After taking 'soft' stand against Raje; posters placed outside @AamAadmiParty office calling #Vishwas ‘traitor’ https://t.co/tRNsYKu6CJ pic.twitter.com/3QegddRMrH
— ABP News (@abpnewstv) June 17, 2017
“भाजपा का यार है, कवि नहीं गद्दार है।”- ये पोस्टर दिलीप पांडे की ओर से विश्वास विरोधियों ने लगाया। कहने को तो दिलीप पांडे ने ऐसा नहीं किया होगा, माना जा सकता है। उन्होंने ऐसा किया होगा- ऐसा दावा करने का कोई आधार तो नहीं। लेकिन, किसी और पार्टी ने ऐसा किया होगा, ऐसा भी नहीं है। इसका मतलब ये हुआ कि डॉ कुमार विश्वास को गद्दार या भाजपा का आदमी बताए जाने वाले लोग आम आदमी पार्टी के ही होंगे। अगर, ऐसा नहीं था, तो पार्टी को अपने वरिष्ठ नेता के बचाव में आगे आना चाहिए था। यह तो एक घटना हुई।
उपरोक्त घटना एक हफ्ता पहले की है यानी यही वो समय रहा होगा, जब दिल्ली सरकार इफ्तार पार्टी के लिए निमंत्रण बांटने वाली लिस्ट तैयार कर रही होगी। 23 जून को इफ्तार पार्टी हो गयी, लेकिन डॉ कुमार विश्वास को इस बार निमंत्रण के लायक नहीं समझा गया। हर साल ऐसे आयोजनों में कवि कुमार विश्वास की मौजूदगी अनिवार्य रूप से हुआ करती थी, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो पाया तो इसके पीछे की घटनाओं में वह प्रकरण भी अवश्य है जिसके बाद केजरीवाल और मनीष सिसौदिया को उनके घर मनाने के लिए जाना पड़ा था।
इस बार इफ्तार और ‘गद्दार’ को अलग-अलग करके देखा गया। आम आदमी पार्टी की सरकार ने यह इफ्तार रखा था। एलजी और पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी निमंत्रण के बावजूद नहीं आए। पर, कुमार विश्वास का मामला तो निमंत्रण नहीं देने का था। इस बारे में उन्होंने खुद मीडिया को भी बताया। ऐसा करते हुए जहां उन्होंने इसे केजरीवाल सरकार का विशेषाधिकार बताया, वहीं अपनी पार्टी के नेतृत्व पर यह कहते हुए एक तमाचा भी जड़ दिया कि रामलीला मैदान का आंदोलन इसलिए नहीं हुआ था कि इफ्तार में किसे बुलाया जाए और किसे नहीं।
जाहिर है कुमार विश्वास इफ्तार में नहीं बुलाने को छोटी बात भी बताते हैं और इसे रामलीला मैदान के आंदोलन से जोड़कर भी कहते हैं तो मतलब साफ है कि यह उनका दर्द है। दर्द होना भी चाहिए। आखिर कुछ समय पहले तक जब योगेन्द्र यादव, प्रो. आनन्द कुमार, प्रशान्त भूषण को पार्टी से निकाला जा रहा था तब इन्होंने उन नेताओं का दर्द महसूस नहीं किया था। खुद उन्हें निकाल बाहर-करने वालों में शामिल थे। अब वही सज़ा उन्हें मिलती दिख रही है, तो अपनी करतूतों का दर्द भी उभर आए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
आप सरकार की नाक में दम कर चुके कपिल मिश्रा ने कुमार विश्वास के दर्द को बढ़ाते हुए चिट्ठी लिखी है। इस चिट्ठी में उन्हें पार्टी के भीतर भ्रष्टाचार का खुलासा करने की चुनौती दी गयी है। चिट्ठी में कहा गया है कि बंद कमरे में समझौता करने की प्रवृत्ति कुमार विश्वास को छोड़ देनी चाहिए। जिस भ्रष्टाचार की बात उन्होंने एक टेप जारी करके कही थी, जो आवाज़ उन्होंने नेतृत्व की मनमानी के खिलाफ उठायी थी उसे आगे बढ़ाने के लिए उन्हें आगे आना चाहिए। कपिल मिश्रा ने 1 लाख 60 हजार पन्नों का कथित सबूत देते हुए रविवार को उनसे भ्रष्टाचार पर खुलासा करने की उम्मीद की है।
आदरणीय श्री @DrKumarVishwas जी को खुला पत्र pic.twitter.com/Gu00no8mCy
— Kapil Mishra (@KapilMishraAAP) June 24, 2017
सवाल ये है कि क्या कुमार विश्वास को आम आदमी पार्टी के खिलाफ लड़ने का माद्दा है क्या? अगर है, तो उन्होंने ऐसा समझौता ही क्यों किया जिसमें उन्हें राजस्थान का प्रभारी बना दिया गया और उनके उठाए मुद्दों को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया? क्या डॉ विश्वास केवल राजनीतिक सौदेबाजी के लिए केजरीवाल के खिलाफ मुद्दे उठाते रहे हैं?
गलती डॉ विश्वास की नहीं है। अरविन्द केजरीवाल के सच्चे भक्त रहे हैं कुमार। वहीं से संस्कृति सीखी है। मौके का फायदा उठाना, मौका देखकर चौका जड़ना और जब मौका मिले, रफूचक्कर हो जाना- यही आप नेताओं का राजनीतिक तरीका रहा है। कुमार विश्वास अब इसी तरीके को अपनी ही पार्टी और नेतृत्व पर आजमाते दिख रहे हैं।
हर बार की तरह इस बार भी पार्टी अपने नेतृत्व की आलोचना करने वालों को सबक सिखाने का मन बना रही है।
#Kumar #Vishwas पर निशाना लगाना नहीं छोड़ रहे #AAP #Leaders, जल्द होगी विदाई?@AamAadmiParty @ArvindKejriwal #news https://t.co/LswpWI0RiL pic.twitter.com/P2uVu1OTNb
— Inside News (@InsideNews_Live) June 23, 2017
वैसे अब केजरीवाल के इफ्तार में पहले जैसी रौनक कहां रही? एक के बाद एक नेता छोड़कर जाते रहे। उपराज्यपाल इफ्तार में नहीं आए, किसी दूसरी पार्टी के नेता नहीं आए। खुद अपनी पार्टी के सभी नेता नहीं आए। बात सिर्फ इफ्तार की नहीं है, आम आदमी पार्टी को राष्ट्रपति के चुनाव में भी न सत्ता पक्ष ने मशविरा के लिए बुलाया, न विपक्ष ने। यह स्थिति खुद आप नेतृत्व ने अपने लिए बना ली है।
हमेशा विरोध करने पर आमादा दिखती रही आप नेतृत्व को कुमार विश्वास ने बहुत सही पूछा है कि क्या पार्टी को विपक्ष बनने के लिए नहीं खड़ा किया गया था, या कि विकल्प बनने के लिए? सच तो यह है कि केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी न विपक्ष ही बन पायी और न वैकल्पिक राजनीति को ही परवान चढ़ा सकी। अपनी ही पार्टी के नेता विपक्ष बनते चले गये और अपनों से ही गद्दारों का जन्म होता रहा। अब तो वे कथित गद्दार इफ्तार की पार्टी देते नेतृत्व से पूछ रहे हैं कि बताओ असली गद्दार कौन है?