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दिल्ली में अब श्रमिकों के नाम पर घोटाला, 2 लाख पंजीकृत कामगार फर्जी मिले, इनके नाम पर सरकारी खजाने से निकले करोड़ों रुपये किसकी जेब में गए?

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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सरकार भ्रष्टाचार में इस कदर डूब चुकी है कि ऐसा कोई विभाग ही नहीं बचा है जहां भ्रष्टाचार नहीं हो। इनके भ्रष्टाचार की जड़ें कहां-कहां तक फैली है, यह पता करना भी आसान काम नहीं है। भ्रष्टाचार के नित नए खुलासे सामने आ रहे हैं और अब मजदूरों को मदद करने के नाम पर घोटाला सामने आया है। केजरीवाल की सरकार निर्माण श्रमिकों के नाम पर भी घोटाला कर लेगी यह किसी ने सोचा नहीं होगा। दिल्ली में प्रदूषण की वजह से हर साल कुछ महीनों के लिए निर्माण कार्य पर पाबंदी लग जाती है। दिल्ली सरकार ने 2021 में भी नवंबर माह में वायु प्रदूषण के कारण निर्माण गतिविधियों को बंद कर दिया था। इस कारण इन श्रमिकों की आजीविका में आई रुकावट के मद्देनजर दिल्ली सरकार ने हर पंजीकृत निर्माण श्रमिक को पांच-पांच हजार रुपये की आर्थिक मदद देने का एलान किया था। लेकिन निर्माण श्रमिकों को मदद पहुंचाने के नाम पर भी घोटाला कर लिया गया। दिल्ली बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स वेलफेयर बोर्ड (DBOCWWB) के कामकाज में कथित अनियमितताओं की शुरुआती जांच में पाया गया है कि इसके साथ रजिस्टर्ड करीब दो लाख निर्माण मजदूर फर्जी हैं। इस योजना के तहत एक मजदूर को 5000 रुपये दिए जाने थे। अगर फर्जी मजदूर 2 लाख हैं तो इस हिसाब से यह 100 करोड़ रुपये का घोटाला है। हालांकि कहा तो यह जा रहा है की फर्जी मजदूरों की संख्या 2 लाख से कहीं ज्यादा है। तो अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि इनके नाम पर सरकारी खजाने से निकले करोड़ों रुपये किसकी जेब में गए?

केजरीवाल सरकार में पिछले आठ सालों में क्लासरूम घोटाला, शराब घोटाला, विज्ञापन घोटाला, बस घोटाला, मार्शल घोटाला, मोहल्ला क्लीनिक घोटाला, सैनिक स्कूल घोटाला शिक्षक नियुक्ति घोटाला जैसे अनगिनत घोटाले सामने आ चुके हैं। केजरीवाल सरकार के भ्रष्टाचार की वजह से आज दिल्ली के लोग खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। ईमानदारी की कसम खाकर राजनीति में आई आम आदमी पार्टी आज लुटेरों का अड्डा बन चुकी है।

26 सितंबर को एलजी ने दिया था जांच का आदेश

दिल्ली बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स वेलफेयर बोर्ड (DBOCWWB) के कामकाज में कथित अनियमितताओं की शुरुआती जांच में पाया गया है कि इसके साथ रजिस्टर्ड करीब दो लाख निर्माण मजदूर फर्जी हैं। हालांकि सूत्रों का कहना है कि पंजीकृत फर्जी कामगारों की सही संख्या वास्तव में बहुत अधिक हो सकती है। सरकारी रिकार्ड के अनुसार, भवन और अन्य निर्माण गतिविधियों से जुड़े 13,13,309 श्रमिक बोर्ड के साथ पंजीकृत हैं। इनमें 9,07,739 श्रमिक 2018 और 2021 के बीच पंजीकृत किए गए हैं। उपराज्यपाल वीके सक्सेना द्वारा 26 सितंबर को काम करने वाले संगठनों निर्माण मजदूरों की राष्ट्रीय अभियान समिति, दिल्ली निर्माण मजदूर संगठन और सेवा दिल्ली संघ द्वारा भ्रष्टाचार की शिकायत के बाद जांच का आदेश दिया गया था। शिकायतकर्ताओं में दो व्यक्ति वह भी शामिल हैं जो बोर्ड के सदस्य हैं। हालांकि पूरी जांच रिपोर्ट मुख्य सचिव नरेश कुमार द्वारा अभी सौंपी जानी बाकी है।

3 साल के दौरान 1 लाख से अधिक श्रमिक फर्जी!

