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बख्तियार खिलजी ने उजाड़ा, मोदी ने संवारा, 800 साल बाद जीवंत हुआ नालंदा विश्वविद्यालय

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 जून को बिहार में ऐतिहासिक नालंदा विश्वविद्यालय के नए कैंपस का उद्घाटन किया। पीएम मोदी ने प्राचीन नालंदा यूनिवर्सिटी के पुराने खंडहर का भी दौरा किया। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय भारत के समृद्ध इतिहास का अमिट दस्तावेज रहा है, जो प्राचीन भारत के गौरवशाली अतीत को दर्शाता था। लेकिन, 1193 ई. में तुर्की शासक कुतुबुद्दीन ऐबक के सेनापति बख्तियार खिलजी के नेतृत्व में आक्रमणकारियों ने विश्वविद्यालय को लूटा, कत्लेआम मचाया और जलाकर नष्ट कर दिया। लेकिन समय ने करवट ली और 800 साल के लंबे इंतजार के बाद इसे फिर पुराने स्वरूप में लौटाने की कवायदें हुईं। 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की पहल के बाद इसके निर्माण की रूपरेखा बनाई गई और 2014 के बाद पीएम मोदी ने इसमें विशेष रुचि ली जिससे इसके निर्माण में तेजी आई। आज पूरी दुनिया के छात्र पढ़ाई के लिए ब्रिटेन और अमेरिका जाते हैं, लेकिन एक समय ऐसा था, जब पूरी दुनिया से छात्र ज्ञान पाने भारत आते थे। लंदन की प्रतिष्ठित ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से भी 500 से भी ज्यादा वर्षों पहले भारत के बिहार में मौजूद नालंदा विश्वविद्यालय ज्ञान पाने का सिरमौर संस्थान था। नालंदा विश्वविद्यालय एक समय 90 लाख किताबों का घर था और दुनियाभर से करीब 10 हजार छात्र नालंदा में पढ़ने आते थे। अब एक बार फिर भारत विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर है।

नालंदा यूनिवर्सिटी के नए कैंपस में 24 बड़ी इमारतें
राजगीर के अंतरराष्ट्रीय नालंदा विश्वविद्यालय के नए कैंपस में कुल 24 बड़ी इमारतें हैं। परिसर में 40 कक्षाओं वाले दो शैक्षणिक ब्लॉक हैं, जिनकी कुल बैठने की क्षमता लगभग 1900 है। इसमें 300 सीटों की क्षमता वाले दो सभागार हैं। इसमें लगभग 550 छात्रों की क्षमता वाला एक छात्र छात्रावास है। इसमें अंतरराष्ट्रीय केंद्र, 2000 व्यक्तियों तक की क्षमता वाला एम्फीथिएटर, फैकल्टी क्लब और खेल परिसर सहित कई अन्य सुविधाएं भी हैं। यह परिसर एक ‘नेट जीरो’ ग्रीन कैंपस है। यह सौर संयंत्र, घरेलू और पेयजल शोधन संयंत्र, अपशिष्ट जल के पुन: उपयोग के लिए जल पुनर्चक्रण संयंत्र, 100 एकड़ जल निकाय और कई अन्य पर्यावरण अनुकूल सुविधाओं के साथ आत्मनिर्भर रूप से कार्य करता है।

कलाम ने दी थी विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने की सलाह
पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम 28 मार्च, 2006 को अपने बिहार दौरे पर अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल राजगीर आए हुए थे। उसी दौरान उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने की सलाह दी थी। इसके बाद मुख्यमंत्री ने उनकी सलाह पर तत्काल विधानमंडल के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करते हुए इसे पुनर्जीवित करने की घोषणा की थी। UNESCO ने 15 जुलाई 2016 को नालंदा विश्वविद्यालय के पुरातात्विक अवशेष को वर्ल्ड हेरिटेज साइट यानी वैश्विक धरोहर स्थल का दर्जा दिया था।

