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मोदी काल में दवाओं का निर्यात दोगुना से ज्यादा हुआ, 1.17 लाख करोड़ की दवाएं विदेश भेजी गईं, 2023 में 27 अरब डॉलर निर्यात का अनुमान

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ‘विश्व की फार्मेसी’ बनने की ओर अग्रसर है। अप्रैल-दिसंबर 2022 में दवाओं एवं फार्मास्युटिकल उत्पादों का निर्यात 2013 की इसी अवधि की तुलना में लगभग 2.4 गुना बढ़ गया। अप्रैल-दिसंबर 2013-14 में भारत से दवाओं का निर्यात जहां 49,200 करोड़ रुपये का था वहीं अप्रैल-दिसंबर 2022-23 में यह बढ़कर 1,17,740 करोड़ रुपये हो गया। विशेषज्ञों का अनुमान है कि भारत से दवा का निर्यात वित्त वर्ष 2023 में 27 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर को छू सकता है। फार्मास्युटिकल्स एक्सपोर्ट्स प्रमोशन काउंसिल (Pharmexcil) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यह अब तक का सबसे अधिक मूल्यांकन वाला निर्यात होगा।

पीएम मोदी के विजन से निकला भारतीय दवा उद्योग के प्रगति का रास्ता

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय दवा उद्यम को सरकार के साथ मिलकर काम करने के लिए एक मंच प्रदान किया गया और साथ में प्रगति करने का रास्ता निकाला गया। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत को कोविड के खिलाफ लड़ाई में विश्व स्तर पर सराहना मिली है। महामारी के दौरान भारतीय फार्मा उद्योगों ने देश की जरूरतों को पूरा करते हुए 120 से अधिक देशों को आवश्यक दवाओं की आपूर्ति की। भारत ने न केवल दुनिया का सबसे बड़ा कोविड 19 टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया बल्कि अन्य देशों को वैक्सीन उपलब्ध कराने के वैश्विक प्रयास भी किए जिसे लेकर भारत केंद्र में रहा।

भारत का फार्मास्युटिकल उद्योग 50 अरब डॉलर का

भारत का फार्मास्युटिकल उद्योग फिलहाल 50 अरब डॉलर का है। इसके 2024 तक 65 अरब डॉलर और 2030 तक 130 अरब डॉलर होने की संभावना है। इस दशक में भारत का फार्मा सेक्टर 11 से 12 फीसदी के रेट से बढ़ेगा। सबसे ख़ास बात ये है कि भारत में दवा निर्माण की लागत पश्चिमी देशों से 33 प्रतिशत कम है।

2030 तक भारतीय फार्मा बाजार 130 अरब डॉलर तक बढ़ने की उम्मीद

भारतीय दवाओं को लेकर दुनिया के देशों की निर्भरता बढ़ती जा रही है। दुनिया के तमाम देश जिनमें कई विकसित राष्ट्र भी शामिल हैं भारत से बड़े स्तर पर दवा आयात करते हैं। यही कारण है कि वर्ष 2030 तक भारतीय फार्मा बाजार के 130 अरब अमेरिकी डॉलर तक बढ़ने की उम्मीद व्यक्त की जाती है। वहीं 2025 तक भारत में चिकित्सा उपकरणों के उद्योग के 50 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की क्षमता है।

देश के कुल निर्यात में फार्मा सेक्टर की हिस्सेदारी 6 फीसदी

देश के कुल निर्यात में फार्मा सेक्टर की हिस्सेदारी करीब 6 फीसदी है। भारत दुनिया के शीर्ष पांच फार्मास्युटिकल उभरते बाजारों में शामिल है। जेनेरिक दवाइयों में विश्व नेता होने के अलावा भारत में अमेरिका से बाहर सबसे ज्यादा यूएस-एफडीए (US-FDA) अनुपालन वाले फार्मा प्लांट हैं। यहां 3,000 से ज्यादा फार्मा कंपनियां हैं। वहीं दक्ष मानव संसाधन के साथ साढ़े 10,500 से ज्यादा विनिर्माण सुविधाओं (manufacturing facilities) का मजबूत नेटवर्क है। इन आंकड़ों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत की अर्थव्यवस्था में फार्मा सेक्टर कितना बड़ा और महत्वपूर्ण है।