दिल्ली सरकार के श्रम विभाग द्वारा उपलब्ध कराए गए 2018 और 2021 के बीच पंजीकृत नौ लाख से अधिक श्रमिकों के रिकॉर्ड की प्रारंभिक जांच से पता चला है कि 1,11,516 फर्जी प्रविष्टियां हैं। 65,000 श्रमिकों के सामान्य मोबाइल नंबर एक ही है इसी तरह 15,747 के स्थानीय आवासीय पते और 4,370 प्रविष्टियां एक ही स्थायी पते के हैं जिससे ये प्रविष्टियां संदिग्ध हैं।

गैर निर्माण मजदूरों के नाम पर 900 करोड़ रुपये घोटाले की जांच

टाइम्स आफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, मजे की बात यह है कि सतर्कता और भ्रष्टाचार निरोधक शाखा निदेशालय इस मामले में 2018 में दर्ज एफआईआर के आधार पर फर्जी गैर निर्माण श्रमिकों की प्रविष्टि के मामले में 900 करोड़ रुपये के बंदरबांट की जांच कर रही है।

दिल्ली सरकार ने 17 साल में निर्माण श्रमिक सेस से जुटाए 3,273 करोड़ रुपए, खर्च किया सिर्फ 182 करोड़

न्यूजलॉन्ड्री की रिपोर्ट के अनुसार, भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार अधिनियम-1996 के तहत श्रमिकों के कल्याण की परिकल्पना की गई है। इस अधिनियम के जरिए राज्य में हर नए निर्माण पर एक प्रतिशत सेस लगाने का प्रावधान हुआ। इस सेस के जरिए डीबीओसीडब्ल्यू बोर्ड श्रमिकों के कल्याण के लिए काम करता है। साल 2002 से 2019 के बीच दिल्ली सरकार को इस सेस के जरिए 3,273.64 करोड़ मिले लेकिन श्रमिकों के ऊपर इस दौरान सिर्फ 182.88 करोड़ ही खर्च किए गए। यानी सेस के तौर पर जमा कुल राशि में से सिर्फ 5.59 प्रतिशत ही श्रमिकों के कल्याण पर खर्च हुआ। साल 2002 से 2013 के दौरान दिल्ली में कांग्रेसनीत शीला दीक्षित की सरकार थी. उस दौरान करीब 2,217 करोड़ रुपए जमा हुए थे जबकि 2016 से 19 के बीच यानी केजरीवाल सरकार के कार्यकाल में 1,056.55 करोड़ रुपए इस सेस के तहत जुटाए गए। अगर खर्च के नजरिए से देखें तो शीला दीक्षित के कार्यकाल में इस मद से सिर्फ 61.41 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। जबकि 2016 से 2019 के बीच यानी केजरीवाल सरकार के कार्यकाल में 121.47 करोड़ खर्च किए गए।

श्रमिकों को 5 हजार रुपए आर्थिक मदद का केजरीवाल ने किया ऐलान

पत्रिकाडॉटकॉम की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने वायु प्रदूषण की वजह से दिल्ली में निर्माण कार्यों पर प्रतिबंध के कारण श्रमिकों को आर्थिक संकट से उबारने के लिए मदद का ऐलान किया। सीएम केजरीवाल ने दिल्ली में निर्माण कार्यों में लगे पंजीकृत सभी श्रमिकों को पांच हजार रुपए की वन टाइम आर्थिक मदद देने का ऐलान किया है। सीएम के इस ऐलान से दिल्ली में पंजीकृत हजारों श्रमिक लाभान्वित होंगे।

