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हिंदुओं को मिली बड़ी कानूनी जीत, कोर्ट ने महाभारतकालीन लाक्षागृह हिंदुओं को सौंपा, 100 बीघा जमीन पर मुस्लिम कर रहे थे दावा

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महाभारत काल में कौरवों ने जिस लाक्षागृह को पांडवों को जलाकर मारने के लिए बनवाया था उस पर मुसलमानों ने कब्रिस्तान होने का दावा कर दिया। लाक्षागृह की वर्ष 1952 में एएसआई की देखरेख में खुदाई शुरू हुई थी और खुदाई में मिले अवशेष दुर्लभ श्रेणी के थे। खुदाई में 4500 वर्ष पुराने मिट्टी के बर्तन मिले थे। महाभारत काल को भी इसी काल का माना जाता है। लाक्षागृह टीला 30 एकड़ में फैला हुआ है। यह 100 फीट ऊंचा है। इस टीले के नीचे एक गुफा भी मौजूद है। इतने प्रमाण के बावजूद मुसलमान इस पर दावा करते रहे। वहां कब्रिस्तान और मजार होने की बात करते रहे और इसके लिए अदालत भी पहुंच गए। वर्ष 1970 से इस मामले की सुनवाई चल रही है। करीब 54 वर्षों के बाद कोर्ट की सुनवाई पिछले साल शुरू हुई थी। अब उत्तर प्रदेश की बागपत कोर्ट ने हिंदूओं के पक्ष में लाक्षागृह केस में बड़ा फैसला दिया है। लाक्षागृह विवाद केस में हिंदू पक्ष को मालिकाना हक मिला है।

भारतीय विरासत स्थलों को कब्जाने की नापाक कोशिश
भारतीय मंदिरों और विरासत स्थलों को मुगल काल से लेकर अब तक मुसलमानों किस तरह कब्जाने की कोशिश की है इसके अनेक उदाहरणों में से एक यह लाक्षागृह भी है। महाभारत में जिस लाक्षागृह की चर्चा है, वो लाक्षागृह वर्तमान में उत्तर प्रदेश के बागपत में स्थित है। ये वही लाक्षागृह है, जिसे दुर्योधन ने पांडवों को मारने के लिए साजिश के तहत बनवाया था। अब इस लाक्षागृह पर भी मुसलमानों ने दावा ठोक दिया। यह सब कांग्रेस की सरकार द्वारा बनाए गए वक्फ बोर्ड की कारस्तानी है। मुसलमानों ने साल 1970 में इस मामले को लेकर अदालत पहुंच गया। उनका दावा था जिस टीले पर लाक्षागृह का होना बताया जाता है, वहां बदरुद्दीन की मजार है। कोर्ट ने इस दावे को खारिज कर पूरी जमीन और मजार हिंदुओं को सौंप दी।

लाक्षागृह विवाद में 53 साल बाद आया फैसला
आखिरकार 53 साल बाद लाक्षागृह और मजार विवाद पर कोर्ट का फैसला आ ही गया। 100 बीघा जमीन को लेकर चल रही लड़ाई में हिंदू पक्ष को जीत मिली। मेरठ की अदालत में सन 1970 में दायर हुए इस केस की सुनवाई वर्तमान में बागपत जिला एवं सत्र न्यायालय में सिविल जज जूनियर डिवीजन प्रथम के यहां चल रही थी। सिविल जज शिवम द्विवेदी ने मुस्लिम पक्ष के वाद को खारिज करते हुए पूरी जमीन पर हिंदू पक्ष को मालिकाना हक दे दिया। उत्तर प्रदेश के बागपत में लाक्षागृह और बदरुद्दीन शाह की मजार को लेकर बीते 50 सालों से भी ज्यादा समय से विवाद चल रहा था।

मुस्लिम पक्ष का दावा- लाक्षागृह पर वक्फ बोर्ड का अधिकार
लाक्षागृह गुरुकुल के संस्थापक ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज को प्रतिवादी बनाते हुए दावा किया था कि बरनावा स्थित लाक्षागृह टीले पर शेख बदरुद्दीन की मजार और एक बड़ा कब्रिस्तान मौजूद है। वक्फ बोर्ड का इस पर अधिकार है। उन्होंने आरोप लगाया गया कि कृष्णदत्त महाराज बाहर के रहने वाले हैं, जो कब्रिस्तान को खत्म करके यहां हिंदुओं का तीर्थ बनाना चाहते हैं। इसमें मुकीम खान और कृष्णदत्त महाराज फिलहाल दोनों ही लोगों का निधन हो चुका है। दोनों पक्ष से अन्य लोग ही वाद की पैरवी कर रहे हैं।

टीले पर संस्कृत विद्यालय और महाभारतकालीन सुराग मौजूद
हिंदू पक्ष के वकील रणवीर सिंह ने बताया कि मुस्लिम पक्ष 100 बीघा भूमि को कब्रिस्तान और मजार बताकर उस पर कब्जा करना चाह रहा था। उसको लेकर उन्होंने कोर्ट के समाने सारे सबूत पेश किए थे। उन्होंने कोर्ट बताया था कि लाक्षागृह का इतिहास महाभारत कालीन है। इस टीले पर संस्कृत विद्यालय और महाभारत कालीन सुराग भी मौजूद हैं।

