उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने जहां राजनीति में परिवारवाद को बढ़ावा दिया, वहीं उनके बेटे अखिलेश यादव उनसे एक कदम आगे निकल गए। उनके शासनकाल में परिवारवाद के साथ-साथ जातिवाद की पराकाष्ठा देखने को मिली। भर्तियों में भ्रष्टाचार और एक खास जति और क्षेत्र के अभ्यर्थियों को तवज्जो दिया गया। अखिलेश यादव ने भर्ती संस्थाओं के अध्यक्षों की नियुक्ति में खुलकर जातिवाद को प्राथमिकता दी। यूपीपीएससी का अध्यक्ष अनिल यादव को बनाया, जिनका कार्यकाल भर्ती के लिए कम, विवादों के लिए ज्यादा जाना गया।
अखिलेश यादव के शासन में यादव जाति के अभ्यर्थियों को लाभ पहुंचाने के लिए यूपीपीएससी के नियम भी बदले गए। उनके कार्यकाल के शुरुआती तीन साल में यूपीपीसीएस और अन्य भर्तियों में सिर्फ जाति को योग्यता का आधार बनाया गया। इसके अलावा राज्य सरकार द्वारा दिए जाने वाले पुरस्कारों में जातिवाद का बोलबाला रहा। 2015-16 में जिन लोगों को ‘यश भारती’ सम्मान दिया गया, उनमें अधिकतर यादव जाति से थे। समाजवादी पार्टी में भी यादव जाति का वर्चस्व था। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के 75 जिलाध्यक्षों में से 63 यादव जाति से थे।
अखिलेश यादव का यादववाद
- अनिल यादव को यूपीपीएससी का अध्यक्ष बनाया।
- रामवीर यादव उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग का अध्यक्ष बने।
- राज किशोर यादव अधीनस्थ सेवा आयोग का अध्यक्ष बने।
- रामपाल यादव माध्यमिक शिक्षा चयन बोर्ड का अध्यक्ष बने।
- UPPSC से चयनित 86 एसडीएम में 54 यादव जाति से थे।
- उत्तर प्रदेश के 67 प्रतिशत थानाध्यक्ष यादव जाति से थे।
- यादव जाति के बीडीओ को 3 से 4 ब्लॉक का प्रभार मिला।
- भर्ती परीक्षाओं में 69% यादव जाति के अभ्यर्थियों का चयन।
अखिलेश के सपने में जातिवाद
भगवान श्रीकृष्ण हर रोज अखिलेश यादव के सपने में आते हैं और कहते हैं कि सपा की सरकार बनने जा रही है। अखिलेश ने दावा किया कि ऐसा कोई दिन नहीं होता जब जब भगवान उनके सपने में ना आएं। इससे सवाल उठ रहे हैं कि उनके सपने में भगवान श्रीराम और बाबा विश्वनाथ क्यों नहीं आए ? यानि अखिलेश यादव सपने में भी जातिवाद को प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण यादव जाति में पैदा हुए थे। सत्ता में आने के बाद उत्तर प्रदेश में जाति आधारित जनगणना कराने का वादा दोहरा कर अखिलेश यादव ने स्पष्ट संदेश दे दिया है कि अगर उनकी पार्टी विधानसभा चुनाव के बाद सत्ता में आती है तो यूपी में जातिवाद का खेल वैसे ही खेला जाएगा, जैसे अपने पहले कार्यकाल में खेला था। वह जीतकर सरकार में आ गये तो यूपी में फिर से ‘यादववाद’ का ‘भयावह दौर’ शुरू हो जायेगा।