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प्रधानमंत्री तो दूर पीएम पद का उम्मीदवार बनना भी मुश्किल, खरगे का नाम आगे कर ममता ने कर दिया राहुल का खेल

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कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के बेटे राहुल गांधी को एक बड़ा झटका लगा है। I.N.D.I. Alliance की नई दिल्ली में हुई चौथी बैठक में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी मानकर चल रहे थे कि गठबंधन की ओर से उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाएगा। लेकिन बैठक में टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने मल्लिकार्जुन खरगे का नाम आगे कर बड़ा खेल कर दिया। ममता के प्रस्ताव का दिल्ली के सीएम और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने समर्थन कर साफ जता दिया कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में उन्हें स्वीकार नहीं हैं। भले ही खरगे ने यह कहकर पार्टी में परेशानी से बचने की कोशिश की है कि पीएम पद के उम्मीदवार का नाम चुनाव जीतने पर तय करेंगे लेकिन गठबंधन सहयोगी नेताओं के तेवर से साफ है कि राहुल गांधी के लिए प्रधानमंत्री तो दूर पीएम पद का उम्मीदवार बनना भी मुश्किल लग रहा है।

जितने दल उतने दावेदार
विपक्षी I.N.D.I. Alliance में जितने दल हैं उतने ही पीएम पद के दावेदार हैं। I.N.D.I. Alliance में तमाम दलों के नेता प्रधानमंत्री पद का सपना पाले हुए हैं और वे पहले से ही गांधी परिवार के उम्मीदवार का पत्ता काट अपना विकल्प खुला रखना चाहते हैं। विपक्षी पार्टी की ओर से समय-समय पर अपने नेताओं को प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में पेश कर दिया जाता है। कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी की तरह ही तृणमूल कांग्रेस ने ममता बनर्जी, आम आदमी पार्टी ने अरविंद केजरीवाल, एनसीपी ने शरद पवार, जेडीयू ने नीतीश कुमार, समाजवादी पार्टी ने अखिलेश यादव का नाम आगे बढ़ाया है। रावण के दस चेहरे की तरह I.N.D.I. गठबंधन में पीएम उम्मीदवार के कई चेहरे हैं। ऐसे में राहुल गांधी के लिए प्रधानमंत्री बनने का सपना मुश्किल ही नहीं असंभव लग रहा है। उनकी अगुवाई में विपक्षी क्षत्रपों का जुटना मुश्किल है और विपक्ष के कई दिग्गजों को राहुल की अगुवाई साफ तौर पर मंजूर नहीं है। राहुल की अगुआई में जिस तरह से अब सिर्फ हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और तेलांगना में कांग्रेस की सरकार बची है उससे विपक्षी दल उन्हें गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।

राहुल गांधी नहीं बन पाएंगे प्रधानमंत्री!
देश के जागरूक मतदाता अब वंशवाद की राजनीति को खारिज कर विकासवाद की राजनीति को तरजीह दे रहे हैं। राहुल गांधी जिस विपक्षी एकता के नाम पर बीजेपी को चुनौती देने की बात करते हैं, उसी के नेता कांग्रेस को कोई भाव नहीं देते। ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, नीतीश कुमार, अखिलेश यादव, शरद पवार जैसे दिग्गज नेता विपक्ष के नेता के रूप में राहुल की भूमिका को पूरी तरह से नकार चुके हैं। ये नेता दशकों से राजनीति में हैं, इनकी अपने-अपने राज्यों में जनता पर पकड़ भी है, लेकिन एक-दूसरे के तहत काम करने को कोई राजी नहीं है। क्षेत्रीय दलों के इन नेताओं के रूख से साफ है कि राहुल गांधी के लिए अब कोई चांस नहीं है।

राहुल के नाम पर कांग्रेस की कमजोर पड़ती कोशिश
कांग्रेस के नेता पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बेटे राहुल गांधी को पीएम पद का प्रत्याशी बनाने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं, हर मंच और मौके पर उन्हें देश के अगले पीएम के तौर पर प्रोजेक्ट कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ जिन सहयोगी दलों के बूते कांग्रेस राहुल को पीएम बनाने का सपना देख रही है, उन्हीं दलों के नेता दो टूक कह दे रहे हैं कि प्रधानमंत्री का चयन तो चुनाव परिणाम के बाद ही किया जाएगा। यानि राहुल के लिए विपक्ष की सहमति से प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी बनना दूर की कौड़ी नजर आ रहा है।

