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कोविड ने दुनिया में बढ़ाई बदहाली, मोदी सरकार तेजी से घटा रही गरीबी, 21 से 8.5 प्रतिशत पर पहुंची

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कोरोना महामारी ने दुनियाभर में गरीबी बढ़ा दी थी। इसके बाद वैश्विक स्तर पर युद्ध एवं संघर्ष की स्थिति ने महंगाई तो बढ़ाई ही गरीबों को और गरीबी में झोंक दिया। लेकिन इन वैश्विक चुनौतियों के बीच मोदी सरकार देश में गरीबी को 21.2 प्रतिशत से 8.5 प्रतिशत पर ले आई। यही वजह है कि पिछले 10 साल में 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं। आर्थिक मामलों के थिंक टैंक एनसीएईआर के एक शोध पत्र के अनुसार महामारी से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद भारत में गरीबी 2011-12 के 21.2 प्रतिशत से घटकर 2022-24 में 8.5 प्रतिशत पर पहुंच गई है।

गरीबी दो अंकों से घटकर 21 से 8.5 प्रतिशत हुई
एनसीएईआर (नेशनल काउंसिल ऑफ अप्लायड इकोनॉमिक रिसर्च) के सोनाल्दे देसाई की ओर से लिखे गए पेपर ‘रिथिंकिंग सोशल सेफ्टी नेट्स इन ए चेंजिंग सोसाइटी’ में भारत मानव विकास सर्वेक्षण (आईएचडीएस) के वेव 3 के डेटा के साथ-साथ आईएचडीएस के वेव्स 1 और वेव्स 2 के डेटा का उपयोग किया गया है। आईएचडीएस के निष्कर्षों के अनुसार महामारी से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद 2011-12 और 2022-24 के बीच करीब 10 सालों में गरीबी में करीब 12 प्रतिशत की गिरावट आई है और यह 21.2 प्रतिशत से गिरकर 8.5 प्रतिशत हो गई। इसका मतलब हुआ कि बीते 10-12 सालों में भारत में गरीबी तेजी से कम हुई है। यह ऐसे समय हुआ है, जब भारत दुनिया की सबसे तेज गति से तरक्की करने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बन चुका है और इकोनॉमी का साइज 4 ट्रिलियन डॉलर के स्तर के करीब है।

आर्थिक तरक्की ने बनाया गतिशील माहौल
एनसीएईआर का कहना है कि आर्थिक मोर्चे पर तरक्की और गरीबी में कमी आने से एक गतिशील माहौल तैयार हुआ है, जिसके कारण नए सिरे से सामाजिक सुरक्षा के कार्यक्रमों की जरूरत पैदा हुई है। सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम तैयार करने की पारंपरिक रणनीति में क्रोनिक पोवर्टी को दूर करने पर ध्यान दिया जाता है। बदले हालात में पारंपरिक रणनीति कम प्रभावी हो सकती है।

बदल गए गरीबी पर असर डालने वाले फैक्टर
रिसर्च पेपर में तर्क दिया गया है कि जब आर्थिक तरक्की तेज होती है और अवसर बढ़ रहे होते हैं, तो गरीबी बढ़ाने वाले लंबे कारक कम हो सकते हैं, जबकि प्राकृतिक आपदा, बीमारी या मौत, काम से जुड़े विशेष मौके आदि गरीबी के लिहाज से अधिक संवेदनशील फैक्टर बन जाते हैं। कहने का मतलब है कि बदले हालात में जन्म के चलते गरीब होने वालों की संख्या कम हो सकती है, क्योंकि पहले से गरीब की श्रेणी में आने वाले परिवार उसके दायरे से बाहर निकल चुके होते हैं। इस बदले हालात में लोग पैदा होने के बाद यानी जीवन के दौरान होने वाली घटनाओं के चलते फिर से गरीबी की खाई में गिर सकते हैं। ऐसे में सामाजिक सुरक्षा के कार्यक्रमों को इन नई चुनौतियों के हिसाब से तैयार करना चाहिए।

