दिल्ली में शिक्षा क्रांति का ढोल पीटने वाले आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल के शिक्षा मॉडल का भांडा फूट गया है। दिल्ली के सरकारी स्कूलों को विश्वस्तरीय बनाने का दावा लंबे समय से दिल्ली सरकार करती आई है। इसी बीच ऐसा खुलासा हुआ है जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे। केजरीवाल के इन विश्वस्तरीय स्कूलों में फेल होने वाले छात्रों की संख्या बढ़ती जा रही है। दिल्ली सरकार के स्कूलों में शैक्षणिक सत्र 2023-24 में 9वीं कक्षा में पढ़ने वाले 1 लाख से अधिक छात्र वार्षिक परीक्षा में फेल हो गए। इसी तरह 8वीं में 46 हजार से अधिक और 11वीं में 50 हजार से अधिक छात्र वार्षिक परीक्षा पास नहीं कर सके। यही हाल पिछले साल (2023 में) भी रहा था जब दिल्ली के अधिकतर स्कूलों के परीक्षा परिणाम 40 प्रतिशत से 50 प्रतिशत के बीच ही रहे और पास होने से ज्यादा फेल होने वालों की संख्या रही। उस वक्त शिक्षकों ने कहा था कि खुद कॉपी लिखकर नौवीं और 11वीं के फेल छात्रों को पास करना पड़ा। दिल्ली के सरकारी स्कूलों के रिजल्ट से केजरीवाल के उस दावे की भी पोल खुल गई है कि दिल्ली में शिक्षा को विश्वस्तरीय बना दिया है। अब उनसे पूछा जाना चाहिए कि क्या इसी शिक्षा व्यवस्था के लिए वे शराब घोटाले में फंसे उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री रहे मनीष सिसोदिया के लिए ‘भारत रत्न’ की मांग कर रहे थे?
9वीं कक्षा में 1 लाख और 11वीं में 50 हजार से ज्यादा छात्र फेल
दिल्ली के सरकारी स्कूलों का परीक्षा परिणाम इस बार भी बहुत ही खराब रहा है। रिजल्ट के आंकड़े चौंकाने वाले हैं और उस दावे से बिल्कुल उलट हैं जिसमें दिल्ली सरकार दावा करती है कि उसने सरकारी स्कूलों की स्थिति में सुधार करके बच्चों के शिक्षा स्तर में क्रांतिकारी बदलाव किए हैं। आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली के सरकारी स्कूलों में 2023-24 के शैक्षणिक सत्र में 9वीं कक्षा में पढ़ने वाले एक लाख से ज्यादा छात्र सालाना एग्जाम में फेल हो गए। 8वीं में 46 हजार और 11वीं क्लास में 50 हजार से ज्यादा बच्चे फाइनल एग्जाम में फेल हुए हैं। यह जानकारी दिल्ली शिक्षा निदेशालय (डीडीई) ने आरटीआई के जवाब में दी है। दिल्ली में 1,050 सरकारी स्कूल और 37 डॉ. बी.आर.अंबेडकर स्पेशिलाइज एक्सिलेंस स्कूल हैं।
सरकारी स्कूल बदलने हैं उन्हे स्विमिंग पूल मे बदलना है pic.twitter.com/CgNxyvNISl
— Political Kida (@PoliticalKida) July 11, 2024
9वीं में वर्ष 2022 में 88 हजार हुए थे फेल
दिल्ली सरकार के स्कूलों में 9वीं कक्षा में पढ़ने वाले 1,01,331 बच्चे एकेडमिक सेशन 2023-24 में फेल हुए, जबकि 2022-23 में 88,409, 2021-22 में 28,531 और 2020-21 में 31,540 छात्र फेल हुए। इसके अलावा, कक्षा 11 में एकेडमिक सेशन 2023-24 में 51,914 बच्चे, 2022-23 में 54,755, 2021-22 में 7,246 और 2020-21 में केवल 2,169 बच्चे फेल हुए। डीडीई के अनुसार, शिक्षा के अधिकार के तहत ‘नो-डिटेंशन पॉलिसी’ रद्द होने के बाद एकेडमिक सेशन 2023-24 में 8वीं कक्षा में 46,622 छात्र फेल हो गए। यानी स्कूलों में फेल होने वाले स्टूडेंट्स की संख्या में साल-दर-साल इजाफा ही हो रहा है।
11वीं वर्ष 2022 में 54 हजार हुए थे फेल
11वीं कक्षा में वर्ष 2023-24 में 51,914 बच्चे फेल हुए. वर्ष 2022-23 में 54,755, 2021-22 में 7,246 और 2020-21 में सिर्फ 2169 बच्चे फेल हुए थे।
फेल छात्रों को दोबारा परीक्षा के जरिए मिलेगा मौका
