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केजरीवाल दिल्ली में कैसे मशहूर हो गए? दिल्ली के नागरिक कैसे ठगे गए? इस कहानी से समझिए

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यह कहानी बिट्टू नाम के एक युवा कामकाजी पेशेवर के बारे में है, जिसने दिल्ली में 2010 से काम करना शुरू किया। उस दौरान जब भी वो कोई न्यूज़ चैनल देखते था तो देश के अलग-अलग हिस्सों से भ्रष्टाचार की ख़बरें आती थीं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने मंत्रियों को नियंत्रण में रखने में पूरी तरह से विफल रहे थे। बिट्टू को यह बात बहुत बुरी लगी कि शीर्ष नेतृत्व देश को कैसे चला रहा है। इसे देखते हुए राजनेताओं से उसकी सारी उम्मीदें खत्म हो गई थीं। वह उन सभी से नफरत करने लगा।

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फिर एक दिन भ्रष्टाचार के खिलाफ एक आंदोलन शुरू हो गया। वह आंदोलन हिट हो गया। बिट्टू भी उस आंदोलन के साथ हो लिया। बिट्टू की तरह एक आम आदमी की तरह दिखने वाला व्यक्ति उस आंदोलन से उभरा। उसने समाज में कुछ सकारात्मक बदलाव लाने के लिए आईआरएस अधिकारी की नौकरी छोड़ दी।

एक देशभक्त, एक निस्वार्थ नागरिक, कोई ऐसा व्यक्ति जो हम में से एक था। उसने नेतृत्व का सही अर्थ बताया। उसने बताया कि एक राजनेता को कैसा होना चाहिए। उसने बताया कि किसी राजनेता को वीआईपी की तरह व्यवहार नहीं करना चाहिए। उसके पास कारों का लंबा बेड़ा नहीं होना चाहिए जो करदाताओं के पैसे के खर्च पर चलती हो। एक राजनेता को उन आलीशान बंगलों में नहीं रहना चाहिए जो करदाताओं के पैसे से बनाए और रखरखाव किए जाते हैं। एक राजनेता को भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस रखना चाहिए। अगर उसका अपना बेटा भ्रष्ट पाया जाए, उसे वह स्वीकार नहीं करे। एक राजनेता हममें से एक होना चाहिए। उसके आसपास कमांडो नहीं होने चाहिए। करदाताओं का पैसा उन पर बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए। उसने बताया कि किसी राजनेता को वोट मांगने के लिए मंदिर या मस्जिद नहीं जाना चाहिए। उनके काम से उन्हें वोट मिलना चाहिए।

किसी राजनेता को विज्ञापन पर एक पैसा भी खर्च नहीं करना चाहिए। अगर आपने लोगों के लिए काम किया है तो आपको विज्ञापन क्यों देना चाहिए। एक राजनेता को जाति की राजनीति से दूर रहना चाहिए। चुनाव के दौरान एससी, एसटी या अन्य शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। किसी राजनेता को भ्रष्ट पार्टियों से गठबंधन नहीं करना चाहिए।

एक राजनेता को कैसा व्यवहार करना चाहिए, इसके बारे में उन्होंने और भी बहुत सी बातें कहीं। बिट्टू को वो सारी बातें समझ में आ गईं। बिट्टू को आशा की किरण दिखी। अरविंद केजरीवाल आशा की वह किरण थे। बिट्टू को विश्वास होने लगा कि केजरीवाल भारतीय राजनीति को कुछ बेहतर के लिए बदल देंगे। केजरीवाल को बदलाव लाने में मदद करने के लिए बिट्टू ने अपने व्यस्त कार्यक्रम से समय निकालना शुरू कर दिया।

बिट्टू अन्ना और केजरीवाल के नेतृत्व में भारत के सबसे बड़े मिशन “भारत भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन” का हिस्सा बन गया। बिट्टू ने सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक कार्यालय में काम किया, फिर आंदोलन का समर्थन करने के लिए दिल्ली मेट्रो के प्रगति मैदान तक की यात्रा की, इस उम्मीद में कि यह भारत को बदल देगा।

बिट्टू एक स्वयंसेवक के रूप में अन्ना आंदोलन के लिए काम करने लगा। इतने संघर्ष के बाद केजरीवाल राजनीति में आए। फिर उसके बाद क्या हुआ। केजरीवाल ने उस कांग्रेस से हाथ मिलाया, जिसे वे हमेशा भ्रष्ट कहते थे। बिट्टू को समझ में नहीं आया ये क्या हो रहा है। उसने मुश्किल से खुद समझाया कि परिवर्तन लाने के लिए कभी-कभी आपको अपनी विचारधारा से समझौता करने की ज़रूरत होती है। उसने फिर भी केजरीवाल का समर्थन किया। उसके बाद केजरीवाल ने करदाताओं के पैसे पर कारों का बेड़ा स्वीकार किया। बिट्टू ने फिर अपने मन को समझाया कि सीएम की सुरक्षा अहम है। यानि केजरीवाल को समर्थन अभी भी मजबूत था।

