साल 2001 का वो वक्त जब गुजरात भयंकर भूकंप की त्रासदी झेल रहा था। राज्य के कई इलाकों में सूखा पड़ा था। बेरोजगारी से परेशान लोग पलायन को मजबूर थे। निराशा के घोर अंधकार में डूबा प्रदेश आशा और उम्मीद की एक किरण की तलाश में था। तभी गुजरात की कमान नरेंद्र मोदी को मिली। चुनौतियों से भरे प्रदेश का पुनर्निमाण करना था। गुजरात को फिर से विकास की रफ्तार देनी थी। नरेंद्र मोदी ने इन चुनौतियों को स्वीकार किया और उनकी संकल्प शक्ति और कर्मठता ने गुजरात की तस्वीर बदल दी। उनके मुख्यमंत्रित्वकाल में प्रदेश में कई कार्य ऐसे हुए जो न सिर्फ गुजरात के लिए बल्कि दुनिया के लिए उदाहरण बन गए हैं।
कच्छ में भूकंप के बाद पुनर्वास
26 जनवरी 2001 की सुबह 8.46 मिनट, 7.7 तीव्रता से कच्छ और भुज की धरती हिली और एक ही पल में ये दोनों शहर मलबे में तब्दील हो गया। 20 हजार से ज्यादा जानें गईं और 1 लाख 67 हजार से अधिक लोग घायल हो गए। इसके साथ ही करीब छह लाख लोग बेघर हो गए। इस भयानक प्राकृतिक आपदा में कच्छ के 450 गांवों का तो नामोनिशान ही मिट गया।
पुनर्वास की चुनौतियां
2001 में ही नरेंद्र मोदी ने गुजरात की कमान संभाली तो भुज और कच्छ के इलाके में पुनर्वास की कठिन चुनौती थी। संकल्प शक्ति के धनी और प्रबंधन कौशल में महारथी मोदी ने भुज और कच्छ की तस्वीर बदलने का संकल्प किया। नियम बनाए, नीति बनाई। कच्छ और भुज के इलाकों में भूकंपरोधी तकनीकों के इस्तेमाल को अनिवार्य किया गया और दो मंजिल से ज्यादा ऊंची इमारतों का नक्शा पास करना बंद कर दिया गया। शहर की सुनियोजित योजना बनाई गई और तंग गलियों को खत्म कर चौड़ी सड़कों का निर्माण किया गया।
गांववालों को दिया विकल्प
सरकार ने पुनर्वास के लिए लोगों को दो विकल्प दिए। एक तो ये कि वे सरकार से पूरी मदद लेकर अपना घर खुद बनाएं और दूसरा ये कि मुआवजे की आधी राशि गैर सरकारी संगठन को दे दी जाए जो पुनर्वास का कार्य करेगा। पहले तो लोग हिचकते थे, लेकिन नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व पर लोगों को विश्वास था। लोगों ने दूसरा विकल्प चुना और आज इन इलाकों के 70 प्रतिशत से ज्यादा मकान गैर सरकारी संगठनों के बनाए हुए हैं। सरकार की इस पहल से इलाके की पूरी तस्वीर बदल गई है।
उद्योगपतियों को अभियान से जोड़ा
केयर इंटरनेशनल और फिक्की जैसे संगठनों को इस पुनर्वास से जोड़ा गया और उद्योगपतियों को भी आकर्षित किया। कच्छ और भुज के इलाकों में टैक्स में भारी कमी कर दी और कंपनियों को कई अन्य सुविधाएं दी गईं। आज इस क्षेत्र में देश-विदेश की कई बड़ी कंपनियां इलाके की समृद्धि को बढ़ा रही हैं।
अधिकारियों को काम करने का भरपूर मौका दिया
खुद सोलह से अट्ठारह घंटे काम करने वाले नरेंद्र मोदी ने गुजरात में एक नई लीक बनाई। ब्यूरोक्रेट्स पर भरोसा जताया और कई योजनाओं को पूरा करने -करवाने की जिम्मेदारी उनपर छोड़ दी। बड़ा उदाहरण तो गुजरात आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का है। 2003 में उन्होंने गुजरात आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का गठन किया और भुज और कच्छ को बदलने के काम में लगा दिया। अधिकारियों और कर्मचारियों पर भरोसे का नतीजा ही रहा कि प्राधिकरण को संयुक्त राष्ट्र संघ का सासाकावा पुरस्कार और विश्वबैंक का ग्रीन पुरस्कार मिला।