मेक इन इंडिया मुहिम के तहत घरेलू और वैश्विक कंपनियों को प्रोत्साहन

केंद्र सरकार के प्रयासों से ही कोविड 19 संकट को एक अवसर में बदलने के लिए भारतीय दवा उद्योग को एक बड़ा मंच मिला। इससे सेक्टरों में प्रवेश के आवश्यक स्तरों को प्राप्त करने, नवाचार को प्रोत्साहित करने और क्षमता बढ़ाने में काफी मदद मिली। भारत ने पूरे विश्व में मेक इन इंडिया मुहिम को सार्थक बनाने के लिए घरेलू और वैश्विक कंपनियों दोनों को प्रोत्साहित किया। ऐसे में इंडियन फार्मा के लिए आने वाले दिन और भी सुनहरे साबित हो सकते हैं।

पिछले 8 वर्षों में दवा उद्योग में करीब 10 बिलियन अमरीकी डॉलर की वृद्धि

फार्मा सेक्टर ने पिछले आठ साल में निर्यात में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की है। पिछले 8 वर्षों में इसमें करीब 10 बिलियन अमरीकी डॉलर की उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इसमें खास बात यह है कि कोरोना काल में विभिन्न बाधाओं के बावजूद भारतीय फार्मा कंपनियों ने बेहतर प्रदर्शन किया है। भारतीय औषध उद्योग को वैश्विक बाजार में अग्रणी भूमिका निभाने हेतु समर्थ बनाना और आम उपभोग के लिए अच्छी गुणवत्ताओं वाले औषध उत्पादों का उचित मूल्यों पर देश के अंदर प्रचुर उपलब्धता सुनिश्चित करना केंद्र सरकार का अहम लक्ष्य है जिसे पूरा करने के लिए निरंतर प्रयास जारी हैं।

8 साल में दवाओं के निर्यात में 146% की भारी वृद्धि

भारत के फार्मा सेक्टर ने निर्यात के मोर्चे पर दमदार प्रदर्शन किया है। बीते 8 साल में भारत ने दवाओं के निर्यात में उम्मीद से भी बेहतर प्रदर्शन करते हुए 146% की भारी वृद्धि दर्ज की है। यही वजह है कि भारत को आज दुनिया का बड़ा दवाखाना कहा जाने लगा है। पीएम मोदी के कार्यकाल में भारत को वह सुनहरा अवसर मिला जब कोरोना काल में भारत ने दुनिया का विश्वास जीतने का महत्वपूर्ण कार्य किया।

सालाना आधार पर दवा उद्योग में 12 फीसदी की बढ़ोतरी

पिछले वर्ष 2022 में भारत से निर्यात में 4.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। जबकि सालाना आधार पर देखें तो इसमें 12 फीसदी की भारी बढ़ोतरी देखी गई। ​मासिक दर पर भी वित्त वर्ष 2022 में 5.4 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई।

दवा उत्पादन के मामले में भारत दुनिया भर में तीसरे नंबर पर

भारतीय दवाओं का दुनिया भर के तमाम देशों में दायरा लगातार बढ़ रहा है। दुनिया के लगभग हर देश में भारतीय दवाएं पहुंचती हैं। भारत सरकार भी फार्मा सेक्टर को नई ऊंचाई पर पहुंचाने के लिए अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए जो-शोर से कदम उठा रही है। दवा उत्पादन के मामले में मात्रा (volume) के हिसाब से दुनिया भर में तीसरे नंबर पर है और मूल्य (value) के हिसाब से 14वें नंबर पर है।

