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संविधान की मर्यादा तार-तार करते अरविंद केजरीवाल, विधानसभा में फाड़ी संसद से पास बिल की कॉपी

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दिल्ली के विवादित और अराजक मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक बार फिर संविधान की मर्यादा तार-तार की है। आम आदमी पार्टी के संयोजक केजरीवाल ने अपने राजनीतिक फायदे के लिए एक बार फिर घटिया हथकंडा अपनाया है। गुरुवार, 17 दिसंबर को दिल्ली विधानसभा के एकदिवसीय विशेष सत्र के दौरान अरविंद केजरीवाल ने सदन में केंद्र सरकार द्वारा पास किए गए तीन कृषि कानूनों की प्रतियां फाड़ दी।

ये पहली बार नहीं हैं। दिल्ली के अराजक सीएम केजरीवाल इससे पहले भी अपनी अराजकता का परिचय दे चुके हैं। इन्हें देश की संप्रभुता और स्वाभिमान से कोई मतलब नहीं, इसीलिए ये हर मौके पर अराजक तत्वों के साथ खड़े नजर आते हैं। चाहे दिल्ली में सीएए के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन हो या जेएनयू में देश विरोधी गतिविधियां हो या खुद के द्वारा संविधान और लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाने का मामला हो। केजरीवाल ने संविधान की मर्यादा तार-तार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है…

‘हां, मैं अराजक हूं, और जरूरत पड़ी तो मैं गणतंत्र दिवस परेड भी नहीं होने दूंगा।‘ 
दिल्ली का मुख्यमंत्री होते हुए भी 21 जनवरी, 2014 को दिया गया अरविंद केजरीवाल का ये ‘अराजक’ बयान उनके पूरे व्यक्तित्व को बताता है। अब ये अराजकता उनकी कार्यशैली में साफ दिखती है। दरअसल 2013 में जब वे पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे तब लोगों को उनसे बदलाव की राजनीति की एक नई शैली की उम्मीद थी। लेकिन दिल्ली के लोगों ने उनकी टकराव, जिद, धमकी और मनमानी वाली राजनीति ही देखी है। शुचिता और ईमानदारी की बात करते-करते ‘अराजक’ केजरीवाल भ्रष्टाचार, झूठ, फरेब और भाई भतीजावाद की राजनीति को प्रश्रय देने वाले राजनेता का उदाहरण बन गए। उनकी वादाखिलाफी, अहंकार और अक्खड़पन ने न सिर्फ दिल्ली की जनता के सपनों को तोड़ा है, बल्कि उस भरोसे को भी तोड़कर रख दिया जिस बुनियाद पर लोग व्यवस्था परिवर्तन की उम्मीद करते हैं।

रेल भवन के सामने सड़क पर धरना
अरविंद केजरीवाल और पार्टी के अन्य नेताओं ने सैकड़ों समर्थकों के साथ 20 जनवरी, 2014 को दक्षिण दिल्ली में एक कथित ड्रग और वेश्यावृत्ति रैकेट पर छापा मारने से इनकार करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए रेल भवन के बाहर धरना दिया था। पुलिस ने उनके खिलाफ दायर चार्जशीट में दावा किया कि 19 जनवरी, 2014 को सहायक पुलिस आयुक्त ने रेल भवन और संसद मार्ग के पास नॉर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक, विजय चौक इलाकों में निषेधाज्ञा लागू की थी, जिसके खिलाफ जाकर उन्होंने यह विरोध प्रदर्शन किया। उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्र में निषेधाज्ञा का उल्लंघन करते हुए अपने 6 मंत्रियों के साथ केजरीवाल ने अपना विरोध जताने के लिए नॉर्थ ब्लॉक स्थित गृह मंत्रालय की तरफ जाने की कोशिश की।

जब एलजी ऑफिस में हड़ताल पर बैठे केजरीवाल
जून 2018 में अरविंद केजरीवाल की अराजकता फिर देखने को मिली जब वह अपने सहयोगी मंत्रियों के साथ तत्कालीन एलजी अनिल बैजल के ऑफिस में हड़ताल पर बैठ गए। केजरीवाल और उनके मंत्री अपनी मांगों के समर्थन में 11 जून, 2018 की शाम से 20 जून, 2018 तक एलजी अनिल बैजल के कार्यालय में धरना देते रहे। 

