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खाने के तेल की किल्लत से बाहर निकलेगा देशः खाद्य तेलों पर मोदी सरकार का बड़ा फैसला

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देश में लोगों की जेब पर बोझ कम हो और उनकी कमाई बढ़े। इसके लिए मोदी सरकार लगातार कोशिशें कर रही है। खाद्य तेलों की कीमतों पर बड़ा फैसला लेते हुए, मोदी सरकार ने आयात शुल्क को कम करने का फैसला लिया है। 31 मार्च 2022 तक खाद्य तेलों के आयात पर कोई शुल्क नहीं लगेगा। सरकर ने क्रूड पॉम ऑयल, सोयाबीन और सनफ्लावर ऑल पर आयात शुल्क खत्म किया है। मोदी सरकार ने क्रूड एडिबल ऑयल के एग्री सेस में भी कमी की है।

खाद्य तेलों को लेकर मोदी सरकार का बड़ा फैसला

क्रूड पाम ऑयल पर नया सेस 7.5%
क्रूड पाम ऑयल पर पहले सेस 20%
क्रूड सोया पर नया सेस 5%
सनफ्लावर पर नया सेस 5%

मोदी सरकार ने रिफाइन्ड तेलों के आयात शुल्क में कोई कमी नहीं की है। जानकारों का मानना है कि मोदी सरकार के फैसले से क्रूड पाम ऑयल की इंपोर्ट ड्यूटी में 14,000 रुपए प्रति टन जबकि सूरजमुखी के तेल के आयात शुल्क में 20,000 रुपए प्रति टन की कमी आ सकती है।

देश में हाल के दिनों में सरसों तेल का आयात भी बढ़ा है। जानकारों का कहना है कि इससे सरसो तेल की कीमतों में भी कमी आ सकती है। देश में सरसों तेल के आयात पर एक नजर डालें तो

  • सितंबर-20,215 टन क्रूड सरसों तेल का आयात
  • अगस्त- 12,437 टन क्रूड सरसों तेल का आयात

खाद्य तेलों की कीमतें कम करने की मोदी सरकार की कोशिश

सितंबर 2021 में 17,62,338 टन तेल का आयात हुआ जो 2020 सितंबर से 66% ज्यादा है। साल भर पहले इसी महीने 10,61,944 टन तेल का आयात हुआ था।

मौजूदा समय में आयात शुल्क
कच्चा पाम तेल 24.75 %
रिफाइंड पामोलीन 35.75 %
रिफाइंड पाम तेल 35.75 %
कच्चा सोयाबीन 24.75 %
रिफाइंड सोयाबीन 35.75 %
कच्चा सूरजमुखी तेल 24.75 %
रिफाइंड सूरजमुखी तेल 35.75 %

अन्नदाता की कमाई बढ़ाने में जुटी मोदी सरकार

देश में खाद्य तेलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए  मोदी सरकार लगातार कोशिशें कर रही है । देश के अन्नदाता की कमाई बढ़े इसके लिए मोदी सरकार ने हाल ही में  सरसों की एमएसपी बढ़ने का फैसला लिया था। मोदी सरकार के इस फैसले से देश के किसानों की कमाई बढ़ेगी। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार किसानों के हित में लगातार फैसले ले रही हैं। इसी क्रम में मोदी सरकार ने रबी मार्केटिंग सीजन 2022-23 के लिए सरसों की एमएसपी को 400 रुपये बढ़ाकर 5,050 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया, जो पिछले वर्ष में 4,650 रुपये प्रति क्विंटल था। इसके माध्यम से मोदी सरकार ने दिल्ली बॉर्डर और करनाल में धरना दे रहे कृषि कानून विरोधियों को करारा जवाब दिया है। साथ ही सरसों उत्पादक किसानों को संदेश दिया है कि सरकार किसानों की आय बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील है। सरकार के इस फैसले से एक ओर कम पानी में पकने वाली सरसों की फसल के प्रति रुझान बढ़ेगा, वहीं दूसरी ओर गेहूं की तुलना में उत्पादन लागत कम होने से आमदनी भी बढ़ेगी। इससे दक्षिण व पश्चिम हरियाणा के किसानों को सर्वाधिक लाभ मिलेगा।

हरियाणा में लगभग 5 से 6 लाख हेक्टेयर में सरसों बोई जाती है। प्रति हेक्टेयर पैदावार लगभग 20 क्विंटल (प्रति एकड़ 8 क्विंटल) है। वर्ष 2018-19 में 2.68, 2019-20 में 6.15 व बीते वर्ष 2020-21 में सबसे अधिक 7.49 लाख मीट्रिक टन सरसों एमएसपी पर खरीदी गई। गौरतलब है कि सरसों की अधिक पैदावार होने से तेल का भी अधिक उत्पादन होगा। इसके साथ ही सरसों तेल की कीमतों में गिरावट आने से आम उपभोक्ताओं को भी लाभ मिलेगा। मोदी सरकार ने सरसों तेल उत्पादकों को भी संरक्षण देने की कोशिश की है। इसके तहत इसी वर्ष दो फरवरी को पाम आयल पर आयात शुल्क बढ़ा दिया था। आयात शुल्क व कृषि विकास सेस मिलाकर तीस प्रतिशत से अधिक ड़्यूटी लगने से तेल कारोबारी अन्य देशों से अधिक मात्रा में तेल आयात नहीं कर पाए।

खाद्य तेल के मामले में आत्मनिर्भर बनेगा भारत

सरसों का उत्पादन बढ़ाने के लिए मस्टर्ड मिशन शुरू किया गया है। इसके तहत देश के 11 प्रमुख सरसों उत्पादक राज्यों के 368 जिलों में सरसों की खेती पर जोर दिया गया है। अब तक देश के 60 लाख हेक्टेयर में इसकी खेती होती थी। सरकार की योजना लगभग 9 मिलियन हेक्टेयर भूमि को सरसों की खेती के तहत लाने और 2025-26 तक इसके उत्पादन को लगभग 17 मिलियन टन तक बढ़ाने की है। अब सरकार का फोकस ऐसे प्रदेशों पर भी है जहां सरसों की खेती लायक स्थितियां मौजूद हैं लेकिन वहां पर किसानों का रुझान इस तरफ नहीं है। भारत खाने के तेल की अपनी जरूरतों का करीब 70 प्रतिशत आयात करता है। इसलिए मोदी सरकार किसानों की आय बढ़ाने के साथ ही देश को तिलहन के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश कर रही है।

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