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देशभर के साधु-संतों के आक्रामक तेवर: मंदिरों और मठों की मुक्ति के लिए आंदोलन, शस्त्र भी उठाने को तैयार साधु-संत

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देश में नए आंदोलन का आगाज, मंदिरों और मठों की मुक्ति के लिए शस्त्र भी उठाने को तैयार साधु-संत। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक देश के अलग-अलग हिस्सों से साधु संत दिल्ली के कालकाजी मंदिर में जमा हुए और एक नए आंदोलन का ऐलान कर दिया। साधु संतों का कहना है कि मठ-मंदिरों को सरकार के कब्जे से मुक्त करने का कानून बन सके, इसके लिए साधु-संत देश भर में आंदोलन करेंगे। साधुं-संतों का कहना है कि वे पहले केंद्र और राज्य सरकारों को शांति से मनाएंगे, लेकिन अगर उनकी बातें नहीं सुनी गई तो उग्र आंदोलन भी किया जाएगा, सड़कों पर डेरा भी लगाया जाएगा, दिल्ली का घेराव भी होगा।

मंदिरों और मठों की मुक्ति के लिए आंदोलन

मंदिरों और मठों की मुक्ति की मुक्ति के लिए आंदोलन पर उतारू साधु-संतों का कहना है कि वे अपनी मांगों को लेकर बड़े आंदोलन की तैयारी में है, दक्षिण भारत से लेकर उत्तर भारत तक संतों का आंदोलन होगा। ह0लांकि दक्षिण भारत में संतों का आंदोलन पहले से जारी है ऐसे में उत्तर भारत में इस आंदोलन का पहली बार बड़ा असर दिखाई दे सकता है। दिल्ली में साधु-संतों ने साफ संदेश दे दिया है, अब आस्था के साथ कोई समझौता नहीं होगा। धर्म और आस्था से जुड़े इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं, महंत सुरेंद्र नाथ अवधूत। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक आंदोलन के आगाज के लिए आयोजित इस कार्यक्रम का आयोजन अखिल भारतीय संत समिति ने किया, समिति के अध्यक्ष महंत सुरेंद्र नाथ अवधूत हैं। सुरेंद्र नाथ एक और वैश्विक हिंदू संस्था ‘विश्व हिंदू महासंघ’ के राष्ट्रीय अंतरिम अध्यक्ष भी हैं। हलांकि इस कार्यक्रम के आयोजन में महासंघ के बैनर का इस्तेमाल नहीं हुआ। बैठक में अपनी मांगो को लेकर साधु संतों के अक्रामक तेवर भी दिखाई दिए, साधु-संतों का कहना है कि कोशिश केंद्र और राज्य सरकारों को शांति से मनाने की होगी लेकिन अगर बात नहीं बनी तो तो वे ‘शस्त्र’ भी उठाएंगे।

‘बात नहीं बनी तो ‘शस्त्र’ भी उठाएंगे’

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक आंदोलन के बारे में बातचीत करते हुए एक संत ने कहा, ‘जब आस्तिक सरकार सत्ता में आई तो राम मंदिर बना, लेकिन हमारा आंदोलन राम मंदिर जितना लंबा नहीं जाएगा, क्योंकि अब सत्ता ‘नास्तिकों के हाथ में नहीं है’। संतों की कोशिश जल्द से जल्द इस आंदोलन को धार देने की है ताकि मठ-मंदिरों को सरकारों के कब्जे से मुक्त करने का कानून बन सके। इस मौके पर भारतीय अखाड़ा परिषद के भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री राजेंद्र दास भी मौजूद थे, जिन्होंने कहा कि वे इस आंदोलन से तन-मन-धन के साथ जुड़े हैं। दरअसल तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और केरल जैसे राज्यों में मंदिरों पर राज्य सरकारों के नियंत्रण की वजह से कई सारी समस्याएं सामने आ रही हैं। यही वजह है कि देश भर से मठ-मंदिरों को सरकारी नियंत्रण का विरोध हो रहा है। इस कार्यक्रम में शामिल साधु-संतों का कहना था कि दुनिया भर के देशों में धार्मिक स्थलों को सरकारों से मदद मिलती है, लेकिन भारत में आस्था के इन स्थलों पर राज्य सरकारों की नजर रहती है। कार्यक्रम में मौजूद साधु-संतों ने हिंदू समाज को जगाने के लिए जय श्रीराम के नारों के साथ मठ-मंदिर मुक्त होने तक आंदोलनरत रहने का संकल्प दिलाया।

मठ-मंदिर मुक्त होने तक जारी रहेगा आंदोलन

कार्यक्रम के आयोजनकर्ता सुरेंद्र नाथ अवधूत ने कहा कि संतों की मांगों को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों को चिट्ठी लिखी जाएगी , अगर उनती मांगें पूरी हो गई तो ठीक नहीं तो देश भर में आंदोलन तेज किया जाएगा। दरअसल देश भर में मठ मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण का मु्ददा केंद्र से ज्यादा राज्य सरकारों का है । ये हिंदू रिलीजियस एंड चैरिटेबल एनडाउमेंट एक्ट से जुड़ा है। देश भर में कई राज्यों के अपने कानून हैं। 

  • तमिलनाडु में मंदिरों पर नियंत्रण के लिए अलग कानून 
  • तमिलनाडु हिंदू रिलीजियस एंड चैरिटेबल एनडाउमेंटएक्ट-1959
  • केरल में 5 देवास्थानम बोर्डों के तहत हिंदू मंदिरों की व्यवस्था है।
  • आंध्र प्रदेश में भी मंदिरों पर नियंत्रण का कानून   
  • चैरिटेबल एंड हिंदू रिलीजियस इंस्टीट्यूशन एंड एनडाउमेंट एक्ट
  • कर्नाटक और तेलंगाना में भी इस तरह के एक्ट हैं।

दक्षिण भारत में मंदिरों पर सरकारों के रवैये को लेकर लगातार आंदोलन जारी है। लेकिन अब इसी तर्ज पर उत्तर भारत में मंदिरों और मठों को सरकारों के नियंत्रण से मुक्त करने के लिए साधु संतों ने आंदोलन का बिगुल फूंक दिया है। साधु-संतों का कहना है कि देश में जिस तरह चर्च, मस्जिदों, गुरुद्वारों सरकारी कब्जे से मुक्त हैं, वैसे ही मंदिरों को भी सरकारी कब्जे से मुक्त होना चाहिए। इस आंदोलन में सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित किया गया कि बहुसंख्यकों की आस्था के केंद्र मंदिर और मठों के साथ यह अन्याय राजनीति का नतीजा है। 

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