ममता बनर्जी को राहुल कतई स्वीकार नहीं
तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी विपक्षी I.N.D.I. Alliance की एक बड़ी नेता हैं। राहुल गांधी को लेकर ममता बनर्जी का रुख किसी से छिपा नहीं है। ममता साफ कर चुकी हैं कि वो राहुल की अगुवाई को कतई स्वीकार नहीं कर सकती हैं। यानि ममता की चली तो राहुल का प्रधानमंत्री बनने का सपना कभी पूरा नहीं होगा। ममता बनर्जी ने यह भी कहा है कि वह अभी बच्चे हैं। खरगे का नाम आगे कर उन्होंने एक तरह से राहुल का पत्ता काटने का ही काम किया है। इसके पहले टीएमसी सांसद सौगत रॉय मीडिया से बातचीत में कह भी चुके हैं कि ममता बनर्जी भी विपक्ष की तरफ से पीएम पद की दावेदार हो सकती है। उन्होंने कहा कि विपक्ष को एकजुट होना होगा। इसके अलावा नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन भी ममता के लिए बैटिंग कर चुके हैं। जनवरी 2023 में उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी में प्रधानमंत्री बनने की क्षमता है।

अरविंद केजरीवाल भी लाइन में
आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के बाद अरविंद केजरीवाल भी 2024 में पीएम दावेदार के तौर पर अपनी रणनीति तैयार करने में जुटे हुए हैं। केजरीवाल अभी खुलकर कुछ नहीं कह रहे हैं, लेकिन अंदरखाने उनकी तैयारी चल रही है। 2024 की दौड़ में आम आदमी पार्टी भी खुद को प्रबल दावेदार मान रही है। पार्टी के नेता यदा-कदा उन्हें पीएम उम्मीदवार के तौर पर उछालती रहती है।

नीतीश कुमार भी हैं मंशा पाले
बिहार के मुख़्यमंत्री और जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार भी प्रधानमंत्री बनने का सपना को पाले हुए हैं। नीतीश की पार्टी के नेता बार-बार प्रधानमंत्री पद के लिए उनका नाम उछालते भी रहते हैं। जेडीयू के विधायक,पदाधिकारी भी नीतीश को प्रधानमंत्री उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्ट करने के लिए खुले मंचों से दावा पेश करते रहे हैं। I.N.D.I. Alliance के जरिए विपक्षी दलों को एकजुट करने के प्रयास में भी काफी दिनों से जुटे भी हुए हैं। पटना, बंगलुरु और मुंबई की बैठक से ही उनके संयोजक बनाने की चर्चा होती रही है, लेकिन उनका नाम आगे नहीं बढ़ पा रहा है। इसको लेकर वे दो बार बैठक से दौरान ही मीटिंग छोड़कर बाहर जा भी चुके हैं। बिहार में लालू यादव की पार्टी भी चाहती है कि नीतीश दिल्ली जाए तो तेजस्वी यादव के लिए उप मुख्यमंत्री से मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ हो। लेकिन नीतीश की राह में सबसे बड़ी बाधा उनका पलटूराम चरित्र और उनकी विश्वनीयता है।

आरजेडी ने कहा विपक्ष के कई नेताओं में पीएम बनने की क्षमता
लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल ने भी कभी खुलेमन से राहुल गांधी को विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की पेशकश को स्वीकार नहीं किया। तेजस्वी यादव इशारा कर चुके हैं कि विपक्ष में कई ऐसे नेता हैं, जो प्रधानमंत्री पद की दावेदारी कर सकते हैं। राहुल की दावेदारी के बारे पूछने पर तेजस्वी यादव कह चुके हैं कि राहुल गांधी के साथ-साथ ममता बनर्जी, शरद पवार, मायावती, ये सभी नेता प्रधानमंत्री बनने की योग्यता रखते हैं। मतलब साफ है कि आरजेडी भी पूरी तरह से राहुल गांधी के साथ नहीं है।

