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राजीव गांधी फाउंडेशन को क्यों फंड कर रहा था चीन, इसकी एवज में कांग्रेस ने चीन के रास्ते में बिछे कौन से कांटे हटाए?

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भारत-चीन के बीच तनाव का दौर जारी है। दोनों देशों के बीच 1962 में एक बार जंग हो चुकी है। वहीं 1965 और 1975 में भी दोनों देशों के बीच हिंसक झड़पें हुई हैं। इन तारीख़ों के बाद एक बार फिर से अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में चीनी घुसपैठ के बाद दोनों देशों के बीच तनाव के हालात हैं। ऐसे वक्त में जब सभी राजनीतिक दलों को एकजुट होकर चीन से मुकाबला करना चाहिए। लेकिन कांग्रेस पार्टी भारत की सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमलावर है। संसद का सत्र भी चल रहा है और विपक्ष की तरफ से चीनी घुसपैठ पर जबरदस्त हंगामा भी देखने को मिल रहा है। गृह मंत्री अमित शाह ने चीन के मुद्दे को लेकर एक बयान दिया और अपने बयान में राजीव गांधी फाउंडेशन के बारे में जानकारी दी कि उसने चीन से फंडिंग हासिल की। केंद्र सरकार ने राजीव गांधी फाउंडेशन का एफसीआरए लाइसेंस वर्ष 2020 में रद्द कर दिया था। राजीव गांधी फाउंडेशन गांधी परिवार से जुड़ा एक NGO है। गृह मंत्रालय ने फाउंडेशन का फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेग्युलेटिंग एक्ट (FCRA) लाइसेंस रद्द कर दिया। संगठन पर विदेशी फंडिंग कानून का उल्लंघन करने का आरोप लगा है। यहां सवाल यह उठता है कि जो चीन हमारे देश की भूमि पर बुरी नजर रखता है आखिर उससे राजीव गांधी फाउंडेशन को फंडिंग लेने की मजबूरी क्या है। चीन ने फंडिंग क्यों की होगी इसकी तह में जाएं तो पता चलता है कि चीन ने फंडिंग इसलिए की थी ताकि भारत सरकार चीन के रास्ते में बिछे कांटे हटा दे और चीन के लिए भारत में अपना धंधा चमकाना आसान हो जाए। ध्यान देने वाली बात यह है कि इस धंधे की आड़ में चीन ने अपने कौन से जहरीले इरादे कामयाब किये और उसके लिए उसने कब कितनी रिश्वत किसको खिलाई, ये सब बातें जांच का विषय है। अभी न जाने ऐसे कितने और गड़े मुर्दे उखड़ने बाकी हैं जो ये बताएंगे कि भारत में जयचंद पहले भी थे और आज भी हैं। फिलहाल देश की जनता ये जानना चाहती है कि देश को इतने सस्ते में क्यों बेचा जा रहा था?

अमित शाह ने उठाया राजीव गांधी फाउंडेशन को चीन से मिले चंदे का मुद्दा

गृह मंत्री शाह ने कहा कि आज कांग्रेस का सदन में चीन को लेकर दोहरा रवैया दिखाई दिया। हंगामा कर सदन को नहीं चलने दिया गया। उन्होंने कहा कि आज संसद में सीमा पर हुई घटना को लेकर हंगामे की वजह से लोकसभा नहीं चल सकी। बाद में पता चला कि उसके पीछे कांग्रेस की क्या मंशा थी। पांचवें नंबर पर राजीव गांधी फाउंडेशन के बारे में एक सवाल था। सवाल कांग्रेस के ही सांसद ने पूछा था कि राजीव गांधी फाउंडेशन संस्था क्यों रद्द कर दी गई। अमित शाह ने आगे कहा कि चीन से 2005-2006 और 2006-2007 के बीच राजीव गांधी फाउंडेशन ने एक करोड़ 35 लाख रुपए लिए। फाउंडेशन का कहना है कि वह सामाजिक और रिसर्च वर्क के लिए पैसे देते थे, लेकिन इन पैसों का इस्तेमाल भारत-चीन संबंधों को मजबूत करने में किया गया, अगर कोई रिसर्च हुआ होता तो उसके रिपोर्ट दी गई होती। गृह मंत्री ने कहा कि सीआरएनए में पाया गया कि गलत तरीके से चीन के पैसे का मिस यूज किया गया। जाकिर नाइक के इस्लामिक संगठन से भी राजीव गांधी फाउंडेशन ने चंदा लिया। राजीव गांधी फाउंडेशन को रद्द करने की यही वजह थी।