दुनियाभर में कोविड के कारण 7.1 करोड़ लोगों को गरीबी ने घेराः वर्ल्ड बैंक
विश्व बैंक ने 2022 में एक रिपोर्ट में कहा कि कोविड-19 महामारी ने विश्व स्तर पर गरीबों की संख्या में गिरावट की स्थिति को उलटकर रख दिया है। विश्व बैंक की ‘पॉवर्टी एंड शेयर्ड प्रॉस्पैरिटी 2022’ रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक अत्यधिक गरीबी (यानी 2.15 डॉलर या 177 रुपये प्रतिदिन से कम पर जीवनयापन करने वाले लोगों की संख्या) 2019 में 8.4 प्रतिशत से बढ़कर 2020 में अनुमानत: 9.3 प्रतिशत हो गई। दूसरे शब्दों में कहें तो दुनियाभर में गरीबों की संख्या 7.1 करोड़ बढ़ी।

भारत में गरीबी घटकर 5 प्रतिशत 
इस साल की शुरुआत में नीति आयोग के सीईओ बी वी आर सुब्रमण्यम ने कहा था कि नवीनतम उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण से संकेत मिलता है कि देश में गरीबी घटकर पांच प्रतिशत रह गई है और ग्रामीण तथा शहरी दोनों क्षेत्रों में लोग समृद्ध हो रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘अगर हम गरीबी रेखा को देखें और इसे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के साथ बढ़ाकर आज की दर पर लाएं तो हम पाएंगे कि सबसे कम आंशिक, 0-5 फीसदी की औसत खपत लगभग समान है। इसका मतलब है कि देश में गरीबी केवल 0-5 प्रतिशत के समूह में है।

प्रति व्यक्ति मासिक घरेलू व्यय दोगुने से अधिक हुआ
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) ने फरवरी 2024 में वर्ष 2022-23 के लिए घरेलू उपभोग व्यय के आंकड़े जारी करते हुए कहा था कि 2011-12 की तुलना में 2022-23 में प्रति व्यक्ति मासिक घरेलू व्यय दोगुने से भी अधिक हो गया है। तेंदुलकर समिति ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए गरीबी रेखा को 447 रुपये और 579 रुपये निर्धारित किया था। बाद में योजना आयोग ने 2011-12 के लिए इसे बढ़ाकर 860 रुपये और 1,000 रुपये कर दिया था।

देश के 25 करोड़ लोग गरीबी रेखा से निकले बाहर
दरअसल नीति आयोग ने सोमवार (15 जनवरी, 2024) को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी), ऑक्सफोर्ड नीति और मानव विकास पहल (ओपीएचआई) के इनपुट के आधार पर एक शोधपत्र जारी किया। नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद द्वारा तैयार इस शोधपत्र में 2013-2014 से 2022-23 के बीच गरीबों की संख्या में तेजी से आई कमी के आंकड़े दिए गए हैं। शोधपत्र के मुताबिक पिछले नौ साल में देश के 24.82 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले हैं। साल 2013-2014 में भारत की 29.17 प्रतिशत से अधिक आबादी गरीबी रेखा से नीचे थी, जबकि मौजूदा समय में ये आंकड़ा घटकर 11.28 प्रतिशत रह गया है।

हर साल 2.75 करोड़ लोग गरीबी से निकले बाहर
नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने कहा कि नौ साल में 24.82 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर आए। यानी हर साल 2.75 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले। शोधपत्र के मुताबिक गरीबी में सबसे ज्यादा कमी उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में आई है। उत्तर प्रदेश में पिछले नौ साल में 5.94 करोड़ लोगों के बहुआयामी गरीबी से बाहर निकलने के साथ गरीबों की संख्या में बड़ी गिरावट दर्ज की गई है, इसके बाद बिहार में 3.77 करोड़, मध्य प्रदेश में 2.30 करोड़ और राजस्थान में 1.87 करोड़ गरीबी रेखा से बाहर निकले हैं।

मोदी सरकार की योजनाओं ने बदली गरीबों की जिंदगी
शोधपत्र के मुताबिक मोदी सरकार की नीतियों और योजनाओं ने गरीबी कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनमें प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना, उज्जवला योजना, सौभाग्य योजना, पीएम आवास योजना, स्वच्छ भारत मिशन, जल जीवन मिशन आदि शामिल है। इनके अलावा, प्रधानमंत्री जन धन योजना, मुद्रा योजना जैसे प्रमुख कार्यक्रमों ने वित्तीय समावेशन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। आयुष्मान भारत, मातृ स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न कार्यक्रम, पोषण अभियान और एनीमिया मुक्त भारत जैसी उल्लेखनीय पहलों ने स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच में उल्लेखनीय वृद्धि की है, जिससे अभाव में काफी कमी आई है।

आइए देखते हैं कि मोदी सरकार जनकल्याणकारी योजनाओं से कितनों गरीबों को लाभ मिल रहा है और यह कैसे गरीबों का सहारा बन रही है और उनमें समृद्धि ला रही है….