जेनेरिक दवाएं मुहैया कराने में भारत पहले पायदान पर

दुनिया को जेनेरिक दवाएं मुहैया कराने में भारत पहले पायदान पर है। मात्रा के हिसाब से जेनेरिक दवाओं के वैश्विक आपूर्ति में 20 प्रतिशत हिस्सेदारी भारत की है। भारत में बनी जेनरिक दवाओं की मांग अमेरिका, कनाडा, जापान, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन समेत अनेक विकासशील देशों में भी है। भारत का दवा उद्योग 60 चिकित्सीय श्रेणियों में 60,000 जेनेरिक ब्रांड मुहैया कराता है। भारत, अमेरिका की 40 फीसदी जेनरिक दवाओं की मांग को पूरा करता है। वहीं हम अफ्रीका के 50 फीसदी जेनेरिक दवाओं की मांग को पूरा करते हैं। इसके साथ ही ब्रिटेन की जेनेरिक समेत सभी दवाओं की मांग का 25 फीसदी हिस्सा भारत ही पूरा करता। लैटिन अमेरिका और अफ्रीका के गरीब देशों की सस्ती दवा जरुरतों को पूरा करने में भारत का बहुत बड़ा योगदान है।

दुनिया के 60 फीसदी टीकों की जरुरतों को पूरा करता है भारत

वैक्सीन बनाने के मामले में भी भारत का दुनिया में दबदबा है। भारत की वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों ने कम कीमत और बेहतर गुणवत्ता की वजह से वैश्विक पहचान बनाई है। दुनिया के 60 फीसदी टीकों की जरुरतों को भारत ही पूरा करता है। भारत DPT, BCG और मीजल्स के टीकों का सबसे बड़ा सप्लायर है। इसके अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के 70 फीसदी टीकों की जरुरतों को भी भारत ही पूरा करता है। इसके साथ ही भारतीय दवा कंपनियों में बने सस्ते लाइफ सेविंग ड्रग्स की मांग भी पूरी दुनिया में है। भारत फिलहाल दुनिया के 150 से ज्यादा देशों में वैक्सीन की आपूर्ति कर रहा है।

भारत से सबसे अधिक निर्यात यूरोपीय देशों में हुआ

भारत से दवाओं से सबसे अधिक निर्यात यूरोपीय देशों में हुआ है। यूरोपीय देशों में कुल निर्यात 14.19 फीसदी हुआ, जबकि अमेरिका, कनाडा और मैक्सिको (नाफ्टा) के लिए कुल निर्यात 67.5 फीसदी हुआ। यूरोपीय देशों के बाद पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ्रीका में निर्यात सबसे अधिक हुआ। इन देशों में कुल निर्यात 12.68 फीसदी था। पिछले वर्ष यूरोप और अमेरिका में कुल मिलाकर 51 फीसदी निर्यात हुआ था और इस वित्त वर्ष में यह उम्मीद है कि इन देशों से और अधिक निर्यात दर दर्ज की जाएगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि यूरोप में निर्यात इस बार बेहतर स्थिति में है।

चीन में भारतीय जेनेरिक दवाओं की मांग आसमान छू रही

चीन में बड़े पैमाने पर कोविड के मामलों में वृद्धि के बीच भारतीय जेनेरिक दवाओं की मांग में तेजी आई है। Paxlovid की भारी कमी के कारण, चीनी ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के माध्यम से भारतीय जेनेरिक संस्करणों की मांग बढ़ गई है। चीनी ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर भारत में उत्पादित कम से कम चार जेनेरिक COVID दवाएं – प्रिमोविर, पैक्सिस्टा, मोलनुनाट और मोलनाट्रिस हाल के हफ्तों में बिक्री के लिए सूचीबद्ध की गई हैं। सभी चार दवाओं को भारतीय अधिकारियों द्वारा आपातकालीन उपयोग के लिए अनुमोदित किया गया है। बीजिंग मेमोरियल फार्मास्युटिकल के प्रमुख हे शियाओबिंग ने बताया कि भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां हम गारंटीकृत चिकित्सीय प्रभावों के साथ विश्वसनीय और सस्ती COVID दवाएं प्राप्त कर सकते हैं।

