प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में केंद्र सरकार एक देश, एक निशान, एक विधान की परिकल्पना को साकार करने में निरंतर जुटी हुई है। मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में लागू धारा 370 को खत्म कर करोड़ों भारतीयों की चाहत को साकार किया। इसके साथ ही एक राष्ट्र एक राशनकार्ड योजना देश में करीब-करीब 80 करोड़ एनएफएसए लाभार्थियों को कवर कर रही है। इसी कड़ी में करोड़ों रूपये, और समय बचाने के साथ ही विकास कार्यों में तेजी के लिए मोदी सरकार वन नेशन-वन इलेक्शन पर काम कर रही है और इसके लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति भी बनाई गई है। राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने के इसी अभियान के तहत अब मोदी सरकार भारत के हर स्टूडेंट के लिए एक देश-एक पहचान का विजन ला रही है। इससे आधार की तरह स्टूडेंट्स की पढ़ाई से जुड़ा हर डेटा एक साथ मिल जाएगा।
आधार कार्ड की तरह ही अपार आईडी का भी 12 डिजिट का नंबर होगा
मोदी सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में नवाचारों की सर्वत्र सराहना हो रही है। सरकार के शिक्षा मंत्रालय के दिशा-निर्देशन में नेशनल एजुकेशनल टेक्नोलॉजी फोरम एक ऐसा तंत्र बनाने में जुटा है, जहां छात्रों का डाटा एक ही जगह सत्यापित हो। इसके लिए अब ऑटोमेटेड परमानेंट एकेडमिक अकाउंट रजिस्ट्री यानी अपार आईडी (APAAR ID)। स्टूडेंट्स की नई पहचान बनेगी। यह एक तरह से आधार कार्ड जैसा 12 डिजिट का नंबर होगा। यह आईडी बाल वाटिका, स्कूल या कॉलेज में दाखिला लेते ही मिलेगी। स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी ट्रांसफर, सर्टिफिकेट सत्यापन, स्किल ट्रेनिंग, इंटर्नशिप, स्कॉलरशिप, अवॉर्ड, कोर्स क्रेडिट ट्रांसफर जैसी जानकारी डिजिटल रूप में समाहित रहेगी।
कई संस्थानों के छात्र-छात्राओं ने अपार आईडी के लिए रजिस्ट्रेशन करवाए
आंकड़ों में बात करें तो इस समय देश में 30 करोड़ से ज्यादा स्टूडेंट्स हैं। इनमें से 4.1 करोड़ उच्च शिक्षा और 4 करोड़ स्किलिंग कोर्स से जुड़े हुए हैं। एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट सिस्टम के चलते इस सत्र से एक हजार उच्च शिक्षा संस्थानों के एक करोड़ छात्र-छात्राएं अपार आईडी के लिए रजिस्ट्रेशन करवा चुके हैं। सरकार का लक्ष्य सभी छात्रों को अपार के दायरे में लाने का है। शिक्षा मंत्रालय ने राज्यों को सभी स्टूडेंट्स का अपार रजिस्ट्रेशन कराने के लिए कहा है। ताकि देश के सभी तीस करोड़ छात्रों के लिए एक देश-एक पहचान के अभियान को साकार किया जा सके।
एक ही प्लेटफॉर्म से डेटा शेयरिंग से सभी समस्याएं खत्म हो जाएंगी
देश के सभी संस्थानों के पास अपने छात्रों, शिक्षकों का डेटा होता है, लेकिन यह एक फॉर्मेट में नहीं होने से दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। नेशनल एजुकेशनल टेक्नोलॉजी फोरम के चेयरमैन प्रो. अनिल सहस्रबुद्धे के मुताबिक नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क आने के बाद मल्टीपल एग्जिट, एंट्री, नए कोर्स में लैटरल एंट्री आदि में ऐसे तंत्र की जरूरत थी, जहां एक ही प्लेटफॉर्म पर सब कुछ सत्यापित हो सके। कई बार अलग- अलग एजेंसियों के पास एक ही संस्था के बारे में उपलब्ध डेटा में भी विसंगतियां होती हैं। अब एक ही प्लेटफॉर्म से डेटा शेयरिंग से सभी किस्म की समस्याएं खत्म हो जाएंगी।