2021 में 7 लाख से श्रमिकों को 5-5 हजार देने का दावा, शराब घोटाला के आरोपी सिसोदिया के पास है श्रम मंत्रालय

सीएम केजरीवाल ने कहा कि पूरी दिल्ली में प्रदूषण को देखते हुए निर्माण गतिविधियों को रोक दिया गया है। मैंने श्रम मंत्री मनीष सिसोदिया को इस अवधि के दौरान प्रत्येक निर्माण श्रमिक को वित्तीय सहायता के रूप में 5 हजार रुपए प्रतिमाह देने का निर्देश दिया है। जब निर्माण गतिविधियों की अनुमति नहीं है। दिल्ली सरकार के इस निर्णय से 10 लाख से ज्यादा निर्माण श्रमिकों को फायदा होगा और वित्तीय सहायता के तौर पर उन पर 500 करोड़ रुपए से अधिक खर्च किया जाएगा। वहीं, दिल्ली सरकार ने पिछले साल भी प्रदूषण के चलते निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध होने के दौरान पंजीकृत 7 लाख से अधिक श्रमिकों को 5-5 हजार रुपए की वन टाइम वित्तीय सहायता प्रदान की थी और इस पर करीब 350 करोड़ रुपए खर्च आया था।

प्रदूषण की वजह से निर्माण कार्य पर है रोक

30 अक्टूबर को दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण की समस्या को देखते हुए निर्माण एवं तोड़ फोड़ कार्यों पर रोक लगाने का आदेश दिया है। दिल्ली सरकार ने सीक्यूएएम के आदेश पर दिल्ली में ग्रेप के तीसरे चरण के अंतर्गत पाबंदियों को लागू करने का निर्णय लिया गया है। दिल्ली सरकार ने निर्माण कार्यों पर रोक की निगरानी के लिए 586 टीमें बनाई है। वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए दिल्ली में 521 वाटर स्प्रिंगलिंग मशीनें, 233 एंटी स्मॉग गन, 150 मोबाईल एंटी स्मॉग से गन पानी का छिड़काव किया जा रहा है।

शराब नीति में अनियमितता, राजकोष को 144 करोड़ का नुकसान

इससे पहले दिल्ली सरकार में शराब घोटाला सामने आ चुका है। आरोप है कि दिल्ली में राजकोष को नुकसान पहुंचाकर निविदाएं जारी की गईं और इसके बाद शराब कारोबार संबंधी लाइसेंस हासिल करने वालों को अनुचित वित्तीय लाभ पहुंचाया गया। आबकारी विभाग ने कोविड​​-19 वैश्विक महामारी के नाम पर लाइसेंसधारियों को निविदा लाइसेंस शुल्क पर 144.36 करोड़ रुपये की छूट दी। लाइसेंस के लिए सबसे कम बोली लगाने वाले को 30 करोड़ रुपये की बयाना राशि भी तब वापस कर दी गई, जब वह हवाई अड्डा अधिकारियों से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) प्राप्त करने में विफल रहा था। यह दिल्ली आबकारी अधिनियम 2010 के नियम 48(11)(बी) का घोर उल्लंघन था, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि बोलीदाता को लाइसेंस प्रदान करने के लिए सभी औपचारिकताओं को पूरा करना होगा, ऐसा न करने पर सरकार उसकी जमा राशि जब्त कर लेगी। विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के आधार पर तैयार की गई आबकारी नीति, 2021-22 को पिछले साल 17 नवंबर से लागू किया गया था और इसके तहत निजी बोलीदाताओं को शहरभर में 32 क्षेत्रों में 849 दुकानों के लिए खुदरा लाइसेंस जारी किए गए थे।