चीन में भारत की कैंसर दवाओं की भी भारी मांग

चीन ने जुलाई 2018 में भारत की 28 दवाओं पर से आयात शुल्क में कटौती का फैसला किया था। इसमें सभी कैंसर रोधी दवाएं भी शामिल थीं। उसके बाद से ही चीन में भारतीय दवाओं की मांग और तेजी से बढ़ी है। इसके पहले 2017-18 में भारत से चीन को दवाओं के निर्यात में 44 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई थी। पश्चिमी देशों की तुलना में बहुत सस्ती होने की वजह से चीन में भारतीय दवाओं खासकर कैंसर से जुड़ी दवाइयों की मांग बहुत ज्यादा है। चीन में भारतीय दवाओं की मांग तब है, जब हम दवा बनाने के लिए आयात होने वाली कुल बल्क ड्रग्स या कच्चे माल में से 60 फीसदी से भी ज्यादा चीन से आयात करते हैं।

मेडिकल वीजा में इजाफा, 2020 में करीब दो लाख विदेशी इलाज कराने भारत आए

कोविड महामारी की वजह से पाबंदी के बावजूद 2020 में भारत में करीब दो लाख विदेशी इलाज कराने आए थे। 2014 से ही मेडिकल वीजा की संख्या में बहुत तेजी से इजाफा हुआ है। 2013 में 59 हजार 129 मेडिकल वीजा जारी किए गए। 2014 में ये आंकड़ा 75, 671 था। वहीं 2015 में करीब एक लाख 34 हजार 344 विदेशी नागरिकों ने इलाज के लिए भारत का रुख किया। 2016 में 54 देशों के दो लाख एक हजार 99 नागरिकों को मेडिकल वीजा जारी किए गए। भारत में इलाज के लिए आने वाले विदेशी नागरिकों में एशिया और अफ्रीकी देश के लोग तो शामिल हैं ही, इनके अलावा अमेरिका, ब्रिटेन, रूस और ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों के लोग भी इलाज कराने भारत आ रहे हैं।

भारत में हेल्थ टूरिज्म बाजार 6 अरब डॉलर का

2016 से ही हर साल दो लाख से ज्यादा विदेशी यहां अपना इलाज करवाने आ रहे हैं। फिलहाल चेन्नई, मुंबई, दिल्ली, अहमदाबाद और बेंगलुरु इलाज के लिए विदेशी नागरिकों की पसंदीदा जगह है। भारत में फिलहाल हेल्थ टूरिज्म 6 अरब डॉलर का बाजार है। 2026 तक इसके 13 अरब डॉलर तक पहुंचने की संभावना है। ‘Heal In India’ पहल से इस सेक्टर में और तेजी से बढ़ोत्तरी होगी।

भारत दुनिया में पीपीई किट का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक

यह कोई छोटी बात नहीं है कि भारत कोरोना-काल में फार्मा और मेडिकल सेक्टर की कई वस्तुओं का बड़ा उत्पादक और नया निर्यातक देश बन गया है। भारत दुनिया में पीपीई किट का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक बन गया है, जिसकी दैनिक उत्पादन क्षमता प्रतिदिन पांच लाख से अधिक है। इसी तरह देश में बहुत कम समय में वेंटिलेटर की स्वदेशी उत्पादन क्षमता बढ़कर तीन लाख प्रति वर्ष हो गई है।

एन-95 मास्क के उत्पादन में भी अव्वल

देश में एन 95 मास्क और पीपीई किट की कोई कमी नहीं है, कोरोना की पहली लहर के दौरान 2020 में सुरक्षात्मक उपकरणों की भारी कमी से जूझने वाले भारत ने अब एन -95 मास्क और पीपीई किट बनाने की क्षमता बढ़ाने में कामयाबी हासिल कर ली है। देश ने एन-95 मास्क के उत्पादन में भी आत्मनिर्भरता हासिल की है। भारत सर्जिकल मास्क, मेडिकल गॉगल्स और पीपीई किट का बड़े पैमाने पर निर्यात भी कर रहा है। उद्योग के विशेषज्ञों के अनुसार, मार्च 2020 में भारत मुश्किल से किसी पीपीई किट का उत्पादन कर रहा था, जिसे कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई में सुरक्षा का पहला मानक माना गया है। वहीं 2021 में भारत एक महीने में एक करोड़ से अधिक इकाइयों का उत्पादन कर रहा था। देश में प्रति माह 20 लाख यूनिट एन -95 मास्क यानी प्रति माह लगभग 2.5 से 3 करोड़ यूनिट का उत्पादन हुआ है।