नौकरी पाने के लिए भी सीधे अपार नंबर का इस्तेमाल हो सकेगा
देश के सभी छात्रों की अपार आईडी आधार नंबर के जरिए जारी होगी। यह स्कूल-कॉलेज, यूनिवर्सिटीज के माध्यम से ही बनाई जाएगी। इसमें माता- पिता/अभिभावकों की सहमति भी ली जाएगी। इसका डेटा शिक्षा संबंधी विभागों और संस्थानों के साथ साझा होगा। इसके तहत बच्चों का आधार वेरिफिकेशन किया जाएगा। अपार से जुड़े रिकॉर्ड डिजिलॉकर में उपलब्ध होंगे। छात्र जीवन से जुड़ी हर अकादमिक गतिविधि की अधिकृत सूचना इस नंबर के साथ उपलब्ध होगी। नौकरी पाने के लिए भी सीधे अपार नंबर का इस्तेमाल हो सकेगा। यही नहीं, नौकरी पाने के बाद स्किलिंग, रीस्किलिंग या अपस्किलिंग में भी इसी का इस्तेमाल हो सकेगा।
स्टूडेंट्स के साथ ही शिक्षकों को अपार आईडी नंबर जारी होगा
शिक्षा से इतर भी अपार आईडी का इस्तेमाल हो सकेगा। रेल और बस कंसेशन में अपार नंबर का इस्तेमाल हो सकेगा। अपार आईडी से छात्रों और अभिभावकों की कई मुश्किलें आसान होंगी। इससे कोर्स क्रेडिट ट्रांसफर में आसानी होगी। मसलन किसी कोर्स के दो विषय आप पढ़ चुके हैं और अन्य विषय बाद में पढ़ते हैं तो इसमें जानकारी रहेगी कि आप दो विषय शुरुआत में पढ़ चुके हैं। ये दोबारा नहीं पढ़ने होंगे। अपार में सर्टिफिकेट वेरिफाइड रहेंगे। बार-बार वेरिफिकेशन का झंझट खत्म होगा। स्टूडेंट्स के साथ ही शिक्षकों को उनके पैन नंबर, स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी या उच्च शिक्षा संस्थानों और एडुटेक कंपनियों व शैक्षणिक स्टार्टअप को उनके यूडाइस, आईसी या जीएसटीएन नंबर के आधार पर अ पार नंबर जारी होगा।
वन नेशन वन राशन कार्ड योजना में 80 करोड़ एनएफएसए लाभार्थी
इससे पहले मोदी सरकार ओएनओआरसी प्रौद्योगिकी से संचालित एक राष्ट्र एक राशन कार्ड योजना ला चुकी है। नौ अगस्त 2019 को इस योजना की शुरुआत के बाद से बहुत ही कम समय में अब इसे देश भर के सभी 36 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में लागू किया जा चुका है। असम, वन नेशन वन राशन कार्ड योजना में शामिल होने वाला अंतिम राज्य है। यह जून 2022 में इस प्रणाली से जुड़ा था और इस तरह से योजना को अखिल भारतीय स्तर पर लागू किया जा चुका है। इसे केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत राशन कार्डों की देशव्यापी पोर्टेबिलिटी के लिए लागू किया गया है। वन नेशन वन राशन कार्ड प्रणाली एनएफएसए से लाभान्वित होने वाले सभी लोगों विशेष रूप से प्रवासी लाभार्थियों को बायोमेट्रिक/आधार प्रमाणीकरण के साथ उनके मौजूदा राशन कार्ड के माध्यम से देश में किसी भी उचित मूल्य की दुकान (एफपीएस) से अपने अधिकार के खाद्यान्न के पूर्ण या आंशिक हिस्से को प्राप्त करने की अनुमति देती है। यह योजना परिवार के सदस्यों को घर वापस आने पर, यदि कोई हो तो, उसी राशन कार्ड पर शेष खाद्यान्न पाने का दावा करने की अनुमति देती है। खाद्य सुरक्षा अब पूरे देश में पोर्टेबल है। यह योजना देश में अपनी तरह की एक विशेष नागरिक केंद्रित पहल है। वर्तमान में, एक राष्ट्र एक राशन कार्ड योजना करीब-करीब सभी (80 करोड़) एनएफएसए लाभार्थियों को कवर करती है। इसके अलावा, इस योजना के तहत प्रति माह औसतन लगभग 3 करोड़ पोर्टेबिलिटी लेन-देन दर्ज किए जा रहे हैं।
