राजस्थान में अशोक गहलोत को भले ही जादूगर कहा जाता हो, लेकिन विधानसभा चुनाव में तो पीएम मोदी का जादू जनता-जनार्दन से सिर पर चढ़कर बोला है। सीएम चेहरा घोषित न करने की बीजेपी थिंक टैंक की रणनीति ने सफलता के झंडे गाड़ दिए और चुनाव का सबसे बड़ा चेहरा बने पीएम नरेन्द्र मोदी पर ही मतदाताओं ने अपना स्नेह और आशीर्वाद जीभर लुटाया। जनता की लहर ने RAJsthan को MODIsthan बना दिया। प्रदेश की जनता ने गहलोत सरकार द्वारा घोषित की गई मुफ्त की रेवड़ियों/गारंटियों को पूरी तरह नकार दिया और उसने मोदी की गारंटी पर ही जमकर भरोसा किया। प्रदेश में पीएम मोदी की धुआंधार रेलियों और उसमें उठाए शानदार और दमदार मुद्दों ने सरकार के खिलाफ और बीजेपी की पक्ष में लहर बनाई। पीएम मोदी की ऐसी सुनामी चली कि राजस्थान के साथ-साथ छत्तीसगढ़ भी बीजेपी को बोनस में मिला और पड़ौसी मध्य प्रदेश में फिर से बीजेपी की रिकॉर्ड जीत हुई।
पीएम मोदी की दमदार सभाओं ने बनाया बीजेपी के लिए जीत का रास्ता
पीएम मोदी ने इस चुनावी साल में राजस्थान में बीस से ज्यादा बड़ी सभाएं कीं। इसमें न सिर्फ उन्होंने संभाग और जिले को कनेक्ट किया, बल्कि राज्य की 200 विधानसभा क्षेत्रों को भी कवर किया। इन जनसभाओं में पीएम ने न सिर्फ कांग्रेस सरकार के कुशासन, भ्रष्टाचार की पोल खोली, बल्कि महिलाओं और अपराधों में राजस्थान को नंबर वन बनाने के लिए कांग्रेस की गहलोत सरकार पर निशाने साधे। पेपर लीक माफिया के खिलाफ कार्रवाई के साथ-साथ पीएम ने कांग्रेस सरकार की तुष्टिकरण की नीति को भी आड़े हाथों लिया। महिलाओं और युवाओं में खासे लोकप्रिय पीएम मोदी ने राजस्थान के दौरों के दौरान प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों और विभिन्न समाजों के आराध्य स्थलों पर भी दर्शन-पूजन किया। लोगों की धार्मिक भावनाएं पीएम मोदी के साथ जुड़ने का खासा असर चुनाव परिणामों पर नजर आया।गहलोत वर्सेज पायलट का अनवरत विवाद प्रदेश के विकास कार्यों पर हावी रहा
राजस्थान में तीन दशक से सत्ता को बदलने का रिवाज है। गहलोत सरकार ने इस रिवाज को बदलने और अपनी सत्ता में वापसी के लिए विज्ञापनों पर पैसा पानी की तरह बहाया था। लोगों को मुफ्त की योजनाओं के साथ-साथ सात गारंटियां भी दीं, लेकिन राजस्थान की जनता पिछले पांच साल में कांग्रेस के कुशासन और भ्रष्टाचार के तंग आ चुकी थी। गहलोत वर्सेज पायलट का अनवरत विवाद प्रदेश के विकास कार्यों पर हावी रहा। इस पर विधायकों से लेकर मंत्रियों तक पर भ्रष्टाचार के आरोप, मंत्री पुत्रों पर रेप करने के आरोप, महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध और इस पर मुख्यमंत्री से लेकर शहरी विकास मंत्री शांति धारीवाल की टिप्पणियों से लोगों और महिलाओं में सरकार के खिलाफ अंदर तक आक्रोश भर गया। लोकतांत्रिक मतदान के रूप में जब जनता को मौका मिला तो उसने कांग्रेस का बहिष्कार करके अपना बदला ले लिया।
विधानसभा चुनाव में प्रदेश की जनता ने राज बदलकर रिवाज कायम रखा
