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आजाद ने पीएम मोदी को बताया जमीन से जुड़े नेता, अचानक उमड़े ‘मोदी प्रेम’ से बीजेपी में शामिल होने की अटकलें हुईं तेज

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कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जमकर तारीफ की है। श्रीनगर में गुज्जर समुदाय के एक कार्यक्रम में पूर्व राज्यसभा सांसद आजाद ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी जमीन से जुड़े नेता हैं और लोगों को उनसे सीखना चाहिए कि कामयाबी की बुलंदियों पर जाने के बाद भी कैसे अपनी जड़ों को याद रखा जाता है। गुलाम नबी आजाद के अचानक प्रधानमंत्री मोदी के लिए उमड़े प्रेम से सियासी हलचल तेज हो गई है।

राज्यसभा में विपक्ष के नेता रहे गुलाम नबी आजाद ने कहा, “कई नेताओं में बहुत सी अच्छी बातें होती हैं। मेरे प्रधानमंत्री मोदी के साथ राजनीतिक मतभेद हैं, लेकिन वास्तव में वे एक जमीनी व्यक्ति हैं। मैं खुद गांव का हूं और मुझे भी इस बात पर बहुत फख्र है। प्रधानमंत्री मोदी भी कहते हैं कि बर्तन मांजता था, चाय बेचता था। निजी तौर पर हम उनके खिलाफ हैं, लेकिन जो इंसान अपनी असलियत नहीं छिपाते, वे हमेशा जड़ों से जुड़ें होते हैं। यदि आपने अपनी असलियत छिपाई तो आप मशीनी दुनिया में जी रहे होते हैं।”

जम्‍मू में कांग्रेस के ‘जी-23’ नेताओं की ओर से पार्टी हाईकमान के खिलाफ बगावत का संकेत देने के एक दिन बाद गुलाम नबी आजाद ने सार्वजनिक मंच से प्रधानमंत्री मोदी को जमीनी नेता कहा। ऐसे में अब राजनीतिक कयास लगाए जा रहे हैं कि कहीं आजाद पाला तो नहीं बदलने जा रहे। मतलब उनके बीजेपी में जाने को लेकर सियासी गलियारों में चर्चाएं बढ़ गई हैं।

सार्वजनिक मंच पर आजाद की ओर से प्रधानमंत्री मोदी को जमीनी नेता कहने के कई मायने निकाले जा रहे हैं। इसे सियासी समीकरणों में बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। राज्यसभा में विदाई के दौरान आजाद की तारीफ करते हुए प्रधानमंत्री मोदी की आंखें भर आईं थी। प्रधानमंत्री मोदी ने भरे सदन में कहा था कि वे राज्यसभा से रिटायर हो रहे हैं लेकिन उन्हें राजनीति से रिटायर नहीं होने दिया जाएगा। इन सभी घटनाक्रम के अब निहितार्थ निकाले जा रहे हैं।

हाल के दिनों के राजनीतिक घटनाक्रमों के बाद यह अटकले लगायी जा रही हैं कि कहीं आजाद पाला तो नहीं बदलने वाले हैं। क्या वे बीजेपी में तो शामिल होने वाले नहीं हैं या फिर कांग्रेस से अलग होकर कोई नई पार्टी को आकार देने में तो नहीं जुटे हैं। हालांकि, आजाद का कहना है कि यदि उन्हें बीजेपी में शामिल होना होता तो वह वाजपेयी के समय में ही चले गए होते। उधर, राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सियासत में सब कुछ संभव है। पहले भी घोर राजनीतिक मतभेद रहने के बावजूद कई नेताओं ने धुर विरोधी पार्टी का दामन थामा है। 

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार देश की सियासत और कांग्रेस में आजाद का बड़ा कद है। जम्मू-कश्मीर के साथ ही पूरे देश में आजाद के समर्थक हैं। राष्ट्रीय महासचिव, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और राज्यसभा में प्रतिपक्ष का नेता रहते उनकी विभिन्न राज्यों में पकड़ है। ऐसे में यदि वे पाला बदलते हैं या फिर नई पार्टी बनाते हैं तो कांग्रेस को बड़ा झटका लग सकता है। यदि ऐसा नहीं होता है तो भी आजाद समर्थकों की चुप्पी का कांग्रेस की सेहत पर असर पड़ सकता है। 

 

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