोजना AMCA को बढ़ावा मिलेगा।

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो रहा भारत, 70,584 करोड़ रुपए के स्वदेशी खरीद को मिली मंजूरी

देश की सुरक्षा प्रणालियों को स्वदेशी रूप से उच्च स्तर का बनाने के लिए तेजी से काम हो रहा है। आए दिन आधुनिक तकनीकों के माध्यम से सेनाओं के लिए आवश्यक उपकरण विकसित किए जा रहे हैं। केंद्र सरकार विशेष रूप से रक्षा उपकरणों को लगातार अपग्रेड करने पर ध्यान दे रही है। इसी क्रम में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) की बैठक में स्वदेशी हथियारों की खरीद के लिए 70,584 करोड़ रुपए के प्रस्तावों को मंजूरी दे दी हैं। इन कुल प्रस्तावों में से भारतीय नौसेना के लिए 56,000 करोड़ रुपये से अधिक के प्रस्ताव हैं। इनमें बड़े पैमाने पर स्वदेशी ब्रह्मोस मिसाइल, शक्ति इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर (ईडब्ल्यू) प्रणाली, यूटिलिटी हेलीकॉप्टर-मैरीटाइम आदि शामिल हैं।

ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल खरीद को भी मंजूरी

रक्षा खरीद में भारतीय नौसेना के लिए ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल खरीदने को भी मंजूरी मिल गई है। ब्रह्मोस मिसाइल प्रणाली की यह अतिरिक्त खरीद समुद्री हमले की क्षमताओं और एंटी-सरफेस वारफेयर ऑपरेशन को बढ़ाएगी, यूटिलिटी हेलीकॉप्टरों को शामिल करने से खोज और बचाव कार्यों, हताहतों की निकासी, मानवीय सहायता आपदा के क्षेत्र में भारतीय नौसेना की परिचालन तत्परता में वृद्धि होगी। इसी तरह ईडब्ल्यू सिस्टम प्रतिकूल परिस्थितियों में अग्रिम पंक्ति के जहाजों को और आधुनिक बनाएंगे। इसके साथ ही भारतीय नौसेना के लिए एचएएल से 32 हजार करोड़ रुपए में 60 ‘मेड इन इंडिया’ नेवल यूटिलिटी हेलीकॉप्टर खरीदने को भी मंजूरी दी गई है।

भारतीय सेना को भी मिलेंगे कई उपकरण

भारतीय सेना के लिए 307 एटीएजीएस खरीदने की मंजूरी लम्बे इन्तजार के बाद मिली है। स्वदेशी 155 एमएम/52 कैलिबर एटीएजीएस को डीआरडीओ ने भारत फोर्ज और टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स के उत्पादन भागीदार के रूप में विकसित किया है। स्वदेशी होवित्जर के लिए यह पहला ऑर्डर होगा, जो लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर लक्ष्य को मार सकती है।

कोस्ट गार्ड के लिए 9 ध्रुव हेलीकॉप्टर

डीएसी की बैठक में भारतीय तटरक्षक के लिए 9 एडवांस लाइट हेलिकॉप्टर (एएलएच) ध्रुव खरीदने के प्रस्तावों को मंजूरी दे दी गई है। ये हेलीकॉप्टर निगरानी बढ़ाने के साथ ही भारतीय तटरक्षक को रात-दिन उड़ान की क्षमता प्रदान करेगा। तटीय सुरक्षा मजबूत करने के लिए भारतीय तटरक्षक ने मार्च, 2017 में 16 एडवांस लाइट हेलिकॉप्टर (एएलएच) के लिए हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को ऑर्डर दिया था। ये सभी हेलीकॉप्टर कोस्ट गार्ड को मिल चुके हैं, जिनका तटरक्षक बल ने पोरबंदर, भुवनेश्वर, कोच्चि और चेन्नई में ठिकाना बनाया है। देश की इकलौती त्रि-सेवा अंडमान और निकोबार कमांड में पिछले साल 28 जनवरी को दो स्वदेशी उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर (एएलएच) एमके-III औपचारिक रूप से शामिल किये गए हैं।

जम्मू-कश्मीर में बनेंगे अतिरिक्त बंकर

जम्मू-कश्मीर में अतिरिक्त बंकरों के निर्माण के लिए 50 करोड़ रुपए मंजूर किए गए हैं। एलओसी और अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास 4,000 बंकर पहले से ही निर्माणाधीन हैं, जिनका काम जल्द ही पूरा होने की उम्मीद है। ये बंकर एलओसी और आईबी से 0 से 3 किमी के बीच में आते हैं। मंजूर किए गए प्रस्तावों में से 99% खरीद भारतीय उद्योगों से की जाएगी। स्वदेशी खरीद की इतनी मात्रा भारतीय उद्योगों को ‘आत्मनिर्भर भारत’ के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में प्रेरित करेगी।