अखिलेश यादव भी दौड़ में
अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के सबसे युवा मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इससे पूर्व वे लगातार तीन बार सांसद भी रह चुके हैं। समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के पुत्र अखिलेश ने 2012 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में अपनी पार्टी का नेतृत्व किया था। हालांकि जब से विपक्षी एकता चर्चा शुरू हुई है अखिलेश यादव का नाम पीएम उम्मीदवार के रूप में ज्यादा नहीं सुना गया। लेकिन अब लोकसभा चुनाव नजदीक आते ही उनकी पार्टी के नेता उन्हें पीएम उम्मीदवार के रूप में देखने लगे हैं और इस तरह के बयान भी देने लगे हैं। नई दिल्ली में बैठक के बाद अखिलेश यादव ने विकल्प खुला रखने के लिए कह भी दिया कि पीएम पद के उम्मीदवार के नाम पर चर्चा चुनाव के बाद होगी। वैसे समाजवादी पार्टी भी साफ कह चुकी है कि उसे राहुल गांधी की पीएम पद की उम्मीदवारी पर आपत्ति है। समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी कह चुके हैं कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने समय-समय पर स्पष्ट किया है कि विपक्ष की तरफ से पीएम कैंडिडेट कौन होगा, इसका फैसला चुनाव के नतीजों के बाद लिया जाएगा। इसके पहले समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव ने भी साफ कहा थि कि वह कांग्रेस को राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर नहीं देखते हैं और राहुल गांधी को अपना नेता किसी भी तरह से नहीं मानते हैं।

शरद पवार ने दिखाया आईना
राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले एनसीपी के सीनियर लीडर शरद पवार भी शुरू से प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब लेकर चल रहे हैं। राहुल गांधी को लेकर I.N.D.I. Alliance में पवार भी सहमत नहीं हैं। जब बाजार में तुअर दाल बिकने आती है तो हर दाना कहता है हम तुमसे भारी… लेकिन कीमत का पता तो बिकने पर ही चलता है।” साफ है उन्होंने कुछ दिन पहले यह बयान देकर जाहिर कर दिया है कि राहुल के पीएम बनने वाले बयान को वे गंभीरता से नहीं लेते। उन्होंने संकेत में ही सही, राहुल के पीएम पद की दावेदारी को भी खत्म कर दिया। अक्टूबर 2022 एनसीपी के राष्ट्रीय सम्मेलन में राष्ट्रवादी युवक कॉन्ग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि यदि वर्ष 2024 में नरेन्द्र मोदी और बीजेपी को हराना है तो पवार साहेब को ही विपक्ष की कमान संभालनी होगी क्योंकि बीजेपी जैसी पार्टी से टकराने के लिए उनके जैसे अनुभवी और ऊर्जावान नेता की ही जरूरत है। शरद पवार को उनके अनुभव के आधार पर विपक्षी दल उनमें नेतृत्व की क्षमता देखते हैं। एनसीपी के वरिष्ठ नेता प्रफुल्ल पटेल ने सबसे पहले शरद पवार को विपक्ष का सबसे बड़ा नेता बताकर कहा कि नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, केसीआर और अखिलेश यादव से लेकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन तक शरद पवार से इसीलिए मार्गदर्शन लेने आते हैं क्योंकि उनको पता है कि पवार ही विपक्ष को एकजुट रख सकते हैं।

राहुल काल में किस तरह कांग्रेस मुक्त हो रहा है भारत
सवाल उठता है कि वंशवाद की राजनीति से राहुल कब तक करियर बचाए रखेंगे। लगातार मिल रही हार से साफ है कि जिस राहुल गांधी के भरोसे पार्टी देश में फिर से पैर जमाने की कोशिश कर रही है वह बेहद कमजोर है और उनके नेतृत्व में पार्टी कांग्रेस मुक्त भारत की ओर अग्रसर है। राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस दिन पर दिन कमजोर होती जा रही है। वर्तमान में भले ही मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के अध्यक्ष हैं, लेकिन ये सभी जानते हैं कि मनमोहन सिंह की तरह उनका भी संचालन रिमोट कंट्रोल से हो रहा है। पार्टी के लिए गांधी परिवार ही सब कुछ है। पार्टी के सभी नेताओं के लिए सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ही सब कुछ हैं।

