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यूपी की जनता की आंखों में धूल झोंक रही है कांग्रेस, सपा से अंदरूनी गठजोड़, अखिलेश और शिवपाल के खिलाफ हटाया उम्मीदवार

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उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। सत्ता के दावेदार चार प्रमुख पार्टियां बीजेपी, समाजवादी पार्टी, बीएसपी और कांग्रेस एक-दूसरों को मात देने के लिए एक से बढ़कर एक दांव चल रही है। जहां छोटे-छोटे दलों से खुलकर गठबंधन हो रहे हैं, वहीं जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिए पर्दे के पीछे भी सियासी गठजोड़ का खेल भी चल रहा है। कांग्रेस ने अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के सामने कोई भी उम्‍मीदवार न उतारने का फैसला लेकर सबको चौका दिया है। उसने चुनाव बाद सपा के साथ गठबंधन का भी संकेत दे दिया है।

कांग्रेस ने अखिलेश और शिवपाल को दिया वॉकओवर

अखिलेश यादव मैनपुरी की करहल सीट से और शिवपाल यादव जसवंतनगर से चुनाव लड़ रहे हैं। दोनों ने सपा के टिकट पर नामांकन दाखिल किया। इन दोनों सीटों पर तीसरे चरण के तहत 20 फरवरी को मतदान होना है जिसके लिए मंगलवार (1 फरवरी, 2022) को नामांकन की प्रक्रिया पूरी कर ली गई। लेकिन कांग्रेस के किसी भी उम्मीदवार ने इन दोनों सीटों पर पर्चा दाखिल नहीं किया है। कांग्रेस ने करहल से ज्ञानवती यादव को अपना उम्‍मीदवार बनाया था। वहीं, जसवंतनगर सीट पर कांग्रेस ने किसी को भी प्रत्याशी घोषित नहीं किया था और कांग्रेस ने कहा अब हम उस सीट से चुनाव नहीं लड़ेंगे। दोनों ही सीट पर कांग्रेस ने सपा को समर्थन देने की बात कही है।

बीजेपी के उम्मीदवार ने बिगाड़ा सियासी समीकरण 

ऐसे में राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि आखिर क्या वजह है कि चाचा और भतीजे के सामने कांग्रेस ने कोई प्रत्याशी क्यों नहीं उतारा? जानकारी के मुताबिक करहल से कांग्रेस प्रत्याशी ज्ञानवती यादव ने चुनाव लड़ने के साथ ही नामांकन दाखिल करने की पूरी तैयारी कर ली थी, लेकिन पार्टी ने नामांकन दाखिल नहीं करने दिया। दरअसल बीजेपी ने इस सीट पर आगरा से सांसद एसपी सिंह बघेल को मैदान में उतारकर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है। ऐसे में कांग्रेस ने अखिलेश को मजबूत करने के लिए वॉकओवर दिया।

यादव मतदाताओं को बिखरने से रोकने में मदद

करहल सीट का राजनीतिक समीकरण काफी अहम है। इस सीट पर 3 लाख 71 हजार से अधिक मतदाता हैं। जिनमें 1 लाख 25 हजार से ज्यादा यादव, 35 हजार शाक्य, 30 हजार बघेल, 30 हजार क्षत्रिय, 22 हजार एससी, 18 हजार मुस्लिम, 16 हजार ब्राह्मण, 15-15 हजार लोधी और वैश्य मतदाता हैं। ऐसे में एसपी सिंह बघेल के मैदान में आने से बघेल वोटर बीजेपी के पक्ष में जा सकते हैं। वहीं कांग्रेस की उम्मीदवार ज्ञानवती देवी यादव जाति से है, जिसकी वजह से यादवों के वोटों में सेंध लगने की संभावना थी, लेकिन कांग्रेस ने ज्ञानवती देवी को हटाकर यादव मतदाताओं को एकजुट करने में अखिलेश की मदद की है।

सपा के वोट बैंक में सेंध लगने की थी संभावना

इटावा जिले की जसवंतनगर सीट शिवपाल यादव की परंपरागत सीट रही है। हालांकि कांग्रेस ने इस सीट पर चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी कर ली थी। इस सीट से करीब एक दर्जन कार्यकर्ताओं और अधिकारियों ने टिकट का दावा किया था, लेकिन कांग्रेस ने नामांकन की आखिरी तारीख तक किसी उम्मीदवार का टिकट फाइनल नहीं किया। इसके साथ ही जसवंत नगर सीट पर कांग्रेस ने सपा को वाकओवर दिया है। माना जा रहा है कि कांग्रेस ने यह फैसला इस सीट पर भी सपा के वोट बैंक में सेंध लगाने से बचते हुए लिया है।

विधानसभा चुनाव बाद गठजोड़ का संकेत  

इससे पहले प्रियंका वाड्रा एक मौके पर कह चुकी हैं कि बीजेपी को हराने के लिए जरूरी हुआ तो कांग्रेस सपा को सपोर्ट करेगी। उन्होंने चुनाव के बाद अखिलेश की समाजवादी पार्टी से गठबंधन की संभावना को स्वीकार किया है। एक निजी चैनल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि यदि अखिलेश यादव को सरकार बनाने के लिए कुछ सीटें कम पड़ती हैं तो कांग्रेस को समर्थन करने में कोई दिक्कत नहीं होगी। प्रियंका के इस जवाब के बाद से यूपी के सियासी हलकों में हलचल तेज हो गई।

