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कश्मीरी मुस्लिम समुदाय ने की पीएम मोदी की तारीफ, कहा- प्रधानमंत्री की वजह से खुले विकास के रास्ते, शांति और स्थिरता हुई कायम

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जम्मू-कश्मीर की तस्वीर और तकदीर बदलने के लिए जो ऐतिहासिक फैसला किया था, अब उसके सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे हैं। राज्य में शांति स्थापित होने से जी-20 जैसे सम्मेलन का आयोजन किया गया। अब इंडियन माइनॉरिटी फाउंडेशन के सम्मेलन में मुस्लिम समुदाय के धार्मिक नेता भी खुलकर स्वीकार कर रहे हैं कि अनुच्छेद 370 के समाप्त होने के बाद से केंद्र शासित प्रदेश में काफी बदलाव आया है। प्रधानमंत्री मोदी की साहसिक पहल से जहां इस प्रदेश की छवि बदली है, वहीं विकास का मार्ग भी प्रशस्त हुआ है। शांति और स्थिरता कायम होने से लोगों के जीवन और हर क्षेत्र में बदलाव आ रहा है।  

कश्मीर ने हाल के वर्षों में एक बड़ा बदलाव देखा है- मनोज सिन्हा

दरअसल शनिवार (28 अक्टूबर, 2023) को श्रीनगर के एसकेआईसीसी में इंडियन माइनॉरिटी फाउंडेशन (आईएमएफ) की तरफ से सूफीवाद और कश्मीरियत, शांति और सद्भाव सम्मेलन का आयोजन किया गया था। इसमें अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद पहली बार जम्मू-कश्मीर के सभी मुस्लिम संप्रदाय के नेता एक मंच पर नजर आए। इसमें उप राज्यपाल मनोज सिन्हा ने मुख्य अतिथि के रूप में हिस्सा लिया। सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि कश्मीर सदियों से सूफीवाद और सांप्रदायिक सद्भाव की भूमि रहा है। यहां सदियों से भाईचारे की भावना पनप रही है और सह-अस्तित्व की विरासत भी सदियों पुरानी है। उन्होंने कहा कि कश्मीर ने हाल के वर्षों में एक बड़ा बदलाव देखा है। हर क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास हो रहा है। 

जम्मू-कश्मीर विकास की नई कहानियां लिख रहा है- मनोज सिन्हा

उपराज्यपाल मनोज सिन्हा नेे कहा कि जम्मू-कश्मीर नई ऊंचाइयों को छू रहा है और विकास की नई कहानियां लिख रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने हमें 2047 तक विकसित भारत का विजन दिया है और हम इस लक्ष्य की ओर बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। जम्मू-कश्मीर भी इस विजन में बहुत योगदान दे रहा है और मुझे यकीन है कि भविष्य में इस विजन में जम्मू-कश्मीर का योगदान अन्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से अधिक होगा। उन्होंने केंद्र सरकार की तारीफ करते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने सुनिश्चित किया है कि कल्याणकारी योजनाओं और नीतियों का लाभ देश के हर दरवाजे तक पहुंचे। 2014 के बाद, सरकार ने यह संभव बना दिया है कि लोग लाभान्वित हों और योग्य नागरिकों को किसी भी योजना से वंचित न रखा जाए। हमारी शासन व्यवस्था में भेदभाव का कोई स्थान नहीं है।

केंद्र सरकार की नौकरियों में 5 से बढ़कर 10% हुई भागीदारी

मनोज सिन्हा ने कहा कि केंद्र सरकार की नौकरियों में अल्पसंख्यक समुदायों का प्रतिशत 2014 से पहले 5 प्रतिशत से नीचे था, वह अब 10 प्रतिशत से अधिक हो गया है। वर्तमान सरकार ने तुष्टिकरण की राजनीति के बजाय यह सुनिश्चित किया है कि अल्पसंख्यक समुदायों का सामाजिक-आर्थिक उत्थान हो। हुनर हार्ट और उस्ताद जैसी योजनाओं ने अल्पसंख्यक समुदायों के पारंपरिक कारीगरों और शिल्पकारों को स्वरोजगार, बाजार और अवसर प्रदान करने और पारंपरिक कला की उनकी समृद्ध विरासत को संरक्षित करने में काफी मदद की है।

