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अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पढ़ाई जा रही थी इस्लामिक स्टेट के हिमायती लेखकों की किताबें, जिहादी शिक्षा के खिलाफ शिक्षाविदों ने पीएम मोदी को लिखा पत्र

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भारतीय सभ्यता और संस्कृति की विशालता और उसकी महत्ता संपूर्ण मानव के साथ तादात्म्य संबंध स्थापित करने अर्थात् ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की पवित्र भावना में निहत है। भारतीय संस्कृति में धर्म, अध्यात्मवाद, ज्ञान-विज्ञान, विविध विद्याएं, नीति, विधि-विधान, जीवन प्रणालियां और वे समस्त क्रियाएं विद्यमान हैं जो जीवन को विशिष्ट बनाते हैं और जिसने भारत और यहां के लोगों को सामाजिक एवं राजनैतिक विचारों, धार्मिक और आर्थिक जीवन को शिष्टाचार और नैतिकता में ढाला है। भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृति है। विश्व की अनेक संस्कृतियां मिस्र, असीरिया, बेबीलोनिया, रोमन, क्रीट, यूनान आदि समय के साथ नष्ट होती गई लेकिन भारत की संस्कृति आज भी सनातन है। लेकिन इसी सनातन संस्कृति में देश कुछ उच्च शिक्षा संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों में इस्लामिक स्टेट और जिहादी मानसिकता के बीज बोए जा रहे थे। देश के मदरसों में यह पहले से ही चला रहा आ रहा था और अब उच्च शिक्षा संस्थानों में इस तरह शिक्षा देने का मतलब भारतीय संस्कृति के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करना था। यह भारत को कमजोर करने की साजिश का हिस्सा भी था। देश के प्रमुख शिक्षाविदों ने इस मुद्दे को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है।

AMU में पढ़ाई जा रही थी पाकिस्तानी लेखक की किताबें

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी(AMU) के इस्लामिक स्टडीज विभाग में पाकिस्तानी लेखक मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी और इजिप्ट के सैयद कुतुब की किताबें पाठ्यक्रम का हिस्सा थीं। यह किताबें अब तक यहां बीए और एमए कक्षाओं में पढ़ाई जाती रही है। इन लेखकों पर आरोप हैं कि ये इस्लामिक स्टेट के हिमायती रहे। एएमयू जनसंपर्क विभाग के चेयरमैन प्रोफेसर साफे किदवई ने कहा है कि मौदूदी की जो कंट्रोवर्शियल किताबें है उनके संबंध में एएमयू के इस्लामिक डिपार्टमेंट के चेयरमैन मोहम्मद इस्माइल से बात हुई तो उन्होंने बताया है कि मौदूदी की जो किताबें थीं जो उनकी एक तरह की सोच को ज़ाहिर करती थीं। जो अब तक बीए और एमए में पढ़ाई जाती थीं, उनको सिलेबस से हटा दिया गया है। विश्वविद्यालय ने यह निर्णय सामाजिक कार्यकर्ता मधु किश्वर सहित 20 से ज्यादा शिक्षाविदों द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखे जाने के बाद लिया है। इन किताबों को प्रतिबंधित करने से पहले यह प्रकरण देशभर के शिक्षाविदों के बीच चर्चाओं में रहा।

शिक्षाविदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा

मधु किश्वर सहित 20 ज्यादा शिक्षाविदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 27 जुलाई 2022 को लिखे पत्र में कहा है कि एएमयू, जामिया मिलिया इस्लामिया और हमदर्द विश्वविद्यालय सहित राज्य द्वारा वित्त पोषित कई विश्वविद्यालयों द्वारा यह किताब पढ़ाई जा रही है। उन्होंने पत्र में पाकिस्तान के कट्टर इस्लामिक प्रचारक और जमात-ए-इस्लामी के संस्थापक मौलाना सय्यद अबुल आला मौदूदी की किताबों को बनाए जाने पर भी सवाल उठाए हैं। इन शिक्षाविदों ने पत्र में कहा है कि हिंदू समाज संस्कृति और सभ्यता पर लगातार हो रहे हमले ऐसे पाठ्यक्रम के प्रत्यक्ष परिणाम है। शिक्षाविदों ने पत्र में यह भी कहा है कि पाकिस्तानी लेखक मौदूदी हर जगह गैर मुसलमानों के नरसंहार की बात करते हैं। उनकी शिक्षाएं गैर मुस्लिम विरोधी हैं। साथ ही पूर्ण इस्लामीकरण के लिए प्रतिबद्ध हैं। आतंकी संगठन भी मौदूदी के विचारों को आदर्श मानते हैं।

