प्रधानमंत्री मोदी की सबसे बड़ी खासियत यह भी है कि वो जो कहते हैं, उसके करके दिखाते हैं। इसके एक नहीं, अनेक उदाहरण हैं। इसमें एक और बहुत बड़ा उदाहरण कुछ दिन पहले जुड़ गया है। पीएम मोदी ने लाल किले की प्राचीर से कहा था कि गुलामी की मानसिकता वाली निशानियों को खत्म करेंगे। एक जुलाई से देशभर में तीन नए आपराधिक कानून लागू हो जाएंगे। इसके साथ ही अंग्रेजों के जमाने के, गुलामी काल के नियम-कानून और पुरानी धाराएं भी बदल जाएंगी। मोदी सरकार ने अंग्रेजों के जमाने के कानून को भारतीय स्वरूप दिया है। अब देशभर में तीन नये आपराधिक कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनयम लागू हो गए हैं। देश के आपराधिक कानून में पहली बार इतने व्यापक परिवर्तन किए गए हैं। नये आपराधिक कानून की जानकारी पुलिस महकमे, सरकारी वकीलों तथा न्यायिक अधिकारियों को देने के लिए केंद्र सरकार ने बीते दिनों में काफी प्रयास किए हैं। नए कानूनों में ऐसे बहुत से प्रावधान हैं, जो पुलिस को पहले से ज्यादा ताकतवर बनाते हैं। मसलन पुलिस अब आरोपी को 90 दिन तक हिरासत में रख सकती है, पहले ये अवधि 15 दिन थी। लोकल पुलिस अधिकारी को भी अब ‘टेररिस्ट एक्ट’ लगाने का अधिकार होगा।गुलाम भारत में कुख्यात मैकाले ने तैयार किए थे आपराधिक कानून
पहले एक नजर कानूनों के इतिहास पर डालते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि गुलाम भारत में अंग्रेजी शिक्षा पद्धति थोपने के लिए लार्ड मैकाले कुख्यात था। लार्ड मैकाले का पूरा नाम थॉमस बेबिंगटन मैकाले था। वह भारत के पहले गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बेंटिक (1834-35) का समकालीन था। अंग्रेजी सरकार ने उसकी सेवाओं से प्रसन्न होकर बाद में उसे लार्ड की पदवी प्रदान की। पहले विधि आयोग का गठन 1835 में किया गया था। इसका अध्यक्ष मैकाले था। मैकाले भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और आपराधिक प्रक्रिया संहिता का प्रारूप बनाने वाली टीम का मुखिया था। 1858 में आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और 1860 में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) लागू की गईं। इन्हें ब्रिटेन की संसद ने पारित किया था। सीआरपीसी में समय-समय पर व्यापक परिवर्तन हुए थे, जबकि आईपीसी में ज्यादा तब्दीली नहीं की गई।
मोदी सरकार अंग्रेजों की गुलामी की मानसिकता के प्रतीकों को बदल रही
मोदी सरकार समय-समय पर कहती रही है कि वह अंग्रेजों की गुलामी की मानसिकता के प्रतीकों को बारी-बारी से देश को मुक्त करेगी। कई सार्वजनिक स्थलों, मार्गों और द्वीपों के नाम बदले भी गए हैं। मोदी सरकार ने गुलामी काल की परंपराओं को भी बदला है। इसी क्रम में अंग्रेजों के जमाने के कानूनों को बदलने की बात भी हुई, जिसकी परिणति पहली जुलाई 2024 को नए आपराधिक कानून के तौर पर भारतीय न्याय संहिता के रूप में हुई है। इंडियन ईवीडेंस एक्ट को भी अब भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तौर पर जाना जाएगा। आईपीसी