Home कोरोना वायरस रवीश की निर्लज्जता देखिए, कर रहा है चीन का बचाव 

रवीश की निर्लज्जता देखिए, कर रहा है चीन का बचाव 

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निजी स्वार्थ में अपने देश तक को बर्बाद कर देने वाले कुलघाती सिर्फ इतिहास में ही नहीं बल्कि वर्तमान में भी मौजूद हैं। कोरोना जैसी घातक वैश्विक महामारी से आज दुनिया भर में 1.70 लाख से अधिक लोगों की मौत हो गई है। देश में भी मरने वालों की संख्या 500 से पार कर गई है।  इतनी बड़ी वैश्विक त्रासदी के लिए जहां पूरी दुनिया चीन की करतूत को जिम्मेदार मान रही है, उसी चीन को कल तक सरकार की चाकरी में जुटा एनडीटीवी के मालिक डॉ प्रणय राय के हंटर के इशारे पर नाचने वाला स्वघोषित बड़ा पत्रकार रवीश कुमार बेकसूर ठहराने में जुटा है। इसकी निर्लज्जता देखिए, जहां वैश्विक महामारी कोरोना यानि कोविड-19 के प्रसार के तथ्य और तर्क चीन के खिलाफ हैं वहीं वह अपने कुतर्क से चीन का बचाव कर रहा है। जबकि चीन के ही वैज्ञानिकों के प्रकाशित शोधपत्र से यह तथ्य बाहर आया कि इस वैश्विक महामारी कोरोना वायरस की उत्पत्ति चीन के वुहान स्थित वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में हुई है और वहीं से यह वायरस बाहर आया है।

एनडीटीवी पर रवीश का कुतर्क और चीन के खिलाफ तथ्य

रवीश कुमार का कहना है कि चूंकि अभी तक जो 1.70 लाख लोगों की मौतें हुई हैं उनमें से अधिकांश यानि करीब 1 लाख से भी अधिक मौतें यूरोपीय देशों में हुई हैं। इसलिए यूरोपीय देश इस मामले में चीन की लापरवाही और और उसकी भूमिका की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जांच कराने की मांग करने लगे हैं। जबकि तथ्य यह है कि सबसे पहले चीन के ही एक डॉक्टर ने कोरोना वायरस को लेकर खुलासा किया था। उस खुलासे के बाद ही वह गुम हो गया, आज तक उसका पता नहीं चल पाया। इतना ही नहीं कोरोना वायरस की उत्पत्ति से लेकर उसके फैलने तक पर पहली बार चीन के ही एक पत्रकार ने लिखा था। वह भी लापता हो गया, जिसका आज तक पता नहीं चल पाया। रवीश कुमार जर्मनी के एक अखबार की बात तो करता है लेकिन चीन में गुम हुए उस पत्रकार की बात नहीं कर रहा है। रवीश कुमार चीन के बचाव में इतना नीचे गिर गया है कि जिस थाली में खाता रहा है उसी में ही छेद करने पर तुल गया है। यानि उसने अपने स्वार्थ में पत्रकारिता पर ही सवाल खड़ा कर दिया है। जर्मनी के उस अखबार को ही गलत करार दे दिया है, जिसने अपने स्तर पर विश्व की इतनी बड़ी त्रासदी के जिम्मेदार होने के नाते चीन को हर्जाने के तौर पर दस लाख करोड़ डॉलर चुकाने को कहा है। रवीश की निर्लज्जता यही नहीं है, उसने चीन की तरह देश में तबलीगी जमात को भी क्लीन चीट देने की कोशिश की है। जबकि दुनिया गवाह है कि प्रधानमंत्री मोदी के संकल्प और प्रयास से भारत में कोरोना अपने पहले चरण में परास्त हो गया होता, अगर तबलीगी जमात की करतूत नई दिल्ली स्थित निजामुद्दीन मरकज में नहीं हुई होती।  

तथ्यों को छिपाना एनडटीवी और रवीश कुमार की आदत

खबर को दबाना और अपने स्वार्थ के चलते उसे फैलाना एनडीटीवी की पुरानी चाल है। रवीश कुमार ने जर्मनी के उस अखबार का तो जिक्र किया लेकिन अमेरिकी संसद में घटी घटना को दबा दिया जिसमें कोरोना जैसी महामारी के लिए चीन के खिलाफ किसी को भी मुकदमा दर्ज कर हर्जाना वसूलने का अधिकार मिलने वाला है। मालूम हो कि अमेरिकी संसद (कांग्रेस) के दोनों सदनों यानी सीनेट और प्रतिनिधि सभा में दो सांसदों ने इस संबंध में प्रस्ताव पेश किया है। इस प्रस्ताव के पेश होते ही किसी को भी चीन के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर कोरोना से हुए नुकसान का हर्जाना वसूलने का अधिकार होगा।

डॉ. प्रणय रॉय के निजी संबंधों पर तय होती है खबरें

एनडीटीवी में लंबे समय तक कार्यरत एक पत्रकार समरेंद्र सिंह की माने तो एनटीवी में खबर घटनागत नहीं बनती बल्कि डॉ. प्रणय राय के निजी संबंधों पर आधारित होती है। इस संदर्भ में समरेंद्र सिंह का क्या कहना है उसे आप खुद पढ़िए, ‘पहला सवाल तो यही था कि चैनल के पत्रकारों को यह कैसे आभास होगा कि डॉ रॉय की नजर में कौन सी घटना… खबर है और कौन सी घटना… खबर नहीं है? एनडीटीवी में काम करने का अनुभव तो यही कहता था कि डॉ रॉय के मुताबिक एक ही जैसी दो घटनाओं में से एक घटना… खबर हो सकती है जबकि दूसरी घटना… खबर नहीं हो सकती है. किसी भी वाकये का खबर होना डॉ रॉय के निजी संबंधों पर निर्भर करता था. अब जब किसी चैनल का रेवेन्यू मॉडल उसके मालिकान के निजी संबंधों पर केंद्रित हो और मालिकान के निजी संबंधों का दायरा व्यापक हो तो फिर उस चैनल में तैनात पत्रकार क्या करें? वह कैसे तय करे कि खबर चलाई जाए या नहीं?’ एनटीवी की यह गाथा उस समय की है जब केंद्र में बैठी यूपीए सरकार के इशारे पर खबरें लगाई जाती थी या फिर दबाई जाती थी। और ये सब नएडीटीवी और उसके मालिक प्रणय राय के व्यावसायिक और निजी हित को ध्यान में रखते हुए हो रहा था।   

