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मोदी सरकार का बड़ा फैसला, अब दिल्ली के ऐतिहासिक राजपथ का नाम होगा कर्तव्यपथ, गुलामी के प्रतीकों से मुक्ति का प्रयास जारी

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस साल स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से गुलामी की हर चीज से मुक्त होने की बात कही थी। इस दिशा में कदम बढ़ते हुए मोदी सरकार ने तीन दिन पहले भारतीय नौसेना को गुलामी के प्रतीक से मुक्ति दिलाकर नया झंडा प्रदान किया। इसी कड़ी में मोदी सरकार ने अब कई सालों बाद राजपथ और सेंट्रल विस्टा लॉन का नाम बदलकर कर्तव्यपथ करने का फैसला किया है। नेताजी स्टैच्यू से लेकर राष्ट्रपति भवन तक जो पूरी सड़क जाती है, उसे अब कर्तव्यपथ कहा जाएगा। दरअसल इस फैसले को औपनिवेशिक मानसिकता को खत्म करने के लिए मोदी सरकार के प्रयास में ताजा कदम के रूप में देखा जा रहा है।

NDMC की बैठक में ‘कर्तव्यपथ’ पर लगेगी मुहर

हालांकि मोदी सरकार ने अभी तक इसका औपचारिक ऐलान नहीं किया है। लेकिन 7 सितंबर, 2022 को NDMC की एक अहम बैठक होने वाली है, जिसमें इस फैसले पर मुहर लगा दी जाएगी। सरकार का तर्क है कि आजादी के 75 साल बाद गुलामी का कोई भी प्रतीक नहीं रहना चाहिए, सबकुछ न्यू इंडिया वाले विजन को ताकतवर करने वाला साबित होना चाहिए। मोदी सरकार के नामकरण के इस फैसले में गुलामी की मानसिकता से संबंधित प्रतीकों से मुक्ति पाकर नए कर्त्तव्यपथ पर चलकर 2047 तक विकसित भारत बनाने का संकल्प दिखाई देता है।

राजपथ यानि कर्तव्यपथ नए और भव्य रूप में बनकर तैयार

करीब 67 साल बाद अब राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक तीन किमी तक राजपथ यानि कर्तव्यपथ नए और भव्य रूप में बनकर तैयार हो चुका है। अब राजपथ अद्भुत रूप में नजर आएगा। यहां पर आने वाले लोगों को एक अलग सा अनुभव भी मिलेगा। राजपथ पर राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक का पहला स्ट्रेच बनकर तैयार है जो सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के अंदर आता है। सेंट्रल विस्टा में बड़े पैमाने पर सौंदर्यीकरण का काम हुआ है। राजपथ का रंग बदला है लेकिन रूप नहीं। राजपथ को दोनों तरफ 6-6 फीट चौड़ा कर दिया गया है। इंडिया गेट पर चल रहे सेंट्रल विस्टा एवेन्यू प्रोजेक्ट पूरा हो गया है और इसका उद्घाटन 8 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी करेंगे। इसके बाद इसे आम जनता के लिए खोल दिया जाएगा। आम जनता की सहूलियत को देखते हुए यहां पर 4 अंडर पास बनाए गए हैं।

राजपथ पहले के मुकाबले ज्यादा आकर्षक

राजपथ पहले के मुकाबले ज्यादा आकर्षक हो गया है। नए बदलावों के बाद अब राजपथ का वॉकिंग एरिया बढ़कर 1 लाख 10 हजार 457 वर्ग मीटर हो गया है। लोगों को अब साइन बोर्ड भी बदले नजर आएंगे। सिटिंग अरेंजमेट की बात करें तो खास किस्म की कुर्सियां नई डिजाइन में बनाई गई हैं, जो पहले की तुलना में कम समय में इंसटाल की जा सकती हैं। ये कुर्सियां दिखने में सुंदर और बैठने में आरामदायक भी हैं। इसमें कुल 30 हजार लोगों के बैठने की व्यवस्था है। राष्ट्रपति भवन और इंडिया गेट के बीच उद्यानों में और राजपथ के किनारे कुल 915 प्रकाश स्तम्भ लगाए गए हैं। 