“दिल्ली की जनता एलजी की गुलाम है”
2 जुलाई, 2019 को दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर रविवार को इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में आम आदमी पार्टी ने महासम्मेलन का आयोजन किया। आप के सांसदों, मंत्री और विधायकों की मौजूदगी में इस महासम्मेलन को संबोधित करते हुए अरविंद केजरीवाल ने कहा, ”हम दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलवाकर ही दम लेंगे।” केजरीवाल ने यह भी कहा कि दिल्ली पहले मुगलों की गुलाम रही। फिर अंग्रेजों की हुई और अब एलजी की गुलाम है। बहरहाल यह जानना आवश्यक है कि कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का मांग दिए जाने की मांग पुरानी है, लेकिन केंद्र सरकार ने बार-बार साफ कर दिया है कि यह संभव नहीं है। ऐसे में केजरीवाल एंड कंपनी दिल्ली के आम जनों का काम नहीं कर पूर्ण राज्य के मुद्दे को तूल देने में लग गई है।

जेएनयू में देश विरोधी नारों का समर्थन
देश के सबसे बड़े विश्वविद्यालय जेएनयू में ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे-इंशाल्लाह, इंशाल्लाह’ ‘भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी जारी’, ‘इंडियन आर्मी मुर्दाबाद’ और ‘कितने अफजल मारोगे-हर घर से अफजल निकलेगा’ ये देशविरोधी नारे लगाए जाते हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ऐसे नारा लगाने वालों के साथ खड़े नजर आते हैं। एक सरकार के मुखिया का ऐसे नारों का समर्थन करने पर देश और दिल्ली की जनता में आक्रोश है। केजरीवाल सरकार जेएनयू के पूर्व छात्र अध्यक्ष कन्हैया कुमार के खिलाफ केस चलाने के मामले में महीनों से रोड़ा बनी है। वहीं विधानसभा में नेता विपक्ष विजेंद्र गुप्ता ने कहा कि बीते 22 फरवरी और 23 अगस्त 2019 को विधानसभा में टुकड़े-टुकड़े गैंग का मामला उठाया था, लेकिन सीएम केजरीवाल ने मार्शल बुलाकर भाजपा के विधायकों को सदन से बाहर निकलवा दिया। वह सिर्फ टुकड़े-टुकड़े गैंग का समर्थन करना चाहते हैं। गुप्ता ने कहा कि मुकदमा चलाने की अनुमति न देकर मुख्यमंत्री केजरीवाल कानून को काम करने से रोक रहे हैं और गलत उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं।

मनीष सिसोदिया ने पुलिस पर लगाया झूठा आरोप
जब नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में दिल्ली जल रह थी और जामिया में हिंसक भीड़ बसों में आग लगा रही थी, तब केजरीवाल सरकार के डिप्टी सीएम आग भड़काने में लगे थे। यहां तक उन्होंने घटना की सच्चाई जाने बिना ट्वीट कर पुलिस पर ही बस को जलाने का गंभीर आरोप लगा दिया। इसके अलावा जलती बस का एक वीडियो वायरल करने से हिंसा अन्य इलाकों और विश्वविद्यालयों में भी फैल गई। बाद में दिल्ली पुलिस ने एक अन्य वीडियो जारी किया जिसमें यह स्पष्ट किया गया था कि पुलिस ने बस को आग नहीं लगाई गई थी। सिसोदिया ने हिंसा को रोकने की अपील करने के बजाय पुलिस को कसूरवार ठहरा दिया और हिंसा करने वाले के साथ खड़े नजर आए। 

हिंसा में शामिल AAP विधायक पर मामला दर्ज
आम आदमी पार्टी के स्थानीय विधायक अमानतुल्लाह खान भी जामिया छात्रों के हिंसापूर्ण प्रदर्शन में शामिल थे। दिल्ली पुलिस ने अमानतुल्लाह खान के खिलाफ मामला दर्ज किया। पुलिस के प्राथमिकियों में आगजनी, तोड़फोड़, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और सरकारी कामकाज में बाधा पहुंचाने के आरोप शामिल हैं।