आइए जानते है कि किस तरह उनके नेतृत्व में कांग्रेस मुक्त होने की दिशा में पार्टी आगे बढ़ रही है…

सोनिया-राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस मुक्त भारत की ओर पार्टी
कांग्रेस पार्टी में तकरीबन सभी निर्णय राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की सहमति से ही लिए जाते हैं। इनके नेतृत्व में पार्टी 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही पतन की ओर है। लोकसभा-विधानसभा से लेकर नगर निकायों के चुनावों तक में पार्टी को लगातार मुंह की खानी पड़ रही है। 2014 के बाद से अब तक 9 साल में 58 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, इनमें से 47 चुनावों में कांग्रेस को बुरी हार का सामना करना पड़ा है। कांग्रेस अब सिर्फ तीन राज्यों तक में सिमट कर रह गई है और झारखंड में पार्टी छोटे सहयोगी दल की भूमिका में है। राहुल गांधी के कारण पार्टी के सैकड़ों जनाधार वाले नेता पार्टी छोड़कर बाहर जा चुके हैं।

2012 में शुरू कांग्रेस की हार का सिलसिला
लगातार होती हार पर हार राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता और राजनीतिक समझ पर सवालिया निशान खड़े कर रही हैं। दरअसल वर्ष 2009 में लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस मजबूत बनकर उभरी तो यूपी से 21 सांसदों के जीतने का श्रेय राहुल गांधी को दिया गया। 2013 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी खुले शब्दों में कहा कि वे राहुल गांधी के नेतृत्व में काम करने को तैयार हैं, लेकिन राहुल को नेतृत्व दिये जाने की बात ही चली कि पार्टी के बुरे दिन शुरू हो गए। 2012 में यूपी विधानसभा चुनाव में पार्टी के खाते में महज 28 सीटें आई। वहीं पंजाब में अकाली-भाजपा का गठबंधन होने से वहां दोबारा सरकार बन गई। ठीकरा कैप्टन अमरिंदर सिंह पर फोड़ा गया। दूसरी ओर गोवा भी हाथ से निकल गया। हालांकि हिमाचल और उत्तराखंड में जैसे-तैसे कांग्रेस की सरकार बन तो गई, लेकिन वह भी हिचकोले खाती रही। इसी साल गुजरात में भी हार मिली और त्रिपुरा, नगालैंड, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की करारी हार हुई।

2014: लोकसभा में 44 सीटों पर सिमट गई, 8 चुनावों में सिर्फ एक जीत पाए
दरअसल कांग्रेस के लिए यह विश्लेषण का दौर है, लेकिन वह वंशवाद और परिवारवाद के चक्कर में इस विश्लेषण की ओर जाना ही नहीं चाहती है। पार्टी गांधी परिवार से बाहर देखने के लिए तैयार नहीं है। 2014 में पार्टी की किरकिरी हर किसी को याद है। जब 44 सीटों पर जीत मिलने के साथ ही पार्टी प्रमुख विपक्षी दल तक नहीं बन पाई। गुजरात के सीएम के बाद पीएम मोदी इसी साल देश के प्रधानमंत्री बने। साल 2014 में 8 राज्यों के विधानसभा चुनाव भी हुए। इनमें हरियाणा, जम्मू कश्मीर, झारखंड, महाराष्ट्र, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम शामिल हैं। इन 8 राज्यों में से केवल अरुणाचल में कांग्रेस सरकार बना सकी। लेकिन ये सरकार भी बचा नहीं पाई।

2015: दो राज्यों में हुए चुनाव, दिल्ली में कांग्रेस का सूपड़ासाफ, बिहार में मिली सत्ता गंवा दी
साल 2015 में बिहार और दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए। दिल्ली में तो कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। 70 विधानसभा सीटों में से एक पर भी कांग्रेस नहीं जीत सकी। उसी साल बिहार में भी चुनाव हुए। आरजेडी और जेडीयू के साथ गठबंधन कर सरकार में शामिल हो गई, लेकिन महागठबंधन की सरकार चलाने का सलीका नहीं आया। कांग्रेस की हठधर्मिता के चलते जुलाई 2017 में नीतीश कुमार की जेडीयू ने गठबंधन तोड़ दिया और बीजेपी के साथ मिलकर अलग सरकार बना ली।

