Home समाचार राफेल डील पर कांग्रेस के ‘दुष्प्रचार’ का जवाब जानिये…

राफेल डील पर कांग्रेस के ‘दुष्प्रचार’ का जवाब जानिये…

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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी प्रधानमंत्री से भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सवाल पूछ रहे हैं। विशेषकर राफेल डील को लेकर वे संशय पैदा कर रहे हैं। राफेल सौदे को लेकर अब तक चुप रहे पूर्व रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने भी सवाल उठाते हुए कहा है कि इससे देशहित को नुकसान पहुंचा है, लेकिन कैसे?  इस पर चुप्पी साध लेते हैं। हालांकि कुछ प्वाइंट्स उन्होंने उठाए हैं, लेकिन डरते-डरते! आखिर कांग्रेस को किस बात का डर है? कांग्रेस क्यों बार-बार बेहतरीन राफेल डील पर भी सवाल उठा रही है? आखिर क्या वजह है जो राफेल डील पर सबूत रखने के बजाय सिर्फ सवाल उठा रही है?

दरअसल कांग्रेस पर इतनी कालिख पहले ही पुत चुकी है कि उसे समझ नहीं आ रहा कि वह क्या करे ? माना तो यह भी जा रहा है कि कांग्रेस इसके जरिये बोफोर्स मामले को फिर से हवा देने और ऑगस्टा वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर डील की जांच शुरू करने के सरकार के प्रयासों का जवाब दे रही है। हालांकि यह तो सर्वविदित तथ्य है कि बोफोर्स में दलाली दी गई थी। इसी तरह ऑगस्टा वेस्ट लैंड सौदे में भी सोनिया गांधी सीधे कठघरे में हैं। दूसरी ओर राफेल डील में कांग्रेस कह रही है कि विदेशी कंपनी को फायदा पहुंचाया गया, मेक इन इंडिया का ध्यान नहीं रखा गया। डिफ्लेशन और वारंटी पर भी सवाल उठाए हैं।  बहरहाल हम कांग्रेस के उठाए सवालों की पड़ताल करते हैं और सच्चाई सामने लाने की कोशिश करते हैं- 

प्रतिस्पर्धी मूल्य पर दो देशों के बीच हुआ सौदा
राफेल डील एक ऐसा सौदा है जो दो देशों की सरकारों के बीच सीधे हुआ है। इस मामले में फ्रांस की सरकार ने भी अपना रुख साफ करते हुए स्पष्ट कहा था, ”लड़ाकू विमान को उत्कृष्ट प्रदर्शन और प्रतिस्पर्धी मूल्य के तहत पूरी पारदर्शिता के साथ चुना गया है।” बावजूद इसके राहुल गांधी और कांग्रेस द्वारा इस सौदे को लेकर लगातार भ्रम फैलाने की कोशिश की जा रही है और सरकार की छवि को खराब करने के लिए लगातार दुष्प्रचार जारी है।

पीएम मोदी ने बचाए 12,600 करोड़  
कांग्रेस का आरोप है कि यूपीए सरकार द्वारा 2012 में राफेल विमान के तय किए गए मूल्य से 3 गुणा ज्यादा देकर एनडीए सरकार ने यह सौदा मंजूर किया है। कांग्रेस कहती है कि लागत 526 करोड़ रुपये से बढ़कर 1,570 करोड़ रुपये हो गई है, लेकिन कांग्रेस के आरोपों से इतर हकीकत यह है कि ये विमान उड़ने की स्थिति में खरीदे जा रहे हैं और इसके तहत 12,600 करोड़ रुपये की बचत हो रही है। इस बचत में फ्लायवे हालत में विमान के अधिग्रहण की लागत 350 मिलियन यूरो यानि 27 अरब 74 करोड़ 25 लाख 49 हजार 144 रुपये और हथियार, रखरखाव और प्रशिक्षण के यूरो 1300 मिलियन यूरो यानि 10 खरब 30 अरब 43 करोड़ 75 लाख 39 हजार 632 करोड़ शामिल है।

