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किसानों के मुद्दे पर ओछी राजनीति कर रहे केजरीवाल को 2021 में बहुत परेशान करेंगे ये सवाल

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‘दाल-भात में मूसलचंद’ बनने की कहावत दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर पूरी तरह लागू होती है। किसानों के मुद्दे पर तो केजरीवाल खूब उछल-कूद मचा रहे हैं, लेकिन चुनाव में किए अपने वादों को शायद वे भूलते जा रहे हैं। दिल्ली की जनता से किए गए ये वादे साल 2021 में उन्हें बहुत परेशान करने वाले हैं। आइए देखते हैं आखिर कौन से वे मुद्दे हैं, जो केजरीवाल के गले की हड़्डी साबित होंगे।

दिल्ली में कब तक चलेगी बिजली-पानी की फ्री पॉलिटिक्स

केजरीवाल सरकार के सामने चुनौती है कि सरकार फ्री योजनाओं को कैसे आगे बढ़ाएगी। सरकार को बिना घाटे में लाए कैसे जनता को सुविधाएं देनी हैं। यह दिल्ली सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। हालांकि अभी भी दिल्लीवासियों को बिजली और पानी पर सब्सिडी दी जा रही है। इन्हें जारी रखने के साथ-साथ इनका विस्तार करना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। गौरतलब है कि चुनाव के वक्त दिल्ली में फ्री बिजली-पानी को लेकर केजरीवाल ने लंबे-चौड़े वादे किए थे।

दिल्ली में कब लगेंगे 1.4 लाख सीसीटीवी कैमरे?

राजस्व में कमी ने केजरीवाल सरकार के वाईफाई, स्ट्रीटलाइट्स और 1.4 लाख सीसीटीवी कैमरे लगवाने के चुनावी वादों के सामने रोड़े अटका दिए। वहीं नई बसों की खरीद पर भी दिल्ली सरकार को रोक लगानी पड़ी। इसके साथ ही परिवहन में सुधार, यमुना की सफाई, रिवरफ्रंट डेवलपमेंट और प्रदूषण के लिए भी दिल्ली सरकार योजनाएं बना रही थी। सरकार के सामने कई कल्याणकारी योजनाओं के लिए सब्सिडी देना भी अब एक चुनौती है।

प्रदूषण से निपटने की चुनौती

दिल्ली में प्रदूषण को लेकर न्यायालयों की सख्त टिप्पणियां आती रहती हैं। कोर्ट ने तो दिल्ली को गैस चेंबर तक करार दे दिया है। इस साल भी दिवाली के बाद राजधानी में पॉल्यूशन का लेवल गंभीर स्थिति में पहुंच गया था। दिल्ली का AQI अपने सबसे ऊंचे स्तर तक पहुंचा। इसीलिए नए साल में केजरीवाल सरकार के सामने चुनौती होगी कि पॉल्यूशन को कैसे कम किया जाए।

कैसी बनेंगी 500 किलोमीटर सड़कें, नई बसों की खरीद कैसे होगी?

दिल्ली की अधिकांश योजनाएं प्रभावित हुई हैं। केजरीवाल सरकार ने 500 किलोमीटर सड़कें बनाना, राशन की डोरस्टेप डिलीवरी के साथ-साथ 1250 लोफ्लोर बसों की खरीद को प्रायोरिटी लिस्ट में रखा है। अभी भी दिल्लीवासियों को बिजली और पानी पर सब्सिडी दी जा रही है। ऐसे में इन योजनाओं का विस्तार करना एक बड़ी चुनौती है।

सांप्रदायिक दंगे और कोरोना महामारी पर रोक लगाना

इस साल के सांप्रदायिक दंगों को लेकर केजरीवाल सरकार की स्थिति संदेहास्पद रही है। पूर्वोत्तर दिल्ली में दंगे के बाद कोरोना महामारी के कारण दिल्ली की रफ्तार कम हुई। सितंबर तक, राजस्व संग्रह में 53% की गिरावट दर्ज की गई। कोरोना महामारी से लड़ने के लिए दिल्ली सरकार को अतिरिक्त खर्च भी करना पड़ा। इन्हीं सब कारणों के चलते नवंबर तक सरकार का कुल राजस्व अनुमान से 44.28% कम रहा। सामान्य परिस्थितियों की तुलना में राजस्व केवल 56% प्राप्त हुआ। जाहिर है, दंगे और कोरोना महामारी पर रोक लगाना सरकार के सामने बड़ी चुनौती होगी।

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