AMU में 1948 में बना था इस्लामिक स्टडीज डिपार्टमेंट

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में इस्लामिक स्टेट के हिमायती दो लेखकों की किताबें कोर्स में पढाए जाने का विरोध तेज हो गया है। विश्वविद्यालय में 1948 में इस्लामिक स्टडीज डिपार्टमेंट को स्थापित किया गया था। इस विभाग में स्थापना के समय से ही पाकिस्तानी लेखक मौलाना अबुल आला मौदूदी और इजिप्ट के सैयद कुतुब की किताबें विद्यार्थियों को पढ़ायी जा रही है। इस संदर्भ में कुछ शिक्षकों की ओर से प्रधानमंत्री को पत्र लिखा गया। जिसमें यह किताबें हटाने की मांग की गई। पीएम को लिखे गये खत के बाद एएमयू समेत अन्य विवि में खलबली मच गई। एएमयू प्रशासन ने इस्लामिक स्टडीज विभाग से संपर्क कर स्थिति का संज्ञान लिया। विभागीय अफसरों ने बताया कि यह किताबें विभाग में वर्ष 1948 से पढ़ायी जा रही है।

इन पाठ्यक्रमों की वजह से हो रहे हिंदू संस्कृति पर हमले

हाल ही में समाजिक कार्यकर्ता मधु किश्वर समेत 20 अधिक शिक्षाविदों ने प्रधानमंत्री को खत लिखा है। 27 जुलाई को लिखे खत में कहा गया कि हिंदू समाज, संस्कृति और सभ्यता पर हो रहे हमले ऐसे पाठ्यक्रमों के प्रत्यक्ष परिणाम है। साथ ही उनकी शिक्षाएं गैर मुस्लिम विरोधी है। जामिया मिल्लिया इस्लामिया, हमदर्द विवि व एएमयू सहित अन्य कई विवि में यह किताबें पढ़ायी जा रही हैं। पत्र में कहा गया था कि पाकिस्तान के कट्टर इस्लामिक प्रचारक और जमात-ए-इस्लामी के संस्थापक मौलाना अबुल आला मौदूदी की किताबें पढ़ाया जाना गलत है।

किताबें सिलेबस से हटा दी गईः प्रोफेसर मोहम्मद इस्माइल

AMU के इस्लामिक स्टडीज विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर मोहम्मद इस्माइल का कहना है कि बोर्ड की बैठक के बाद मौदूदी और सैयद कुतुब लेखकों की सभी किताबें सिलेबस से हटा दी गई हैं। उन्होंने बताया कि BA और MA में अब तक पढ़ाई जा रही इनकी किताबों में आपत्तिजनक कुछ नहीं लिखा है। इन लेखकों की किताबें लंबे समय से एएमयू में पढ़ाई जा रही थी। दो लेखकों ने कुरान की रोशनी में इस्लामिक स्टेट की बात कही है। वह भी लोकतंत्र से जुड़ा हुआ है। वहीं, सऊदी अरब ने दोनों लेखकों की किताबों को प्रतिबंधित किया हुआ है क्योंकि उनकी किताबों में लोकतंत्र की बात कही गई है।

दोनों लेखकों का परिचयः

मौलाना अबुल आला मौदूदी को हुई थी फांसी की सजा

मौलाना अबुल आला मौदूदी का जन्म 1930 में हैदराबाद में हुआ था। इन्हें जमात ए इस्लामी हिंद के संस्थापकों के रूप में जाना जाता है। 1942 से 1967 तक की अवधि में पाकिस्तान की अनेक जेलों में रहे थे। वहीं, 1953 में उनकी किताब कादियानी मसला को आधार बनाकर फौजी अदालत ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई जो बाद में आजीवन कारावास में तब्दील हुई। मौदूदी ने 100 से अधिक किताबें लिखी हैं जो कि 40 देशों की भाषाओं में ट्रांसलेट की गई है। 1979 में न्यूयॉर्क में मौदूदी की मृत्यु हो गई थी।

सैयद कुतुब को राष्ट्रपति की हत्या में फांसी हुई थी

सैयद कुतुब मिस्र के रहने वाले थे और सन 1906 में पैदा हुए थे। उन्हें सलाफी जिहादवाद का पिता माना जाता है। इन्होंने भी 40 से अधिक किताबें लिखी हैं जिसमें सामाजिक न्याय और माली मफाई अल तारीख और कुरान की छाया में चर्चित प्रमुख किताबें रही हैं। 1966 में मिस्र के राष्ट्रपति जमाल अब्दुल नासिर की हत्या की साजिश रचने का दोषी ठहराया गया और उसी मामले में उन्हें फांसी की सजा दी गई।

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