उत्तर प्रदेश में लोकसभा की दो सीटों पर जो चुनाव परिणाम आए वह भारतीय जनता पार्टी के लिए एक झटका जरूर है, लेकिन इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की घटती लोकप्रियता का पैमाना मानकर प्रचारित किया जा रहा है। स्थानीय मुद्दों पर हुए इस उपचुनाव के परिणाम के राजनीतिक प्रभाव अवश्य हैं, परन्तु ये मोदी लहर कम होने की बात सिरे से खारिज करता है। बीते चार वर्षों के दौरान पीएम मोदी के नेतृत्व में जितने भी चुनाव लड़े गए उनमें भाजपा ने अपने जनाधार में लगातार विस्तार किया है। आज देश के 75 प्रतिशत भू-भाग पर भाजपा का जबरदस्त प्रभाव है।
यह स्पष्ट है कि मोदी लहर का डर ही है जो परस्पर विरोधी विचारधारा के दल एक मंच पर एकजुट हो रहे हैं। आइये हम कुछ बिंदओं पर नजर डालते हैं जिससे ये साबित होता है कि मोदी लहर लगातार है और इससे विपक्षी पार्टियां जबरदस्त खौफ में हैं।
कांग्रेस की जमानत जब्त न होती
फूलपुर और गोरखपुर में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी जीते हैं, लेकिन कांग्रेस प्रत्याशियों की जमानत भी जब्त हो गई है। फूलपुर में जहां सपा के नागेंद्र पटेल ने 59, 613 वोटों से जीत दर्ज की वहीं कांग्रेस के मनीष मिश्र को महज 19, 334 वोट ही मिले, वहीं गोरखपुर में भी कांग्रेस के कांग्रेस उम्मीवार डॉक्टर सुरहिता करीम की जमानत जब्त हो गई। इससे साफ है कि देश में अब केवल और केवल भाजपा ही ऐसी राष्ट्रीय पार्टी है जिसे जनता ने तहेदिल से स्वीकारा है।
सपा-बसपा का एक साथ न होती
हाल-फिलहाल तक मायावती ये दोहराती रही हैं कि 2 जून 1995 का दिन जिंदगी भर नहीं भूल सकतीं। इसी दिन समाजवादी पार्टी के नेताओं-कार्यकर्ताओं ने बीएसपी सुप्रीमो की ‘आबरू’ पर हमला किया था। मायावती को कमरे में बंद करके मारा गया, उनके कपड़े फाड़ डाले गए थे। तब बीजेपी विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी ने मायावती की जान बचाई थी। उसी वक्त मायावती ने प्रण लिया था कि जीवन में वह समाजवादी पार्टी से समझौता नहीं करेंगी। लेकिन मोदी लहर का प्रकोप देखिए, एक बार फिर दोनों ही अपनी अदावत को भूल एक होने की राह पर हैं।
सोनिया के साथ 20 दल न होते
13 फरवरी, 2018 को सोनिया गांधी के आवास विपक्षी दलों डिनर पार्टी दी गई। इसमें सीपीआईएम, सीपीआई, तृणमूल कांग्रेस, बीएसपी, समाजवादी पार्टी, जेडीएस और आरेजडी सहित 20 विपक्षी दलों के नेता शामिल हुए। इन सभी नेताओं में एक बात कॉमन थी, वो ये कि सभी पीएम मोदी की लोकप्रियता से परेशान हैं और ये गोलबंदी ‘मोदी लहर’ को रोकने की रणनीति के तहत ही की जा रही है। स्पष्ट है कि भारतीय राजनीति में प्रधानमंत्री मोदी को टक्कर देने के लिए किसी भी एक पार्टी या नेता में कूवत नहीं बची है।
थर्ड फ्रंट बनाने की कोशिश न होती
4 मार्च, 2018 को AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री और टीआरएस नेता के चंद्रशेखर राव से दोस्ती का हाथ बढ़ाया। ओवैसी की केसीआर से नजदीकी के पीछे भारतीय जनता पार्टी का तेलंगाना में भी बढ़ता प्रभाव ही है। प्रधानमंत्री मोदी की बढ़ती लोकप्रियता से खौफ खाकर ही ममता बनर्जी और हेमंत सोरेन ने भी केसीआर से फोन पर बात की और थर्ड फ्रंट बनाने की वकालत की।
ममता बनर्जी की ऐसी बौखलाहट न होती
प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता के कारण पश्चिम बंगाल में भाजपा अपना जनाधार लगातार बढ़ा रही है। कभी आखिरी नंबर की पार्टी रही बीजेपी आज प्रदेश की दूसरी पार्टी बन गई है। भाजपा के समर्थकों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और लेफ्ट और कांग्रेस का वजूद खत्म होता चला जा रहा है। इसी बढ़ते जनाधार का परिणाम है कि कभी मुस्लिम परस्त रही ममता बनर्जी हिंदू समुदाय के हितों की भी बात करने लगी हैं और ब्राह्मण सम्मेलन जैसे आयोजनों के जरिये जातिगत आधार को पुख्ता करने में लगी हैं।
पूर्वोत्तर में वामपंथ का किला न ढहता
तीन मार्च, 2018 को पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के चुनाव परिणामों ने देश की राजनीति में एक नई नजीर पेश की है। त्रिपुरा में पच्चीस सालों के वामपंथ के किले को ध्वस्त करते हुए भाजपा ने वहां सरकार बना ली। प्रधानमंत्री मोदी के ‘चोलो पल्टाई’ नारे का असर हुआ और भाजपा की जबरस्त जीत हुई। इसी तरह नागालैंड और मेघालय में भी भाजपा ने सहयोगी दलों के साथ सरकार बनाई। दरअसल पूर्वोत्तर में भाजपा की इस पैठ का कारण पीएम मोदी पर लोगों का भरोसा के साथ मोदी लहर का ही परिणाम है।
21 राज्यों से कांग्रेस का पत्ता साफ न होता
देश में भारतीय जनता पार्टी और उनके सहयोगी दलों की सरकार 22 राज्यों में है। इनमें से तो 15 राज्यों में भाजपा के ही मुख्यमंत्री भी हैं। देश की 68 प्रतिशत आबादी और 75 प्रतिशत भू-भाग पर भाजपा अपना विस्तार कर चुकी है। ये मोदी लहर का ही परिणाम है कि कभी देश के 100 प्रतिशत भू-भाग पर राज करने वाली कांग्रेस महज 7 प्रतिशत भू-भाग पर सिमट गई है। आज पास महज दो राज्य और एक केंद्र शासित प्रदेश में ही कांग्रेस की सरकार बची है।