पश्चिम बंगाल की रायगंज लोकसभा सीट पर 2019 से बीजेपी का दबदबा रहा है। 2019 में जीत दर्ज करने के बाद बीजेपी ने 2024 में भी यहां जीत का परचम लहराया है। 2021 में विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी के उम्मीदवार ने यहां जीत दर्ज की थी। लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद बंगाल में हुए 4 सीटों पर विधानसभा के उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने रायगंज सीट जीत ली है। लेकिन यह जीत लोकतांत्रिक और निष्पक्ष जीत नहीं कही जा सकती है। ममता बनर्जी को मालूम था उपचुनाव में रायगंज सीट तृणमूल कांग्रेस के लिए जीतना मुश्किल है, ऐसे में उन्होंने छल,कपट के जरिये इसे जीतने की रणनीति बनाई। ममता बनर्जी सरकार ने यहां उपचुनाव के दौरान लगभग सभी बूथों पर पीठासीन अधिकारियों की जो नियुक्ति करवाई वह सूची देखकर कोई भी दंग रह जाएगा। सूची देखने से पता चलता है सभी पीठासीन अधिकारी मुसलमान हैं। इसके बाद पीठासीन अधिकारियों ने अपना काम कर दिया जिससे यहां टीएमसी को जीत मिल सकी। बीजेपी के गढ़ रायगंज में टीएमसी उम्मीदवार को रिकॉर्ड अंतर से अपनी जीत के लिए इन मतदान अधिकारियों के योगदान को स्वीकार करना चाहिए। पीठासीन अधिकारियों की मदद के बिना यहां टीएमसी की जीत संभव नहीं थी। इससे तो ऐसा ही प्रतीत होता है कि बंगाल के हिंदू सोए हुए हैं और गजवा-ए-बंगाल हो चुका है।
रायगंज उपचुनाव TMC कैसे जीती? पीठासीन अधिकारियों की सूची देखिए
सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने रायगंज विधानसभा क्षेत्र से कृष्णा कल्याणी को चुनावी मैदान में उतारा था। वहीं भाजपा ने इस सीट से मानस कुमार घोष को टिकट दिया था। कृष्णा कल्याणी ने ये उपचुनाव 50077 वोटों से जीता है। उन्हें कुल 86479 वोट डले। वहीं बीजेपी उम्मीदवार के खाते में 36402 वोट आए। 2021 में यह सीट भाजपा की झोली में आया था और बीजेपी की तरफ कृष्णा कल्याणी उम्मीदवार थे, लेकिन जीत दर्ज करने के बाद उन्होंने पाला बदलकर टीएमसी ज्वाइन कर लिया था। कृष्णा कल्याणी लोकसभा चुनाव 2024 में रायगंज लोकसभा सीट से टीएमसी के उम्मीदवार थे लेकिन उन्हें बीजेपी के उम्मीदवार कार्तिक चंद्र पॉल से हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद कृष्णा कल्याणी ने रायगंज विधानसभा उपचुनाव में टीएमसी की तरफ से उम्मीदवार बने। लेकिन इस सीट पर जीत हासिल करने के लिए टीएमसी ने किस तरह का षडयंत्र किया है यह पीठासीन अधिकारियों की सूची देखने से पता चलता है। पीठासीन अधिकारियों की सूची नीचे देखा जा सकता है।
Following are the names of the WB Govt Employees who were assigned Polling duties for the Raiganj Assembly Bypoll.