नालंदा विवि के नए कैंपस में सात डिपार्टमेंट
विश्वविद्यालय पुनर्जीवित करने के बाद अब तक पोस्ट ग्रेजुएट और डॉक्टरेट स्टूडेंट्स के लिए सात स्कूल डिपार्टमेंट बनाए गए हैं। इसमें इकोनॉमिक्स एंड मैनेजमेंट, इन्फॉर्मेशन साइंस एंड टेक्नोलॉजी, लिंग्विस्टिक एंड लिटरेचर, इंटरनेशनल रिलेशन्स, पीस स्टडीज (शांति अध्ययन) एंड बुद्धिस्ट स्टडीज, फिलॉसफी एंड कंपेरेटिव रिलिजन, इकोलॉजी एंड एनवायरमेंट और हिस्टोरिकल स्टडीज शामिल हैं। इसके अलावा दो डिपार्टमेंट और इस एकेडमिक सेशन से शुरू होने वाले हैं।

17 देशों के 400 स्टूडेंट्स यहां पढ़ाई कर रहे हैं
इस समय विश्वविद्यालय में कुल 17 देश के 400 स्टूडेंट पढ़ाई कर रहे हैं। वहीं, डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स के लिए यहां 10 सब्जेक्ट में पढ़ाई हो रही है। कैंपस में एशिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरी भी बनाई जा रही है।

बी.वी. दोशी ने किया है डिजाइन
विश्वविद्यालय को प्रसिद्ध वास्तुकार पद्म विभूषण स्वर्गीय बी.वी. दोशी ने डिजाइन किया है। इसके बुनियादी ढांचे को नेट जीरो यानी शून्य कार्बन उत्सर्जन वाले कैंपस के रूप में बनाया गया है।

दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय था नालंदा
दुनिया के सबसे बड़े शिक्षा केंद्रों में से एक रहा नालंदा विश्वविद्यालय मुस्लिम शासकों के आक्रमण के बाद लाल ईंटों का खंडहर बनकर रह गया। अब फिर से अपने पुराने वैभव की ओर लौट रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने इसकी पहल कर दी है। नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय माना जाता है। इसकी स्थापना पांचवीं शताब्दी में गुप्त वंश के सम्राट कुमार गुप्त ने कराई थी। बाद में नालंदा विश्वविद्यालय को सम्राट हर्षवर्धन और पाल वंश के शासकों से संरक्षण मिलता रहा। यहां देश-दुनिया के 10 हजार छात्र-विद्वान यहां रहकर ज्ञान प्राप्त करते थे।

नालंदा की लाइब्रेरी में थीं 90 लाख किताबें
प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय में साहित्य, खगोलशास्त्र, मनोविज्ञान, कानून, विज्ञान, दर्शनशास्त्र, गणित, अर्थशास्त्र, चिकित्सा विज्ञान, आयुर्वेद, योग जैसे विषयों की पढ़ाई कराई जाती थी। चीन के ह्वेनसांग और इतसिंग जैसे विद्वानों ने भी भारत आने के बाद नालंदा विश्वविद्यालय का गुणगान किया था और इसे विश्व का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय करार दिया था। नालंदा विश्वविद्यालय स्थापत्यकला का भी अद्भुत नमूना है। यहां 300 से ज्यादा कमरे थे और सात बड़े हॉल थे। नालंदा में नौ मंजिला लाइब्रेरी थी और माना जाता है कि इस लाइब्रेरी में 90 लाख से ज्यादा किताबें मौजूद थीं।