दिल्ली शिक्षा विभाग के एक अधिकारी ने बताया, ‘‘दिल्ली सरकार की नई ‘प्रोमोशन पॉलिसी’ के तहत 5वीं से 8वीं कक्षा के छात्र यदि वार्षिक परीक्षा में फेल हो जाते हैं तो उन्हें अगली कक्षा में प्रोमोट नहीं किया जाएगा। लेकिन उन्हें दो महीने के भीतर दोबारा परीक्षा के ज़रिए अपने प्रदर्शन को सुधारने का एक और मौका मिलेगा। उन्होंने आगे कहा कि दोबारा परीक्षा पास करने के लिए हर एक विषय में 25 प्रतिशत नंबर ज़रूरी हैं, ऐसा न करने पर छात्र को ‘रिपीट कैटेगरी’ में डाल दिया जाएगा, जिसका मतलब है कि छात्र को अगले सेशन तक उसी कक्षा में रहना होगा।
अध्यापकों की कमी, शिक्षा तंत्र की लापरवाही से खराब हुआ रिजल्ट
‘ऑल इंडिया पेरेंट्स एसोसिएशन’ के अध्यक्ष और दिल्ली उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने इतनी बड़ी संख्या में बच्चों के फेल होने के कारण के बारे में पूछे जाने पर दावा किया कि सरकारी स्कूलों में अध्यापकों की कमी के अलावा शिक्षा तंत्र की भी लापरवाही है. उन्होंने कहा कि भले ही विद्यालयों में ढांचागत सुविधाओं का स्तर बेहतर हुआ हो, शिक्षकों की भर्ती होने लगी हो लेकिन 20 से 25 हजार पद आज भी खाली हैं और ज्यादातर पदों पर अतिथि शिक्षकों को ही नियुक्त किया जाता है.
टीचरों की कमी से शिक्षा व्यवस्था बदहाल
कुछ समय पहले एक आरटीआई में यह बात भी सामने आयी थी कि पिछले 10 साल में विभिन्न कारणों से 5747 स्थायी शिक्षकों ने अपने पदों से इस्तीफा दिया लेकिन उनके एवज में केवल 3715 पदों पर ही शिक्षकों को भर्ती किया गया। निदेशालय से मिली जानकारी के मुताबिक, वर्ष 2014 में कुल 448 शिक्षकों ने सरकारी विद्यालयों को छोड़ा. वहीं 2015 में 411, 2016 में 458, वर्ष 2017 में 526, वर्ष 2018 में 515, 2019 में 519, 2020 में 583, 2021 में 670, 2022 में 667 और 2023 में 950 शिक्षकों ने सरकारी विद्यालयों को छोड़ा। इस प्रकार पिछले दस सालों में शिक्षकों के 5747 पद रिक्त हुए। लेकिन इनके एवज में 2014 में केवल 9 स्थायी शिक्षकों की भर्ती हुई। वर्ष 2015 में आठ, 2016 में 27, 2017 में 668, 2018 में 207, 2019 में 1576 , 2020 में 127, 2021 में 42, 2022 में 931 और 2023 में 120 शिक्षकों की स्थायी भर्ती हुई।
दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था, सरकारी स्कूलों की हालत और अरविंद केजरीवाल के कारनामों पर एक नजर…
दिल्ली सरकार के स्कूलों में लगभग 6000 शिक्षकों की कमी
दिल्ली सरकार के स्कूलों में लगभग 62000 शिक्षकों की आवश्यकता है, जबकि केवल लगभग 43000 नियमित शिक्षक हैं और साथ ही लगभग 13000 अतिथि शिक्षक हैं। दिल्ली सरकार के स्कूलों में लगभग 6000 शिक्षकों की कमी है। दिल्ली सरकार के स्कूलों में शिक्षकों की कमी है, फिर भी केजरीवाल सरकार ने 5000 से अधिक शिक्षकों को गैर-शिक्षण कार्यों में तैनात कर दिया है, जिससे स्कूलों में पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित हो रही है।
स्कूलों में 5200 क्लर्क और लेखा कर्मचारियों के पद रिक्त
दिल्ली सरकार के स्कूलों में लगभग 5200 क्लर्क और लेखा कर्मचारियों के पद रिक्त हैं। जबकि उनमें से आधे पर 25000 रुपये प्रति माह के वेतन पर अनुबंध कर्मचारियों को रखा गया है, जबकि अन्य आधे के खिलाफ 70000 रुपये प्रति माह के वेतन ब्रैकेट के लगभग 1500 शिक्षकों को क्लर्क और लेखा अधिकारी के रूप में काम करने के लिए मजबूर किया गया है।
बिजनेस ब्लास्टर योजना का मकसद वोटबैंक बनाना
