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मालदा में मौन धारण करने वाली ममता ने दार्जिलिंग में हिंदुओं पर क्यों चलाई गोली?

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पश्चिम बंगाल के मालदा और घुलागढ़ में दंगा के समय जब हिंदुओं पर जुल्म हो रहे थे तो राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मौन धारण की हुई थी। यहां मुस्लिमों के उत्पात पर कोई कार्रवाई नहीं की गई, मुस्लिम वोटबैंक के लिए चुप्पी साधे रहीं लेकिन जब बात दार्जिलिंग की आई तो पुलिस फायरिंग में तीन लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। दार्जिलिंग में बंगाली भाषा थोपे जाने का विरोध हो रहा है। यहां सरकारी स्कूलों में बंगाली भाषा को अनिवार्य किए जाने के खिलाफ गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (GJM) के विरोध-प्रदर्शन से हालात बिगड़े हुए हैं। दार्जिलिंग और आसपास के इलाके में नेपाली भाषा प्रचलित है और यहां के लोग अपनी भाषा को लेकर काफी संवेदनशील हैं। बंगाली भाषा लादे जाने को यहां के लोगों ने एक तरह से सांस्कृतिक अतिक्रमण मान इस सरकारी फैसले का विरोध किया। सवाल उठता है कि देशभर में हिंदी थोपे जाने का विरोध करनेवाले बुद्धिजीवी ममता के इस फैसले पर चुप क्यों हैं? मंदसौर, सहारनपुर हिंसा पर हो-हल्ला मचाने वाले मानवाधिकार के पैरवीकार अभी तक क्यों घर में बैठे हुए हैं? पुलिस मनाही के बाद भी मंदसौर जाने की जिद करने वाले राहुल गांधी जैसे नेता दार्जिलिंग में तीन हिन्दुओं के मारे जाने पर चुप क्यों हैं?

ममता बनर्जी मुस्लिम प्रेम में पूरी तरह अंधी हो चुकी हैं। मुस्लिम तुष्टिकरण को छिपाने के लिए, स्वयं को धर्मनिरपेक्षता की सबसे बड़ी ठेकेदार बताती हैं। लेकिन ये छद्म धर्मनिरपेक्षता सिर्फ हिंदुओं पर क्यों थोपी जाती है ? आइए आपको दिखाते हैं ममता के हिंदू विरोधी मानसिकता के कुछ उदाहरण-

पवित्र मंदिर को मुसलमान के हवाले क्यों किया ?
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हुगली जिले के प्रसिद्ध तीर्थ तारकेश्वर मंदिर बोर्ड के अध्यक्ष पद पर राज्य के शहर विकास मंत्री फिरहाद हकीम को बिठा दिया है। सवाल उठता है कि तुष्टिकरण के नाम पर हिंदुओं का ऐसा अपमान करके ममता क्या दिखाना चाहती हैं? मंदिर बोर्ड की अध्यक्षता पूरी तरह से धार्मिक कार्य से जुड़ा है, ऐसे में एक मुसलमान को वो जिम्मेदारी देने की वजह क्या हो सकती है? ममता की इस हरकत से तरह-तरह की आशंकाएं पैदा होनी स्वभाविक है। क्योंकि रिकॉर्ड बताता है कि मुसलमानों को खुश करने के लिए वो किसी भी हद तक जा सकती हैं। अगर मंदिर बोर्ड का अध्यक्ष किसी मंत्री को ही बनाना था, तो इसके लिए किसी हिंदू मंत्री को भी चुना जा सकता था। लेकिन ममता की कोशिश तो हिंदुओं का अपमान करना है।

फिरहाद हकीम की सोच राष्ट्र विरोधी है!
ममता बनर्जी को पता है कि उनके मंत्री फिरहाद हकीम के इरादे बहुत ही खतरनाक रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार ये कोलकाता के अपने चुनाव क्षेत्र गार्डन रीच को मिनी पाकिस्तान तक बुला चुके हैं। सबसे बड़ी बात है कि, उन्होंने ये भारत विरोधी टिप्पणी एक पाकिस्तानी समाचार पत्र डॉन को दिए इंटरव्यू में कही थी। डॉन में हकीम के विवादास्पद बयान को प्रमुखता से जगह दी गई थी। सोचने वाली बात है कि जो व्यक्ति दुश्मन राष्ट्र के लिए सोचता है, जिसके दिल-दिमाग में हमेशा पाकिस्तान की चिंता रहती है, वो पवित्र मंदिर की अध्यक्षता करके क्या करेंगे ? क्या कोई ये मानने के लिए तैयार हो सकता है कि अपनी अपवित्र मानसिकता से वो मंदिर की पवित्रता को नष्ट करने का कुचक्र नहीं रचेंगे ?