2016: पांच राज्यों में चुनाव, सिर्फ एक में मिली जीत 
2016 में असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में चुनाव हुए। असम और केरल में कांग्रेस की सरकार थी। चुनाव हुए तो कांग्रेस के हाथ से असम और केरल निकल गया। केवल छोटे-से पुडुचेरी में कांग्रेस की जीत हुई और सरकार बनी। दरअसल कांग्रेस ने सिर्फ बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी के विरोध को ही सबसे बड़ा काम मान लिया है। इस कारण देश की जनता के मन में कांग्रेस के प्रति नकारात्मक भाव पैदा हो गया है। 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद भी कांग्रेस ने कोई खास सबक नहीं सीखा। उल्टे राहुल गांधी अपने फटे कुर्ते के प्रदर्शन की बचकानी हरकतें करते रहें, लेकिन उन्हें कोई रोकने तो दूर, टोकनेवाला भी नहीं मिला।

2017 : सात राज्यों में चुनाव, सिर्फ पंजाब में मिली जीत
साल 2017 में 7 राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए। इनमें उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर, गोवा, गुजरात और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं। पीएम मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत का असर हुआ और कांग्रेस ने हिमाचल और मणिपुर में सत्ता गंवा दी। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गुजरात में पीएम मोदी के नेतृत्व के चलते बीजेपी को शानदार जीत मिली। गोवा में कांग्रेस आपसी गुटबाजी के चलते सरकार ही नहीं बना पाई। सिर्फ पंजाब में कांग्रेस जीत सकी। पंजाब में भी पार्टी की जीत कैप्टन अमरिंदर सिंह की विश्वसनीयता और मेहनत के कारण हुई। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में बीजेपी को चमत्कारिक जीत और कांग्रेस को अब तक की सबसे करारी हार मिली। सवा सौ साल से भी किसी पुरानी पार्टी के लिए इससे बड़े शर्म की बात और क्या हो सकती है कि देश के उस प्रदेश में जहां कभी उसका सबसे बड़ा जनाधार रहा हो, वहीं पर उसे 403 में से सिर्फ 7 सीटें मिली हों।

2018 : इस साल हुए 9 चुनाव, कांग्रेस दो राज्यों में सत्ता हासिल करने के बाद संभाल नहीं पाई
वर्ष 2018 के मार्च में त्रिपुरा, नागालैंड, मिजोरम और मेघालय में चुनाव हुए। कांग्रेस एक भी राज्य में नहीं जीत सकी। इसके बाद मई में कर्नाटक में चुनाव हुए, जहां जनता दल (सेक्युलर) के साथ मिलकर सरकार बनाई। लेकिन बगावत के कारण सालभर में ही सरकार गिर गई और बीजेपी सत्ता में आ गई। दिसंबर में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना में चुनाव हुए। तेलंगाना छोड़कर तीनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनी, लेकिन मध्य प्रदेश में 13 महीने में ही बगावत के कारण कांग्रेस की सरकार गिर गई।

2019 : नरेन्द्र मोदी को ज्यादा ताकत से दोबारा प्रधानमंत्री बनाया
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जन कल्याणकारी योजनाओं के चलते लोकप्रियता सातवें आसमान पर पहुंच गई। इसी साल लोकसभा के भी चुनाव हुए। देश की जनता ने उन्हें और ज्यादा ताकत देकर दोबारा प्रधानमंत्री बनाया। कांग्रेस 52 सीटें ही जीत सकी। लोकसभा के अलावा 7 राज्यों- आंध्र प्रदेश, अरुणाचल, हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र, ओडिशा और सिक्किम में विधानसभा चुनाव हुए। 7 में से 5 में कांग्रेस चुनाव हार गई। झारखंड और महाराष्ट्र में कांग्रेस ने सरकार को समर्थन दिया। झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के साथ तो महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने में कामयाब रही। लेकिन जल्दी ही महाराष्ट्र भी हाथ से निकल गया।