शांति की बहाली से जम्मू-कश्मीर की छवि बदल रही है

इस सम्मेलन में सुन्नी, शिया, सूफी, दाऊदी बोहरा, पसमांदा मुसलमानों और गुज्जर-बकरवाल सहित विभिन्न समुदायों के धार्मिक नेताओं ने प्रधानमंत्री मोदी की जमकर तारीफ की। उन्होंने कहा कि तीन दशकों से आतंकवाद और हिंसा का सामना करते आ रहे थे। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने ऐतिहासिक फैसला कर शांति और स्थिरता कायम की है। पिछले चार सालों में विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ है, जिसका असर जीवन के हर क्षेत्र में दिखाई दे रहा है। आज आतंकी घटनाओं में कमी और शांति की बहाली से जम्मू-कश्मीर की छवि बदल रही है।

कश्मीर में विकास अब एक वास्तविकता है- मौलाना कल्बे रुशैद रिज़वी

‘सूफीवाद और कश्मीरियत: शांति और सद्भाव की मिसाल’ विषय पर आयोजित इस सम्मेलन में वक्ताओं ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कश्मीर की संस्कृति अद्वितीय है और घाटी में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की परंपरा अनुकरणीय है। समाज सुधारक डॉ. मौलाना कल्बे रुशैद रिज़वी ने इस सम्मेलन का हिस्सा बनने पर गर्व व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि कश्मीर में विकास अब एक वास्तविकता है और सभी स्तरों पर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। हालांकि, कश्मीर के लोगों के लिए बेहतर भविष्य बनाने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में अभी भी काम करने की ज़रूरत है।

मौलाना सैयद सलमान चिश्ती ने की पीएम मोदी की तारीफ

चिश्ती फाउंडेशन के अध्यक्ष और धार्मिक उपदेशक डॉ. मौलाना सैयद सलमान चिश्ती ने कहा कि कोविड के बाद पहली बार कश्मीर में इस तरह का आयोजन हो रहा है और मैं इससे बेहद खुश हूं। आखिरी बार इसी तरह का आयोजन 2016 में नई दिल्ली में आयोजित विश्व सूफी सम्मेलन था, जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने 40 मिनट के संबोधन में सूफीवाद के मौलिक सिद्धांतों की प्रशंसा की थी। यह पहली बार था कि किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने आजादी के बाद सूफीवाद और उसके सिद्धांतों पर चर्चा की। यह, अपने आप में एक अनोखा और उदार भाव था।

आइए एक नजर डालते हैं अनुच्छेद 370 हटने के बाद किस तरह जम्मू-कश्मीर की तकदीर और तस्वीर बदल रही है। पत्थरबाजी और आतंकी घटनाओं में कमी से विकास को रफ्तार मिल रही है… 

जम्मू-कश्मीर शांति और विकास के रास्ते पर तेजी से आगे बढ़ रहा है। इसकी शुरूआत 05 अगस्त, 2019 को हुई, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाने का ऐतिहासिक और साहसिक फैसला लिया। इसने पिछले साढ़े चार सालों में जम्मू-कश्मीर की तस्वीर और यहां के लोगों की तकदीर बदलने का काम किया है। केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद भारत सरकार के कानून और योजनाओं को लागू करना संभव हुआ है। महिलाओं को उनका अधिकार और युवाओं को रोजगार मिला है। भारत के साथ पूरी तरह एककीकरण से जनमानस में भी बदलाव आया है। पत्थरबाजी और आतंकी घटनाओं में कमी आई है। प्रदेश में शांति का माहौल बना है। इससे पर्यटन को बढ़ावा मिला है और बाहरी निवेश में बढ़ोतरी हुई है। 