की जगह आई भारतीय न्याय संहिता में 358 धाराएं होंगी। आईपीसी में 511 धाराएं थी। इस तरह से काफी धाराएं घटा दी गई हैं। जबकि सीआरपीसी की जगह लेने जा रही भारतीय न्याय संरक्षण संहिता में 531 धाराएं होंगी। सीआरपीसी में 484 धाराएं थीं। इस तरह से इसकी धाराओं की संख्या में कुछ वृद्धि हुई है। इसी तरह से ईवीडेंस एक्ट की जगह लेने वाले भारतीय साक्ष्य अधिनियम में 170 धाराएं होंगी। ईवीडेंस एक्ट में 167 धाराएं थीं। इस तरह से सबूत के कानून में 3 धाराएं बढ़ाई गई हैं।
अब हत्या की सजा धारा 101, ताजीरात-ए-हिंद की धारा 302 नहीं
भारतीय न्याय संहिता के रूप में आए आपराधिक कानून में हुए परिवर्तनों एक नजर दो उदाहरणों से डालते हैं। अक्सर फिल्मों के कोर्ट सीन में यह डॉयलाग देखते-सुनते रहे हैं- ताजीरात-ए-हिंद की धारा 302 के तहत दोषी पाए जाने पर मुजरिम को उम्रकैद या फांसी की सजा दी जाती है। आम जीवन में भी लोग कत्ल या हत्या को धारा 302 से जोड़ कर देखते हैं। नए आपराधिक कानून में अपराध की धाराओं की संख्या बदल दी गई है। अब हत्या की सजा धारा 101के तहत सुनाई जाएगी। अब धारा 302 में चेन स्नैचिंग य छीना-झपटी की सजा मिलेगी। इसी तरह दुष्कर्म के दंड धारा भी बदली गई है। पहले 376 को आम जन बलात्कार या रेप की धारा के तौर पर जानते थे, लेकिन अब बलात्कार की धाराएं 63, 64 और 70 (गैंगरेप) होंगी।
राजद्रोह नहीं अब देशद्रोह, ट्रांसजेंडर के प्रति अपराध भी नए कानून में जोड़े
नए कानून में राजद्रोह के अपराध को बदल दिया गया है। चूंकि देश में लोकतांत्रिक प्रणाली लागू है, लिहाजा देश विरुद्ध अपराध को देशद्रोह के तौर पर जाना जाएगा। एक तरह से देखें तो इस कानून को कठोर ही किया गया है। इसके अलावा देशद्रोह शब्द ज्यादा कठोर और अपमानजनक है। इन धाराओं पर जिसके खिलाफ मुकदमा चलेगा उसके खिलाफ समाज में नफरत भी बढ़ जाएगी। चेन स्नेचिंग, जेवर-गहनों की छीना-झपटी को अलग तरह से पारिभाषित कर नए कानून में जगह दी गई है। इसके अलवा ट्रांसजेडरों के प्रति होने वाले अपराध भी पारिभाषित किए गए हैं। उनमें पर्याप्त दंड की व्यवस्था की गई है।
आइए, अब जानते हैं कि नए कानूनों के ऐसे क्या प्रावधान किये हैं, जो पुलिस को अपराधियों और आतंकियों पर कार्रवाई करने के लिए पहले से ज्यादा ताकतवर बनाते हैं। नए क्रिमिनल कानूनों में 7 प्रमुख प्रावधान जोड़े गए हैं…
1.आतंकवाद और देशद्रोह के प्रावधान भारतीय न्याय संहिता में शामिल
मोदी सरकार पहले से ही आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपना रही है। अब भारतीय न्याय संहिता (BNS) में टेररिस्ट एक्ट को ‘मानव शरीर के खिलाफ अपराध’ नाम के चैप्टर 6 में सेक्शन 113 के तौर पर जोड़ा गया है। इसमें ‘भारत की एकता, अखंडता, संप्रभुता, सुरक्षा या आर्थिक सुरक्षा को खतरे में डालने वाले कृत्य’ शामिल किए गए हैं। साथ ही इसमें आतंकवाद को विस्तार से परिभाषित किया गया है। हालांकि, UAPA और टेररिस्ट एक्ट में केस दर्ज करने या न करने का निर्णय पुलिस अधीक्षक यानी SP स्तर के अधिकारी के पास रहेगा। इसके तहत, ‘जो व्यक्ति किसी भी तरीके से भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालता है या ऐसे किसी कृत्य में शामिल होता है या करता है, तो उसे उम्रकैद या सात साल की जेल और जुर्माना देना होगा।’ यानी नए कानूनों में ‘राजद्रोह’ तो हट गया, लेकिन सरकार ने इसमें ‘देशद्रोह’ शब्द को विस्तार से परिभाषित और दंड का प्रावधान किया है। यदि किसी को इस प्रावधान के आधार पर उम्रकैद की सजा मिलती है, तो उसे पैरोल भी नहीं मिलेगी। साथ ही सार्वजनिक या निजी संपत्तियों या सुविधाओं को नुकसान पहुंचाने को भी आतंकवाद के तौर पर परिभाषित किया गया है। इन दोनों ही धाराओं को विस्तार से परिभाषित और दंड का प्रावधान करने से पुलिस को ज्यादा शक्ति मिलेगी।
2. क्राइम के जरिए कमाई प्रॉपर्टी को पुलिस कुर्क कर सकेगी
नए कानूनों में प्रॉपर्टी को कुर्क करने यानी जब्त करने का अधिकार पुलिस को दे दिया गया है। BNS के सेक्शन 107 में इसका जिक्र किया गया है। इसके मुताबिक, ‘जांच के दौरान यदि पुलिस अधिकारी को लगता है कि कोई प्रॉपर्टी क्राइम के जरिए कमाई गई है तो वह पुलिस अधीक्षक (SP) या कमिश्नर से अनुमति लेकर ऐसी प्रॉपर्टी के लिए मजिस्ट्रेट को आवेदन दे सकता है। इस पर मजिस्ट्रेट 14 दिन का कारण बताओ नोटिस जारी कर सकते हैं। ऐसे व्यक्ति द्वारा नोटिस का जवाब नहीं दिए जाने पर या अदालत में पेश न होने पर प्रॉपर्टी की कुर्की का आदेश जारी किया जा सकता है।’ यानी पुलिस को लगता है कि कोई प्रॉपर्टी किसी भी प्रकार के क्राइम के जरिए बनाई या कमाई गई है तो उसकी कुर्की की जा सकती है। पुराने कानून यानी CRPC में ऐसा प्रावधान नहीं था।
3.पुलिस के निर्देश न मानने और अवमानना करने पर हो सकेगी गिरफ्तारी
भारतीय न्याय संहिता के सेक्शन 172 के तहत, ‘किसी मौके या क्षेत्र में पुलिस की ओर से दिए गए वैध निर्देशों का पालन करने के लिए सभी लोग बाध्य होंगे। किसी निर्देश का पालन करने से इनकार करने, अवमानना या प्रतिरोध करने वाले व्यक्ति को पुलिस हिरासत में ले सकती है या इलाके से हटा सकती है। ऐसे व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के समक्ष पुलिस पेश कर सकती है या छोटे मामलों में उसे 24 घंटे के भीतर रिहा कर सकती है।’ इसके पहले CRPC के सेक्शन 41 और 151 के तहत पुलिस बिना किसी वारंट के किसी भी व्यक्ति को हिरासत में ले सकती थी, लेकिन अब BNS के 172 के तहत पुलिस किसी भी व्यक्ति को अपने निर्देशों की अवहेलना के करने के लिए 24 घंटे तक हिरासत में रख सकती है। इसके लिए पुलिस उस व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने के लिए बाध्य नहीं है।
4.एफआईआर से पहले 14 दिन की प्राथमिक जांच कर सकती है पुलिस