2020 : इस साल हुए दोनों विधानसभा चुनावों में कांग्रेस बुरी तरह हारी
इस साल दिल्ली और बिहार में चुनाव हुए। लगातार दूसरी बार दिल्ली में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत सकी। हालात यह रहे कि 70 में से 63 सीटों पर तो कांग्रेस प्रत्याशियों की जमानत ही जब्त हो गई। बिहार में कांग्रेस ने आरजेडी के साथ गठबंधन किया, लेकिन ये गठबंधन भी बुरी तरह हार गया।

2021 : पांच में से चार राज्यों में जनता ने कांग्रेस को बुरी तरह नकारा
इस साल पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में विधानसभा चुनाव हुए। चार राज्यों में कांग्रेस हार गई। बंगाल में तो पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली। पुडुचेरी में जहां कांग्रेस सत्ता में थी, वहां से भी हार गई। तमिलनाडु में कांग्रेस ने द्रमुक समेत कई पार्टियों के साथ मिलकर में चुनाव लड़ा और 25 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे, जिसमें से 18 जीतकर आए। 

2022 : पांच राज्यों में चुनाव पांचों में हारी कांग्रेस, चार में बीजेपी की डबल इंजन सरकारें
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में चल रहा बीजेपी का विजय रथ इस साल भी पूरी स्पीड के साथ दौड़ा। जनता ने प्रधानमंत्री के आह्वान पर डबल इंजन की सरकारों पर भारी बहुमत के साथ जिताया और बताया की पीएम मोदी के नेतृत्व में उसे पूरा विश्वास है। इस साल उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में विधानसभा चुनाव हुए। 1985 के बाद पहली बार था जब कांग्रेस यूपी की सभी सीटों पर उतरी, लेकिन मात्र 2 सीटें ही जीत सकी। उसके कई प्रत्याशी जमानत तक नहीं बचा पाए। बाकी सभी राज्यों में भी कांग्रेस की हालत बेहद खराब ही रही। पंजाब में कांग्रेस अपनी सत्ता नहीं बचा सकी और 18 सीटों पर आकर सिमट गई। महाराष्ट्र में कांग्रेस का महाविकास अघाड़ी के साथ बेमेल गठबंधन भी टूट गया।

2023: राजस्थान, एमपी, छ्ततीसगढ़, त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में निराशाजनक प्रदर्शन
इस साल 2023 के शुरू में पूर्वोत्तर के भी तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में नतीजे बीजेपी गठबंधन के पक्ष में रहे। जहां त्रिपुरा और नागालैंड में बीजेपी की शानदार वापसी हुई, वहीं मेघालय में बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा की एनपीपी सरकार फिर से सत्ता में वापसी की। इन तीनों राज्यों में कांग्रेस का प्रदर्शन एकदम निराशाजनक रहा। इसके बाद नवंबर में राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में हुए विधानसभा चुनावों में भी पार्टी का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता हाथ से निकल गई। मध्य प्रदेश में करारी हार का सामना करना पड़ा। किसी तरह से तेलंगाना में पार्टी की इज्जत बचा ली। इस तरह अब कांग्रेस सिर्फ तीन राज्यों हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में सत्ता में है।

देश के बारे में नहीं जानते राहुल गांधी

कुछ दिन पहले ही में नेहरू-गांधी परिवार के काफी करीबी कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने राहुल गांधी की राजनीतिक समझ पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि उनमें पार्टी को एकजुट रखने की सामर्थ्य नहीं हैं। आखिर क्यों-

एनसीसी के बारे में नहीं जानते
24 मार्च, 2018 को कर्नाटक के मैसूर में महारानी आर्ट्स-कॉमर्स कॉलेज की छात्राओं से रूबरू होने के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने देश की दूसरी रक्षा पंक्ति एनसीसी के बारे में कहा कि उन्हें राष्ट्रीय कैडेट कोर के बारे में नहीं पता है।

देश की सीमा के बारे में नहीं जानते
24 मार्च, 2018 को कर्नाटक के महारानी आर्ट्स-कॉलेज में ही जब राहुल गांधी ने डोकलाम विवाद को छात्राओं को समझाने की कोशिश की तो उनकी ‘अज्ञानता’ जगजाहिर हो गई। उन्होंने ऐसा समझाया कि विद्यार्थी समझ ही नहीं पाए कि वो कहना क्या चाह रहे हैं। 