दो केंद्र शासित प्रदेश बनने से जम्मू-कश्मीर की बदली तस्वीर

मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 खत्म कर जम्मू-कश्मीर को देश की मुख्यधारा से जोड़ दिया है। आज जम्मू-कश्मीर देश के अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश की तरह अपनी विकास की कहानी खुद लिख रहा है। इसमें केंद्र सरकार अहम भूमिका निभा रही है। अब सभी केंद्रीय कानून यहां लागू हो रहे हैं। जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 से जम्मू-कश्मीर की तस्वीर बदल गई है। राज्य का बंटवारा कर दो केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख बनाया गया है। जम्मू-कश्मीर का झंडा और अपना संविधान की व्यवस्था खत्म हो गई है। दोहरी नागरिकता खत्म हो गई है। दो दरबार की प्रथा और पठानकोट नाका परमिट खत्म हो गया है।

जम्मू-कश्मीर विधानसभा की सीटों की संख्या में बदलाव 

विधानसभा का कार्यकाल भी छह साल की जगह पांच साल हो गया है। विधानपरिषद की समाप्ति के साथ ही विधानसभा की सात सीटें बढ़ाई गई हैं। इनमें जम्मू में छह और कश्मीर में एक सीट शामिल है। अब जम्मू-कश्मीर में सीटों की संख्या बढ़कर 90 हो गई हैं। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के लिए 24 सीटों में कोई बदलाव नहीं हुआ है। पहली बार जम्मू-कश्मीर में विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए 9 सीटें आरक्षित की गई है। इनमें 6 जम्मू क्षेत्र और 3 सीट कश्मीर में आरक्षित है। इस बदलाव के साथ जम्मू क्षेत्र में 43 और कश्मीर घाटी में 47 सीटें हो गई हैं। वहीं इससे पहले कश्मीर घाटी में 46 और जम्मू क्षेत्र में 37 सीटें होती थी। 

पहाड़ी कबीला समुदाय के लोगों को मिला एसटी दर्जा 

मोदी सरकार ने 26 जुलाई, 2023 को जम्मू-कश्मीर के लोगों को एक बड़ा तोहफा दिया। संसद ने जम्मू-कश्मीर अनुसूचित जनजाति आदेश संशोधन विधेयक-2023 पारित किया। इसमें जम्मू और कश्मीर में अनुसूचित जनजातियों की सूची में चार समुदायों को भी जोड़ा गया है। इनमें गद्दा ब्राह्मण, कोली, पद्दारी जनजाति और पहाड़ी जातीय समूह शामिल है। जम्मू कश्मीर में रहने वाला पहाड़ी कबीला समुदाय के लोग बीते कई सालों से अपने लिए अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग रहे थे। मोदी सरकार ने बीते वर्ष इस मांग को पूरा करने की घोषणा करते हुए जम्मू कश्मीर आरक्षण संशोधन बिल लाने का भरोसा दिलाया था। इस संशोधन से गुज्जर-बक्करवाल समुदाय को प्राप्त आरक्षण कोटे और सुविधाओं में किसी भी प्रकार की कटौती नहीं की गई है। फिर भी किसी भी प्रकार के विवाद से बचने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बीते दिन दोनों समुदायों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की थी और उन्हें वस्तुस्थिति की जानकारी दी थी। 

जम्मू-कश्मीर में पंचायती राज व्यवस्था को मिला पुनर्जीवन 

अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद पंचायती राज व्यवस्था को पुनर्जीवन मिला है। जमीनी स्तर पर लोकतंत्र मजबूत हो रहा है। अक्टूबर 2020 में जम्मू-कश्मीर पंचायती राज अधिनियम में संशोधन करके जिला विकास परिषदों का सृजन किया गया। बीडीसी के चुनाव में बिन किसी हिंसा के रिकॉर्ड 98.3 प्रतिशत मतदान हुआ। पहली बार पंचायत चुनाव हुए और 32, 000 से अधिक पंच-सरपंच चुनकर आए। पिछले 2 वर्षों में चुने हुए सरपंचों द्वारा स्थानीय निकायों के जरिए 1000 करोड़ का विकास किया गया है।