नालंदा विश्वविद्यालय में प्रवेश पाना बेहद कठिन था
नालंदा विश्वविद्यालयमें प्रवेश पाना बेहद कठिन था। यहां पढ़ाई के इच्छुक छात्रों को नालंदा के शीर्ष प्रोफेसरों के साथ मुश्किल मौखिक साक्षात्कार में शामिल होना पड़ता था और अपने ज्ञान का प्रमाण देना पड़ता था। जो लोग भाग्यशाली रहे, उन्हें भारत के प्रतिष्ठित विद्वानों और बौद्ध गुरुओं जैसे धर्मपाल और सीलभद्र आदि द्वारा पढ़ाया गया। पुस्तकालय की 90 लाख हस्तलिखित, ताड़ के पत्तों की पांडुलिपियां दुनिया में बौद्ध ज्ञान का सबसे समृद्ध भंडार थीं। उन ताड़ के पत्तों की पुस्तकों और चित्रित लकड़ी के पन्नों में से केवल मुट्ठी भर ही आग से बच पाए, जिन्हें भागते हुए भिक्षुओं ने अपने साथ ले लिया था। एक बार दलाई लामा ने भी कहा था कि ‘हमारे पास जो भी ज्ञान है, उसका स्त्रोत नालंदा से आया है।’

दुनिया बदलने में नालंदा की अहम भूमिका
भारतीय गणित के जनक माने जाने वाले आर्यभट्ट के बारे में अनुमान लगाया जाता है कि उन्होंने छठी शताब्दी ईस्वी में विश्वविद्यालय का नेतृत्व किया था। आर्यभट्ट ने ही दुनिया को शून्य से परिचित कराया और शून्य को अंक के रूप में मान्यता दी, जो एक क्रांतिकारी अवधारणा थी। इस शून्य ने गणितीय गणनाओं को सरल बनाया और बीजगणित जैसे अधिक जटिल विषयों को विकसित करने में मदद की। शून्य के बिना, हमारे पास कंप्यूटर नहीं होते। यही वजह है कि दुनिया को बदलने में नालंदा की भूमिका बेहद अहम रही। आर्यभट्ट की खोज ने ही दक्षिण भारत और पूरे अरब प्रायद्वीप में गणित और खगोल विज्ञान के विकास बढ़ावा दिया। बौद्ध शिक्षाओं और दर्शन को पूरे एशिया में फैलाने में भी नालंदा की अहम भूमिका रही।

1190 के दशक में बख्तियार खिलजी ने जलाकर नष्ट कर दिया
1193 ई. में तुर्की शासक कुतुबुद्दीन ऐबक के सेनापति बख्तियार खिलजी के नेतृत्व में आक्रमणकारियों की सैन्य टुकड़ी ने विश्वविद्यालय को जलाकर खत्म कर दिया। नालंदा यूनिवर्सिटी का परिसर इतना विशाल था कि कहा जाता है कि हमलावरों के आग लगाने के बाद परिसर तीन महीने तक जलता रहा। आज नजर आने वाली 23 हेक्टेयर की साइट मूल यूनिवर्सिटी कैंपस का एक हिस्सा भर है।

बख्तियार खिलजी की सनक ने तबाह की विरासत
1190 के दशक में तुर्क-अफगान सैन्य जनरल बख्तियार खिलजी के नेतृत्व में आक्रमणकारियों की एक लुटेरी टुकड़ी ने विश्वविद्यालय को जलाकर नष्ट कर दिया था। इतिहासकार बताते हैं कि एक समय बख्तियार खिलजी बहुत बीमार पड़ा। उसके हकीमों ने बख्तियार का बहुत उपचार किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। किसी ने बख्तियार खिलजी को नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्रजी से इलाज कराने की सलाह दी। जिसके बाद आचार्य राहुल श्रीभद्रजी को बुलाया गया तो बख्तियार खिलजी ने उनके सामने एक अजीब शर्त रख दी कि वह उनके द्वारा दी जाने वाली किसी आयुर्वेदिक दवाई को नहीं खाएगा। आचार्य ने भी खिलजी की शर्त मान ली और उसे बस कुरान पढ़ने की सलाह दी। बताया जाता है कि कुरान पढ़ने के बाद वो ठीक हो गया। कहा जाता है कि आचार्य राहुल श्रीभद्रजी ने कुरान के पन्नों पर दवा का लेप लगाया था, जिससे दवा खिलजी के हाथों में लगती और जब वह पन्ने पलटने के लिए अपनी ऊंगली जीभ पर लगाता तो दवाई उसके मुंह में चली जाती। इस तरह बख्तियार खिलजी ठीक हो गया। जब बख्तियार खिलजी को इसका पता चला तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि भारतीय विद्वान उसके हकीमों से भी ज्यादा ज्ञानी हैं। माना जाता है कि खिलजी को लगने लगा कि नालंदा से मिल रहीं शिक्षाएं इस्लाम से प्रतिस्पर्धा कर रही हैं। इसलिए उसने नालंदा विश्वविद्यालय परिसर में आग लगा दी। ऐसा भी माना जाता है कि नालंदा के समय बौद्ध धर्म और उसकी शिक्षाएं तेजी से फैल रहीं थी, ऐसे में बौद्ध धर्म को समाप्त करने के लिए उसने नालंदा में आग लगाई।

