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यूक्रेन संकट को लेकर यूएन की भूमिका फिर सवालों के घेरे में, लोग याद कर रहे हैं संयुक्त राष्ट्र को प्रधानमंत्री मोदी की नसीहत

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रूस-यूक्रेन संकट के बाद एक बार फिर से संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं। संयुक्त राष्ट्र जिस तरह से यूक्रेन में जंग रोकने में नाकाम रहा है उससे इस वैश्विक संस्था की दुनियाभर में आलोचना हो रही है। यूएन चीफ चीफ एंटोनियो गुटेरेस की अपील को ठुकराते हुए रूस की सेना यूक्रेन में प्रवेश कर चुकी है। यूएन इसके पहले भी कई देशों के बीच शांति कायम रखने में नाकाम रहा है।

अमेरिका-वियतनाम युद्ध हो या ईरान-इराक युद्ध या फिर रवांडा में बड़ा नरसंहार या बोस्निया में गृह युद्ध, संयुक्त राष्ट्र प्रभावशाली भूमिका निभाने में नाकाम रहा है। संयुक्त राष्ट्र की विफलता के कारण दुनियाभर में लाखों लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन सिर्फ पांच देशों के पास वीटो पावर होने के कारण यूएन सिर्फ दिखावे की संस्था भर है। यूएन की सुरक्षा परिषद में अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस और ब्रिटेन स्थाई सदस्य हैं। वीटो पावर से लैस ये देश किसी भी मामले को आगे बढ़ने से रोक देते हैं। जिस कारण संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा और शांति स्थापित करने में विफल हो जाता है।

वीटो पावर भी मनमाने तरीके से दिया गया है। अफ्रीका से कोई देश नहीं है। एशिया में सिर्फ चीन है, भारत के पास ये पावर नहीं है। आकार के हिसाब से देखे तो रूस को मिलाकर यूरोप से तीन देश है। ऐसे में वीटो पावर से लैस देश अपने हिसाब से दुनिया को हांकना चाहते हैं और जब आपस को मुद्दा होता है तो चुप्पी साध लेते हैं। इसी को लेकर भारत काफी समय से संयुक्‍त राष्‍ट्र में सुधार की मांग करता रहा है। यूएन में अभी विकसित देशों का प्रभुत्‍व है। इसी लिए भारत सुधार के रूप में सुरक्षा परिषद के अस्‍थायी और स्‍थायी दोनों ही तरह के सदस्‍यों की संख्‍या में बढ़ोतरी चाहता है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 25 सितंबर, 2021 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें सत्र को संबोधित करते हुए संयुक्‍त राष्‍ट्र में सुधारों की जोरदार पैरवी की। उन्‍होंने साफ कहा कि अगर यूएन सुधारों की दिशा में नहीं बढ़ा तो अपनी प्रासंगिकता खो देगा। उन्होंने कहा कि आज यूएन पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं, उसे अपनी विश्‍वसनीयता को बढ़ाना होगा।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “भारत के महान कूटनीतिज्ञ, आचार्य चाणक्य ने सदियों पहले कहा था-कालाति क्रमात काल एव फलम् पिबति। जब सही समय पर सही कार्य नहीं किया जाता, तो समय ही उस कार्य की सफलता को समाप्त कर देता है। संयुक्त राष्ट्र को खुद को प्रासंगिक बनाए रखना है तो उसे अपनी प्रभावशीलता को सुधारना होगा, विश्वसनीयता को बढ़ाना होगा।”

महासभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “यूएन पर आज कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। इन सवाल को हमने जलवायु संकट में देखा है, कोरोना के दौरान देखा है। दुनिया के कई हिस्सों में चल रही प्रॉक्सी वॉर- आतंकवाद और अभी अफगानिस्तान के संकट ने इन सवालों को और गहरा कर दिया है। कोविड के शुरुआत के संदर्भ में और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग को लेकर, वैश्विक गवर्नेंस से जुड़ी संस्थाओं ने, दशकों के परिश्रम से बनी अपनी विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाया है।”

प्रधानमंत्री ने कहा, “ये आवश्यक है कि हम यूएन को ग्लोबल ऑर्डर, ग्लोबल लॉ और ग्लोबल वैल्यूज के संरक्षण के लिए निरंतर सुदृढ़ करें। मैं, नोबल पुरस्कार विजेता, गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर जी के शब्दों के साथ अपनी बात समाप्त कर रहा हूं। शुभो कोर्मो-पोथे / धोरो निर्भोयो गान, शोब दुर्बोल सोन्शोय /होक ओबोसान। अर्थात…अपने शुभ कर्म-पथ पर निर्भीक होकर आगे बढ़ो।सभी दुर्बलताएं और शंकाएं समाप्त हों। ये संदेश आज के संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र के लिए जितना प्रासंगिक है उतना ही हर जिम्मेदार देश के लिए भी प्रासंगिक है। मुझे विश्वास है, हम सबका प्रयास, विश्व में शांति और सौहार्द बढ़ाएगा, विश्व को स्वस्थ, सुरक्षित और समृद्ध बनाएगा।”

अब यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध शुरू होने के बाद एक बार फिर से संयुक्त राष्ट्र में सुधार की मांग जोर पकड़ने लगी है। दुनियाभर के नेताओं को प्रधानमंत्री मोदी की यूएन को दी गई ये नसीहत याद आ रही है। अगर जल्दी ही यूएन में सुधार नहीं किया गया तो यह अपनी प्रासंगिकता खो देगा।

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