अनुच्छेद 370 हटने के बाद 30,000 युवाओं को मिली नौकरियां

जम्मू-कश्मीर में संवैधानिक और कानूनी बदलाव का असर रोजगार पर भी देखा जा रहा है। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने 26 जुलाई, 2023 को राज्य सभा में एक रिपोर्ट पेश की, जिसमें बताया कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद करीब 30,000 युवाओं को नौकरियां दी गई हैं। जम्मू-कश्मीर सरकार ने 29,295 खाली पदों को भरा है। इसके अलावा भर्ती एजेंसियों ने 7,924 रिक्तियों का विज्ञापन दिया है और 2,504 व्यक्तियों के संबंध में परीक्षाएं आयोजित की गई है। मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में कई योजनाएं शुरू की हैं, जिससे युवाओं को रोजगार के अवसर मिल रहे हैं। एलओसी के करीब रहने वाले युवाओं को शिक्षा और सेवाओं में 3 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। युवाओं के स्वरोजगार के लिए कौशल विकास के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इससे युवा हथियार और आतंकवाद छोड़कर रोजगार को अपना रहे हैं। 

स्वरोजगार योजनाओं के तहत 2.03 लाख को मिला रोजगार

जम्मू कश्मीर में लगभग 80,000 करोड़ रुपये वाले प्रधानमंत्री विकास पैकेज 2015 से विकास को गति मिली है। विकास से संबंधित 20 से अधिक परियोजनाओं को पूरा किया जा चुका है। वहीं बाकी परियोजनाओं पर काम चल रहा है। इस केंद्र शासित प्रदेश में स्वस्थ्य के क्षेत्र में क्रांतिकारी पहल की गई है। जम्मू और कश्मीर में दो एम्स खोलने की मंजूरी दी गई है। स्वरोजगार स्कीम के तहत 2.03 लाख युवाओं को रोजगार मिला है। मिशन यूथ के तहत 70,000 युवाओं को आजीविका मिली है। NRLM -Umeed के तहत 70, 576 एसएचजीएस की स्थापना की गई है। तेजस्विनी कार्यक्रम के तहत उद्यमी महिलाओं को प्रशिक्षण एवं वित्तीय सहायता दी गई है। हौसला कार्यक्रम से महिला उद्यमियों को मंच प्रदान कर वैश्विक बाजार से जोड़ा जा रहा है।

जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाजी और आतंकी घटनाओं में कमी 

अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद पत्थरबाजी और आतंकी घटनाओं में कमी आई है। पत्थरबाजी की घटनाओं में 94 प्रतिशत की कमी आई है। कुल हिंसक घटनां में 68 प्रतिशत, नागरिकों की मृत्यु में 82 प्रतिशत और सुरक्षाबलों की मृत्यु में 56 प्रतिशत की कमी आई है। 5 अगस्त, 2016 से 4 अगस्त 2019 के बीच 900 आतंकी घटनाएं हुई थीं। इसमें 290 जवान शहीद हुए थे और 191 आम लोग मारे गए थे। वहीं 5 अगस्त 2019 से 4 अगस्त 2022 के बीच 617 आतंकी घटनाओं में 174 जवान जवान शहीद हुए 110 नागरिकों की मौत हुए। एनआईए ने आतंकी नेटवर्क को ध्वस्त करने में काफी सफलता अर्जित की है। 2018 में 58, 2019 में 70 और साल 2020 में 6 हुर्रियत नेता हिरासत में लिए गए। 18 हुर्रियत नेताओं से सरकारी खर्च पर मिलने वाली सुरक्षा वापस ली गई। अलगाववादियों की आर्थिक ताकत को तोड़ने के लिए 80 बैंक खातों को सील कर दिया गया। पत्थरबाजी की घटना नहीं होने से शिक्षण संस्थाओं पर ताला नजर नहीं आता। स्कूलों कॉलेजों में छात्रों की उपस्थिति बढ़ चुकी है। 

