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किसानों के सड़क जाम पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, कहा- किसी हाइवे को स्थायी रूप से बंद नहीं किया जा सकता

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तीन कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि किसी हाइवे को इस तरह स्थायी रूप से बंद नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में पहले ही स्पष्ट आदेश दिए जा चुके हैं। नोएडा निवासी मोनिका अग्रवाल द्वारा दायर की गई याचिका पर न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा कि शिकायतों का निवारण न्यायिक मंचों और संसदीय बहस के माध्यम से हो सकता है, लेकिन राजमार्गों को अवरुद्ध करके नहीं।

भारत सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि एक हाइ लेवल की कमिटी का गठन किया गया है जो समस्या के समाधान को लेकर बात करे, लेकिन किसान संगठन के प्रतिनिधि को बुलाए जाने पर भी वह बातचीत में भाग लेने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में कोर्ट इस बात की इजाजत दे कि हम किसान संगठनों को इस मामले में पक्षकार बनाएं ताकि बाद में वह ये न कहें कि हमें पक्षकार नहीं बनाया गया। तब बेंच ने तुषार मेहता से कहा है कि वह इसके लिए आवेदन दाखिल करे और किसान संगठनों को पक्षकार बनाए। इस पर मेहता ने कहा कि इसके लिए हम शुक्रवार को अर्जी दाखिल कर देंगे। 

याचिकाकर्ता मोनिका अग्रवाल एक सिंगल मदर हैं, जो स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जूझ रही हैं। ऐसे में उनका नोएडा से दिल्ली सफर करना बहुत मुश्किल हो गया है। मोनिका ने याचिका में कहा है कि जहां उसे दिल्ली पहुंचने में 20 मिनट लगते थे और अब इसमें दो घंटे से अधिक समय लग रहा है जबकि यहां के आसपास के लोगों को भी काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

गौरतलब है कि 7 अक्टूबर, 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने धरना प्रदर्शन के अधिकार मामले में दिए फैसले में कहा था कि पब्लिक प्लेस और रोड को अनिश्चितकाल के लिए ब्लॉक नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन का अधिकार संवैधानिक अधिकार है लेकिन साथ ही इस कारण पब्लिक प्लेस व रोड को ब्लॉक करने से दूसरे के अधिकार का हनन होता है और ऐसे में पब्लिक प्लेस को कब्जा कर अवरोध पैदा करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। शाहीनबाग प्रदर्शन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उस उक्त फैसला दिया था।

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