स्वदेशी हथियारों से मजबूत होंगे इंडियन फोर्सेज

दुनिया में अपनी सैन्य क्षमता के लिए प्रसिद्ध भारतीय सेना अपनी कार्य प्रणाली में बदलाव के साथ-साथ आधुनिकीकरण पर भी विशेष ध्यान दे रही है। हथियारों को अपग्रेड करने के लिए रक्षा उद्योग से जुड़े देश के विभिन्न संगठनों के साथ मिलकर नई रक्षा प्रणाली विकसित की जा रही है। इसी क्रम में रक्षा आत्मनिर्भरता के विजन पर भी सेना तेजी से काम कर रही है, जिसके परिणाम स्वरूप ना केवल स्वदेशी तकनीकों को सेना में अपनाया जा रहा है बल्कि रक्षा निर्यात में भी उछाल देखा गया है। सेना के थिएटराइजेशन के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति, राष्ट्रीय रक्षा रणनीति और उच्च रक्षा संगठन के विकास को लेकर भी सेना संकल्पित है। सरकार आने वाले वर्ष में सैन्य बदलावों पर तेजी से काम करते हुए सुरक्षाबलों को और अधिक सशक्त बनाने के लिए पूरी तरह संकल्पित है।

कई देशों ने एलसीए तेजस में दिखाई दिलचस्पी, रक्षा निर्यात को मिलेगा बढ़ावा

बेंगलुरु में आयोजित एयरो इंडिया शो 2023 में मेक इन इंडिया का जलवा दिखा। इस शो का आकर्षण एचएएल के स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान (एलसीए) तेजस रहा। इस लड़ाकू विमान की मांग बढ़ती जा रही है और इसे खरीदने में कई देशों ने दिलचस्पी दिखाई। एचएएल के अध्यक्ष व महानिदेशक सीबी अनंतकृष्णन ने बताया कि अर्जेंटीना ने 15 और मिस्र ने 20 तेजस विमान को खरीदने में रुचि दिखाई है। बोत्सवाना और मलयेशिया से भी तेजस की खरीद को लेकर बात हो रही है। उन्होंने कहा कि जल्द हम इन देशों को भारत में निर्मित विमान देंगे। भारत जल्द ही रक्षा क्षेत्र के निर्यात में भी सबसे आगे होगा। उन्होंने बताया कि एचएएल अपने हल्के लड़ाकू हेलिकॉप्टर बेचने के लिए फिलीपींस के साथ भी बातचीत कर रही है। इनके अलावा अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया भी ‘तेजस’ विमान में दिलचस्पी दिखाने वाले देशों में शामिल हैं।

आयात में कमी से विदेशी मुद्रा की बचत, रोजगार सृजन

रक्षा मंत्रालय के मुताबिक रक्षा तकनीकों के देश में निर्माण होने से इनके आयात में 40-60 प्रतिशत तक की कमी आने का अनुमान है। दूसरे, इससे हर साल भारी मात्रा में विदेश मुद्रा की बचत होगी। साथ ही रोजगार सृजित होंगे। रक्षा तकनीकों के देश में निर्माण होने से रक्षा क्षेत्र में भारत आत्मनिर्भर बनेगा। भारत अपने रक्षा उपकरणों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता की तरफ अग्रसर होने के साथ ही बड़े निर्यातक के रूप में उभर रहा है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत अब रक्षा उत्पादों के निर्यात करने वाले शीर्ष 25 देशों की सूची में शामिल हो गया है। भारत ने मिसाइल और अन्य रक्षा उपकरणों के निर्यात के लिए कई देशों से समझौता किया है।

सैन्य हथियार बनाने वाली 3 भारतीय कंपनियां दुनिया की टॉप 100 में शामिल

सैन्य हथियार बनाने में भारत तेजी से आत्मनिर्भर बन रहा है। आज दुनिया भर में मेक इन इंडिया का दबदबा बढ़ा है। सैन्य उपकरण बनाने वाली दुनिया की टॉप 100 कंपनियों में 3 भारतीय कंपनियां शामिल हैं। स्वीडिश थिंक-टैंक स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 के दौरान जहां हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (42वें स्थान पर) और भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड (66वें स्थान पर) की हथियारों की बिक्री में क्रमश: 1.5 प्रतिशत और 4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, वहीं इंडियन ऑर्डिनेंस फैक्ट्रीज (60वें स्थान पर) की हथियारों की बिक्री में 0.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय कंपनियों की कुल हथियारों की बिक्री 6.5 बिलियन डॉलर (लगभग 48,750 करोड़ रुपये) रही, जो 2019 की तुलना में 2020 में 1.7 प्रतिशत अधिक थी।

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