राजस्थान न विधानसभा चुनाव में प्रदेश की जनता ने एक बार फिर राज बदलकर रिवाज कायम रखा है। चुनाव आयोग की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, अब तक 199 सीटों में से भाजपा 31 पर जीत गई है और 83 सीटों पर आगे है और सत्तारूढ़ कांग्रेस 70 सीटों में से 20 पर जीत दर्ज कर चुकी है और 50 पर बढ़त बनाए हुए है। बीजेपी जहां प्रतिद्वंदी कांग्रेस को पछाड़ते हुए बहुमत के आंकड़े को पार कर बड़ी जीत की ओर बढ़ गई है। राजस्थान की झालरापाटन सीट से पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता वसुंधरा राज चुनाव जीत गई हैं। वहीं टोंक से कांग्रेस नेता सचिन पायलट की जीत और ओसिंया सीट से दिव्या मदेरणा की हार तय मानी जा रही है। राजस्थान में 25 नवंबर को हुए चुनाव में 75.45 प्रतिशत मतदान हुआ था। राजस्थान चुनाव 2023 के लिए राज्य की कुल 200 में से 199 विधानसभा सीटों के लिए आज मतगणना हो रही है।
कांग्रेस से खिलाफ चुनावी लहर में सरकार के कई मंत्रियों की भी लुटिया डूबी
कांग्रेस से खिलाफ चुनाव में लहर इस कदर चली कि सरकार के 25 में से करीब 15 मंत्री अब तक चुनाव हार गए हैं। राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष और नाथद्वारा विधानसभा सीट कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. सीपी जोशी भी चुनाव हार गए हैं। भाजपा प्रत्याशी विश्व राज सिंह यहां शुरुआत से ही बड़ी बढ़त बनाए हुए थे। बीकानेर पश्चिम विधानसभा सीट से राजस्थान के मंत्री और कांग्रेस प्रत्याशी बी.डी. कल्ला चुनाव हार गए हैं। भाजपा प्रत्याशी जेठानंद व्यास ने कल्ला को करारी शिकस्त दी है। राजस्थान की सिविल विधानसभा सीट पर अशोक गहलोत के मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास 28 हजार वोट से चुनाव हार गए हैं। भाजपा प्रत्याशी गोपाल शार्मा ने कांग्रेस प्रत्याशी खाचरियावास को करारी शिकस्त दी है। गोपाल शर्मा को 98661 को वोट मिले हैं, जबकि खाचरियावास 70332 वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रहे।
विधानसभा चुनाव में सीएम की गारंटियों पर पीएम मोदी की गारंटी हावी रही। पीएम का चेहरा, उनकी स्ट्रेटजी और महिलाओं और युवाओं पर फोकस ने बीजेपी को जीत की राह पर डाल दिया। दूसरी ओर कांग्रेस अपनी इन कमियों के चलते पिछड़ गई...
1.पांच साल तक चलता रहा गहलोत गुट और पायलट के बीच राजनीतिक घमासान
कांग्रेस चुनाव के कुछ महीने पहले तक गुटबाजी से ही जूझती नजर आई। सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच की खींचतान का भी कार्यकर्ताओं पर असर पड़ा। न सिर्फ जनता के बीच गलत संदेश गया, बल्कि प्रदेश के विकास कार्यों पर भी इसका प्रभाव पड़ा। कांग्रेस जहां गुटबाजी से जूझती रही, वहीं बीजेपी ने अंतर्कलह को कहीं बेहतर तरीके से हैंडल किया। सीएम फेस का ऐलान दोनों ही दलों ने नहीं किया, लेकिन कांग्रेस की ओर से सीएम अशोक गहलोत ही अघोषित सीएम फेस थे। वहीं, बीजेपी ने रणनीति के तहत बड़े नेताओं को चुनाव मैदान में उतार दिया। इन नेताओं ने अपनी साख बचाने के लिए उस सीट पर जोर लगाया और बीजेपी के लिए इसका सकारात्मक असर आसपास की सीटों पर भी पड़ा।