केंद्र सरकार ने रद्द किया राजीव गांधी फाउंडेशन का एफसीआरए लाइसेंस

केंद्र सरकार ने गांधी परिवार से जुड़े एक एनजीओ पर बड़ी कार्रवाई कर दी है। गृह मंत्रालय ने राजीव गांधी फाउंडेशन का लाइसेंस रद्द कर दिया है। यह कार्रवाई फोरेन कन्ट्रीब्यूशन ‘रेगुलेशन‘ एक्ट के तहत की है। संगठन पर विदेशी फंडिंग कानून के कथित उल्लंघन का आरोप है। गृह मंत्रालय ने जुलाई 2020 में एक जांच कमेटी बनाई थी। उसकी रिपोर्ट के आधार पर ये फैसला लिया गया है। इस जांच कमेटी में ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स के अधिकारी शामिल थे। एफसीआरए लाइसेंस कैंसिल करने का नोटिस राजीव गांधी फाउंडेशन के ऑफिस बियरर को भेज दिया गया है। कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी आरजीएफ की अध्यक्ष हैं।

महिलाओं और बच्चों के हित में काम करने के लिए बनाया गया था फाउंडेशन

आरजीएफ की वेबसाइट के अनुसार, उसे 1991 में स्थापित किया गया। वेबसाइट में कहा गया है कि आरजीएफ ने 1991 से 2009 तक महिलाओं, बच्चों और अक्षम लोगों को मदद देने के अलावा स्वास्थ्य, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और शिक्षा क्षेत्र सहित कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में काम किया। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी इस फाउंडेशन की अध्यक्ष हैं। वहीं पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम और राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ट्रस्टियों के रूप में शामिल हैं। राजीव गांधी की वेबसाइट के मुताबिक इस संगठन को 1991 में स्थापित किया गया था।

फाउंडेशन को लेकर 2020 में भी उठा था चीन से फंडिंग का मामला

दरअसल, जून 2020 में उस समय के कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि इस फाउंडेशन को फंडिंग चीन से हुई है। उन्होंने कहा था कि एक कानून है जिसके तहत कोई भी पार्टी बिना सरकार की अनुमति के विदेश से पैसा नहीं ले सकती। कांग्रेस स्पष्ट करे कि इस डोनेशन के लिए क्या सरकार से मंजूरी ली गई थी। उन्होंने दावा किया था कि राजीव गांधी फाउंडेशन के लिए 2005-06 की डोनर की सूची है। इसमें चीन दूतावास ने डोनेट किया। फाउंडेशन को चीन की ओर से 90 लाख रुपए की फंडिंग करने का आरोप है। कानून मंत्री ने कांग्रेस से प्रश्न किया है कि वह कारण बताए कि कैसे चीन से गांधी परिवार का और चीन का गांधी परिवार की पार्टी से ये प्रेम बढ़ गया कि इनके कार्यकाल में ही चीन ने भारत की जमीन पर कब्जा किया।

चीन के साथ ही प्रधानमंत्री राहत कोष से भी राजीव गांधी फाउंडेशन को मिला पैसा

कांग्रेस मीडिया विभाग के प्रमुख रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि राजीव गांधी फाउंडेशन को 2005 में चीनी दूतावास से 1 करोड़ 45 लाख रुपए दान में मिले। यह राशि विकलांग लोगों की मदद और भारत-चीन संबंधों पर रिसर्च के लिए दिया गया था। सुरजेवाला के मुताबिक पूर्व निर्धारित मद में ही इस रकम को खर्च किया गया और आरजीएफ के खातों का विधिवत ऑडिट कर FCRA कानून के तहत रिटर्न जमा भी किया गया। प्रधानमंत्री राहत कोष से राजीव गांधी फाउंडेशन को पैसे मिलने के आरोप पर सुरजेवाला ने कहा कि 2004 के अंत में आई सुनामी के बाद वित्तीय वर्ष 2005 में प्रधानमंत्री राहत कोष से आरजीएफ को 20 लाख की रकम मिली थी जिसे अंडमान निकोबार में राहत कार्यों के लिए खर्च किया गया।