सभी वरिष्ठ ब्यूरोक्रेट्स को एक-एक भूंकप प्रभावित तालुके की जिम्मेदारी दी और फिर रविवार के दिन उनको संबंधित इलाकों में जाकर काम की प्रगति की समीक्षा करने का आदेश दिया। इससे उनमें मोदी सरकार के इरादों में गंभीरता का एहसास हुआ और खुद की जिम्मेदारी का भी।
नर्मदा से कच्छ के रेगिस्तान तक पानी की पाइपलाइन पहुंचाना हो, ग्राम ज्योति योजना से घर- घर रोशनी पहुंचाना हो या फिर खेती और पशुपालन का। विकास में ब्यूरोक्रेट्स की बड़ी भूमिका रही है।
बिजली की किल्लत को दूर किया
गुजरात हिंदुस्तान का अकेला राज्य है जहां बिजली उत्पान उसकी खपत से ज्यादा हो रहा है। 29 हजार मेगावाट बिजली उत्पन्न करने वाला गुजरात अब दूसरे राज्यों को बिजली सप्लाई कर रहा है। नरेद्र मोदी ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में जहां परंपरागत ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा दिया वहीं सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और ज्वारीय ऊर्जा को भी भरपूर प्रोत्साहन दिया।
सुधारवादी कदमों से जगमग हुआ गुजरात
2013 के एक आंकड़े के मुताबिक देश में कुल 900 मेगावॉट सौर ऊर्जा का उत्पादन हो रहा था जिसमें गुजरात अकेले 600 मेगावॉट का उत्पादन कर रहा था। वहीं ज्वारीय ऊर्जा में तो जबरदस्त उपलब्धि के साथ 3000 मेगावॉट से भी ज्यादा बिजली पैदा की जा रही। बिजली लीकेज खत्म करना, बिजली चोरी पर लगाम लगाना और मुफ्त बिजली देने से मना करना जैसे सुधारवादी कदमों ने भी गुजरात में बिजली की किल्लत को न सिर्फ दूर किया बल्कि सरप्लस बना दिया।
सूखे राज्य का तमगा हटाया
2002 से पहले गुजरात के 70 प्रतिशत इलाकों में भयंकर सूखा पड़ता था। खेती-किसानी तो चौपट थी ही, पशुपालन में भी मुश्किलें थी। लोग पलायन करने को मजबूर थे। लेकिन नरेंद्र मोदी ने इस कलंक को मिटाने की नीति बनाई और कई योजनाओं को जमीन पर उतारा। नतीजा आज सबके सामने है।
23 नदियों के जोड़ने से खत्म हुआ जल संकट
एक तरफ गुजरात में साबरमती नदी सूख जाती थी, दूसरी तरफ नर्मदा का लाखों क्यूसेक पानी समुद्र में बेकार बह जाता था। मोदी सरकार ने साबरमती को नर्मदा से जोड़ दिया। अब साबरमती ही नहीं गुजरात की अन्य नदियां भी जलमग्न हैं। अब नर्मदा में बाढ़ आती है तो साबरमती के नहरों के जरिए नर्मदा का पानी इन नदियों में डाल दिया जाता है। नर्मदा योजना के तहत गुजरात की 23 नदियों के जुड़ जाने से गुजरात अब सूखे के संकट से निजात पा चुका है।
ड्रिप इरीगेशन ने बदली कच्छ की सूरत
पानी की एक-एक बूंद को सिंचाई के काम में लाने के लिए गुजरात ने ड्रिप इरीगेशन की शुरुआत की। इसमें पानी पौधों की जड़ों में दिया जाता है जिससे उसकी बर्बादी नहीं होती है। इसी का नतीजा है कि कच्छ के इलाके में हरियाली है। अब यहां कई तरह की बागवानी कृषि की जाती है।