दुर्गापूजा के विसर्जन पर रोक
ममता बनर्जी हर वह कदम उठाती हैं जिससे अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण हो, चाहे इससे हिन्दुओं की आस्था पर चोट ही क्यों ना पहुंच रही है। पिछले साल दुर्गापूजा में विजयदशमी के दिन विसर्जन को लेकर ममता बनर्जी ने जो फैसला किया, वो देश के करोड़ों हिन्दुओं की भावनाओं को आहत करने वाला था। ममता ने मां दुर्गा की प्रतिमाओं के विसर्जन के लिए तय समय पर रोक लगाकर अपनी नयी समय-सीमा तय कर दी, ताकि उसके अगले दिन मुहर्रम का जुलूस निकालने में मुस्लिमों को कोई परेशानी न हो। इसपर कलकत्ता हाईकोर्ट को दखल देना पड़ा। हाईकोर्ट ने सरकार के फैसले पर रोक लगा दी। अदालत ने सरकार पर अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण करने की सख्त टिप्पणी की। जस्टिस दीपांकर दत्‍ता की सिंगल बेंच ने अपने आदेश में कहा था कि साफ दिख रहा है कि राज्‍य सरकार का यह फैसला बहुसंख्‍यकों की कीमत पर अल्‍पसंख्‍यक वर्ग को खुश करने और पुचकारने वाला है।

हाईकोर्ट के आदेश से रामनवमी की पूजा
एंटी हिन्दू एजेंडा चला रही ममता सरकार के दबाव में नगरपालिका ने इस साल रामनवमी पूजा की अनुमति नहीं दी। जिसके बाद कलकत्ता हाईकोर्ट ने नगरपालिका के रवैये पर नाखुशी जताते हुए पूजा शुरू करने की अनुमति देने का आदेश दिया। ममता बनर्जी ने रामनवमी के दिन जुलूस निकालने पर बेहद आपत्तिनजक बयान दिया। ममता बनर्जी ने 6 अप्रैल, 2017 को बयान दिया कि भगवान राम ने दुर्गा की पूजा फूलों के साथ की थी, तलवारों के साथ नहीं। राम ने रावण को मारने के लिए दंगे नहीं किए। अगर कोई नेता या कार्यकर्ता हथियारों के साथ जुलूस में शामिल होता है तो कानून अपना काम करेगा। चाहे वह कोई भी क्यों ना हो। सभी बराबर हैं। ममता हथियारों के साथ मुहर्रम के मौके पर जुलूस निकलने पर ऐसा कोई बयान नहीं देती और न ही पुलिस कभी किसी को गैर जमानती धारा में इस वजह से गिरफ्तार करती है।

हनुमान जयंती के जुलूस की अनुमति नहीं
पश्चिम बंगाल में बीरभूम जिले के सिवड़ी में 11 अप्रैल को हनुमान जयंती के जुलूस पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया। जुलूस में शामिल होने पर पुलिस ने 12 हिन्दुओं को गिरफ्तार कर लिया। उन पर आर्म्स एक्ट समेत कई गैर जमानती धाराएं लगा दीं।

धूलागढ़ दंगे में हिन्दू विरोधी भूमिका
धूलागढ़ दंगे में भी ममता सरकार की भूमिका संदेह के घेरे में रही। इस दंगे में हिन्दू परिवारों पर आक्रमण हुए। उनके घर जलाए गये, उन्हें मारा-पीटा गया, उनकी महिलाओं से बलात्कार हुए। लेकिन ममता सरकार ने हिन्दुओं के बचाव के लिए कुछ नहीं किया। धूलागढ़ हिंसा में 65 लोगों को गिरफ्तार करने पर मुसलमानों को खुश करने के लिए हावड़ा के एसपी (ग्रामीण) सब्यसाची रमन मिश्रा का तबादला कर दिया गया।

बीफ खाने का समर्थन
हिन्दुओं की भावनाओं को आहत करते हुए ममता बनर्जी ने बीफ खाने का समर्थन किया। ममता ने 21 जुलाई, 2016 को शहीद दिवस पर कोलकाता में कहा कि अगर मैं बकरी खाती हूं तो कोई समस्या नहीं है, लेकिन कुछ लोग गाय खाते हैं तो यह समस्या है। मैं साड़ी पहनती हूं तो समस्या नहीं है, लेकिन कुछ लोग सलवार कमीज पहनते हैं तो यह समस्या है। हम धोती पहनना पसंद करते हैं लेकिन कुछ लुंगी पहनने को प्राथमिकता देते हैं। आप कौन हैं तय करने वाले कि लोग क्या पहनें और क्या खाएं?