किंग्सवे से राजपथ और अब कर्तव्यपथ की यात्रा

दरअसल किंग्सवे यानि राजा का रास्ता से राजपथ और अब कर्तव्यपथ की यात्रा काफी लंबी है। इसकी शुरुआत 1911 में ब्रिटिश शासनकाल में हुई थी, जब किंग जॉर्ज पंचम दिल्ली दरबार में हिस्सा लेने के लिए यहां आए थे। इस दौरान कोलकाता की जगह दिल्ली को भारत (ब्रिटिश शासन) की राजधानी बनाने की घोषणा हुई थी। इसलिए अंग्रेजों ने किंग जॉर्ज पंचम के सम्मान में इस जगह का नाम किंग्सवे रखा था। यह ब्रिटिश हुकूमत की शाही पहचान का प्रतीक था। स्वतंत्रता के बाद 1955 में इसका नाम राजपथ किया गया। इसके बाद हर साल राजपथ पर गणतंत्र दिवस की परेड होने लग गई और एक तरह से ये परेड और राजपथ दोनों ही एक-दूसरे के पर्याय बन गए।

ऐतिहासिक पलों का साक्षी, राजा-प्रजा युग के अंत का संदेश 

राजपथ जहां कई बदलावों के दौर से गुजरा है, वहीं कई ऐतिहासिक पलों का साक्षी भी रहा है। एलीट क्लास से आम लोगों का पथ बनने के सफर में कई पड़ावों पार किया है। हर साल देश अपनी सैन्य ताकत और सांस्कृतिक विविधता का नजारा भी इसी ऐतिहासिक राजपथ पर देखता है। भारत अपना शक्ति प्रदर्शन करता है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। वहीं कई विदेशी मेहमान राजपथ पर होने वाले परेड में बतौर दर्शक या विशेष अतिथि के तौर पर शामिल होते रहे हैं। जब गणतंत्र दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी राजपथ पर चहलकदमी करते हुए लोगों के करीब जाकर अभिवादन स्वीकार करते हैं, तो देश के प्रधान सेवक का जनता से जुड़ाव को दर्शाता है और बताता है कि राजा और प्रजा का युग समाप्त हो चुका है। 

नया संसद भवन नए और आत्मनिर्भर भारत का प्रतीक

औपनिवेशिक अतीत से छुटकारा दिलाने के प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों में सबसे से ऊपर है लोकतंत्र का मंदिर यानि नया संसद भवन। नए संसद भवन का काम अब खत्म हो चुका है। नए संसद भवन का जल्द ही उद्घाटन किया जा सकता है। उम्मीद है कि संसद का शीतकालीन सत्र नए संसद भवन में ही हो। नया संसद भवन आत्मनिर्भर भारत के निर्माण का गवाह है। गौरतलब है कि 144 मजबूत स्तंभों पर टिका वर्तमान संसद भवन करीब 95 साल पहले अंग्रेजों ने बनवाया था। संसद भवन की आधारशिला 12 फरवरी, 1921 को तब के महामहिम द ड्यूक ऑफ कनॉट ने रखी थी। इसका उद्घाटन भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड इरविन ने 18 जनवरी, 1927 को किया था। 

मोदी सरकार में औपनिवेशिक अतीत से छुटकारा

इससे पहले मोदी सरकार ने मुगल और औपनिवेशिक अतीत से छुटकारा दिलाने के कई प्रयास किए हैं। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान साल 2016 में दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास की ओर जाने वाले रेस कोर्स रोड का नाम बदलकर लोक कल्याण मार्ग कर दिया था। वहीं, 28 अगस्त, 2015 को औरंगजेब रोड का नाम बदलकर मिसाइल मैन डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम रोड रखा गया था। साल 2017 में डलहौजी रोड का नाम दाराशिकोह रोड कर दिया गया।

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