केजरीवाल की शह पर गुंडागर्दी करते हैं आप विधायक
19 फरवरी, 2018 की रात 12 बजे दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के घर पर विधायकों की बैठक थी। इसमें शामिल होने के लिए राज्य के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश को भी बुलाया गया था, लेकिन उसी दौरान आम आदमी पार्टी के दो विधायकों ने दिल्ली के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश से धक्का-मुक्की और बदसलूकी की। सवाल है कि सीएम के इशारे के बिना क्या कोई विधायक उनकी मौजूदगी में ऐसी हरकत करने की हिम्मत कर सकता है? अगर ऐसा नहीं था तो केजरीवाल को स्वयं इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करवानी चाहिए थी। वे राज्य के संवैधानिक पद पर बैठे हैं इसलिए उनकी जिम्मेवारी थी कि कम से कम पुलिस को इस बात की सूचना खुद देते, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 

अधिकारियों को गुलाम समझती है केजरी एंड कंपनी
4 अक्टूबर, 2017 को अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा के विशेष सत्र को संबोधित करते हुए कहा था, ”दिल्ली के मालिक हम हैं”। आप समझ सकते हैं जिस व्यक्ति ने जनता का सेवक बनने का वादा कर सत्ता हासिल की वे स्वयं को दिल्ली का मालिक कहते हैं। जाहिर है मूल सोच में ही जब खोट हो तो उसके परिणाम भी घातक ही होंगे। दिल्ली में कुछ ऐसा ही हो रहा है। अधिकारियों को सरेआम बेईमान कहना, उन्हें गालियां देना और मनमानी करने वाला बताना, कम से कम एक सीएम को तो शोभा नहीं देता है। केजरीवाल एंड कंपनी ने जब से सत्ता का स्वाद चखा है उनका व्यवहार सामंती हो चला है। वे दिल्ली के मालिक बन बैठे हैं और अधिकारियों को वे गुलाम समझते हैं।

बीजेपी नेताओं से बदसलूकी
कुछ दिन पहले की ही घटना है जब दिल्ली में चल रहे सीलिंग मुद्दे पर बैठक के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के निवास पहुंचे बीजेपी नेताओं के साथ केजरीवाल के गुंडों पर मारपीट का आरोप लगा था। इस घटना के बाद दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी और अन्य नेताओं ने थाने पहुंचकर केजरीवाल एवं उनके गुर्गों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। मनोज तिवारी का आरोप है कि आम आदमी पार्टी के नेता जरनैल सिंह ने उनके एक नेता से ऐसी धक्का-मुक्की की कि उनके हाथ में चोट आ गई। मनोज तिवारी ने ये भी आरोप लगाया ‌कि वे समय लेकर वहां पहुंचे थे, लेकिन केजरीवाल ने उनसे अभद्र भाषा में बात की और अपमान किया।

कपिल मिश्रा पर भी करवाया जा चुका है हमला
दिल्ली के पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा पर अनशन के दौरान हमला करवाने का आरोप भी केजरीवाल की पार्टी पर लग चुका है। आरोप लगे थे कि आरोपी अंकित भारद्वाज आम आदमी पार्टी का समर्थक था। दरअसल, कपिल मिश्रा ने अपनी आंखों के सामने केजरीवाल पर रिश्वत लेने का आरोप लगाया था। इसी बात पर आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो उनसे नाराज हो गए थे। 

विधानसभा में भी AAP के विधायक कर चुके हैं मारपीट
केजरीवाल के विधायक इतने बेखौफ हो चुके हैं,कि वो विधानसभा के अंदर भी किसी पर हमला करने से बाज नहीं आते। ऐसा ही आरोप अमानतुल्ला खान पर है जिन्होंने पार्टी के दूसरे विधायकों के साथ मिलकर विशेष सत्र के दौरान कुछ पत्रकारों के साथ भी मारपीट की। इस हमले में पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं को भी निशाना बनाया गया। दरअसल, आम आदमी पार्टी विधायक सत्येंद्र जैन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगने से नाराज हो गए थे। इस हमले में कुछ पीड़ित जख्मी भी हुए, जिन्हें बचाने के लिए विधानसभा में पुलिस और एंबुलेंस दोनों बुलानी पड़ी।