आम आदमी पार्टी के फाइनेंसर सत्येंद्र जैन जेल में

आम आदमी पार्टी के फाइनेंसर माने जाने वाले दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन जेल में हैं। लेकिन केजरीवाल ने उन्हें अभी तक मंत्री पद से नहीं हटाया है। ईडी ने सत्येंद्र जैन के करीबियों से आभूषण वगैरह बरामद किए थे। सत्येंद्र जैन पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने हवाला के पैसे का इस्तेमाल दिल्ली एनसीआर में जमीन खरीदने के लिए किया है। ईडी की टीम जैन की 4.81 करोड़ की संपत्ति जब्त कर चुकी है। ईडी ने उन्हें 30 मई को गिरफ्तार किया था। उनकी जमानत अर्जी खारिज हो चुकी है। ईडी ने जो चार्जशीट दाखिल की थी, उसके आधार पर दिल्ली की कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि सत्येंद्र जैन के खिलाफ हवाला मामले में मुकदमा चलाने के पर्याप्त सबूत हैं। इस मामले में उनकी पत्नी पूनम, उनके सहयोगी अजीत प्रसाद जैन, सुनील कुमार जैन, वैभव जैन और अंकुश जैन के नाम भी शामिल हैं। हालांकि अजीत जैन और सुनील जैन को जमानत मिल चुकी है। अब सत्येंद्र जैन बिना विभाग मंत्री हैं। उनके विभाग अन्य मंत्रियों के पास हैं लेकिन उनका मंत्री पद बरकरार है।

AAP के 43 विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले

दिल्ली विधानसभा 2020 में नवनिर्वाचित आम आदमी पार्टी के कुल 62 विधायकों की पड़ताल करेंगे केजरीवाल के भ्रष्टाचार मुक्त सरकार का दावा खोखला नजर आएगा। एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली विधानसभा में आम आदमी पार्टी के आधे से अधिक विधायक गंभीर किस्म के आपराधिक मामलों के आरोपी है। गंभीर अपराधों में वांछित ऐसे 31 आप विधायकों में से किसी पर हत्या के प्रयास का मामला दर्ज है, तो किसी पर दुष्कर्म का केस दर्ज है। आम आदमी पार्टी के चुने गए आधे से अधिक विधायकों का कच्चा चिट्ठा का खुलासा चुनावी हलफनामे में खुद विधायकों द्वारा दी गई जानकारी से हुआ है। गैर सरकारी संस्था एशोसियशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए चुने गए कुल 43 विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज है, जिनमें से 37 पर गंभीर किस्म के मुकदमे चल रहे हैं।

आम आदमी पार्टी में दागी विधायकों की संख्या बढ़ी

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सरकार सिर्फ अराजकता से ही नहीं, बल्कि आपराधियों से भी भरी हुई है। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि केजरीवाल समेत आम आदमी पार्टी के 57 विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें से आधे से अधिक विधायकों के खिलाफ हत्या, लूट, डकैती, रेप जैसे संगीन अपराधों के तहत केस दर्ज हैं और ये जेल भी जा चुके हैं। पार्टी के कई विधायकों पर संगीन आरोप लग चुके हैं और कई तो जेल की हवा भी खा चुके हैं। समय के साथ केजरीवाल के साथी असीम अहमद, राखी बिड़लान, अमानतुल्ला, दिनेश मोहनिया, अलका लांबा, अखिलेश त्रिपाठी, संजीव झा, शरद चौहान, नरेश यादव, करतार सिंह तंवर, महेन्द्र यादव, सुरिंदर सिंह, जगदीप सिंह, नरेश बल्यान, प्रकाश जरावल, सहीराम पहलवान, फतेह सिंह, ऋतुराज गोविंद, जरनैल सिंह, दुर्गेश पाठक, धर्मेन्द्र कोली और रमन स्वामी जैसे आप विधायक और नेताओं पर आरोपों की लिस्ट लंबी होती गई है। जाने-माने आरटीआई एक्टिविस्ट डॉ. डी सी प्रजापति ने दिल्ली पुलिस से सूचना के अधिकार के तहत आम आदमी पार्टी के विधायकों पर दर्ज आपराधिक मामलों की जानकारी मांगी। उन्हें दिल्ली पुलिस की तरफ से जो जानकारी दी गई है, उससे साफ पता चलता है कि आम आदमी पार्टी सिर्फ अपराधियों की पार्टी बनकर रह गई है।