Due to their “immaculate” understanding of the responsibilities assigned to them, so-called “Voters” were allowed to cast their votes without verification of EPIC… pic.twitter.com/Y9ic2ukH0p— Suvendu Adhikari (@SuvenduWB) July 16, 2024
मतदान आंकड़े में हेरफेर कर टीएमसी ने जीती आरामबाग लोकसभा सीट
आरामबाग लोकसभा सीट पर जीत का अंतर सिर्फ 6399 वोटों का है। साल 2009 से अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित पश्चिम बंगाल की आरामबाग लोकसभा सीट पर ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी की मिताली बाग को जीत मिली है। मिताली ने 6 हजार 399 वोटों से बीजेपी के अरुप कांति दिगर को हराया। मिताली बाग को 7 लाख 12 हजार 587 वोट मिले वहीं बीजेपी को 7 लाख 6 हजार 188 वोट मिले। टीएमसी और बीजेपी के आंकड़े में सिर्फ 6 हजार 399 वोटों का अंतर रहा। लेकिन यहां किस तरह मतगणना के आंकड़ों से छेड़छाड़ किया गया उसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है कि टीएमसी ने कैसे वोटों की चोरी की है। एआरओ (सहायक रिटर्निंग ऑफिसर) तालिका की सारणी शीट, जहां ईवीएम डेटा मुख्य रूप से गणना एजेंटों द्वारा नोट किया जाता है, हरिपाल विधानसभा के बूथ नंबर 236 में उम्मीदवारों द्वारा प्राप्त वोटों को इस प्रकार दिखाता है:
टीएमसी उम्मीदवार- 252
बीजेपी प्रत्याशी- 254
लेकिन अजीब बात है कि जब यह डेटा अपडेट के लिए कंप्यूटर कक्ष में जाता है और अंततः ईसीआई साइट पर पहुंच जाता है, तो हरिपाल विधानसभा के बूथ नंबर 236 में उम्मीदवारों द्वारा प्राप्त वोट इस प्रकार अपलोड किए गए थे:
टीएमसी उम्मीदवार- 552
बीजेपी प्रत्याशी- 254
ऐसे अन्य उदाहरण भी हैं। यदि प्रक्रिया निष्पक्ष होती तो भाजपा प्रत्याशी जीत जाता। विधानसभावार मतगणना कक्ष के एआरओ टेबल तक एक राजनीतिक दल का नियंत्रण होता है। यदि डेटा कमरे से बाहर जाने के बाद हेरफेर होता है तो उम्मीदवार क्या कर सकता है। ऐसा लगता है कि जिन कर्मियों को ऐसी जिम्मेदारियां सौंपी गई थीं, वे पूरी तरह से बिक गए थे। यानी यह साफ हो गया कि पश्चिम बंगाल में मतगणना समाप्त होने के बाद भी चुनाव परिणामों से छेड़छाड़ की जा सकती है।
The margin of victory in the Arambagh Lok Sabha Constituency is only 6399 votes.
This is an illustration how the election was stolen.
The tabulation sheet of the ARO (Assistant Returning Officer) Table, where the EVM Data is primarily noted by the Counting Agents, shows the… pic.twitter.com/vV90ZKihGK— Suvendu Adhikari (@SuvenduWB) July 1, 2024
लोकसभा चुनाव में 50 लाख हिंदुओं को वोट नहीं देने दिया गया
पश्चिम बंगाल के नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी ने कहा, ‘बंगाल में लोकतंत्र मर चुका है। हमने आज एक जन आंदोलन शुरू किया है। लोकसभा चुनाव में लगभग 50 लाख हिंदुओं को वोट नहीं देने दिया गया। राज्य में हुए 4 उपचुनावों में 2 लाख से अधिक हिंदुओं को वोट नहीं देने दिया गया। मैं एक पोर्टल लॉन्च कर रहा हूं। जिन्हें वोट देने की अनुमति नहीं दी गई, वे अपना पंजीकरण करा सकते हैं और पूरी गोपनीयता सुनिश्चित की जाएगी। मैं कानूनी लड़ाई भी शुरू करूंगा।’
मतदान के दौरान धांधली, भाजपा के बूथ एजेंटों को बाहर निकाल दिया
भाजपा ने पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले में डायमंड हार्बर लोकसभा सीट पर कई बूथों पर पुनर्मतदान की मांग की थी। भाजपा ने आरोप लगाया मतदान प्रक्रिया के दौरान गड़बड़ी की गई। 1 जून को पश्चिम बंगाल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) को लिखे पत्र में भाजपा नेता शिशिर बाजोरिया ने कहा कि भाजपा पार्टी के बूथ एजेंटों को बाहर निकाल दिया गया, सीसीटीवी कैमरे मतदान कक्ष के अलावा अन्य दिशाओं में लगे पाए गए और मतदाताओं को बूथों तक पहुंचने से रोका गया।
वोटरों को डराने के लिए चुनाव के दौरान हिंसा
चुनाव के दौरान हिंसा के मामले में पश्चिम बंगाल की स्थिति बदतर है। यहां सत्ताधारी दल वोटरों को डराने, धमकाने और अपने पक्ष में वोट डलवाने के लिए हिंसा का सहारा लेते रहते हैं। नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) ने 2018 की रिपोर्ट में कहा कि पूरे साल के दौरान देश में होने वाली 54 राजनीतिक हत्याओं के मामलों में से 12 बंगाल से जुड़े थे। वहीं 2024 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार को एडवाइजरी भेजी जिसमें कहा गया कि पश्चिम बंगाल में हुई राजनीतिक हिंसा में 96 लोग मारे गए साथ ही लगातार होने वाली हिंसा गंभीर चिंता का विषय है।