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह की डांट पर हटाई खबरें

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू की किताब ‘द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ से ऐसी कई घटनाओं का खुलासा हुआ है जिससे एनडीटीवी, उसके मालिक और एंकरों की कलई खुली है। इस किताब में ऐसी ही साल 2005 में घटी घटना का जिक्र है। साल से पता चल गया होगा कि प्रकारांतर से सोनिया गांधी के नेतृत्व में चलने वाली सरकार का डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे और वह उनका पहला कार्यकाल था। एऩडीटीवी पर खबर चली की प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपनी पहली सरकार के पहले साल पर मंत्रियों के कामकाज का मूल्यांकन कर रहे हैं। इस खबर के मुताबिक नटवर सिंह को फिसड्डी मंत्री के रूप में आंका  गया था, यानि उन्हें सबसे कम अंक दिया गया था। जैसे ही इस खबर की जानकारी संजय बारू ने पीएम मनमोहन सिंह को दी, उन्होंने तुरंत चैनल के मालिक प्रणय रॉय को फोन लगाने को कहा। प्रणय राय को फोन लगाया गया और जब तक कुछ कहा जाता तब तक प्रधानमंत्री ने खुद फोन हाथ में लेकर डॉक्टर प्रणय राय को फटकार लगानी शुरू कर दी। इतना ही नहीं आगे भी  झूठी खबर नहीं चलाने की हिदायत दी। इस घटना के बाद एनडीटीवी के दोनों यानि हिंदी और अंग्रेजी चैनलों से वो दोनों खबरें इस प्रकार गायब हो गई जैसे गधे के सिर से सिंग। संजय बारू ने तो अपनी किताब में यहां तक लिखा है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह डॉक्टर प्रणय राय को इस प्रकार डांट पिला रहे थे जैसे कोई स्कूल टीचर किसी छात्र को डांट रहे हों।

सीपीएम नेताओं के साथ प्रणय राय के हैं घरेलू रिश्ते

संजय बारू की इसी किताब में एक और घटना का जिक्र है जिसमें मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी यानी सीपीएम के शीर्ष नेतृत्व में बदलाव से जुड़ी खबर एनडीटीवी चैनल पर सबसे पहले चली। बारू ने लिखा है कि चूंकि एनडीटीवी के मालिक प्रणय रॉय और राधिका रॉय के सीपीएम नेता वृंदा करात और प्रकाश करात से पारिवारिक रिश्ते हैं, इसलिए पार्टी से जुड़ी सारी खबरें एनडीटीवी पर आया करती थीं। सरकार भी इन पर भरोसा करती थी। कुल मिलाकर संजय बारू की इस किताब ने एनडीटीवी के उस असली चेहरे की एक झलक दी है, इसके बावजूद ये चैनल और उसकी तनख्वाह पर पल रहे रवीश कुमार और उन जैसे कुछ कथित प्रत्रकार दावा कर रहे है कि वो सबसे निष्पक्ष और सरकारों से टकराव लेन वाले चैनल में काम कर रहे हैं।

यूपीए सरकार के कार्यकाल में ब्रोकर बने प्रणय रॉय

उपरोक्त हेडिंग किसी और ने नहीं बल्कि एक समय काफी लंबे वक्त तक एनडीटीवी में काम कर चुके पत्रकार समरेंद्र सिंह की दी हुई है। उन्होंने यह खुलासा किया कि एनडीटीवी न तो खबरों का चैनल रह गया ना ही उसका मालिक पत्रकार। तो जरा सोचिए जो चैनल न्यूज चैनल न रह गया हो , जिसका मालिक ब्रोकर बन गया हो उसका एंकर कैसे पत्रकार बना रह सकता है। फिर भी आज एनडीटीवी का मुखपत्र बना रवीश कुमार जिस प्रकार देश के पत्रकारों को सरकार के खिलाफ पत्रकारिता करने की शिक्षा दे रहा है, तब कहां था जब उसके मालिक प्रणय राय का सारा का सारा चैनल यूपीए सरकार की चाकरी में लगा था। सरकार के इशारे पर खबरें गिरती और चढ़ती थीं, और कभी-कभी तो गायब भी हो जाया करती थीं। साल 2005 की ही घटना है, एनडीटीवी के दोनों चैनलों यानि हिंदी और अंग्रेजी के प्राइम टाइम शो के दौरान मनमोहन सिंह सरकार के पहले साल पांच सबसे अच्छे और पांच सबसे बुरे मंत्रियों पर विशेष कार्यक्रम प्रसारित होने वाला था। परफॉर्मेंस के आधार पर मंत्रियों की ग्रेडिंग होनी थी। लेकिन इसकी जानकारी विशेष कर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कहें या फिर सोनिया गांधी को लग गई। फिर क्या  था, चैनल से बुरे परफॉरमेंस वाले मंत्रियों की खबर ही गायब कर दी गई। बताया जाता है कि यह बुरे मंत्रियों की सूची सीपीएम ने तैयार करवाई थी।

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