राफेल डील में बिचौलियों की नहीं गली दाल
यूपीए सरकार के समय सिर्फ 18 विमान ही सीधे उड़ने वाली हालत में भारत आने थे, लेकिन अब इन विमानों की संख्या 36 तक बढ़ गई। फ्रांस इस सौदे की कीमत करीब 65 हजार करोड़ चाहता था, लेकिन तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के प्रयासों से सौदे की कीमत कम हो गई। इतना ही नहीं इस सौदे के लिए पीएमओ ने लगातार बातचीत के हर दौर पर नजर बनाए रखा। प्रधानमंत्री मोदी और फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने डेसॉल्ट (Dassault) एविएशन द्वारा बताई गई शर्तों से बेहतर शर्तों की आपूर्ति के लिए अंतर-सरकारी समझौते यानि एक देश की सरकार से दूसरे देश की सरकार के साथ हुए समझौते को अंतिम रूप दिया गया। इस समझौते से जहां कीमतें कम करने में सफलता मिली वहीं बिचौलियों के लिए कोई स्कोप ही नहीं बचा।

राफेल डील में मेक इन इंडिया को बढ़ावा
राफेल सौदा मेक इन इंडिया प्रोग्राम के लिए मील का पत्थर साबित होने वाला है। दरअसल 3 अक्टूबर, 2016 को राफेल लड़ाकू विमान बनाने वाली कंपनी डेसॉल्ट ने रिलायंस के साथ संयुक्त रणनीतिक उपक्रम स्थापित करने के निर्णय की घोषणा की। यह उपक्रम विमान सौदे के तहत ‘ऑफसेट’ अनुबंध को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। पिछले वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हस्तक्षेप के बाद फ्रांस 50 प्रतिशत ऑफसेट उपबंध के लिए सहमत हो गया था। यानि अब इसमें 50 प्रतिशत ‘ऑफसेट’ का प्रावधान भी रखा गया। इसका अर्थ यह हुआ कि छोटी बड़ी भारतीय कंपनियों के लिए कम से कम तीन अरब यूरो का कारोबार और ‘ऑफसेट’ के जरिये सैकड़ों रोजगार के अवसर सृजित किए जा सकेंगे।

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सौदे में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर का करार
कांग्रेस की ओर से कई बार आरोप लगाया जा चुका है कि इस डील में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर नहीं होने जा रहा है, लेकिन सच्चाई यह है कि रिलायंस के साथ जॉइंट वेंचर के माध्यम से डेसॉल्ट कंपनी भारत में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर कर रहा है।  रिलायंस और डसॉल्ट का ये संयुक्त उद्यम पहले चरण में विमान के स्पेयर पार्ट्स बनाएगा और द्वितीय चरण में दसों एयरक्राफ्ट का निर्माण शुरू करेगा।

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इन्फ्लेशन में भारत का हित पहले
2016 में तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और भारतीय वायु सेना दल ने फ्रेंच अधिकारियों से डील को मौजूदा बाजार भाव पर लाने के लिए एक के बाद एक कई दौर की बातचीत की थी, जिसके साथ अधिकतम 3.5 प्रतिशत का इन्फ्लेशन तय किया गया। अगर यूरोपीय बाजारों में इन्फ्लेशन इससे कम रहेगा तो इसका लाभ भी भारत को मिलेगा। जबकि यूपीए के दौर में इन्फ्लेशन की शर्त 3.9 प्रतिशत निर्धारित हुई थी। इस डील के तहत फ्रेंच कंपनी डेसॉल्ट को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि फ्लीट का 75 प्रतिशत हर हाल में ऑपरेशनल रहे।

भारत के रक्षा मानकों का रखा ध्यान
कांग्रेस कई बार कह चुकी है कि इसमें भारतीय रक्षा मानकों की अवहेलना की गई है, लेकिन सच्चाई यह है कि ये लड़ाकू विमान नवीनतम मिसाइल और शस्त्र प्रणालियों से लैस हैं और इनमें भारत के हिसाब से परिवर्तन किये गए हैं। ये लड़ाकू विमान मिलने के बाद भारतीय वायुसेना को अपने धुर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के मुकाबले अधिक ‘‘ताकत’’ मिलेगी। राफेल के साथ ही भारत ऐसे हथियारों से लैस हो जायेगा जिसका एशिया महाद्वीप में कोई सानी नहीं। राफेल के साथ मेटीओर मिसाइल्स जो हवा से हवा में 150 किमी तक मार कर सकती हैं। राफेल मीका मिसाइल से भी लैस है जिसकी रेंज हवा से हवा में 79 किमी है। स्काल्प मिसाइल भी राफेल के साथ है जो क्रूज मिसाइल की श्रृंखला में आती है और इसका रेंज 300 किमी है। इस डील के बाद चीन हो या पाकिस्तान भारत की हवाई ताकत के जद में आ जाएंगे और भारत के सामने कमतर ही महसूस करेंगे।

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