पंजाब में सत्ता पर काबिज होने के लिए AAP, कांग्रेस और अकाली दल के बीच दंगल शुरू हो चुका है। हालांकि पंजाब में विधानसभा चुनाव 2022 में होने हैं, लेकिन इस दंगल में तीनों दल अपने-अपने दांव-पेंच लगाने शुरू कर दिए हैं। इसमें किसानों को मोहरा बनाकर अपने-अपने सियासी हित साधे जा रहे हैं। लेकिन इसका खामियाजा दिल्ली को भुगतना पड़ रहा है, क्योंकि वह पूरी तरह से आंदोलनकारी किसानों की बंधक बन चुकी है।
इन तीनों दलों के नेताओं का मानना है कि जो भी पार्टी किसानों को जीत लेगी, आगामी पंजाब विधानसभा चुनाव में सत्ता की चाभी उसके ही पास रहेगी। इस चुनाव में 1 वर्ष बचे हैं और किसानों के जमावड़े के सहारे इन दलों को अपनी राजनीति चमकाने का अच्छा अवसर मिला है। जहां कांग्रेस प्रेरित किसान पंजाब से आकर दिल्ली के बॉर्डर पर जमे हुए हैं, वहीं दिल्ली की केजरीवाल सरकार बुराड़ी के मैदान में प्रदर्शनकारियों को सारी सुविधाएं दे रही हैं।
29 नवंबर, 2020 को AAP नेताओं ने इसी मसले पर एक के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और सभी ने मोदी सरकार पर ही हमला बोला। अरविंद केजरीवाल ने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को प्रदर्शनकारियों की सेवा में लगाया है। लंगर की व्यवस्था और चिकित्सा की सुविधाएं दी जा रही है। दिल्ली सरकार के जल बोर्ड ने आन्दोलनकारियों को पानी के टैंकर मुहैया कराए हैं।
एक तरफ भाजपा सरकार आंदोलनकारी किसानों पर आंसू गैस ,वाटर कैनन ,लाठी-पत्थर से हमला कर रही है।
दूसरी तरफ केजरीवाल सरकार उनके घाव पर मरहम लगाने का काम कर रही है l
सिंघु बॉर्डर पर चिकित्सा व स्वास्थ सेवाओं के लिए केजरीवाल सरकार ने बंदोबस्त किया है l pic.twitter.com/DC72sPe0Ik
— Raghav Chadha (@raghav_chadha) November 30, 2020
केजरीवाल दिल्ली छोड़ कर पंजाब का मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं, इस महत्वाकांक्षा की चर्चा अक्सर होती रही है। 2014 लोकसभा चुनाव में राज्य में पार्टी को जिस तरह से 24 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर मिले थे, इससे उत्साहित AAP अब पंजाब में सत्ता के सपने देख रही है। इसलिए AAP इस मौके को अपने हाथ से निकलने देना नहीं चाहती है। जिस तरह दिल्ली में शाहीन बाग का इस्तेमाल अपनी जीत के लिए किया, उसी तरह दिल्ली को बंधक बनवाकर केजरीवाल पंजाब के किसानों को खुश करना चाहते हैं।
उधर अकाली दल भी किसानों के समर्थन में पहले ही केंद्रीय कैबिनेट और एनडीए से बाहर हो चुका है। अकाली दल के नेता लगातार सिंघु बॉर्डर का दौरा कर रहे हैं और प्रदर्शनकारियों की ज़रूरतों को पूरा कर रहे हैं। दिल्ली सिख गुरूद्वारा प्रबंध कमेटी पर अकाली दल ही सत्तासीन है और इसके सहारे गुरुद्वारों के माध्यम से प्रदर्शनकारियों की मदद की जा रही है।
पंजाब में सत्तारूढ़ कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व किसान कानून पर लगातार केंद्र सरकार पर हमलावर है। वहीं, पार्टी की दिल्ली यूनिट के नेता भी अपने स्तर पर प्रदर्शनकारियों की मदद के लिए आगे आ रहे हैं। युवा कांग्रेस के नेताओं ने किसानों को भोजन-पानी और दवा-दारू मुहैया कराने के लिए सिंघु व टिकरी बॉर्डर का दौरा किया है। राहुल और प्रियंका गांधी छुट्टियां मनाते हुए ही सोशल मीडिया पर सक्रिय है और लगातार ट्वीट्स कर रहे हैं। पिछले पांच सालों में पंजाब की कांग्रेस सरकार नाकाम रही है, इसलिए कांग्रेस किसान आंदोलन में अपने लिए संजीवनी तलाश रही है।
हरियाणा के कद्दावर नेता और गृहमंत्री अनिल विज ने इस आंदोलन के पीछे कांग्रेस का हाथ बताया है। उन्होंने सवाल किया कि देश के इकलौते पंजाब राज्य से ही किसान क्यों आगे आया है, बाकी किसी प्रदेश के किसान इस आंदोलन में क्यों नहीं पहुंचे? किसानों का ये आंदोलन पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की राजनीति है। उनका कहना है कि अगले वर्ष पंजाब में चुनाव हैं और ऐसा लग रहा है कि पंजाब के मुख्यमंत्री ने किसानों को उकसाकर भेजा है।
दिल्ली को बंधक बनाकर केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए एक-एककर दिल्ली की तरफ आने वाले सभी रास्तों को बंद किया जा रहा है। एक तरफ जहां दिल्ली के सिंघु और टिकरी सीमा पर हरियाणा और पंजाब के किसान डटे हुए हैं तो वहीं, यूपी सीमा पर भी भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) नेता राकेश टिकैत के नेतृत्व में किसान हजारों की संख्या में डेरा डाल रखा है। नोएडा बॉर्डर पर भी किसान सड़क जामकर धरने पर बैठ गए हैं। दूसरे राज्यों के दिल्ली की ओर जाने वाले यात्रियों को नाकेबंदी के कारण परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।