भारतीय न्याय संहिता के चैप्टर 13 के सेक्शन 173 में प्रावधान है कि ‘पुलिस अधिकारी को किसी संगीन मामले की शिकायत मिलने पर एफआईआर लिखने से पहले अपने सीनियर ऑफिसर से अनुमति लेकर 14 दिन की प्राथमिक जांच करनी होगी।’ यानी पुलिस अधिकारी को 14 दिन का समय मिलेगा, जिसमें वो तय करेगा कि मामले में प्रथमदृष्टया केस बनता है या नहीं। इससे लोगों के खिलाफ अनावश्यक केस करने, प्रताड़ित करने के लिए झूठे मामने बनाने से लोगों को निजात मिल सकेगी। पहले कई बार ऐसा देखा गया है कि झूठा मामला बनाने के बाद कई सालों तक पीड़ितों को कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने पड़ते हैं, फिर जाकर वे बरी हो पाते थे।
5. पुलिस रिमांड की अवधि 15 से बढ़ाकर 90 दिन हुई
BNS में पुलिस रिमांड अवधि को 90 दिन तक कर दिया गया है। अब 90 दिन की रिमांड को एक साथ या अलग-अलग लिया जा सकता है। इसका मतलब है कि आरोपी को तीन महीने तक पुलिस कब्जे में रख सकती है। अगर 15 दिन पूरे होने से पहले बेल मिल गई तो पुलिस एक दिन पहले रिमांड के लिए आवेदन दे सकती है और बेल रद्द हो जाएगी। CRPC की धारा 167(2) के मुताबिक, किसी आरोपी को अधिकतम 15 दिन तक ही पुलिस रिमांड पर रख सकती थी। इसके बाद उसे न्यायिक हिरासत यानी जेल में भेजना अनिवार्य था। BNS के 187(3) में पुलिस हिरासत (रिमांड) के अलावा अन्य शब्दों को हटा दिया गया है। इससे पुलिस को BNS के हर अपराध के लिए आरोपी को तीन महीने तक रिमांड में रखने की अनुमति मिल गई है।
6. गिरफ्तारी के दौरान और कोर्ट में आरोपी को हथकड़ी लगेगी
नए कानूनों के तहत सेक्शन 35 से 62 तक गिरफ्तारी की प्रक्रिया और निर्देश दिए गए हैं। सेक्शन 43 के तहत बताया गया है कि ‘गिरफ्तारी कैसे की जाएगी?’ इस सेक्शन में एक नया प्रावधान किया गया है, जो CRPC में नहीं था। BNS के सेक्शन 43(3) के तहत ‘पुलिस अधिकारी अपराध की प्रकृति और गंभीरता को ध्यान में रखते हुए किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय या ऐसे व्यक्ति को अदालत में पेश करते समय हथकड़ी का इस्तेमाल कर सकता है।’ पहले नियम था कि आरोपी को हथकड़ी न लगवाने का अधिकार है, जब तक पुलिस अधिकारी उचित व पर्याप्त कारण न बता सके और अदालत स्वीकार करके अनुमति न दे।
7. पुलिस को सौंपने होंगे मोबाइल, लैपटॉप जैसे डिजिटल डिवाइस
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत जांच के दौरान पुलिस किसी भी आरोपी को उसके डिजिटल डिवाइस दिखाने और उन्हें सौंपने के लिए बाध्य कर सकती है। नए कानूनों में इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल डिवाइस यानी मोबाइल, स्मार्टफोन, लैपटॉप आदि को सबूत के तौर पर परिभाषित किया गया है। BNS के सेक्शन 94 के मुताबिक, ‘किसी मामले की जांच, पूछताछ या ट्रायल के दौरान अदालत या थाना प्रभारी किसी व्यक्ति से डॉक्यूमेंट्स, कम्युनिकेशन डिवाइस, इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस या डिजिटल डिवाइस पेश करने के लिए समन या आदेश जारी कर सकता है।’ भारतीय साक्ष्य अधिनियम (2023) में डिजिटल डिवाइस को विस्तार से परिभाषित किया गया है। साथ ही इसकी जब्ती और पेश करने को लेकर प्रावधान बनाए गए हैं। जबकि CrPC में इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल डिवाइस को पेश करने के लिए प्रावधान नहीं था।