आयुष्मान भारत : 30 करोड़ से अधिक कार्ड, 6.2 करोड़ को मुफ्त इलाज
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने देशवासियों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना ‘आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन-आरोग्य योजना’ (पीएम-जेवाई) की शुरुआत की थी। अब यह योजना गरीब-वंचितों के लिए वरदान साबित हो रही है। इस योजना ने 12 जनवरी, 2024 को 30 करोड़ आयुष्मान कार्ड बनाने की बड़ी सफलता हासिल की है। यानी इस योजना के तहत 30 करोड़ से अधिक आयुष्मान कार्ड दिए जा चुके हैं। आयुष्मान भारत योजना में अब तक 6.2 करोड़ से अधिक लोगों का मुफ्त इलाज किया गया है। उसमें से 3.5 करोड़ से अधिक महिलाओं का इलाज किया गया है। इस योजना के कारण लाभार्थियों को उपचार पर हो सकने वाले 1.25 लाख करोड़ रुपये की बचत भी हुई है। 

जनधन खातों की संख्या 51 करोड़ के पार, 2.08 लाख करोड़ रुपये हैं जमा
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्वाकांक्षी ‘प्रधानमंत्री जनधन योजना’ जनधन खातों की संख्या और इसमे जमा पैसों का एक नया रिकॉर्ड बन चुका है। प्रधानमंत्री जनधन योजना (PMJDY) के तहत खोले गए बैंक खातों की संख्या 51 करोड़ के पार पहुंच गई है। इसके साथ ही जनधन खातों में कुल जमा राशि 2.08 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा हो गई है। पीएमजेडीवाई खातों की संख्या मार्च 2015 के 14.72 करोड़ से तीन गुना (3.4) बढ़कर 29 नवंबर 2023 तक 51.04 करोड़ हो गई है। प्रधानमंत्री जनधन योजना (PMJDY) 28 अगस्त 2014 को शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य उन परिवारों के लिए शून्य रुपये की न्यूनतम जमा राशि वाले बैंक खाते खोलना था, जो अभी तक बैंकिंग सेवाओं से वंचित थे।

सामाजिक सुरक्षा: अटल पेंशन योजना के सदस्यों की संख्या 6 करोड़ पार
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्र सरकार की योजनाओं ने आम लोगों के जीवन की तस्वीर बदल दी है। मोदी सरकार की अटल पेंशन योजना (APY- एपीवाई) एक प्रमुख सामाजिक सुरक्षा योजना है। अटल पेंशन योजना की कामयाबी को आप इसी से जान सकते हैं कि अब तक इसके 6 करोड़ से अधिक खाते हो गए हैं। यानी अटल पेंशन योजना के तहत कुल नामांकन ने 6 करोड़ के आंकड़े को पार कर लिया है। सिर्फ चालू वित्त वर्ष में ही इस योजना से 79 लाख से ज्यादा लोग जुड़े हैं। एपीवाई के शुभारंभ से ही इसमें नामांकन निरंतर बढ़ता जा रहा है। वित्त वर्ष 2021-22 की तुलना में वित्त वर्ष 2022-23 में नए नामांकन में 20 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है, जबकि वित्त वर्ष 2020-21 की तुलना में वित्त वर्ष 2021-22 में नए नामांकन में 25 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी।

ओबीसी और एससी वर्ग के लिए वरदान बनी ‘पीएम स्वनिधि’ योजना
जब देश में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस और उससे जुड़े तमाम दल जातीय जनगणना की मांग कर रहे हैं। ऐसे समय में भारतीय स्टेट बैंक की एक रिपोर्ट ने विपक्ष को आईना दिखाने का काम किया है। इस रिपोर्ट में ‘पीएम स्वनिधि’ योजना की जमकर तारीफ की गई है। इस योजना के 75 प्रतिशत लाभार्थी आरक्षित वर्ग से हैं। इसमें भी सबसे अधिक हिस्सेदारी ओबीसी वर्ग की है। इस रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि मोदी सरकार किस तरह ओबीसी, अनुसूचित जाति और जनजाति के कल्याण और उत्थान के लिए काम कर रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया एक्स पर एसबीआई की इस रिपोर्ट को साझा करते हुए कहा कि भारतीय स्टेट बैंक के सौम्या कांति घोष का यह गहन शोध स्वनिधि योजना के परिवर्तनकारी प्रभाव की एक बहुत स्पष्ट तस्वीर पेश करता है। उन्होंने कहा कि यह रिपोर्ट इस योजना की समावेशी प्रकृति को दर्शाती है और इस पर प्रकाश डालती है कि इसने वित्तीय सशक्तीकरण को किस तरह बढ़ावा दिया है।

