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कर्नाटक का हिजाब विवाद कुछ छात्राओं का विरोध नहीं, बल्कि यह है कट्टरपंथी इस्लामिक समूह पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया से जुड़े सीएफआई की सुनियोजित साजिश

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क्या देशभर में हिजाब विवाद अचानक ही सुर्खियों में आ गया ? क्या यह सिर्फ कर्नाटक के उडुपी के गवर्नमेंट पीयू कालेज फॉर वूमैन आधा दर्जन छात्राओं का ही मामला था, जो क्लासरूम में हिजाब पहनकर गईं और कालेज प्रबंथन द्वारा रोकने पर इन्होंने हिजाब उतारने से इनकार कर दिया ? या फिर इसके पीछे कहानी कुछ और है, जिसके दम पर दूसरे वर्ष की इन छात्राओं ने हिजाब उतारकर क्लास में बैठने की अपीलों को ख़ारिज कर दिया। इसके विरोध और हिंसा के बाद मामला कोर्ट में पहुंच गया। सबसे बड़ा सवाल यह है कि हिजाब विवाद अचानक सामने आया या फिर इसके पीछे सुनियोजित साजिश थी ? सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर बिखरे सुबूत बता रहे हैं कि सब कुछ प्री-प्लांड था।असल में विवाद से ज्यादा कांग्रेस, लेफ्ट और मुस्लिम अतिवादी संगठनों का प्रोपेगंडा
इसके पीछे प्रतिबंधित संगठन सिमी के प्रॉक्सी संगठन कैम्पस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) और पॉपूलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) भी हैं। छात्राएं सीएमआई के जुड़ी हैं। इस संगठन का जुड़ाव PFI से है। पीएफआई का दक्षिण भारत के केरल, तमिल और कर्नाटक जैसे राज्यों में बेस है, अतिवादी गतिविधियों के कारण भारत सरकार इसे बैन करने की प्रक्रिया में है। कर्नाटक के उडूपी में शुरू हुआ हिजाब विवाद असल में विवाद से ज्यादा कांग्रेस, लेफ्ट और मुस्लिम अतिवादी संगठनों का प्रोपेगंडा है, जिसे कुछ वाम विचारधारा वाले जर्नलिस्ट भड़का रहे हैं। इसे पांच राज्यों में चुनाव से पहले सुनियोजित तरीके से प्लान किया गया है।सीएफआई ने उडुपी सहित कॉलेजों में सदस्यता अभियान चलाकर जमीन तैयार की
दरअसल, इस सारे विवाद की सुनियोजित शुरुआत पिछले साल एक कट्टरपंथी और आपराधिक छात्र समूह कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI) ने की। सीएफआई ने उडुपी सहित कॉलेजों में अपना सदस्यता अभियान शुरू किया है। कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया कट्टरपंथी इस्लाम समूह पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) का हिस्सा है। सीएफआई ने सोशल मीडिया पर अपना अभियान चलाने के लिए न सिर्फ ट्वीटर, इंस्टा आदि पर नए अकाउंट खोले, बल्कि हैशटैग अभियान के माध्यम से अपने एजेंडे के आगे बढ़ाना शुरू किया।

सीएफआई ने ट्वीटर पर हैशटेग कैंपेन के माध्यम से शिक्षा नीति तो गलत बताया
गुजरात के इंवेस्टीगेटिव जर्नलिस्ट ने भी पड़ताल कर कुछ साक्ष्य जुटाए हैं। पटेल के मुताबिक बीबीसी के साथ एक साक्षात्कार में कथित पीड़ितों में से एक ने दावा किया कि वे सीएफआई के सदस्य नहीं थे। हिजाब विवाद के बाद ही उन्होंने उनसे संपर्क किया है! लेकिन यह सच नहीं था। कम से कम उनकी ट्विटर टाइमलाइन कुछ और ही कहानी कहती है। उनके ट्विटर पर पहले दिन से ही सीएफआई का प्रचार शुरू हो गया था। उन्होंने 1 नवंबर 2021 को CFI के हैशटैग कैंपेन में हिस्सा लेने के लिए कॉपी-पेस्ट कर ट्वीट पोस्ट करना शुरू किया। यह हैशटैग नई शिक्षा नीति के खिलाफ था।

पड़ताल के मुताबिक अगला CFI हैशटैग 8 नवंबर 2021 को बाबरी मस्जिद को लेकर शुरू किया गया था। इसमें किस तरह की कट्टर भाषा का इस्तेमाल किया गया। सीएफआई के सदस्यों ने कॉपी-पेस्ट कर इस अभियान को आगे बढ़ाया। इसके बाद 21 नवंबर 2021 को CFI के प्रदेश अध्यक्ष ने अज़ान को लेकर ट्विटर पर अभियान की शुरुआत की।

सीएफआई की टूलकिट ‘संघी’ हिंदुओं को नेपाल जाने की सलाह

सीएफआई की इन लड़कियों ने व्हाट्सएप ग्रुप या सीएफआई के टूलकिट का अनुसरण करते हुए शब्द-दर-शब्द कॉपी-पेस्ट का काम किया। यहां तक कि हिंदुओं को नेपाल जाने की सलाह देते समय ‘संघी’ जैसे शब्दों का भी इस्तेमाल किया गया।

सीएए, दिल्ली दंगों के लिए मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल सीएफआई का सचिव रऊफ शरीफ का समर्थन
गिरफ्तार अपराधी रऊफ शरीफ का समर्थन करने के लिए 12 दिसंबर 2021 को CFI का अगला हैशटैग शुरू किया गया। रऊफ शरीफ सीएफआई का सचिव है और उसको एक साल पहले यूपी पुलिस ने गिरफ्तार किया था। वह सीएए और दिल्ली दंगों के लिए मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल था।

  

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