साल 2020 में हुआ था विदेशी फंडिंग में उल्लंघन का खुलासा

फाउंडेशन को यूपीए सरकार के दौरान भारत स्थित चीनी दूतावास, चीन सरकार, जाकिर हुसैन, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष (PMNRF), मंत्रालय, सार्वजनिक उपक्रमों के साथ-साथ मेहुल चोकसी ने भी चंदा दिया था। चीन सरकार की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की वित्त पोषित चाइना एसोसिएशन फॉर इंटरनेशनल फ्रेंडली कॉन्टैक्ट (CAIFC) ने भी फाउंडेशन को फंड दिया था। जाकिर नाइक ने भी इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन के जरिए 2011 में फाउंडेशन को 50 लाख रुपए दिए थे। हालांकि, कांग्रेस ने बाद में रकम लौटा दी थी।

कांग्रेस ने चीन से फंड लेकर देश की संप्रभुता को गिरवी रख दिया

फाउंडेशन ने धन के लिए ही चीन से भी मेलजोल बढ़ाया, जो फाउंडेशन तक ही सीमित नहीं था। वह मेलजोल भारत की आर्थिक नीति को प्रभावित करने लगा। काफी हद तक किया भी। मौजूदा समय में चीन का जो पैर भारत में पसरा, वह राजीव गांधी फाउंडेशन की ही देन है। जैसा खबरों में आ चुका है कि 2005, 2006, 2007 और 2008 में फाउंडेशन को चीन से पैसा मिला। चीन के पैसे का फाउंडेशन ऐसा आदी बन गया कि उसने देश की संप्रभुता को गिरवी रखने का मन बना लिया। यदि इसमें किसी को संदेह हो तो उसे फाउंडेशन के उस अध्ययन पर गौर करना चाहिए, जो चीन और भारत के बीच व्यापार को बढ़ाने के लिए हुआ था। उससे जाहिर होता है कि फाउंडेशन किस एजेडे पर काम कर रहा था।

एक्शन ऐड भी रहा फाउंडेशन का साझीदार, एक्शन ऐड के हर्ष मंदर ने किया था मोदी के खिलाफ दुष्प्रचार

पैसे के इस खेल में फाउंडेशन ने एक्शन ऐड इंडिया को साझीदार बनाया। हर्ष मंदर कभी इसके मुखिया हुआ करते थे। तब एक्शन ऐड के साथ मिलकर हर्ष मंदर ने गुजरात में अपना खूब चलाया था। वे प्रशासनिक सेवा में थे। 2002 के दंगे में इनको राजनीति करने का मौका मिल गया। नौकरी छोड़ दी और मोदी सरकार के खिलाफ अभियान चलाने लगे। हर घटना को सांप्रदायिक चश्मे से देखने और दिखाने लगे। गुजरात दंगों की बात न भी करें तो इशरत जहां वाला मामला भूला नहीं जा सकता। इसे लेकर जिस तरह अभियान चलाया गया, जाहिर तौर पर वह गांधी परिवार की सह पर रहा होगा। हर्ष और उनकी संस्था आलाकमान के करीब थी ही। चुनी हुई सरकार को पलटने के लिए अभियान चलने लगा। उसमें एक्शन ऐड से जुड़े लोग थे और हर्ष तो सबके अगुवा थे। उन्होंने तो नरेन्द्र मोदी के खिलाफ दुष्प्रचार करने का ठेका ही ले लिया था।

देश विरोधी तत्वों व विनाश की पटकथा लिखने वालों से फंड क्यों

राजीव गांधी फाउंडेशन में विनाश की पटकथा लिखने वालों के साथ ही उन लोगों से धन लिया जा रहा है जो भारत के बैरी हैं। उन लोगों से भी पैसे लिए जाते रहे जो दुनिया भर में उपद्रव फैलाने के लिए पहचाने जाते हैं। इसमें जाकिर नाईक भी शामिल है। वही नाईक जो अपने भाषण से देश में नफरत और हिंसा की खेती कर रहा है और कांग्रेस उसकी पैरोकार बनी है। क्यों बनी है? यह रहस्य भी खुल गया है। सबको पता चल चुका है कि जाकिर नाईक पैसे देता था। इस वजह से कांग्रेसी उसके पक्ष में खड़े हैं। यही वजह है कि जाकिर के नाम पर कांग्रेस में उबाल आ जाता है। रहमान साहब जाकिर के लिए पत्र लिख देते हैं। हालांकि जाकिर नाईक अकेला शख्स नहीं, जो नफरत की खेती भारत में करता है और फाउंडेशन उससे फंड लेता है। यह संस्था इस तरह के कई और संस्थान और सरकार से पैसा लेती है।

