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अमेरिका के बाद रूस ने भी माना भारत को सुपर पावर, भारत को बताया दुनिया की एक अहम धुरी और अर्थव्यवस्था के मामले में लीडर

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बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में नरेन्द्र मोदी ने चेन्नई के कट्टनकुलाथुर में एसआरएम विश्वविद्यालय के छात्रों को संबोधित करते हुए कहा था कि दुनिया झुकती है, लेकिन इसे झुकाने वाला चाहिए। आज उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में खुद इस बात को साबित कर दिखाया है। उनके नेतृत्व का करिश्मा है कि एक ओर दुनिया उन्हें वैश्विक नेता मान रही है, वहीं भारत वैश्विक कूटनीति के केंद्र में आ गया है। अमेरिका और रूस जैसे ताकतवर देश भी भारत को उभरता सुपर पावर और बहुध्रुवीय व्यवस्था में एक अहम धुरी और आर्थिक लीडर के रूप में देख रहे हैं। 

बहुध्रुवीय व्यवस्था में भारत भी एक अहम ध्रुव

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के काउंटर टेररिज्म पर 14 और 15 दिसंबर को होने वाली समिट से पहले रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि दुनिया अब बहुध्रुवीय व्यवस्था की ओर बढ़ रही है। इसमें भारत भी एक अहम ध्रुव है। उन्होंने कहा कि दुनिया में आर्थिक ग्रोथ के मामले में भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। यहां तक कि अर्थव्यवस्था के मामले में भी वह लीडर है। उन्होंने कहा कि भारत के पास तमाम कूटनीतिक समस्याओं के समाधान का एक लंबा अनुभव है।

भारत के पास मल्टीपोलर वर्ल्ड बनाने की क्षमता 

7 दिसंबर को मास्को में प्रिमाकोव रीडिंग इंटरनेशनल फोरम में सवालों के जवाब देते हुए, रूसी विदेश मंत्री लावरोव ने कहा कि भारत एससीओ में अहम रोल अदा करता है, जो पूरी दुनिया को उम्मीद बंधाता है। लावरोव ने कहा कि भारत एक ऐसा देश है जो न केवल मल्टीपोलर वर्ल्ड बनाने की ना सिर्फ आकांक्षा रखता है, बल्कि वह इसके लिए उसमें क्षमता भी है। लावरोव ने जर्मनी और जापान की तुलना में भारत और ब्राज़ील को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाने पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि दोनों देश इसके लिए ज़ोर लगा रहे हैं और ये बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में अहम भूमिका वाले देशों की बढ़ती आकांक्षाओं का सबूत है।

फिर यूएनएससी में भारत की स्थायी सदस्यता की वकालत

इसी बीच रूस ने भारत से दोस्ती निभाते हुए एक बार फिर से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उसके स्थायी सदस्य बनाए जाने की वकालत की है। लावरोव ने भारत की प्रशंसा करते हुए कहा कि भारत ने वैश्विक और क्षेत्रीय मुद्दों पर अपने रुख के साथ परिषद में अहम भूमिका निभाई है। फिलहाल भारत सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य है। दो साल की यह अस्थायी सदस्यता भी 31 दिसंबर को समाप्त हो रही है। भारत के साथ ही आयरलैंड, केन्या, मेक्सिको और नॉर्वे की सदस्यता भी समाप्त हो रही है। भारत ने इससे पहले अगस्त 2021 में यूएनएससी की अध्यक्षता संभाली थी।

भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का दिखा असर

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत अपने राष्ट्रीय हितों को देखते हुए स्वतंत्र विदेश नीति को प्राथमिकता दे रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत ने रूस का समर्थन नहीं किया लेकिन पश्चिम देशों की भाषा और उसके प्रतिबंधों को देखते हुए उसने ये भी कहा कि ये मामला इस तरह से सुलझेगी नहीं। प्रधानमंत्री मोदी ने रूसी राष्ट्रपति के साथ बातचीत में साफ कहा कि ये युद्ध का समय नहीं है। लेकिन भारत ने संयुक्त राष्ट्र में रूस के ख़िलाफ़ पश्चिमी देशों के निंदा प्रस्तावों का समर्थन भी नहीं किया। यही वजह है कि रूस को एक बहुध्रुवीय व्यवस्था में भारत एक धुरी नजर आ रहा है।

2014 के बाद विदेश नीति अधिक गतिशील और प्रभावी 

गौरतलब है कि भारत में पूर्ववर्ती सरकारों ने भी विदेश नीति को स्वतंत्र रखने की कोशिश की थी। लेकिन मोदी सरकार ने क्राइमिया और फिर यूक्रेन संकट को देखते हुए पहले की तुलना में अपने देश की विदेश नीति को स्पष्ट रूप से धार दी है। ईरान के ख़िलाफ़ अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने उसके साथ चाबहार परियोजना पर सहयोग बरक़रार रखा। एस-400 डील हो या रूस से तेल खरीदना, भारत ने स्वतंत्र विदेश नीति का पालन किया है। भारत ने 2016-17 के दौरान शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ की सदस्यता ली जबकि माना जाता है कि यह चीन का असर वाला संगठन है। दूसरी ओर पश्चिमी देशों के साथ सहयोग के उदाहरण के तौर पर क्वॉड में भारत की भागीदारी को ज़िक्र किया जा सकता है। 2014 के बाद भारत की विदेश नीति अधिक गतिशील, अधिक प्रभावी और इसकी भूमिका अधिक महत्वपूर्ण हो गई है।

 

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