ईंट से ईंट बजाने की धमकी
टि्वटर पर अपलोड किए गए एक वीडियो में केजरीवाल अपने पार्टी के सदस्यों से कहते नजर आते हैं, ”अब अगर हम बुधवार को हारते हैं… नतीजे वैसे ही रहते हैं जैसे कि बीती रात बताए गए हैं, तो हम ईंट से ईंट बजा देंगे।”

वीडियो क्लिप में केजरीवाल यह कहते हुए भी सुनाई देते हैं कि आम आदमी पार्टी आंदोलन की उपज है, इसलिए पार्टी वापस अपनी जड़ों की ओर लौटने से हिचकिचाएगी नहीं। केजरीवाल ने कहा, ”अगर ऐसे नतीजे आते हैं तो यह साबित हो जाएगा कि पंजाब, यूपी, पुणे, मुंबई, भिंड और धौलपुर की तरह ईवीएम से छेड़छाड़ हुई है। हम आंदोलन से निकले हैं। हम यहां सत्ता का आनंद उठाने नहीं आए हैं। आंदोलन की ओर लौटेंगे।”

रिकॉल पर क्यों चुप हैं केजरीवाल
कभी ईमानदारी की मिसाल माने जाने वाले केजरीवाल जब भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार के मकड़जाल में फंस चुके हैं। आम आदमी पार्टी ज्यादातर नेता किसी न किसी विवाद से जुड़े रहे हैं। शायद इसलिए एमसीडी चुनाव में केजरीवाल ने दिल्ली की जनता से लालच, डर और धमकी देकर वोट हासिल करने की कोशिश की। लेकिन पब्लिक अगर अर्श पर लाना जानती है तो फर्श पर लाने में भी देर नहीं करती। जाहिर है दिल्ली की जनता को अब उनकी ईमानदारी पर भरोसा नहीं रहा, वो बदलाव चाहती है। ऐसे में ‘आप’ के फाउंडर मेंबर रहे योगेंद्र यादव ने उन्हें पत्र लिखकर रिकॉल वाले वादे की भी याद दिलाई। लेकिन केजरीवाल इस पर चुप रहे। 

‘आम आदमी’ ने दिल्ली को धोखा दिया
केजरीवाल दिल्ली की जनता की सेवा करने के बजाय अपनी महत्वाकांक्षा को बढ़ाने में लग गए। गोवा, पंजाब और गुजरात में चुनावी फिजा बनाने लगे। केजरीवाल ने जब लालू प्रसाद जैसे सजायाफ्ता के साथ मंच शेयर किया तब उनकी भ्रष्टाचार विरोध की छवि धूमिल हुई। पंजाब में गुरुग्रंथ के पन्ने फड़वाने के आरोपों से घिरे तो उन पर सांप्रदायिक राजनीति को प्रश्रय देने वाला नेता माना गया। जब उन्होंने रिश्तेदारों को फायदा पहुंचाया तो दिल्ली की जनता ने खुद को ठगा महसूस किया। जब उन्होंने 16 हजार वाली थाली की दावत दी तो केजरीवाल आम आदमी तो रहे नहीं। जाहिर है दिल्ली की जनता ने आम आदमी पार्टी को वोट दिया था, इसलिए उसे झटका लगा।

राहुल गांधी को प्रधानमंत्री नहीं बनाने की दी धमकी
केजरीवाल ने अपनी ‘अराजक’ राजनीति का बड़ा हमला कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर भी बोला है। उन्होंने कहा कि राहुल जी आप अगर दिल्ली को पूर्ण राज्य का समर्थन नहीं करते तो प्रधानमंत्री बनने का आपका सपना सपना ही रह जायेगा। जाहिर है अरविंद केजरीवाल की इस बात में खीझ है, धमकी है और मजबूरी भी है।