डेटा लीक के बारे में नहीं जानते
26 मार्च, 2018 को कांग्रेस पार्टी ने आम लोगों की जानकारी डेटा लीक कर विदेशों में पहुंचा दिया। इस गलती के बाद पार्टी ने अपना ऐप ‘WITH INC’ प्ले स्टोर से डिलीट कर दिया, लेकिन राहुल इससे अनजान बने रहे और एक जवाब तक नहीं दिया, क्योंकि इससे डेटा लीक होती थी।

विश्वेश्वरैया का उच्चारण नहीं जानते
24 मार्च, 2018 को कर्नाटक की एक सभा में राहुल गांधी ने टीपू सुल्तान, महाराजा कृष्णराज वोडेयार और विश्व प्रसिद्ध इंजीनियर एम विश्वेश्वरैया का जिक्र किया लेकिन वे सही उच्चारण नहीं कर पाए और बार-बार विश्वसरैया कहा।

देश की एकता भी नहीं जानते
कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने मार्च, 2018 में कर्नाटक के अलग झंडे को मंजूरी दे दी, लेकिन राहुल चुप रहे। इस मुद्दे पर माडिया ने प्रतिक्रिया जाननी चाही तो वे अनजान बने रहे।

किसानों के बारे में नहीं जानते
राहुल गांधी अक्सर किसानों की बातें करते हैं, लेकिन 01 अक्टूबर, 2016 को यूपी के फिरोजाबाद में रैली में उन्होंने कहा कि उनकी सरकार बनेगी तो वे आलू की फैक्ट्री लगवाएंगे।

लोकसभा में सीटों की संख्या नहीं जानते
वर्ष 2017 में अमेरिका में India at 70: Reflections on the Path Forward टॉपिक पर बर्कले यूनिवर्सिटी में बातचीत के दौरान राहुल गांधी ने लोकसभा की सीटों की संख्या गलत बताई। लोकसभा में कुल 545 सदस्य होते हैं लेकिन राहुल ने 546 कहा। 

स्टीव जॉब्स के बारे में नहीं जानते
19 जनवरी, 2016 को राहुल गांधी मुंबई के नरसी मोंजी मैनेजमेंट कॉलेज में छात्रों को सलाह दी और कहा – उन्‍हें एक दिन इस देश का शासन चलाना है। कई संस्‍थाओं को चलाना है, उन्‍हें माइक्रोसॉफ्ट के स्‍टीव जॉब्‍स की तरह बनना होगा। गौरतलब है कि स्टीव जॉब्स एप्पल के संस्थापक थे। 

विभाजन के बारे में नहीं जानते
16 अप्रैल, 2007 को एक कार्यक्रम में राहुल गांधी ने कहा, “एक बार मेरा परिवार कुछ करने का फ़ैसला कर ले तो उससे पीछे नहीं हटता। चाहे यह भारत की आजादी हो, पाकिस्तान का बंटवारा या फिर भारत को 21वीं सदी में ले जाने की बात हो।

महाभारत का कालखंड नहीं जानते
20 मार्च, 2018 को कांग्रेस के आधिकारिक ट्विटर हैंडल ने राहुल गांधी के नाम से एक ट्वीट किया जिसमें महाभारत को 1000 साल पहले की घटना बता दिया।  

धर्म के बारे में नहीं जानते
राहुल गांधी कई बार अपने आपको हिंदू कहते हैं और धर्म के बारे में भी बातें करते हैं। लेकिन मार्च, 2018 को उन्होंने शिवलिंग पर दुग्धाभिषेक को पानी और दूध मिलाना कह दिया।

पूजा-पाठ की मुद्रा नहीं जानते
वर्ष 2017 में राहुल गांधी काशी विश्वनाथ के दर्शन करने के लिए गए थे, लेकिन जैसे ही पुजारी के साथ बैठे, उन्होंने नमाज़ की मुद्रा बना ली|

आंतरिक सुरक्षा के बारे में नहीं जानते
24 अक्टूबर, 2013 को इंदौर में एक सभा में राहुल ने कहा कि आईएसआई मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ित युवकों को बरगलाने की कोशिश कर रही है, जबकि खुद उनकी सरकार के गृह मंत्रालय ने ऐसी खबर होने से इनकार कर दिया।

