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अयोध्या से पहले KASHI से आई खुशखबरी: बाबा विश्वनाथ की नगरी में ज्ञानवापी मंदिर या मस्जिद, यह Trial Court करेगा फैसला, 32 साल बाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की पांचों याचिकाओं को किया खारिज

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अयोध्या में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा से पहले काशी को लेकर प्रयागराज से खुशखबरी आई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिंदू पक्ष की याचिका को सुनवाई के योग्य माना है और ज्ञानवापी मस्जिद मामले पर बड़ा फैसला दिया है। वाराणसी कोर्ट को दिए गए आदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 6 माह में याचिका पर सुनवाई के आदेश दिए हैं। करीब 32 साल पहले 1991 में आदि विश्वेश्वर महादेव की ओर से उनके मित्रों ने एक याचिका दायर की थी। वाराणसी कोर्ट में दायर याचिका में ज्ञानवापी परिसर पर हिंदुओं का दावा किया गया था। इसमें कहा गया था कि आदि विश्वेश्वर महादेव मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण किया गया है। इसलिए इसे हिंदुओं को वापस दे दिया जाए। हिंदू पक्ष ने पूजा- पाठ की मंजूरी मांगी थी। इसके खिलाफ मुस्लिम पक्ष हाई कोर्ट चला गया। 1991 में पारित किए गए प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट का हवाला देते हुए मस्जिद किसी प्रकार के दावे और केस की पोषणीयता पर सवाल खड़े किए गए। पिछले 32 वर्षों से इस केस पर सुनवाई होगी या नहीं, यह मामला झूलता रहा। अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस पूरे मामले की सुनवाई का आदेश जारी कर मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका दिया है। इस आदेश के तहत वाराणसी कोर्ट में अब 1991 के केस का ट्रायल शुरू होगा।

ट्रायल कोर्ट को 6 महीने में मुकदमे का शीघ्र फैसला करने के निर्देश
उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी भूमि स्वामित्व विवाद मामले में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई की। जज जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने मालिकाना हक विवाद के मुकदमों को चुनौती देने वाली अंजुमन इंतेज़ामिया मस्जिद कमेटी द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा, ‘मुकदमा देश के दो प्रमुख समुदायों को प्रभावित करता है। हम ट्रायल कोर्ट को 6 महीने में मुकदमे का शीघ्र फैसला करने का निर्देश देते हैं।’ इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि एक मुकदमे में किए गए एएसआई सर्वेक्षण को अन्य मुकदमों में भी दायर किया जाएगा और यदि निचली अदालत को लगता है कि किसी हिस्से का सर्वेक्षण आवश्यक है, तो अदालत एएसआई को सर्वेक्षण करने का निर्देश दे सकती है।