पिछले चुनाव का खराब प्रदर्शन बना गठबंधन में बाधा

पिछले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी से गठबंधन के बावजूद कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद ख़राब रहा था। तब कांग्रेस 114 सीटों पर चुनाव लड़ कर सिर्फ़ 7 सीटें ही जीत पाई थी। पिछले चुनाव में कांग्रेस को 54,16,540 वोट मिले थे। ये कुल पड़े वोटों का महज़ 6.24 प्रतिशत थे। आजादी के बाद यूपी में कांग्रेस को सबसे कम वोट और सबसे कम सीटें पिछले विधानसभा चुनाव में ही मिली थीं। सपा के साथ गठबंधन को लेकर तब कांग्रेस के भीतर ही गंभीर सवाल उठे थे। अब अखिलेश यादव ने भी पिछले चुनाव में कांग्रेस से गठबंधन को बड़ी ग़लती माना है। शायद यही वजह है कि इस बार अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करने की कोशिश तक नहीं की। इमरान मसूद ने खुलासा किया है कि कांग्रेस चाहती थी कि सपा से गठबंधन हो लेकिन अखिलेश इसके लिए तैयार नहीं थे।

सपा के गुंडा राज से कैसे लड़ेंगी लड़कियां ?

चुनाव बाद समर्थन देने का संकेत देकर प्रियंका वाड्रा यूपी की महिलाओं खासकर लड़कियों की आंखों में धूल झोंक रही है। अगर प्रदेश में कांग्रेस के समर्थन से सपा की सरकार बनती है तो फिर अराजकता का माहौल होगा और महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले बढ़ेंगे। सपा के गुंडे स्कूल जाती लड़कियों को छेड़ेंगे। ऐसे में राजस्थान की तरह यूपी में भी प्रियंका वाड्रा सरकार के साथ खड़ी होंगी और लड़कियों को बेसहारा छोड़ देंगी। इस तरह प्रियंका वाड्रा का ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ का नारा सिर्फ दिखावा है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या प्रियंका गुंडा राज में अन्याय के खिलाफ लड़ने वाली महिलाओं को न्याय दिला पायेंगी?

सपा से नाराज महिलाओं को गुमराह करने की कोशिश

प्रियंका वाड्रा की महिला केंद्रित राजनीति की तारीफ़ तो ख़ूब हो रही है, लेकिन इसका मुख्य मकसद समाजवादी पार्टी से नाराज महिला मतदाताओं को बीजेपी के पक्ष में जाने से रोकना है। क्योंकि कहा जा रहा है कि महिला केंद्रित राजनीति से यूपी के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कोई ख़ास फायदा होने वाला नहीं है। कांग्रेस पर आरोप लग रहा है कि उत्तर प्रदेश में उसके पास खोने के लिए कुछ नहीं है लिहाज़ा वह 40 प्रतिशत महिलाओं को टिकट देने का प्रयोग कर रही है। लेकिन ऐसा प्रयोग उसने पंजाब और उत्तराखंड जैसे राज्यों में नहीं किया है। इससे पता चलता है कि एक रणनीति के तहत समाजवादी पार्टी की मदद के लिए ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ का नारा दिया गया है।

प्रियंका कार्यकर्ताओं और जनता में भरोसा जगाने में विफल

कांग्रेस महासचिव बनने के बाद प्रियंका वाड्रा ने उत्तर प्रदेश चुनाव को लेकर फोकस किया और योगी सरकार पर लगातार हमलावर रही। जनता और पार्टी कार्यकर्ताओं में भरोसा जगाने और बनाए रखने के लिए उत्तर प्रदेश में सड़क पर उतरकर लगातार संघर्ष करती रहीं। अपने भाई राहुल गांधी के साथ मिलकर योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला। ट्विटर पर काफी सक्रिय रहीं। उन्होंने जनता से जुड़े मुद्दे भी उठाए। लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद वह कांग्रेस को इस स्थिति में लाने में नाकाम रही कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बड़ी भूमिका निभाती नज़र आए।

कांग्रेस की हालत बेहद ख़राब

दरअसल उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की हालत बेहद ख़राब है। इस चुनाव में कांग्रेस के लिए कोई ख़ास गुंजाइश नहीं दिख रही है। ख़ुद यूपी कांग्रेस के कई नेताओं का मानना है कि इस चुनाव में कांग्रेस के पल्ले कुछ पड़ने वाला नहीं है। हो सकता है कि यूपी में कांग्रेस का हाल पश्चिम बंगाल वाला हो जाए यानि वो खाता भी न खोल पाए। शायद यही वजह है कि कांग्रेस ने अब समाजवादी पार्टी में अपना भविष्य तलाशना शुरू कर दिया है। कांग्रेस के कई नेताओं ने हाल ही में कांग्रेस छोड़ समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया। सच्चाई यह है कि कांग्रेस को चुनाव लड़ने के लिए मज़बूत और जिताऊ उम्मीदवार नहीं मिल रहे।

कांग्रेस का वजूद बचाने का संकट

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अस्तित्व के संकट से गुजर रही है। रायबरेली में अदिति सिंह ने 2017 में रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल की थी। अदिति सिंह अब कांग्रेस छोड़ बीजेपी में हैं और रायबरेली से लड़ रहीं। इनके अलावा कई और नेता कांग्रेस से पहले ही किनारा कर चुके हैं। इस समय कांग्रेस के पास सिर्फ दो विधायक है। इन हालातों में कांग्रेस के सामने अपना वजूद बचाने का संकट पैदा हो गया है। इसलिए कांग्रेस भविष्य में अपनी सियासी अहमियत बनाये रखने के लिए जनता को गुमराह कर समाजवादी पार्टी को समर्थन दे रही है। आज कांग्रेस समाजवादी पार्टी की पिछलग्गू बनकर उसकी रणनीति को सफल बनाने में मदद कर रही है।

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