आइए देखते हैं केजरीवाल सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप-

1. केजरीवाल और उनके रिश्तेदार पर घोटाले के आरोप

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के रिश्तेदार विनय बंसल को मई 2018 में तीस हजारी कोर्ट ने 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। एंटी करप्‍शन ब्‍यूरो (एसीबी) ने पीडब्ल्यूडी घोटाले में विनय बंसल को गिरफ्तार किया था। कोर्ट ने बंसल की जमानत याचिका भी खारिज कर दी थी। आरोप है कि सुरेंद्र बंसल ने अनुमानित लागत 4 लाख 90 हजार से 46 फीसदी नीचे पर पीडब्ल्यूडी का टेंडर हासिल किया था। उनके द्वारा कराए गए रोड और सीवर के काम की क्वालिटी भी ठीक नहीं होने की बात कही गई थी। इस जांच में महादेव कंपनी से सीमेंट और लोहा खरीदने का पता लगा, लेकिन इस कंपनी से कोई कारोबार हुआ ही नहीं था। विनय बंसल अपने पिता सुरेंद्र बंसल के साथ 50 फीसदी के पार्टनर थे। इनसे पूछा गया कि महादेव कौन सी कंपनी थी। इसका उसने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया। इसके बाद एसीबी ने उसे गिरफ्तार कर लिया। इस मामले में सुरेंद्र, विनय बंसल और PWD के कई अधिकारियों के खिलाफ तीन मामले दर्ज किए गए थे।

2. मुख्यमंत्री के मुख्य सचिव ही भ्रष्टाचार में लिप्त

केजरीवाल के मुख्य सचिव राजेन्द्र कुमार भी भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं। केजरीवाल जो भ्रष्टाचार को तनिक भी बर्दाश्त न करने की कसमें खाते हैं, उन्हीं को ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल ने मई 2015 में पत्र लिखकर राजेन्द्र कुमार के भ्रष्टाचार के बारे में बताया था। राजेन्द्र कुमार ने 2007-2015 के बीच अपने रिश्तेदारों की कम्पनी को दिल्ली सरकार में काम करने का ठेका दिया और उसके बदले में धन भी लिया। इस तरह से दिल्ली सरकार को 12 करोड़ का चूना लगाया और खुद अपने लिए तीन करोड़ रुपये भी कमा लिए। ऐसे थे भ्रष्टाचार विरोधी मुख्यमंत्री केजरीवाल के सचिव, जिन्हें 4 जुलाई 2016 को कार्यलय से गिरफ्तार किया गया और 22 दिनों बाद सीबीआई अदालत ने उन्हें जमानत दी।

3. ‘टॉक टू ए के’ घोटाला

सीबीआई उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के खिलाफ ‘टॉक टू ए के’ घोटाला में भी भ्रष्टाचार के मामले दर्ज कर जांच कर रही है। उन्होंने केजरीवाल के टॉक टू एके कार्यक्रम के प्रचार के लिए 1.5 करोड़ रुपये में एक पब्लिक रिलेशन कंपनी को काम सौंप दिया। जबकि मुख्य सचिव ने इसके लिए इजाजत नहीं देने को कहा था लेकिन सरकार ने बात नहीं मानी। लगता है सिसोदिया ने फायदा पहुंचाने के लिए ऐसा किया।

4.सत्येंद्र जैन का हवाला लिंक

सत्येंद्र जैन के खिलाफ आयकर विभाग की जांच में चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। ईमानदारी का सर्टिफिकेट बांटने वाले केजरीवाल के मजबूत स्तंभ सत्येंद्र जैन पर हवाला के जरिए 16.39 करोड़ रुपए मंगाने का आरोप है। ये वो जानकारी है जिसे आयकर विभाग ने ट्रेस किया है। सूत्र बताते हैं कि सत्येंद्र जैन के करीबी कोड वर्ड के साथ नकद में रुपए ट्रेन के माध्यम से कोलकाता भेजते थे और कोलकाता के हवाला कारोबारी छद्म कंपनियों के नाम से जैन की कंपनी में शेयर खरीदने के बहाने पैसे चेक या आरटीजीएस के माध्यम से लौटाते थे।

