दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार भ्रष्टाचार में इस कदर डूब चुकी है कि ऐसा कोई विभाग ही नहीं बचा है जहां भ्रष्टाचार नहीं हो। इनके भ्रष्टाचार की जड़ें कहां-कहां तक फैली है, यह पता करना भी आसान काम नहीं है। दिल्ली में एक के बाद एक कई घोटालों को अंजाम देने के बाद अब वृक्षारोपण घोटाला सामने आया है। इस संबंध में दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली में वृक्षारोपण में ‘वित्तीय अनियमितताओं’ पर दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया है। हाईकोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए नोटिस जारी कर यह पूछा है कि पिछले पांच साल में कितने और किस प्रकार के पौधे लगाए गए और उन पर कितना खर्च हुआ है। अदालत को यह बताया गया कि सरकारी एजेंसियां केवल यह लक्ष्य रखती हैं कि पेड़ कितने लगाए गए जबकि पर्यावरण संबंधी लक्ष्य उनके एजेंडे से नदारद रहता है। यानी लगाए गए पौधे बचे हैं या नहीं और प्रदूषण को कम करने में इन पौधों का क्या रोल है, इसकी खोज खबर कोई नहीं लेता है।
वृक्षारोपण की आड़ में भी AAP ने कर डाला घोटाला। शर्म करो केजरीवाल। pic.twitter.com/tfZTkOn9Hs
— BJP MAYUR VIHAR ?? (@bjp4mayurvihr) September 30, 2022
याचिकाकर्ता के वकील आकाश वशिष्ठ ने कहा कि आमतौर पौधारोपण करने वाली एजेंसियां के पास पौधे की प्रजातियां, संख्या, सटीक स्थान, जियोटैग किए स्थान, पौधारोपण में खर्च और वास्तविक स्थिति में मौजूद पौधों का सटीक रिकॉर्ड नहीं होता है। कैग की रिपोर्ट में भी दिल्ली में पौधारोपण में घोर अनियमितता और मृतप्राय दिल्ली ट्री अथारिटी पर प्रकाश डाला गया है।
टाइम्स नाउ की रिपोर्ट में कहा गया है कि मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा की अगुवाई वाली एक पीठ जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में इस मामले में एसआईटी जांच या एक स्वतंत्र जांच समिति गठित करने की मांग की गई। पीठ ने सभी पौधारोपण एजेंसियों को ईपीए अधिनियम के 5 के तहत आगे के निर्देश जारी करने के निर्देश भी जारी किए, ताकि सभी नए या प्रतिपूरक वृक्षारोपण को न्यूनतम 8-10 वर्षों की अवधि के लिए आवश्यक रूप से बनाए रखा जा सके। अदालत ने इस मामले में आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय, डीडीए, एमसीडी, एनडीएमसी, सीपीडब्ल्यूडी, पीडब्ल्यूडी, दिल्ली जैव विविधता परिषद, दिल्ली पार्क और गार्डन सोसाइटी, एएसआई, एनएचएआई और सीपीसीबी से भी उनकी राय मांगी।
पर्यावरणविद् दीवान सिंह ने यह याचिका दायर की थी। याचिका में बड़े पैमाने पर होने वाले या एक दिवसीय वृक्षारोपण करने वाली सरकारी एजेंसियों की समस्या को उठाया गया है। याचिका में कहा गया कि सरकारी एजेंसियां पेड़ लगाने की संख्या गिनकर अपनी उपलब्धियों का बखान करने तक सीमित रहती हैं। जो कि पारिस्थितिक रूप से व्यर्थ और राजधानी में जैव विविधता को बाधित करने वाली होती हैं।
याचिका में भूमि की सीमित मात्रा का मुद्दा भी उठाया गया जिसका उपयोग वृक्षारोपण के लिए किया जा सकता है, साथ ही साथ वृक्षारोपण के गलत तरीके की तरफ भी ध्यान दिलाया गया है जैसे-दो पेड़ों की बीच की दूरी अगर कम होगी तो पेड़ का विकास सही तरीके से नहीं हो पाएगा और वह प्रदूषण को खत्म करने में भी मददगार नहीं होंगे। इसके साथ ही कहा गया है कि शुरुआती वर्षों में पौधों के रखरखाव में कमी की वजह से बहुत से पौधे सूख जाते हैं।
केजरीवाल सरकार ने इसी महीने वृक्षारोपण के लक्ष्य को बढ़ाकर अब 35 लाख की जगह इस साल 42.81 लाख पौधारोपण का नया लक्ष्य तय किया था। केजरीवाल सरकार ने कहा है कि इस साल अब तक 96 प्रतिशत वृक्षारोपण के लक्ष्य को पूरा कर लिया गया है। पौधारोपण लक्ष्य तो पूरा कर लिया जाता है लेकिन उनमें से कितने पौधे बचे हैं और उनका सही तरीके विकास हो रहा है या नहीं यानी रखरखाव पर किसी कोई ध्यान नहीं देता।
#केजरीवाल सरकार ने #वृक्षारोपण के लक्ष्य को बढ़ाया, अब 35 लाख की जगह इस साल 42.81 लाख #पौधारोपण का रखा नया लक्ष्य !
केजरीवाल सरकार ने इस साल अब तक 96 प्रतिशत वृक्षारोपण के लक्ष्य को पूरा कर लिया है, #अभियान की सफलता को देखते हुए बढ़ाया गया लक्ष्य ! @AapKaGopalRai @AamAadmiParty pic.twitter.com/FiIZtRg59d
— Rajesh Sinha AAP (@RajeshSinhaAAP) September 14, 2022