आतंकी घटनाओं में कमी से पर्यटन को मिला बढ़ावा

राज्य में आतंकी घटानों में कमी और शांति बहाली से पर्यटन को बढ़ावा मिला है। बीते साढ़े चार साल में पर्यटकों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2022 में 1.88 करोड़ पर्यटकों ने जम्मू-कश्मीर का दौरा किया और वहां की खूबसूरती का लुत्फ उठाया। वहीं, इस साल शुरू की गई अमरनाथ यात्रा में भी श्रद्धालुओं की संख्या में बीते सालों के मुकाबले रिकॉर्ड तोड़ इजाफा हुआ। इस साल अमरनाथ यात्रा में 4 लाख से अधिक श्रद्धालु दर्शन कर चुके हैं। स्थानीय पर्यटन और संस्कृति को बढ़ावा दिया जा रहा है। मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर की खूबसूरती को दुनिया के नक्शे पर लाने के लिए अनेक कदम उठाए हैं। उनमें सबसे महत्ववपूर्ण कदम है जम्मू-कश्मीर में जी-20 टूरिज्म वर्किंग ग्रुप की बैठक।

जम्मू-कश्मीर में शांति बहाली से निवेश को मिला बढ़ावा

जम्मू-कश्मीर में शांति बहाली से निवेश को भी बढ़ावा मिला है। 5 अगस्त, 2019 से पहले बाहरी लोगों को जमीन खरीदने का अधिकार नहीं था। अनुच्छेद 370 हटने के बाद जमीन खरीदने का रास्ता साफ हो गया है। पिछले साढ़े चार साल में 188 निवेशकों ने जमीन खरीदकर भारी निवेश किया है। संयुक्त अरब अमिरात के एमआर ग्रुप ने 500 करोड़ रुपये की लागत से प्रोजेक्ट शुरू किया है। इस प्रोजेक्ट के पूरा होते ही कश्मीर में 10000 नौकरियां मिल सकेंगी। अप्रत्याशित रूप से 73 हजार करोड़ रुपये के निवेश के प्रस्ताव मिले हैं।

मुहर्रम के जुलूस निकालने और शारदा देवी की पूजा की मिली आजादी

जम्मू-कश्मीर में माहौल बदलने से सालों से बंद पड़े धार्मिक कार्य भी शुरू हो चुके हैं। 27 जुलाई,2023 को तीन दशकों से बंद मुहर्रम का जुलूस निकाला गया। पैगंबर मुहम्मद के पोते हजरत इमाम हुसैन की याद में सीना ठोकते हुए युवा सड़कों पर निकले। इस तरह 34 साल बाद मुहर्रम के जुलूस को निकालने की आजादी मिली है। जम्मू कश्मीर के उत्तरी इलाके में नियंत्रण रेखा के पास स्थित प्राचीन माता शारदा देवी के मंदिर में 22 मार्च, 2023 को श्रद्धालुओं ने दर्शन किया। 75 साल बाद यह मंदिर बन कर तैयार हो गया है। इस मंदिर को श्रद्धालुओं के लिए 22 मार्च यानी चैत्र नवरात्री के दिन खोला गया। नब्बे के दशक में जिन कश्मीरी पंडितों को जम्मू-कश्मीर से अत्याचार करने के बाद भागने को मजबूर किया गया, यह मंदिर उन्हीं कश्मीरी पंडितों के लिए एक आस्था का प्रतीक है। ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो इस मंदिर के निर्माण हजारों साल पुराना है। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि शारदा पीठ का निर्माण 5 हजार साल पहले 273 ईसा पूर्व में सम्राट अशोक के समय में हुआ था।

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