गुप्त काल के दौरान हुई थी स्थापना
यह प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय तीसरी से छठी शताब्दी ईस्वी के बीच में गुप्त काल के दौरान अस्तित्व में आया था। साल 427 में सम्राट कुमार गुप्त ने इसकी स्थापना की थी। 13वीं शताब्दी यानी 800 से अधिक वर्षों तक यहां विश्वविद्यालय संचालित होता रहा। नालंदा प्राचीन और मध्यकालीन मगध काल में एक प्रसिद्ध बौद्ध महाविहार यानी महान मठ हुआ करता था। ये दुनियाभर में बौद्ध धर्म का सबसे बड़ा शिक्षण केंद्र था। नालंदा विश्वविद्यालय में करीब 10 हजार स्टूडेंट्स पढ़ते थे, जिनके लिए 1500 अध्यापक हुआ करते थे। अधिकतर स्टूडेंट्स एशियाई देशों जैसे चीन, कोरिया , जापान, भूटान से आने वाले बौद्ध भिक्षु थे। ये छात्र मेडिसिन, तर्कशास्त्र, गणित और बौद्ध सिद्धांतों के बारे में अध्ययन करते थे।

चाइनीज स्टूडेंट ह्वेन त्सांग ने भी की पढ़ाई
प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने 7वीं शताब्दी में नालंदा की यात्रा की थी। त्सांग ने 630 और 643 ईसवी के बीच पूरे भारत की यात्रा की। उन्होंने 637 और 642 ई. में नालंदा का दौरा और अध्ययन किया। बाद में त्सांग ने इस विश्वविद्यालय में एक विशेषज्ञ प्रोफेसर के रूप में काम किया। यहीं उन्हें मोक्षदेव का भारतीय नाम मिला। त्सांग 645 ईसवी में चीन लौटे। वे अपने साथ नालंदा से 657 बौद्ध धर्मग्रंथों को लेकर गए थे। ह्वेन सांग को दुनिया के सबसे प्रभावशाली बौद्ध विद्वानों में से एक माना जाता है। इनमें से कई ग्रंथों का उन्होंने चीनी भाषा में अनुवाद किया।

नालंदा के अवशेष यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल में शामिल
नालंदा के अवशेष अब यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थली में शामिल हैं। हर साल बड़ी संख्या में लोग इस ऐतिहासिक ज्ञान के केंद्र के अवशेषों को देखने आते हैं। नालंदा विश्वविद्यालय का परिसर इतना विशाल था और यहां इतनी किताबें थी कि हमलावरों द्वारा लगाई गई आग तीन महीने तक जलती रही थी। इस आग ने न सिर्फ शिक्षा के केंद्र को जलाया बल्कि सदियों के ज्ञान और विरासत को भी तबाह कर दिया।