2. पीएम बनाम सीएम : गहलोत की सात गारंटियां हारीं, मोदी की गारंटी जीती
राजस्थान का चुनाव मोदी बनाम गहलोत हो जाना भी कांग्रेस को भारी पड़ा। गहलोत ने अकेले दम पर चुनाव लड़ने का जो खतरनाक फैसला लिया, वो कांग्रेस के लिए उल्टा दावं साबित हुआ। दूसरी और देश-दुनिया में बेहद लोकप्रिय पीएम मोदी के चेहरे ने कांग्रेस के जातिगत जनगणना, फ्री योजनाऔं के दांव की धार ही कुंद कर दी। पीएम मोदी ने राजस्थान में ताबड़तोड़ चुनावी रैलियां कीं वहीं कांग्रेस की ओर से प्रचार का भार सीएम गहलोत के कंधों पर अधिक नजर आया। चुनाव प्रचार के लिए राहुल गांधी मैदान में उतरे तो लेकिन वह भी महज खानापूर्ति ही लगा। चुनाव पूरी तरह से मोदी बनाम गहलोत हो गया और इसका लाभ भी बीजेपी को ही मिला।
3. निर्मम कन्हैयालाल हत्याकांड और महिलाओं के खिलाफ अपराधों ने कांग्रेस को रोका
गहलोत राज की विफलताओं को पीएम मोदी ने राजस्थान की जनता को बेहतर तरीके से रिकॉल कराया। इसमें महिलाओं के खिलाफ अपराध और रेप के मामले में राजस्थान को नंबर वन बनाने के अलावा उदयपुर के कन्हैयालाल हत्याकांड का मुद्दा, करौली, जोधपुर, अजमेर के दंगों का मुद्दा और लाल डायरी में कांग्रेस के काले कारनामों का मुद्दा खूब उठाया। बीजेपी की ये रणनीति भी असर लाती नजर आई। उदयपुर, मेवाड़ रीजन में आता है, राजस्थान की राजनीति में कहा जाता है कि जो मेवाड़ जीता, वह राजस्थान जीता। बीजेपी की जीत में कन्हैयालाल हत्याकांड के साथ ही बिगड़ी कानून-व्यवस्था के मुद्दे का भी अहम रोल माना जा रहा है।
4. फ्रीबी घोषणाओं और लुभावनी योजनाओं पर भारी पड़ा पेपर लीक और लाल डायरी का भ्रष्टाचार
गहलोत सरकार ने इस चुनावी साल में जनता को भरमाने के लिए एक के बाद एक कई लोक-लुभावन घोषणाएं कीं। उन्होंने फ्री योजनाओं से वोट हासिल करने की कोशिश की। अशोक गहलोत की सरकार ने चुनावी साल में एक के बाद एक चुनावी दांव चले। चिरंजीवी योजना के तहत हेल्थ इंश्योरेंस की लिमिट बढ़ाकर 50 लाख रुपये करने का वादा किया। सस्ते गैस सिलेंडर समेत कई लुभावनी योजनाओं पर पेपर लीक, लाल डायरी और भ्रष्टाचार के आरोप भारी पड़े।
5. कांग्रेस के खुद के सर्वे, फीडबैक, ग्राउंड रिपोर्ट सबको ताक पर रख मनमाने टिकट बांटे
कांग्रेस की हार के पीछे बागी भी बड़ी वजह माने जा रहे हैं। कांग्रेस में गुटबाजी के चलते टिकटों का वितरण मनमाने आधार पर हुआ। इसमें कांग्रेस के खुद कराए गए सर्वे, एजेंसी फीडबैक, ग्राउंड रिपोर्ट सबको ताक पर रख दिया गया। कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने के बाद कई नेताओं ने पार्टी से बगावत कर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा। कुछ बीजेपी और दूसरे दलों के टिकट पर भी मैदान में उतरे। इन बागियों ने भी कांग्रेस को खूब नुकसान पहुंचायाष इसके ठीक उलट बीजेपी ने एक-एक बागी को मनाने के लिए बड़े नेताओं को जिम्मेदारी दी और उनको मनाने की पूरी कोशिश की गई। इस कोशिश में कई बागी मान भी गए और बीजेपी को चुनाव में इसका लाभ मिला।