इसके बाद केजरीवाल सरकारी बंगले में शिफ्ट हो गए। बिट्टू ने फिर भी केजरीवाल का समर्थन किया क्योंकि आवास भी सीएम की सुरक्षा से जुड़ा है। उसके बाद केजरीवाल ने उन नेताओं के साथ मिलकर काम करने का फैसला किया, जिन्हें वे खुद दिन-रात कोसते रहते थे। उन्होंने लालू, ममता, सीताराम येचुरी और कई अन्य लोगों से हाथ मिलाया।

यही वह दिन था जब बिट्टू को एहसास होना शुरू हुआ कि केजरीवाल वह नहीं हैं जो वह होने का दिखावा करते थे। बिट्टू को सभी अखबारों में केजरीवाल के फुल पेज विज्ञापन नजर आने लगे। कुछ मामलों में विज्ञापन पर व्यय किसी विकास योजना के बजट से भी अधिक था। बिट्टू को एहसास हुआ कि केजरीवाल की कोई विचारधारा नहीं है।

केजरीवाल की नजर मुस्लिम वोट बैंक पर पड़ने लगी। उन्होंने मस्जिदों और इफ्तार पार्टियों का दौरा किया। उनका तुष्टिकरण इस हद तक पहुंच गया कि उन्होंने इस बात की वकालत की कि हिंदुओं को भी कुरान पढ़ना चाहिए। बिट्टू यह सब सुन रहा था। फिर केजरीवाल ने राम मंदिर निर्माण के खिलाफ बयान दिया। अब बिट्टू को यकीन हो गया कि उसने गलत आदमी का साथ दिया है। केजरीवाल ने मस्जिदों में इमामों और अन्य सहायक कर्मचारियों के लिए मासिक वेतन की घोषणा की, लेकिन पंडितों के लिए ऐसी कोई घोषणा नहीं की गई। वक्फ बोर्ड को 100 करोड़ रुपये करदाताओं का पैसा दिया गया। हिंदू संगठनों को कुछ नहीं दिया गया।

बटला हाउस मुठभेड़ में आतंकवादियों के मारे जाने पर केजरीवाल ने पुलिस पर सवाल उठाया और जब पाकिस्तान की धरती पर सर्जिकल स्ट्राइक किए गए तब भारतीय सेना से सबूत मांगा। बिट्टू को इतनी बुरी तरह ठगे जाने पर विश्वास नहीं हो रहा था। केजरीवाल ने घोषणा की कि पंजाब में सीएम उम्मीदवार सिख समुदाय से होगा और गोवा में उम्मीदवार भंडारी जाति से होगा। केजरीवाल से मुंह से जातिगत राजनीति की बात सुनकर बिट्टू को एक और झटका लगा!

इसके बाद तो केजरीवाल की पार्टी के तमाम भ्रष्टाचार के मामले उजागर होने लगे। उनके सबसे वरिष्ठ मंत्रियों में से एक सत्येंद्र जैन को ईडी ने गिरफ्तार किया। कोर्ट ने यह कहते हुए जैन की जमानत खारिज कर दी कि जैन के खिलाफ प्रथम दृष्टया सबूत हैं। केजरीवाल भ्रष्ट मंत्री का समर्थन करते रहे। फिर जैन की वेब सीरीज लॉन्च हुई जहां उन्हें जेल में वीआईपी ट्रीटमेंट मिल रहा था। केजरीवाल अभी भी उनका समर्थन कर रहे हैं।

बिट्टू कोई और नहीं, दिल्ली का हर एक नागरिक है। आज वे सभी ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। अब सवाल उठता है कि जब दिल्लीवासी ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं तो उन्होंने 2019 में केजरीवाल को वोट क्यों दिया। उसके प्रमुख कारण हैंः उनके भ्रष्टाचार के बड़े और ज्यादातर मामले 2019 के बाद सामने आए। 2019 तक AAP एक साफ छवि रखने में कामयाब रही और उसने घोटाले उजागर नहीं होने दिए। 2019 के बाद उनकी हिंदू विरोधी छवि साफ हो गई। 2019 तक लोगों को उनके हिंदू विरोधी होने पर संदेह था। कुल मिलाकर केजरीवाल दिल्ली में लोकप्रिय नहीं हैं। एक ईमानदार आम आदमी की उनकी छवि ख़त्म हो चुकी है। आने वाले सभी चुनावों में इसके नतीजे देखने को मिलेंगे। केवल डबल एक्सएल शर्ट और सैंडल या मफलर पहनना आम आदमी होने की निशानी नहीं है।

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