वन नेशन-वन इलेक्शन पर पूर्व राष्ट्रपति कोविंद की समिति कर रही काम
केंद्र सरकार ने एक राष्ट्र, एक चुनाव को लेकर भी अहम कदम उठाया है। सरकार ने इस संबंध में एक समिति का गठन किया है। पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को इस समिति का अध्यक्ष बनाया गया है। ऐसे में सवाल है कि आखिर यह एक देश, एक चुनाव (One Nation, One Election) क्या है? दरअसल, ‘एक देश एक चुनाव’ एक प्रस्ताव है जिसमें लोकसभा (भारतीय संसद के निचले सदन) और सभी राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने का सुझाव दिया गया है। इसका मतलब है कि चुनाव पूरे देश में एक ही चरण में होंगे। मौजूदा समय में हर पांच साल बाद लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए हर 3 से 5 साल में चुनाव होते हैं। इसके समर्थन में यह भी कहा जाता है कि इससे केंद्र और राज्य सरकारों की नीतियों और कार्यक्रमों में निरंतरता सुनिश्चित करने में भी मदद मिलेगी। वर्तमान में जब भी चुनाव होने वाले होते हैं तो आदर्श आचार संहिता लागू की जाती है। इससे उस अवधि के दौरान लोक कल्याण के लिए नई परियोजनाओं के शुरू पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है। पीएम मोदी कह चुके हैं कि एक देश, एक चुनाव से देश के संसाधनों की बचत होगी। इसके साथ ही विकास की गति भी धीमी नहीं पड़ेगी।
समय और करोड़ों रुपयों की बचत के साथ विकास कार्यों में आएगी तेजी
एक राष्ट्र, एक चुनाव के समर्थन में तर्क दिया जाता है कि इससे चुनाव पर होने वाले खर्च में कमी आएगी। रिपोर्टों के अनुसार, 2019 के लोकसभा चुनावों में 60,000 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। इस राशि में चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों द्वारा खर्च की गई राशि और चुनाव आयोग ऑफ इंडिया (ECI) द्वारा चुनाव कराने में खर्च की गई राशि शामिल है। वहीं, 1951-1952 में हुए लोकसभा चुनाव में 11 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। इस संबंध में लॉ कमीशन का कहना था कि अगर 2019 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाते हैं तो 4,500 करोड़ का खर्चा बढ़ेगा। ये खर्चा ईवीएम की खरीद पर होगा लेकिन 2024 में साथ चुनाव कराने पर 1,751 करोड़ का खर्चा बढ़ेगा। इस तरह धीरे-धीरे ये अतिरिक्त खर्च भी कम होता जाएगा। इसके अलावा, एक साथ चुनाव कराने के समर्थकों का तर्क है कि इससे पूरे देश में प्रशासनिक व्यवस्था में दक्षता बढ़ेगी। इस संबंध में कहा जाता है कि अलग-अलग मतदान के दौरान प्रशासनिक व्यवस्था की गति काफी धीमी हो जाती है। सामान्य प्रशासनिक कर्तव्य चुनाव से प्रभावित होते हैं क्योंकि अधिकारी मतदान कर्तव्यों में संलग्न होते हैं।