दिल्ली सरकार एक बिजनेस ब्लास्टर योजना चला रही है जिसके तहत कक्षा 11 और 12 के छात्रों को व्यावसायिक विचार विकसित करने के लिए प्रति वर्ष 2000 रुपये दिए जाते हैं। कोई भी कल्पना कर सकता है कि 4000 रुपये में कोई व्यावसायिक विचार विकसित नहीं किया जा सकता। बिजनेस ब्लास्टर योजना का वास्तविक उद्देश्य स्कूल के छात्रों को नकद पैसे बांटना है जिनमें से अधिकांश कक्षा 12 पूरी करने तक 18 वर्ष की आयु के हो जाते हैं और पहली बार मतदाता बन जाते हैं। उनके युवा दिमाग के 4000 रुपये से प्रभावित होने की पूरी संभावना है। यह अफसोसजनक है कि जिन्होंने विश्व स्तरीय शिक्षा मॉडल विकसित करने का दावा किया है, वे युवाओं को भटकाने और वोटबैंक बनाने में जुटे हैं।
सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले 18 लाख छात्रों का भविष्य खतरे में
राजकीय विद्यालय शिक्षक संघ (जीएसटीए) की ओर से कांस्टीट्यूशन क्लब में 8 जुलाई को आयोजित प्रेस वार्ता के दौरान संघ के महासचिव अजय वीर यादव ने आरोप लगाते हुए कहा कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले 18 लाख छात्रों का भविष्य खतरे में है। उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार ने जिन स्कूलों का नाम बदला है, वहां की स्थिति अभी तक नहीं बदली है। स्कूलों में विशेष विषयों के शिक्षक नहीं है। ऐसे में छात्र उन विषयों की पढ़ाई से कोसों दूर रह गए हैं। उन्होंने कहा कि सरकार का स्कूलों के निर्माण पर अधिक जोर है, ऐसे में खेलने के मैदान खत्म हो गए हैं। इससे छात्र शारीरिक गतिविधियों में शामिल नहीं हो पा रहे हैं। यही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि स्कूलों के अंदर शिक्षक सुरक्षित नहीं है। उन्होंने शिक्षा मंत्री से इस दिशा में कार्य करने की अपील की।
केजरीवाल सरकार में दिल्ली की स्कूल शिक्षा प्रणाली हुई बदहाल
दिल्ली भाजपा अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने कहा कि दिल्ली में शिक्षा मंत्री रहे मनीष सिसोदिया और वर्तमान शिक्षा मंत्री आतिशी की जोड़ी ने दिल्ली की स्कूल शिक्षा प्रणाली को बदहाल कर दिया है। उन्होंने न तो नियमित शिक्षकों की भर्ती की है और न ही अतिथि शिक्षकों की। इसके बजाय, उन्होंने शिक्षकों को गैर-शिक्षण कार्यों में तैनात कर दिया है, जिससे दिल्ली के सरकारी स्कूलों में शिक्षक-छात्र अनुपात सबसे खराब हो गया है। आज 2024 में दिल्ली में 995 सामान्य स्कूल हैं, जबकि 2015 में जब अरविंद केजरीवाल सरकार पहली बार सत्ता में आई थी, तब 1015 स्कूल थे और इन 10 वर्षों में उन्होंने कोई नया नियमित या अतिथि शिक्षक नहीं रखा। अन्य 32 विशेष शिक्षा वाले स्कूलों में पूरी तरह से सुविधाओं की कमी है, जिनमें से कुछ सबसे खराब स्कूल हैं।
स्कूल शिक्षकों से लिया जा रहा कर्ल्क और कानूनी सहायक का काम
दिल्ली भाजपा अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने कहा कि स्कूल शिक्षकों को लिपिकीय कार्य करने, कानूनी सहायकों के रूप में काम करने और वरिष्ठ अधिकारियों के ओएसडी के रूप में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। 6000 शिक्षकों की कमी के बावजूद सिसोदिया-आतिशी की जोड़ी ने लगभग 5000 शिक्षकों को शिक्षण कर्तव्यों से हटा दिया है। 205 शिक्षकों को स्कूल मेंटर बनाया गया है, जबकि 1027 को स्कूल समन्वयक बनाया गया है और 1027 को शिक्षक विकास समन्वयक बनाया गया है और अब वे कोई शिक्षण कार्य नहीं करते हैं। 70 शिक्षक जिनके पास कानून की योग्यता है, उन्हें शिक्षा विभाग के कानूनी सहायकों के रूप में काम करने के लिए तैनात किया गया है, जबकि 102 अन्य शिक्षकों को शिक्षा विभाग में उप और सहायक निदेशकों के ओएसडी के रूप में काम करने के लिए मजबूर किया गया है।