5.स्वास्थ्य मंत्री ने पुत्री को बनाया सरकार में सलाहकार

सीबीआई स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन की पुत्री सौम्या जैन को मोहल्ला क्लीनिक परियोजना में सलाहकार बनाये जाने की जांच कर रही है। उपराज्यपाल के आदेश के बाद यह जांच हो रही है। मंत्री सत्येन्द्र जैन का कहना है कि उनकी पुत्री एक रुपया लिए बगैर काम कर रही है।

6.खाद्य मंत्री असीम खान ने खाया रुपया

केजरीवाल के खाद्य मंत्री असीम अहमद खान ने अपने विधानसभा क्षेत्र मटियामहल में एक बिल्डर से निर्माण कार्य जारी रखने के लिए 6 लाख रुपयों की मांग की थी, जिसकी रिकार्डिंग करके बिल्डर ने सभी जगह भेज दी। इसके दबाव में केजरीवाल को अपने मंत्री को बर्खास्त करना पड़ा।

7. महिला व बाल विकास मंत्री का भ्रष्टाचार

केजरीवाल के सामाजिक कल्याण, महिला व बाल विकास मंत्री संदीप कुमार ने राशन कार्ड बनवाने के लिए एक महिला के साथ जबरदस्ती संबंध बनाये। इन संबंधों की सीडी सार्वजनिक होने पर केजरीवाल को इन्हें भी मंत्रालय से बर्खास्त करना पड़ा।

8. पूर्व कानून मंत्री पर फर्जी डिग्री बनाने का मामला

दिल्ली के पूर्व कानून मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर ने दावा किया था कि उन्होंने सत्र 1994-97 के दौरान मुंगेर (बिहार) के विश्वनाथ सिंह लॉ कॉलेज से पढ़ाई की थी। मामला पकड़ में आने के बाद पता चला कि तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के कर्मचारियों की मिलीभगत से फर्जी रजिस्ट्रेशन कराकर तोमर को कानून की डिग्री जारी कर दी गई थी। डिग्री लेते समय माइग्रेशन सर्टिफिकेट और अंकपत्र जमा करने पड़ते हैं। लेकिन तोमर द्वारा जमा किए गए दोनों सर्टिफिकेट अलग-अलग विश्वविद्यालयों के हैं। अवध विश्वविद्यालय, फैजाबाद का अंकपत्र और बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झांसी का माइग्रेशन सर्टिफिकेट जमा किया गया। दोनों विश्वविद्यालयों ने इन प्रमाणपत्रों की वैधता को खारिज कर दिया है।

9. बायो डी कंपोजर मामले में प्रचार पर ज्यादा खर्च

दिल्ली में एक RTI से चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। इसके मुताबिक केजरीवाल सरकार ने बायो डी कंपोजर के छिड़काव पर 68 लाख रुपये खर्च किए जबकि उसके प्रचार पर 23 करोड़ रुपये खर्च कर डाले। दिल्ली में इस योजना से अब तक 955 किसानों को फायदा पहुंचा है। RTI से इसका खुलासा हुआ है।

9. शिक्षा लोन से ज्यादा विज्ञापन पर खर्च

दिल्ली सरकार ने 2015 में “दिल्ली उच्च शिक्षा और कौशल विकास गारंटी योजना” शुरू की थी। इस योजना का मकसद, दिल्ली से 10वीं या 12वीं करने वाले छात्रों को कॉलेज में पढ़ाई करने हेतु 10 लाख रुपए तक के लोन की सुविधा उपलब्ध कराना है। वित्त वर्ष 2021-22 में इस योजना का लाभ पाने के लिए 89 छात्रों ने आवेदन किया, जिसमें से केवल दो छात्रों को ही लोन मिला। योजना के तहत 10 लाख तक लोन मिलता है, ऐसे में अगर मान लिया जाए कि इन छात्रों को अधिकतम 20 लाख तक का लोन मिला होगा, तब भी दिल्ली सरकार के द्वारा किया विज्ञापन का खर्च योजना से कई गुना अधिक है। दिल्ली सरकार ने इस साल इस योजना के विज्ञापन पर 19 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। यह जानकारी न्यूज़लॉन्ड्री ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के जरिए हासिल की।