18 दिसंबर 2016 को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हुगली में मुसलमानों को संबोधित करते हुए बीफ खाने के प्रति अपना समर्थन दोहराया था और कहा था कि यह पसंद का मामला है। मेरा अधिकार है मछली खाना। वैसे ही, आपका अधिकार है मांस खाना। आप जो कुछ भी खाएं – बीफ या चिकन, यह आपकी पसंद है।

पशुवध निषेध कानून मानने से इनकार
केंद्र सरकार के पशुवध निषेध कानून को ममता ने धार्मिक रंग देने की कोशिश की और मुसलमानों से जोड़ते हुए कहा कि यह रमजान से पहले जान बूझकर लगाया गया प्रतिबंध है। उन्होंने कहा कि हम प्रतिबंध को स्वीकार नहीं कर रहे हैं। हम इसे कानूनी रूप से चुनौती देंगे।

पुस्तकालयों में नबी दिवस-ईद मनाना अनिवार्य
ममता बनर्जी की सरकार ने एक नया आदेश जारी करके प्रदेश में चलने वाले सभी 2480 पुस्तकालयों में नबी दिवस और ईद मनाना अनिवार्य कर दिया। इतना ही नहीं इसे मनाने के लिए सरकारी खजाने से फंड देने की भी व्यवस्था की गई है।

मुस्लिमों के दबाव में सरस्वती पूजा पर पाबंदी
एक तरफ बंगाल के पुस्तकालयों में नबी दिवस और ईद मनाना अनिवार्य किया गया, दूसरी तरफ एक सरकारी स्कूल में कई दशकों से चली आ रही सरस्वती पूजा ही बैन कर दी गई। ये मामला हावड़ा के एक सरकारी स्कूल का है, जहां पिछले 65 साल से सरस्वती पूजा मनायी जा रही थी, लेकिन मुसलमानों को खुश करने के लिए ममता सरकार ने इसी साल फरवरी में रोक लगा दी। जब स्कूल के छात्रों ने सरस्वती पूजा मनाने को लेकर प्रदर्शन किया, तो मासूम बच्चों पर डंडे बरसाए गए। इसमें कई बच्चे घायल हो गए।

बदला किताब में ‘राम’ का नाम
ममता सरकार ने तीसरी क्लास में पढ़ाई जाने वाली किताब अमादेर पोरिबेस (हमारा परिवेश) ‘रामधनु’ (इंद्रधनुष) का नाम बदल दिया गया है। उसे ‘रंगधनु’ कर दिया है।

मकर संक्रांति पर संघ प्रमुख को रैली की इजाजत नहीं
मुस्लिमों की तुष्टिकरण में ममता बनर्जी हिन्दुओं की आस्था से जुड़े किसी भी कार्यक्रम का न सिर्फ विरोध करती हैं बल्कि सरकारी कानून का दुरुपयोग करते हुए उसे रोकने का भी भरसक प्रयास करती हैं। विवादों के बावजूद गुलाम अली को आमंत्रण देने वाली ममता सरकार ने इसी साल 14 जनवरी को कोलकाता में संघ प्रमुख मोहन भागवत को रैली की इजाजत नहीं दी। आखिरकार आयोजकों को हाईकोर्ट जाना पड़ा और अदालत ने रैली करने की इजाजत दी।

तारिक फतेह का कार्यक्रम रद्द
ममता सरकार ने 4 जनवरी, 2017 को कलकत्ता क्लब में तारिक फतेह का कार्यक्रम इसलिए रद्द कर दिया क्योंकि वह पाकिस्तान विरोधी हैं और बलूचिस्तान को पाकिस्तान से आजाद कराना चाहते हैं। एक बार फिर मुसलमानों को खुश करने के लिए यह कदम उठाया गया।

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