बच्चों को पास कराने के लिए शिक्षकों ने खुद लिखी कॉपियां
एबीपी न्यूज की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2022 में दिल्ली के ज्यादातर सरकारी स्कूलों के परीक्षा परिणाम 40 प्रतिशत से 50 प्रतिशत तक ही सीमित रहे। बड़ी संख्या में छात्रों के फेल होने पर शिक्षकों ने दोबारा अंकों को अपडेट करने के लिए खुद कॉपियां लिखी। परीक्षा परिणाम को बेहतर करने के लिए शिक्षा निदेशालय की ओर से दिल्ली के सरकारी स्कूलों को 6 अप्रैल तक का समय दिया गया था। इसके बाद अंक सुधार कर शिक्षा निदेशालय की वेबसाइट पर अंकों का विवरण पुनः अपलोड किया गया।
छात्रों की कॉपियों में सही उत्तर लिखने का शिक्षकों पर दबाव
वेबसाइट बेजोड़ रत्न के मुताबिक, बाहरी दिल्ली के एक सरकारी स्कूल के शिक्षक ने बताया कि स्कूलों का नौवीं और 11वीं का परिणाम बहुत खराब आया। 96 प्रतिशत से अधिक छात्र फेल हो गए। 60 बच्चों की कक्षा में केवल चार से पांच बच्चे ही पास हुए। शिक्षा निदेशालय की ओर से परिणाम जारी हो जाने के बाद छात्रों के अंकों में सुधार करने का समय दिया गया। शिक्षकों का आरोप था कि प्रधानाचार्य अपने स्कूल के नौवीं और 11वीं के खराब परिणाम के चलते शिक्षा विभाग की नजर में न आएं और इन पर कोई खराब परिणाम आने का सवाल न उठाएं, इसके लिए शिक्षकों पर छात्रों की कॉपियों में सही उत्तर लिखकर दोबारा कापी जांच कर उनको पास करने का दबाव बनाया जा रहा।
ईडब्ल्यूएस के तहत 70 प्रतिशत मुस्लिम बच्चों का दाखिला
इसके अलावा दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था में एक बड़े घोटाले का खुलासा हुआ। जिसकी शिकायत राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) को मिली। एनसीपीसीआर को मिली शिकायत में बताया गया है कि ईडब्ल्यूएस के तहत बच्चों के स्कूलों में प्रवेश के लिए जो ड्रॉ निकाला जाता है उसमें भेदभाव होता है। ड्रॉ में 70 प्रतिशत बच्चे मुस्लिम समुदाय से हैं, जबकि 30 प्रतिशत बच्चे हिंदू समुदाय से हैं।
केजरीवाल के राज में अध्यापक जूता पॉलिस करने को मजबूर
दिल्ली विश्वविद्यालय के तहत आने वाले 12 कॉलेजों में से एक महाराजा अग्रसेन कॉलेज के अध्यापक जनवरी 2023 में सड़कों पर थे। कॉलेज के प्रोफेसरों ने कॉलेज के बाहर ही दिल्ली सरकार के खिलाफ नाराजगी जाहिर करने और अपनी बदहाली पर ध्यान आकर्षित करने के लिए लोगों के जूते पॉलिश किए। दिल्ली सरकार द्वारा इस कॉलजे का शत-प्रतिशत वित्तपोषण किया जाता है। लेकिन सरकार का खजाना खाली होने से कॉलेज के शिक्षकों को वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़ा।
डीडीए ने 13 जगह भूमि आवंटित की, एक पर भी स्कूल नहीं बना
दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने स्कूलों के निर्माण के लिए दिल्ली सरकार को 13 जगह भूमि आवंटित की, लेकिन अब तक इन पर एक भी स्कूल नहीं बनाया गया। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 1,600 और 8,000 वर्ग मीटर के बीच के 13 भूखंडों को डीडीए द्वारा दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय को आवंटित किया गया था। वर्ष 2015 और अगस्त 2022 के बीच 13 भूखंड आवंटित किए गए। इन भूखंडों में सबसे छोटा, 1,600 वर्ग मीटर में फैला हुआ है, जो उत्तरी दिल्ली में शाही ईदगाह में स्थित है और सबसे बड़ा वसंत कुंज में 8,093.72 वर्ग मीटर है। एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि सभी भूखंड वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों के निर्माण के लिए आवंटित किए गए थे, लेकिन इनमें से एक भी काम शुरू नहीं हो पाया।