संवैधानिक संस्थाओं पर केजरीवाल ने कब-कब चोट किए हैं, आइए इसकी पड़ताल करते हैं-

चुनाव आयोग पर धांधली का आरोप
11 मार्च, 2017 को पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के परिणाम आने पर केजरीवाल बौखला गये। उनको उम्मीद थी कि पंजाब में आप की सरकार तो बनेगी ही और गोवा में भी उनकी स्थिति अच्छी रहेगा। लेकिन हुआ इसका ठीक उल्टा। अपनी इस खीझ और जनता के सामने अपनी हार की शर्म को इज्जत का रूप देने के लिए उन्होंने कहा कि मुझे जनता ने नहीं ईवीएम ने हराया है। चुनाव आयोग की मिलीभगत से मशीनों में छेड़छाड की गई है जिससे पंजाब में आप को पड़ने वाले वोट अकाली दल को ट्रांसफर हो गए। जबकि 2004 से पूरे देश में ईवीएम से ही चुनाव हो रहे हैं। दिल्ली में ही केजरीवाल को इन्ही मशीनों से 70 में से 67 सीटें मिला थी, तब उन्होंने चुनाव आयोग पर गडबड़ी करने का कोई आरोप नहीं लगाया था।

गणतंत्र दिवस का बहिष्कार
क्या आप गणतंत्र दिवस के बहिष्कार की बात सोच सकते हैं? नहीं ना? ऐसा वही सोच सकते हैं जिन्हें भारतीय लोकतंत्र में भरोसा नहीं है। जैसे- आतंकवादी, नक्सलवादी। लेकिन आपकी सोच गलत है। ऐसा खुद को अराजकतावादी कहने वाले अरविंद केजरीवाल भी कर सकते हैं। केजरीवाल ने कहा था कि 26 जनवरी का उत्सव संसाधनों की बर्बादी है। जो इंसान मुख्यमंत्री रहते संविधान दिवस तक की परवाह नहीं करे, वो वाकई अराजकतावादी ही हो सकता है।

रिजर्व बैंक के कामकाज पर सवाल
नवंबर 2016 में नोटबंदी का विरोध करते हुए केजरीवाल ने रिजर्व बैंक के काम करने के तरीकों की जमकर आलोचना की और सरकार के सामने घुटने टेक कर स्वायत्तता समाप्त करने का आरोप लगाया। जिसका सोशल मीडिया में काफी मजाक भी उड़ाया गया।

सेना की सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल
29 सितम्बर, 2016 को पाकिस्तान के खिलाफ सेना द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक पर सवालिया निशान लगाते हुए बयान दिया कि पाकिस्तान किसी भी तरह की सर्जिकल स्ट्राइक से इंकार कर रहा है, इसलिए सरकार को सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत देने चाहिए।

उच्च न्यायालय के फैसले को जनविरोधी बताना
4 अगस्त 2016 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने जब यह आदेश दिया कि उपराज्यपाल केन्द्र शासित प्रदेश दिल्ली के प्रशासनिक मुखिया हैं और राज्य के प्रशासन में सरकार के निर्णय में उनकी सहमति आवश्यक है। इस निर्णय पर केजरीवाल के वरिष्ठ सहयोगी आशीष खेतान ने कहा की यह जनविरोधी फैसला है। इस फैसले पर उपमुख्यमंत्री और केजरीवाल के घनिष्ठ सहयोगी मनीष सिसोदिया ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि उच्च न्यायलय दिल्ली को मात्र केन्द्र शासित क्षेत्र मानता है। यदि संविधान के अनुसार दिल्ली मात्र केन्द्र शासित प्रदेश है तो इसमें संशोधन करके दिल्ली को विधानसभा के साथ केन्द्र शासित क्षेत्र क्यों बनाया गया। यदि दिल्ली में उपराज्यपाल को ही प्रशासन देखना है तो क्यों संविधान का संशोधन करके एक राज्य विधानसभा दी गई? क्यों एक चुनी हुई सरकार की व्यवस्था बनायी गई? हमलोगों को निशाना बनाया गया है क्योंकि हमलोग भ्रष्टाचार से शहर को मुक्त करना चाहते हैं। मनीष सिसोदिया ने सीधे- सीधे उच्चन्यायलय पर निशाना साधने का आरोप मढ़ दिया।