गरीबों की पीड़ा के बारे में नहीं जानते
6 अगस्त 2013 को इलाहबाद के एक कार्यक्रम में राहुल गांधी ने गरीबी को महज एक मानसिक स्थिति बताया।

देश के युवाओं के बारे में नहीं जानते
11 अक्टूबर 2012 को चंडीगढ़ के एक विश्वविद्यालय में राहुल ने पंजाब के युवाओं के बारे में कहा कि यहां 10 में से सात युवा नशे की गिरफ्त में हैं।

भीख और काम में अंतर नहीं जानते
14 नवंबर 2011 को उत्तर प्रदेश के फूलपुर में चुनावी सभा में उन्होंने यूपी के युवाओं को महाराष्ट्र जाकर भीख मांगने वाला बता दिया।

सच और झूठ में अंतर नहीं जानते
वर्ष 2013 में भट्टा परसौल के किसानों को पीएम से मिलाने ले गए तो दावा किया कि इस गांव में राख के 74 ढेर मिले हैं, जिनमें मानव अवशेष हैं।

मार्शल और एयर मार्शल में अंतर नहीं जानते
16 सितंबर, 2017 को एयर फोर्स मार्शल अर्जन सिंह का का निधन हो गया था। राहुल गांधी ने ट्वीट पर उनको एयर मार्शल लिख दिया था। बता दें कि भारतीय एयरफोर्स में मार्शल मतलब फाइव स्टार का ऑफिसर और एयर मार्शल मतलब चार स्टार की रैंक होती है। 

भारत बड़ा या यूएस, नहीं जानते
राहुल गांधी के भाषण से पता ही नहीं चला कि वे किसे बड़ा बताना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि गुजरात यूनाइटेड किंगडम से बड़ा है और अगर यूरोप और यूएस को साथ रख दें तो भारत उससे भी बड़ा है।

इस्केप वेलोसिटी के बारे में नहीं जानते
दिल्ली के विज्ञान भवन में नौ अक्टूबर, 2013 को दलित अधिकार सम्मेलन में दलितों के उत्थान पर राहुल गाँधी ने कहा कि दलितों को ऊपर उठने के लिए धरती से कई गुना ज्यादा बृहस्पति ग्रह की ‘इस्केप वेलोसिटी’ जैसी ताकत की जरूरत है।

गाय और महिलाओं में फर्क नहीं जानते
गुजरात में 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान एक रैली के राहुल गांधी ने कहा – अगर गुजरात को किसी ने खड़ा किया है। गुजरात को अगर किसी ने दूध दिया है, तो यहां की महिलाओं ने दिया है।

दिन और रात में फर्क नहीं जानते
राहुल गांधी को जब उपाध्यक्ष बनाया गया तो उन्होंने अपने भाषण में कहा, आज सुबह जब मैं रात को सोकर उठा, यानि उन्हें पता ही नहीं चला कि वे दिन की बात कर रहे हैं या रात की।

भारत की ताकत नहीं जानते
चार अप्रैल, 2013 को दिल्ली में सीआईआई के कार्यक्रम में राहुल ने कहा कि -चीन बड़ा है, ताकतवर है। दिखता है, बड़े-बड़े ढांचे हैं और लोग हमें हाथी कहते हैं, ड्रैगन के सामने तुलना करने के लिए, लेकिन हम हाथी नहीं हैं हम मधुमक्खी का छत्ता हैं। 

भ्रष्टाचार और बलात्कार में अंतर नहीं जानते
मध्य प्रदेश के शहडोल में रैली के दौरान राहुल गांधी भीड़ से पूछते हैं कि आपको क्या लगता है, महिलाओं को क्या लगता है? इज्जत थी आपकी? भ्रष्टाचार किया…बलात्कार…सॉरी बलात्कार किया।

कांग्रेस पार्टी के कानून नहीं जानते
कांग्रेस के एक कार्यक्रम में राहुल ने कहा- कांग्रेस में एक भी नियम-कानून नहीं चलता। एक भी नियम-कानून इस पार्टी में नहीं है। हर दो मिनट में नए नियम बनाते हैं, पुराने दबा दिए जाते हैं। किसी को नहीं मालूम कि कांग्रेस पार्टी के नियम क्या हैं।

 

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