13 प्लॉट दिए @ArvindKejriwal सत्कार को DDA ने लेकिन एक भी प्लॉट पर स्कूल नहीं बना
नीयत ही नही थी..नीयत तो शराब के ठेके खोलने की थी। निकम्मी सरकार! https://t.co/ufYbkyUEOt
— Modi Bharosa (@ModiBharosa) January 15, 2023
वर्ष 2015 में गीता कालोनी और वसंत कुंज में आवंटित किए गए थे दो प्लाट
डीडीए ने पहला प्लॉट 3 जुलाई 2015 को गीता कॉलोनी में और दूसरा उसी साल 15 अक्टूबर को वसंत कुंज में आवंटित किया गया था। आने वाले वर्षों में दो और भूखंड आवंटित किए गए – एक 18 दिसंबर, 2018 को शाही ईदगाह में और 3 मार्च, 2021 को रोहिणी में। इसके अलावा शालीमार बाग, रोहिणी और नरेला जैसे क्षेत्रों में भूमि आवंटित किए गए थे। वर्ष 2022 की बात करें तो जनवरी 2022 में एक भूखंड आवंटित किया गया था, जबकि दो भूखंड फरवरी में सौंपे गए थे वहीं अगस्त के महीने में छह भूमि आवंटित किए गए। अधिकारी ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों या उनके आसपास के क्षेत्रों में भूखंड आवंटित करने का उद्देश्य वहां शिक्षा को बढ़ावा देना सुनिश्चित करना था।
दिल्ली में 2000 करोड़ का शिक्षा घोटाला, आरटीआई से हुआ खुलासा
वर्ष 2019 में दिल्ली शिक्षा घोटाला सामने आया। ये घोटाला स्कूलों के निर्माण से जुड़ा है। एक आरटीआई में ये खुलासा हुआ है कि एक स्कूल का कमरा 24,85,323 रुपए बनाया है। आरटीआई से पता चला है कि 312 कमरे 77,54,21,000 रुपये में और 12748 कमरे 2892.65 करोड़ रुपये में बनाए गए हैं। अरविंद केजरीवाल सरकार पर आरोप है कि 5 लाख का कमरा 25 लाख रुपये में बनवाया गया। वहीं कई स्कूलों में बिना बनाए ही कमरों का भुगतान कर दिया गया। बीजेपी सांसद मनोज तिवारी ने आरटीआई का हवाला देते हुए केजरीवाल सरकार पर शिक्षा के नाम पर 2000 करोड़ रुपये का घोटाला करने का आरोप लगाया था।
RTI exposes the massive corruption of Rs 2000 cr of @ArvindKejriwal and @msisodia in the name of education #SisodiaKaGhapla pic.twitter.com/o0kLaF2Xf3
— Punit Agarwal (@Punitspeaks) July 1, 2019
दिल्ली के 80 प्रतिशत स्कूलों में नहीं हैं हेडमास्टर
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने दिल्ली सरकार को पत्र लिखकर दावा किया है कि दिल्ली के 80 प्रतिशत से ज्यादा सरकारी स्कूलों में प्रिंसिपल या हेडमास्टर नहीं है। एनसीपीसीआर के मुताबिक दिल्ली के कुल 1,027 सरकारी स्कूलों में से सिर्फ 203 स्कूलों में ही प्रिंसिपल या हेडमास्टर थे जिसमें से 3 में एक्टिंग हेडमास्टर, 9 में हेडमास्टर और 191 में प्रिंसिपल मौजूद थे।
NCPCR says 203 out of 1027 govt schools in Delhi functioning without a head, seeks explanation https://t.co/XMGQu57yGa
— प्रियंक कानूनगो Priyank Kanoongo (@KanoongoPriyank) April 12, 2022
केजरीवाल का शिक्षा मॉडल : दसवीं की टॉप 10 रैंकिंग से दिल्ली बाहर