उज्जवला योजना: 3 साल में गरीबों को मिलेंगे 75 लाख एलपीजी कनेक्शन
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार की कल्याणकारी नीतियों और योजनाओं ने गरीबों के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव लाया है। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) से देश के करोड़ों लोगों की जिंदगी बदल चुकी है। अब 13 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में उज्जवला योजना के तहत अगले 3 वित्त वर्ष में 75 लाख नए एलपीजी कनेक्शन देने का फैसला किया गया। ये कनेक्शन साल 2023-24 से 2025-26 तक बांटे जाएंगे। इस योजना के तहत अब तक 9 करोड़ 60 लाख कनेक्शन दिए जा चुके हैं। 75 लाख अतिरिक्त उज्ज्वला कनेक्शन के प्रावधान से पीएमयूवाई लाभार्थियों की कुल संख्या 10.35 करोड़ हो जाएगी।

आयुष्मान भारत के तहत 6 करोड़ लोगों को मिला मुफ्त इलाज
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने देशवासियों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना ‘आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन-आरोग्य योजना’ (पीएम-जेवाई) की शुरुआत की थी। अब यह योजना गरीब-वंचितों के लिए वरदान साबित हो रही है। इस योजना के तहत 27 करोड़ से अधिक आयुष्मान कार्ड दिए जा चुके हैं। आयुष्मान भारत योजना में अब तक 6 करोड़ से अधिक लोगों का मुफ्त इलाज किया गया है। उसमें से 3.5 करोड़ से अधिक महिलाओं का इलाज किया गया है। इस योजना के कारण लाभार्थियों को उपचार पर हो सकने वाले 1 लाख करोड़ रुपये की बचत भी हुई है।

देश में 4 करोड़ गरीबों को मिला पक्का घर
प्रधानमंत्री आवास योजना- शहरी और ग्रामीण को मिलाकर देश में करीब चार करोड़ बनाए जा चुके हैं और बनकर तैयार हो चुके घर पात्र गरीबों को सौंपा जा चुका है। इससे शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों का जीवनस्तर ऊंचा हुआ है, जीवन आसान हुआ है और समग्र समृद्धि आई है। देश की समृद्धि के लिए यह जरूरी है कि सभी देशवासियों का अपना घर हो। इसके तहत मोदी सरकार ने देश में आर्थिक रूप से कमजोर या गरीब तबके के लोगों को अपना घर मुहैया कराने के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना शुरू की। इसके तहत सरकार देश के उन नागरिकों की मदद करती है, जिनके पास पक्के मकान नहीं हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण (पीएमएवाई-जी) के तहत अब तक गांवों में 3 करोड़ घरों का निर्माण किया गया है। वहीं प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 1.20 करोड़ घरों को मंजूरी दी गई थी जिसमें 72.56 लाख बनकर तैयार हो चुके हैं और लोगों को सौंप दिए गए हैं। यानि दोनों योजनाओं को मिलाकर देश में चार करोड़ से अधिक घरों का निर्माण किया जा रहा है। 

आवास योजना शहरी में 1.18 करोड़ से ज्यादा घरों को मिली मंजूरी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में प्रधानमंत्री आवास योजना- शहरी (पीएमएवाई-यू) को अभूतपूर्व सफलता मिली है। मोदी सरकार अब तक 1.18 करोड़ घरों को मंजूरी दे चुकी है। इनमें से 113 लाख से अधिक का निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया है और 78 लाख से अधिक आवासीय इकाइयों को लाभार्थियों को सौंपा जा चुका है। मिशन के तहत कुल निवेश 8.11 लाख करोड़ रुपए है, जिसमें 2 लाख करोड़ रुपए की केंद्रीय सहायता है। अब तक, 153970 करोड़ रुपए की केंद्रीय सहायता जारी की जा चुकी है। पीएम आवास योजना के तहत सरकार बेघर लोगों को घर बनाकर देती है। इसके साथ ही लोन लेकर घर या फ्लैट खरीदने वाले लोगों को सब्सिडी भी सरकार की ओर से मिलती है।

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