10. विज्ञापन घोटाला

केजरीवाल पर विज्ञापनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के उल्लंघन का भी आरोप है। इसके लिए उनकी पार्टी से 97 करोड़ रुपये वसूले भी जाने हैं। जांच में पाया गया है कि सरकारी विज्ञापनों के माध्यम से केजरीवाल ने अपनी और अपनी पार्टी का चेहरा चमकाने की कोशिश की है। इनमें से उनकी पार्टी की ओर से दिए गए कई झूठे और बेबुनियाद विज्ञापन भी शामिल हैं। सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार भी केजरीवाल सरकार पर दूसरे राज्यों में अपने दल का प्रचार करने के लिए दिल्ली की जनता के खजाने पर डाका डालने का आरोप है। पहले साल के काम-काज पर तैयार रिपोर्ट कहती है कि पहले ही साल में केजरीवाल सरकार ने 29 करोड़ रुपये दूसरे राज्यों में अपने दल के विज्ञापन पर खर्च किए। 2015-16 में केजरीवाल ने जनता के 522 करोड़ रुपये विज्ञापन पर खर्च कर किए थे।

11. स्ट्रीट लाइट घोटाला

आप नेता राखी बिड़लान पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे। आरटीआई के हवाले से दावा करते हुए बीजेपी ने आरोप लगाया कि मंगोलपुरी में 15 हजार की सोलर स्ट्रीट लाइट को एक लाख रुपये और 10 हजार में लगने वाली सीसीटीवी कैमरे पर 6 लाख रुपये खर्च किए गए।

12. सीएनजी घोटाला

केजरीवाल सरकार में मंत्री रह चुके कपिल मिश्रा ने दिल्ली सरकार के एक और बड़े घोटाले का पर्दाफाश किया। अंग्रेजी समाचार पोर्टल टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार कपिल मिश्रा ने आरोप लगाया कि केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में 10,000 कारों में जो सीएनजी किट लगावाए हैं, वो फर्जी कंपनी ने तैयार किए हैं। ये सारे सीएनजी किट 10 महीनों के भीतर कारों में फिट किए गए थे। सबसे बड़ी बात ये है कि फर्जी सीएनजी किट कंपनी को इसका ठेका ऑड-इवन के फौरन बाद दिया गया था। जाहिर है कि इसके समय को लेकर भी दिल्ली सरकार की मंशा संदेहों से परे नहीं है।

13. बीआरटी कॉरीडोर तोड़ने में घोटाला

केजरीवाल सरकार पर दिल्ली में बीआरटी कॉरीडोर को तोड़ने के लिए दिए गए ठेके में भी धांधली का आरोप लग चुका है। आरोपों के अनुसार इस मामले में दिल्ली सरकार ने ठेकेदार को तय रकम के अलावा कंक्रीट और लोहे का मलबा भी दे दिया, जिसकी कीमत करोड़ों रुपये में थी। इस मामले में 2017 में एसीबी छापेमारी करके कुछ दस्तावेज भी जब्त कर चुकी है।

14. संसदीय सचिव घोटाला ?

