Home विचार जावेद अख्तर आपको शर्म आनी चाहिए : प्रियंका सिंह रावत

जावेद अख्तर आपको शर्म आनी चाहिए : प्रियंका सिंह रावत

SHARE

गुरमेहर मामले पर बढ़ते विवाद के बीच बीजेपी सांसद प्रियंका सिंह रावत ने गीतकार जावेद अख्तर पर पलटवार किया है। उन्होंने फेसबुक पर एक पोस्ट लिखकर उन्हें खरी-खोटी सुनाई है।

गुरमेहर कौर एक युवा छात्रा है और मेरे लिए छोटी बहन सरीखी है। मुझे इस बात से कोई आपत्ति नहीं कि मेहर एबीवीपी, मेरे दल भाजपा, संघ के खिलाफ बोलने और काम करने वालों के साथ काफी पहले से राजनीतिक और सामाजिक रूप से सक्रिय है। ये उसका अधिकार है। मेरे लिए ये सवाल भी कोई मायने नहीं रखता कि उनके पिता कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे या आतंकी हमले में। हकीकत यही है कि उन्होंने देश के लिए अपनी जान दी और इसीलिए हमें उन पर गर्व है। गुरमेहर का परिवार, हमारा परिवार है और वो अपनी बात रखने के लिए पूरी तरह आज़ाद है। प्रसन्नता इस बात की है कि मेहर अपनी आज़ादी का खुल कर इस्तेमाल कर भी रही है।

मेरी आपत्ति अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे विपक्ष के नेताओं, दोहरे चरित्र वाले फैशनेबल पत्रकारों और स्वयं को ही ज्ञान का भंडार मानने वाले बुद्धिजीवियों से है। ये वो लोग हैं, जो जड़ जमीन से कटे हुए हैं और अपनी आभाषी दुनिया में जी रहे है। नई ऊर्जा से ओत-प्रोत देश के जागरण को समझ नहीं पा रहे हैं और अगर समझ भी गए तो उसे स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। उन्हें ये बदलाव इतना बुरा लग रहा है कि षड्यंत्र करके, सरकार के खिलाफ अफवाह फैलाकर, व्यवस्थाओं को बदनाम करके देश की साख को भी दांव पर लगाने से नहीं चूक रहे। ये स्थित बेहद शर्मनाक और आपत्तिजनक है।

सबसे पहले बात अभिव्यक्ति की आज़ादी की – वर्तमान मोदी सरकार में जितनी फ्रीडम ऑफ स्पीच है और जितना उसका दुरुपयोग किया गया है। उतना आपको कभी किसी और सरकार और नेतृत्व में नहीं मिला होगा। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता इस कदर है कि कोलकाता का एक मौलाना प्रधानमंत्री भारत के ऊपर फतवा जारी कर अपशब्द बोलता है। बिहार सरकार का मंत्री प्रधानमंत्री के पोस्टर लगाकर सरे-आम अभद्रता करता है और दिल्ली में देश को खंडित करने का ख्वाब देखने वालों को महिमा मंडित करता है, सेना को अपमानित करने वाले नारे लगाए जाते हैं, हिन्दू देवी देवताओं का अपमान की जाती है। क्या ये फ्रीडम ऑफ स्पीच है? खुद गुरमेहर कौर जो खुद को “पीस एक्टिविस्ट” कहती है। उन्होंने जिहाद के नाम पर रूसी राजदूत की हत्या को जायज ठहराया था। और उस पर अगर वीरेंद्र सहवाग या रणदीप हुड्डा या बबिता फोगत सरीखा गैर राजनीतिक शख्स संतुलित शब्दों में आपत्ति जता दें तो आप उसे बदनाम करने में जुट जाइए। मतलब फ्रीडम ऑफ स्पीच के तहत आप कुछ भी कहे, कैसे भी कहे, किसी को भी कहे लेकिन उसी फ्रीडम ऑफ स्पीच का इस्तेमाल आप से अलग राय रखने वाला कर ले तो आप उसे गुंडा, अनपढ़, हिन्दू आतंकी कहने से नहीं चुकेंगे। ये दोहरा रैवैया नहीं है तो क्या है?

अब बात जावेद अख्तर जैसे बुद्धिजीवियों की। श्रीमान! आपकी कला का सम्मान है, लेकिन वो सम्मान तभी तक सुरक्षित है, जब तक आप दूसरो का सम्मान करे। जावेद अख्तर ने अपने ट्वीट में खिलाडियों (सहवाग, फोगट) को अनपढ़ कहा, जैसे दुनिया की सारी सलाहियत और अक्ल इन्हीं के पास है। राष्ट्र के गौरव खिलाड़ियों पर ऐसी ओछी टिप्पणी करने पर जावेद अख्तर आपको शर्म आनी चाहिए, पर आपको आएगी नहीं। एवार्ड वापसी और इनटोलरेंस ब्रिगेड के लोगों की यही सोच है कि “अगर आपने हमारी पसंद और सोच के साथ लिखा तो आप बड़े भारी क्रांतिकारी और अगर आपकी राय हमसे अलग है तो आप ट्रोल करने वाले “गुंडे”। इसी वजह से एक समय पूरे भारत में बसने वाले कम्युनिस्ट अब केवल कुंठित हृदयों में सिमट कर रह गए हैं।

मीडिया का भी एक गैंग है जो अपनी भड़ास निकालने के लिए कन्हैया और मेहर जैसे चेहरे ढूंढता है। वैसे तो पत्रकारिता में ज्यादातर लोग ईमानदार और निष्पक्ष है लेकिन इन गंदी मछलियों की वजह से पूरा तालाब शक के घेरे में आ जाता है। न तो रामजस कॉलेज में हुई मारपीट का समर्थन किया जा सकता है और न ही गुरमेहर के खिलाफ की गई भद्दी टिप्पणियों का लेकिन पिछले साल 15 साल की एक बच्ची जाह्नवी बहल ने जेएनयू वाले कन्हैया कुमार को बहस की चुनौती दी थी। उसके बाद उसे सोशल मीडिया पर धमकी और गालियां दी गईं। तब ये लोग कहां थे? ये सुविधा और पसंद के हिसाब से क्रांतिकारी पत्रकारिता का रिवाज गलत है। गुरमेहर और जाह्नवी में फर्क करना गलत है। दिल्ली में मारपीट तो दिखती है, लेकिन केरल कर्णाटक और बंगाल में एबीवीपी कार्यकर्ताओं की हत्या पर आंख मूंदने से आप अपनी साख खो रहे हो। देश बदल रहा है, अब ऐसा नहीं रहा कि मीडिया बताएगा नहीं तो खबर लोगों तक नहीं पहुंचेगी या आप जैसे चाहोगे वैसे खबर मोड़ लोगे। कितने शर्म की बात है कि एक बड़े टीवी पत्रकार का भाई जो कांग्रेस का वरिष्ठ नेता है और जिस पर दलित बच्ची के रेप का आरोप है, वो खबर उस पत्रकार के चैनल पर चली तक नहीं। गुरमेहर के बाद तमाम लड़कियों और छात्राओं ने उसी अंदाज़ में तख्तियां लेकर एबीवीपी का समर्थन किया पर आप लोगों ने उन्हें जगह नहीं दी। मुझे आशंका है कि अगर आपका यही दोहरा रवैया रहा तो आप जन सरोकार से दूर होते जायेंगे।
जय हिन्द

प्रियंका सिंह रावत, भाजपा सांसद

Leave a Reply