लोकतंत्र की हत्या करने वाली संस्थाओं से फाउंडेशन को क्यों मिलता था फंड

ओपन सोसाइटी ऐसी ही एक संस्था है। जार्ज सोरोस उसके कर्ताधर्ता हैं। जार्ज वैसे तो उद्योगपति हैं, लेकिन इस संस्था के जरिए वे दुनिया भर के विभिन्न देशों में अपना दखल रखते हैं। वह दखल राजनीतिक होता है। उसमें सत्ता परिवर्तन के लिए षडयंत्र रचा जाता है ताकि पिठ्ठू सरकार बैठाई जा सके। पूर्वी यूरोप और अफ्रीकी देशों में यह संस्था ऐसा खेल कर चुकी है। ओपन सोसाइटी लोकतंत्र की हत्या के लिए काम करती है। ऐसी संस्था के साथ राजीव गांधी फाउंडेशन काम करता है। उससे पैसे लेता है। पैसा तो यह संस्थान मेलिंडा एंड बिल गेट्स फाउंडेशन से भी लेता है। इसका भी बहुत स्याह इतिहास है। इनके मालिक पर ‘द नेशन’ ने एक लंबी रिपोर्ट लिखी है। वह रिपोर्ट काले कारनामों की कहानी है। कोरोना में इनकी भूमिका जगजाहिर है। डब्लूएचओ के साथ मिलकर कैसे दुनिया को नचाया यह किसी से छुपा नहीं है। इनका फाउंडेशन तो अफ्रीका को दवाओं के ट्रायल की प्रयोगशाला बनाने के लिए जाना जाता हैं। उससे राजीव गांधी फाउंडेशन ने पैसे लिए। दावा किया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश के रायबरेली और बाराबंकी के पुस्तकालयों में किताबें मुहैया कराने और दूसरी सुविधाएं बढ़ाने के लिए मेलिंडा फाउंडेशन से 2013 में राजीव गांधी फाउंडेशन को एक लाख डॉलर (63 लाख रुपये) मिले थे। लेकिन इस फंड में हेराफेरी की गई। रिपोर्ट के अनुसार बाराबंकी के पुस्तकालय को कोई फंड नहीं मिला है। वहीं रायबरेली स्थित पुस्तकालय को महज एक लाख रुपये मिले।

फोर्ड फाउंडेशन से भी रहा है राजीव गांधी फाउंडेशन का संबंध

फोर्ड फाउंडेशन अमेरिकी हितों एवं पश्चिमी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए काम करता है। जिसे अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने खड़ा किया है। फोर्ड फाउंडेशन सांस्कृतिक साम्राज्यवाद को फैलाने का काम करता है। एक्शन इंडिया जैसे संगठन उस मुहिम का हिस्सा है। इनसे, राजीव गांधी फाउंडेशन का संबंध है। कहने का मतलब यह है कि प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से फाउंडेशन अमेरिकी संस्कृति को भारत में फैला रहा है। जो उसमें बाधा बन रहा है, उसे सांप्रदायिक बता दिया जाता है। इस तरह का खेल फोर्ड ने खूब किया भी है। तीस्ता सीतलवाड के सबरंग ट्रस्ट को फोर्ड ने गुजरात में उपद्रव फैलाने के लिए बहुत फंड किया था। तीस्सा सीतलवाड़ ने अपने एनजीओ के जरिए अराजकता फैलाई भी थी। यह बात किसी से छुपी नहीं है। उनकी संस्था पर जो आरोप लगे हैं, उसका जवाब वे दे नहीं पाई हैं, सिवाय इसके कि हमें पीड़ित किया जा रहा है। कांग्रेस उनकी पैरोकार बनी है।

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