1952 में एएसआई की देखरेख में खुदाई में मिले थे दुर्लभ अवशेष
लाक्षागृह की वर्ष 1952 में एएसआई की देखरेख में खुदाई शुरू हुई थी। खुदाई में मिले अवशेष दुर्लभ श्रेणी के थे। खुदाई में 4500 वर्ष पुराने मिट्टी के बर्तन मिले थे। महाभारत काल को भी इसी काल का माना जाता है। लाक्षागृह टीला 30 एकड़ में फैला हुआ है। यह 100 फीट ऊंचा है। इस टीले के नीचे एक गुफा भी मौजूद है। वर्ष 2018 में एएसआई ने इस स्थान की बड़े स्तर पर खुदाई शुरू की थी। यहां मानव कंकाल और दूसरे इंसानी अवशेष मिले। यहां विशाल महल की दीवारें और बस्ती भी मिली हैं।

पांडवकालीन एक सुरंग अब भी मौजूद
इसी विवादित 108 बीघे जमीन पर पांडवकालीन एक सुरंग अब भी मौजूद है। दावा किया जाता है कि इसी सुरंग के जरिए पांडव लाक्षागृह से बचकर भागे थे। इतिहासकारों का दावा है कि इस जगह पर जो अधिकतर खुदाई हुई है। उसमें कई साक्ष्य मिले हैं। वे सभी हजारों साल पुराने हैं, जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि यहां पर मिले हुए ज्यादातर सबूत हिंदू सभ्यता के ज्यादा करीब है। मुस्लिम पक्ष के दावे पर हैरानी जताई जाती रही है। इसी जमीन पर गुरुकुल एवं कृष्णदत्त आश्रम चलाने वाले आचार्य का कहना हैं कि कब्र और मुस्लिम विचार तो भारत में कुछ समय पहले आया, जबकि पहले हजारों सालों से ये जगह पांडवकालीन है।

30 एकड़ में फैला पूरा लाक्षागृह
बागपत जिले का बरनावा गांव, पांडवों के द्वारा मांगे गए पांच गांवों में से एक है। यह हिंडन और कृष्णा नदी के तट पर स्थित है. गांव के दक्षिणी भाग में करीब 100 फीट ऊंचा और लगभग 30 एकड़ भूमि पर फैला हुआ एक टीला है, जिसे लाक्षागृह कहा जाता है। महाभारत कालीन लाक्षागृह के आज भी कई सबूत यहां पर मिलते हैं। बताया जाता है कि पांडवों की हत्या की साजिश दुर्योधन ने यहीं रची थी, लेकिन विदुर के आगे उसकी योजना धरी की धरी रह गई थी। विदुर ने अपनी सूझ-बूझ से पांडवों को यहां से सुरक्षित निकाला था।

महाभारत काल में हुआ था निर्माण
महाभारत में लाक्षागृह की कहानी का वर्णन है। दुर्योधन हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठना चाहता था। उसने पांडवों को जलाकर मारने के लिए योजना बनाई। दुर्योधन ने अपने मंत्री से एक लाक्षागृह बनवाया था। यह लाक्षागृह लाख, मोम, घी, तेल से मिलाकर बना था। वार्णावत में इसका निर्माण कराया था। बागपत का बरनावा वही जगह मानी जाती है। दुर्योधन के कुचक्र के बाद धृतराष्ट्र से पांडवों को लाक्षागृह में रुकने का आदेश दिलवाया गया था। पांडव जब वहां ठहरे तो आग लगा दी गई। हालांकि, पांडव बचकर निकल गए थे।

मेरठ से करीब 35 किलोमीटर दूर है लाक्षागृह
मेरठ से करीब 35 किलोमीटर आगे बड़ौत जाते समय एक कुछ ऊंचे टीले पर एक शीर्ष शीर्ण सी संरचना नजर आती है। ऊपर जाने पर टूटी हुई दीवारों जैसी स्थिति और एक कमरे में टूटी दीवारों पर जले हुए निशान और नीचे धूल मिट्टी का ढेर. यही वो जगह है, जिसे पांडव काल में लाक्षागृह कहा गया। चूंकि इस जगह के आसपास जगह का नाम बरनावा है, लिहाजा इसे बरनावा लाक्षागृह कहा जाता है। इसके नीचे एक गुफा है।

हस्तिनापुर से पानीपत तक के इलाके महाभारत काल के मुख्य स्थल
मेरठ में हस्तिनापुर से लेकर बागपत, बड़ौत और इससे सटे हरियाणा के कुछ इलाकों को महाभारत काल और कौरव-पांडवों से जुड़ा माना जाता है। लेकिन कांग्रेस के शासनकाल में ये ज्यादातर इलाके उपेक्षित ही रहे। हस्तिनापुर का भी हाल ऐसा ही है और बरनावा के लाक्षागृह का भी। अब कोर्ट के फैसले के बाद इस जगह का उद्धार हो पाएगा और इसे पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित किया जा सकेगा।

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