मुख्यमंत्री आवास के आसपास धारा 144 लागू करना
धरने और प्रदर्शन की राजनीति से सत्ता पर काबिज होने वाले केजरीवाल को जनता के धरने ओर प्रदर्शन से इतना डर लगने लगा कि उन्होंने 3 अगस्त 2016 को यह फरमान जारी कर दिया कि मुख्यमंत्री के सरकारी आवास पर धारा 144 लागू रहेगी। दूसरे ही दिन उपराज्यपाल ने इस आदेश को रद्द कर दिया। क्योंकि पुलिस कानून के तहत सीआरपीसी की धारा 144 लगाने का अधिकार डीसीपी या उससे ऊपर के स्तर के अधिकारियों के पास होता है और दिल्ली पुलिस उपराज्यपाल के अधीन काम करती है।

एसीबी में अपने अधिकारी को नियुक्त करना
दिल्ली पुलिस की एंटी करप्शन ब्रांच में किसी भी अधिकारी को नियुक्त करने का अधिकार दिल्ली के संविधान के तहत उपराज्यपाल के पास है। इस शक्ति का उपयोग करते हुए उपराज्पाल ने एमके मीणा को एसीबी का मुखिया बना दिया लेकिन केजरीवाल ने उपराज्यपाल की इस नियुक्ति को मानने से इंकार कर दिया और अपने एक अधिकारी एसएस यादव की नियुक्ति कर दी और यह आदेश दिया कि वह केन्द्र या राज्य किसी अधिकारी के जांच के लिए स्वतंत्र है। केजरीवाल के इस आदेश को बाद में उच्च न्यायालय ने असंवैधानिक करार कर दिया।

डीडीसीए जांच के लिए सुब्रमण्यम कमेटी का गठन
21 दिसम्बर, 2015 को केजरीवाल ने दिल्ली सरकार की कैबिनेट बैठक में डीडीसीए की जांच करने के लिए एक सदस्यीय गोपाल सुब्रमण्यम कमेटी को गठन करने का फैसला लिया। यह फैसला बौखलाहट में उस घटना के बाद लिया था जिसमें उनके मुख्य सचिव राजेन्द्र कुमार के दफ्तर पर सीबीआई ने भ्रष्टाचार की आरोपों की जांच के छापा मारा था। जबकि संविधान के अनुसार दिल्ली सरकार उपराज्यपाल की सहमति से ही किसी भी जांच समीति का गठन कर सकती है। बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय ने केजरीवाल के इस फैसले को भी असंवैधानिक करार कर दिया। इससे साफ होता है कि केजरीवाल को सेना, संविधान, न्यायालय किसी पर भी भरोसा नहीं है।

क्या फिर AAP की सुनेगी दिल्ली की जनता ?
बहरहाल केजरीवाल ने दिल्ली की जनता के साथ दगा किया है। केजरीवाल के कर्मों के कारण दिल्ली की जनता आम आदमी पार्टी पर भरोसा नहीं कर रही है। दरअसल दिल्ली वासियों ने केजरीवाल की अवसरवाद की राजनीति को पहचान लिया है। 2013 में जब केजरीवाल ने जब कांग्रेस के सहारे सरकार बनाई तब भी जनता ने पहचान लिया था। लेकिन दिल्ली की जनता दिलेर है, उन्होंने केजरीवाल और उनकी पार्टी को एक मौका दिया और अपार बहुमत दिया। लेकिन पिछले पांच सालों में ही उनकी उम्मीद टूट गई है। जाहिर है अब जनता केजरीवाल के आंदोलन में उनका साथ देगी, इस पर सवाल है। प्रश्न यह उठता है कि फिर केजरीवाल पर क्यों भरोसा किया जाए?

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