13 मार्च, 2015 को आप सरकार ने 21 विधायकों को संसदीय सचिव बना दिया। ये जानते हुए भी कि यह लाभ का पद है, उन्होंने ये कदम उठाया। दरअसल उनकी मंशा अपने सभी साथियों को प्रसन्न रखना था। उनका इरादा अपने विधायकों को लालबत्ती वाली गाड़ी, ऑफिस और अन्य सरकारी सुविधाओं से लैस करना था, ताकि उनके ये भ्रष्ट साथी ऐश कर सकें। लेकिन कोर्ट में चुनौती मिली तो इनकी हेकड़ी गुम हो गई। हालांकि केजरीवाल सरकार ने ऐसा कानून भी बनाने की कोशिश कि जिससे संसदीय सचिव का पद संवैधानिक हो जाए। लेकिन हाई कोर्ट के आदेश से मजबूर होकर ये फैसला निरस्त करना पड़ा।

15. चीनी की खरीद में घोटाला

केजरीवाल सरकार पर प्याज के बाद 2015 में चीनी की खरीद में घोटाला करने का आरोप भी लगा। चीनी खरीद में घोटाले की शिकायत एक आरटीआई कार्यकर्ता ने एंटी करप्शन ब्यूरो से की। आरोप लगाया गया कि दिल्ली सरकार ने कुछ कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए बाजार में सस्ती दरों पर चीनी उपलब्ध होने के बाद भी महंगी दरों पर भुगतान किया। इसमें सिर्फ संबंधित विभाग का अधिकारी व मंत्री ही नहीं मुख्यमंत्री कार्यालय भी शामिल रहे। शिकायत में कहा गया है कि दिल्ली सरकार ने आपात स्थिति के लिए एक करोड़ किलो से ज्यादा चीनी 34 रुपए किलो के हिसाब से दो निजी कंपनियों से खरीदी जबकि उस समय आम बाजार में चीनी का थोक रेट 30 रुपए किलो था।

16. केजरीवाल सरकार में हो चुका है प्याज घोटाला

आरटीआई के माध्यम से हुए खुलासे में पता लगा कि केजरीवाल सरकार ने 2015 में प्याज की बढ़ती कीमतों के चलते जो 40 रुपए किलो प्याज बेचे थे उनकी खरीद कीमत महज 18 रुपए प्रति किलो थी। आरटीआई के माध्यम से यह बात सामने आई कि दिल्ली सरकार ने 2637 टन प्याज 18 रुपये प्रति किलो की कीमत पर नासिक की स्माल फार्मर एग्री-बिजनेस कोन्सोट्रीयम से खरीदा था। सरकार ने 14-20 रुपये की कीमत पर प्याज खरीदा जिसकी औसत कीमत 18 रुपये प्रति किलो होती है। वहीं बाजार में इसे 40 रुपए में 10 रुपये की सब्सिडी के साथ बेचा गया।

17. दवा घोटाला

केजरीवाल सरकार ने अपनी मोहल्ला क्लीनिक का खूब ढिंढोरा पीटा। वो दावा करते रहे हैं कि गरीब जनता के स्वास्थ्य के ख्याल से उठाया गया ये कदम बहुत फायदेमंद साबित होगा। लेकिन अब पता चल रहा है कि केजरीवाल और उनके गैंग के लोग भले ही इसका फायदा उठा रहे हों, उनकी गंदी नीयत के चलते अब गरीबों की जान पर बन आई है। इसका खुलासा तब हुआ जब 1 जून, 2017 को एसीबी ने दवा प्रोक्योरमेंट एजेंसी के ताहिरपुर, जनकपुरी और रघुवीर नगर स्थित सेंटर के गोदामों पर छापा मारा। एसीबी को यहां से भारी मात्र में एक्सपाइरी मेडिसिन के साथ दवाओं की खरीद-फरोख्त के बिल भी मिले। ये दवा घोटाला करीब 300 करोड़ रुपये का बताया गया। यहां गौर करने वाली बात ये है कि सीएम ने अपने खासम-खास और कई घोटालों के आरोपी स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन के दबाव में दवाई खरीदने का काम मेडिकल सुपरिन्टेंडेन्ट से छीनकर, सेन्ट्रल प्रोक्योरमेंट एजेंसी को दे दिया था। यानी लूट के लिए ऊपर से नीचे तक पूरी तैयारी की गई थी।

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