नालंदा विश्वविद्यालय से जुड़े प्रमुख तथ्य
वर्ष 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की पहल पर इसे एक नई यूनिवर्सिटी को बनाने के लिए एक बिहार असेंबली में विधेयक पास हुआ।
नई यूनिवर्सिटी 2014 को अस्थायी रूप से 14 विद्यार्थियों के साथ संचालित होना शुरू हुई।
साल 2016 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राजगीर के पिलखी विलेज में नालंदा विवि के स्थाई परिसर की आधारशिला रखी थी।
नए परिसर का निर्माण कार्य साल 2017 से प्रारंभ किया गया और 19 जून 2024 को इसका उद्घाटन हुआ। करीब 455 एकड़ के दायरे में फैला यह कैंपस विश्व का सबसे बड़ा नेट जीरो ग्रीन कैंपस माना जाता है।
इसकी इमारतें कुछ इस तकनीक से बनाई गई हैं, जो गर्मी में ठंडी और ठंड के दिनों में गर्म बनी रहती हैं।
नए कैंपस में 1 हजार 750 करोड़ रुपये की धनराशि से नए भवनों और अन्य सुविधाओं का निर्माण कराया गया।
नालंदा यूनिवर्सिटी की दो एकेडमिक बिल्डिंग्स हैं। इनमें 40 क्लासरूम्स बनाए गए हैं और 300 सीटों वाला एक एक भव्य आडिटोरियम बनाया गया है।
नालंदा यूनिवर्सिटी के नए कैंपस में विशाल लाइब्रेरी, खुद का पावर प्लांट भी है।इस यूनिवर्सिटी में 26 विभिन्न देशों के विद्यार्थी स्टडी कर रहे हैं।
पोस्ट ग्रेजुएशन, डॉक्टरेट रिसर्च कोर्स, शॉर्ट सर्टिफिकेट कोर्स, इंटरनेशनल स्टूडेंट्स के लिए 137 स्कॉलरशिप खास विशेषता है।
नालंदा यूनिवर्सिटी का नया कैंपस प्राचीन खंडहरों के करीब ही है। 800 से ज्यादा वर्षों तक खंडहर में रहने वाली नांलदा यूनिवर्सिटी कभी भारत का वैभव हुआ करती थी। यहां एक दुनियाभर के करीब 10 हजार विद्यार्थी विद्या अध्ययन के लिए आते थे।
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त वंश में हुई थी। इस वंश के शासक कुमारगुप्त ने 425 ईसवी से 470 ईसवी के बीच इसकी स्थापन की थी।
गुप्तवंश में भारत की समृद्धि और ख्याति दुनियाभर में फैली हुई थी और नालंदा विवि भी वैश्विक शिक्षा का अहम केंद्र बन गया था।
गुप्त वंश के पतन के बाद भी भारत के हर्षवर्धन के काल में यह विश्वविद्यालय फलता फूलता रहा। इस दौरान करीब 6 शताब्दियों तक इस यूनिवर्सिटी की ख्याति का लोहा दुनिया ने माना।
प्राचीन नालंदी विवि इतना भव्य था कि यहां पूर्व में ​चीन, जापान, कोरिया, तिब्बज जैसे देशों के विद्यार्थी अध्ययन के लिए आते थे। वहीं मिडिल ईस्ट से ईरान जैसे देशों के विद्यार्थी भी यहां पढ़ने आए।
प्राचीन यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी बहुत समृद्ध थी। बताया जाता है कि यहां 3 लाख से भी ज्यादा पुस्तकें सहेजकर रखी गई थीं। यही नहीं 300 रूम और 7 बड़े सभागार भी इस वि​श्वविद्यालय की शोभा बढ़ाते थे।
जब 11वीं सदी में खिलजी शासकों ने भारत पर आक्रमण किया और कई ऐतिहासिक धरोहरों को नुकसान पहुंचाया। इसकी जद में नालंदा विश्वविद्यालय भी आया।
तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्लायल पर जोरदार हमला किया और इसे बर्बाद कर दिया। कई बौद्ध भिक्षुओं का कत्लेआम किया।
आक्रमणकारियों ने इस विश्वविद्यालय को आग के हवाले कर दिया। चूंकि इस विवि में लाखों किताबें थीं, इसलिए नालंदा विवि तीन महीने तक धू-धू करके जलता रहा, आग की लपटों में इस विश्वविद्यालय के ही नहीं, भारत के वैभव को भी जला डाला था।

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