भारत का फार्मा सेक्टर विदेशी निवेशकों के लिए पसंदीदा सेक्टर

भारत का फार्मा सेक्टर विदेशी निवेशकों के लिए पसंदीदा सेक्टर में से एक है। ग्रीनफील्ड फार्मास्यूटिकल्स के लिए ऑटोमैटिक रूट के तहत फार्मास्युटिकल क्षेत्र में 100 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति है। वहीं ब्राउनफील्ड फार्मास्यूटिकल्स में 100 फीसदी एफडीआई की अनुमति है, जिसमें 74 फीसदी ऑटोमैटिक रूट और बाकी हिस्सा के लिए सरकारी मंजूरी की जरुरत होती है। अप्रैल 2000 से सितंबर 2022 के बीच 20.1 अरब डॉलर का एफडीआई इस सेक्टर में हुआ था। ये उस अवधि में कुल एफडीआई का तीन फीसदी है।

पीएलआई स्कीम की घोषणा के बाद 35 एपीआई का उत्पादन शुरू

दवा के कच्चे माल के उत्पादन के लिए प्रोडक्शन लिंक्‍ड स्कीम (पीएलआई) की घोषणा के बाद 35 एपीआई (एक्टिव फार्मास्युटिकल्स इंग्रिडिएंट्स) का उत्पादन शुरू कर दिया गया है जिनका अब तक भारत चीन से आयात करता था। रसायन व खाद मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक एपीआई उत्पादन में बढ़ोतरी को लेकर पीएलआई स्कीम की घोषणा के बाद 35 उन एपीआई का उत्पादन शुरू हो चुका है जिनका अब तक हम आयात करते थे। पीएलआई स्कीम के तहत 53 एपीआई को उत्पादन के लिए चिन्हित किया गया है और इसके लिए 32 नए प्लांट लगाए गए हैं। भारत हर साल 2.8 अरब डॉलर का एपीआई व अन्य कच्चे माल का आयात चीन से करता है, लेकिन दूसरी तरफ भारत 4.8 अरब डॉलर के एपीआई व दवा के अन्य कच्चे माल का निर्यात भी करता है। आयात होने वाले एपीआई का उत्पादन शुरू होने से निश्चित रूप से भारत पूरी तरह से फार्मा सेक्टर में आत्मनिर्भर हो जाएगा।

कोरोना काल में जब दुनिया लाचार थी, भारत मदद की हाथ बढ़ा रहा था

पीएम मोदी के नेतृत्व में पूरी दुनिया और देशवासियों में विश्वास और उम्मीद की अलख जगाकर भारत ने कोरोना काल में ही कई ऐतिहासिक कीर्तिमान स्थापित किए। जैसे वैक्सीन निर्माण, मास्क उत्पादन, ऑक्सीजन प्लांट निर्माण और मेडिकल से जुड़े कई जरूरी उपकरण इत्यादि को लेकर देश में इतने बड़े स्तर पर काम हुआ कि आने वाले समय में अब शायद ही कभी इनकी कमी देश को खलेगी। केवल इतना ही नहीं भारत ने इतने व्यापक स्तर पर दवाओं से लेकर मेडिकल से जुड़े तमाम जरूरी उपकरणों का निर्माण किया कि उन्हें अन्य देशों में जरूरत पड़ने पर भेजा भी गया। यही वह कदम था जब पूरी दुनिया कोरोना के समक्ष लाचार नजर आ रही थी लेकिन भारत उस मुश्किल घड़ी में भी पूरी दुनिया की मदद करने के लिए आगे हाथ बढ़ा रहा था।

सर्वे सन्तु निरामया की भावना से देश बढ़ रहा आगे

”सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया।” की भावना के साथ भारत ने दुनिया के रोगों को हरने में बड़ा योगदान अदा किया है। कोरोना काल में तो पूरी दुनिया इसके प्रत्यक्ष प्रमाण की गवाह बनी जब भारत ने विश्व मानवता को समर्पित भारतीय दवा उद्योग के प्रयासों से तैयार की गई भारतीय वैक्सीन को मानवता को बचाने में समर्पित कर दिया।

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