पिछले साल 2023 में दिल्ली में सरकारी स्कूलों के दसवीं का रिजल्ट 81.27 प्रतिशत रहा है, जो देश के ओवरऑल 94.40 प्रतिशत से काफी कम है। दिल्ली ना सिर्फ रिजल्ट बल्कि रैंकिंग के मामले में काफी नीचे आ गई है। दसवीं की रैंकिंग में दिल्ली टॉप 10 से बाहर हो गई है। दिल्ली को 15वें नंबर से संतोष करना पड़ा है। नोएडा और पटना रैंकिंग में दिल्ली से आगे हैं। इतना ही नहीं इस बार दिल्ली 10वीं और 12 वीं दोनों की रैंकिंग में टॉप तीन से बाहर है। ये है केजरीवाल के शिक्षा का दिल्ली मॉडल।
7 जवाहर नवोदय विद्यालयों के लिए नहीं दी जमीन
बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने केजरीवाल पर दिल्ली के लोगों के आंखों में धूल झोंकने का आरोप लगया। उन्होंने दावा किया कि केजरीवाल सरकार ने जवाहर नवोदय विद्यालयों के लिए जमीन आवंटन का मामला चार सालों से लटका रखा है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की ओर से मनोज तिवारी को लिखे गए पत्र का हवाला देते हुए मालवीय ने यह ट्वीट किया। उन्होंने कहा कि 2016-17 के दौरान देशभर में 62 नए जवाहर नवोदय विद्यायल स्वीकृत किए गए थे। इनमें से 7 नए नवोदय विद्यालय दिल्ली के तहत स्वीकृत किए गए थे। हालांकि, दिल्ली सरकार की ओर से इन नवोदय विद्यालयों की स्थापना के लिए जरूरी भूमि और स्थायी आवास उपलब्ध न कराए जाने से ये विद्यालय शुरू नहीं हो पाए। इससे पता चलता है कि केजरीवाल सरकार शिक्षा को लेकर कितना संजीदा है। फिलहाल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में दो जवाहर नवोदय विद्यालय चल रहे हैं।
Arvind Kejriwal continues to lie to the people of Delhi, pull wool over their eyes.
Today, he appointed a Bollywood celebrity as brand ambassador of Desh ke Mentor, a still to be launched program.
Did the CM tell him that he hasn’t allotted land for 7 JNVs in Delhi since 2016-17? pic.twitter.com/j8rmCZlZtC— Amit Malviya (@amitmalviya) August 27, 2021
केजरीवाल ने वर्चुअल स्कूल को लेकर बोला झूठ
दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने 31 अगस्त, 2022 को ट्वीट कर कहा कि आज शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बड़ी क्रांति की शुरुआत हो रही है। आज देश का पहला वर्चुअल स्कूल दिल्ली में शुरू। मुख्यमंत्री केजरीवाल ने आगे कहा कि हमें बाबा साहब का सपना पूरा करना है, देश के हर बच्चे तक अच्छी शिक्षा पहुंचानी है, दिल्ली के डिजिटल स्कूल में नौवीं क्लास के लिए एडमिशन शुरू हो गए हैं। इस वेबसाइट DMVS.ac.in पर जाकर बच्चे एडमिशन ले सकते हैं। जब अरविंद केजरीवाल के इस दावे की पड़ताल की गई, तो यह पूरी तरह से झूठा नकला। दरअसल दिल्ली में खोला गया वर्चुअल स्कूल देश का पहला वर्चुअल स्कूल नहीं है। सबसे पहले 2020 में बीजेपी शासित राज्य उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने देहरादून में देश के पहले वर्चुअल स्कूल की शुरुआत की थी। इस स्कूल के जरिये भारतीय ज्ञान परंपरा, वैदिक गणित, विज्ञान, भारतीय शास्त्रीय संगीत, संस्कृति, कला और परंपराओं की शिक्षा दी जा रही है। वर्चुअल होम स्कूल के उद्घाटन कार्यक्रम में अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका समेत कई देशों के लोग वर्चुअली जुड़े हुए थे।
NIOS started virtual school on 14th Aug 2021 & Education Min Dharmendra Pradhan launched it.I was surprised to read that Delhi Govt launched it y’day. As far as first in the country is concerned,we launched it on national scale,3rd session underway: Saroj Sharma, NIOS Chairperson pic.twitter.com/ALqWcmTEkA
— ANI (@ANI) September 1, 2022