याचिकाकर्ताओं और प्रतिवादी के वकीलों को सुनने के बाद फैसला रखा था सुरक्षित
अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी (एआईएमसी) और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा दायर याचिकाओं में ज्ञानवापी मस्जिद का व्यापक सर्वेक्षण करने के वाराणसी अदालत के 8 अप्रैल, 2021 के आदेश को भी चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद माना जा रहा है कि मुस्लिम पक्ष के पास सुप्रीम कोर्ट में जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। इससे पहले 8 दिसंबर को जज जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने याचिकाकर्ताओं और प्रतिवादी के वकीलों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के निकट स्थित ज्ञानवापी मस्जिद के प्रबंधन की देखभाल करने वाली एआईएमसी ने वाराणसी अदालत के समक्ष दायर एक मुकदमे की स्थिरता को चुनौती दी थी, जिसमें हिंदू याचिकाकर्ताओं ने उस स्थान पर एक मंदिर की बहाली की मांग की है जहां ज्ञानवापी मस्जिद है।काशी में मंदिर को मुगल बादशाह औरंगजेब ने वर्ष 1669 में ध्वस्त कराया था
बता दें कि प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान आदि विश्वेश्वर की ओर से 15 अक्टूबर 1991 को पंडित सोमनाथ व्यास, हरिहर पांडेय और संस्कृत विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे डॉ. रामरंग शर्मा ने वाराणसी कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें ज्ञानवापी में नए मंदिर के निर्माण और हिंदुओं को पूजा- पाठ का अधिकार देने की मांग की गई। पंडित सोमनाथ व्यास, हरिहर पांडेय और डॉ. रामरंग शर्मा की ओर से दायर याचिका पर मुस्लिम पक्ष की ओर से आपत्ति दर्ज कराई गई है। केस में देवता ‘स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर’ के नाम पर भक्तों ने दावा किया कि ज्ञानवापी मस्जिद एक मंदिर के स्थान पर बनाई गई। याचिका में कहा गया है कि इस मंदिर को मुगल बादशाह औरंगजेब ने वर्ष 1669 में ध्वस्त करा दिया था। हिंदू पक्ष ने मांग की कि उन्हें अपने मंदिर का जीर्णोद्धार और पुनर्निर्माण करने की अनुमति दी जाए। अपने पक्ष में उन्‍होंने तर्क दिया कि पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 मस्जिद पर लागू नहीं होता। ऐसा इसलिए क्योंकि यह पुराने विश्वेश्वर मंदिर के अवशेषों पर बनाया गया था। इस केस के तीनों याचिकाकर्ताओं की मृत्यु हो चुकी है।

हम 32 साल से जो कह रहे हैं, अब वही बात कोर्ट में भी साबित हुई
हिंदू पक्ष के वादी के अनुसार, ज्ञानवापी मस्जिद, मंदिर का एक हिस्सा है। हालांकि, अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड का तर्क यह है कि मुकदमा पूजा स्थल अधिनियम द्वारा निषिद्ध है। उत्तर प्रदेश स्थित वाराणसी में काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आने पर हिन्दू पक्ष के वकील विष्णु जैन ने प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि यह हमारी बड़ी जीत है. 32 साल से हम जो कह रहे हैं, आज वही बात साबित हुई और अदालत ने फैसला दिया। इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा वाराणसी की जिला अदालत को 6 महीने के भीतर फैसला करने के आदेश पर विष्णु जैन ने कोर्ट का आभार जताया। इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ मुस्लिम पक्ष के सुप्रीम कोर्ट जाने की संभावना के सवाल पर विष्णु जैन ने कहा कि हम और हमारी लीगल टीम उच्चतम न्यायालय में उनका स्वागत करेंगे।

हाईकोर्ट के मुताबिक यह मामला प्लेसेस आफ वरशिप एक्ट से बाधित नहीं
ज्ञानवापी मामले को लेकर उच्च न्यायालय में हुई सुनवाई पर वकील विजय शंकर रस्तोगी ने बताया, ‘मुस्लिम पक्ष की तरफ से जो याचिकाएं दाखिल की गई थी उन्हें खारिज कर दिया गया। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत को 6 महीने के अंदर मामले में अंतिम फैसला सुनाने को कहा है। वजूखाने का सर्वे भी होगा।’ इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक कुमार सिंह ने कहा, “यह फैसला ऐतिहासिक फैसला है क्योंकि सभी पक्षों को यह कहा गया है कि मामले को 6 महीने में निस्तारित किया जाए और याचिकाओं को खारिज किया है। अगर एक पक्ष पीड़ित है तो उसके लिए ऊपर की अदालत खुली है।” दीगर है कि मंगलवार को ज्ञानवापी मस्जिद और विश्वेश्वर मंदिर विवाद मामले में दाखिल सभी याचिकाएं खारिज कर दी गईं। इसके अलावा अदालत ने सर्वे जारी रखने की छूट दी है। हाईकोर्ट ने कहा है कि सर्वे रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल हो। कोर्ट ने कहा यह मामला प्लेसेस आफ वरशिप एक्ट से बाधित नहीं है।

ज्ञानवापी में मंदिर को लेकर 32 साल से चले केस की टाइमलाइन
वर्ष 1991: 15 अक्टूबर 1991 को वाराणसी कोर्ट में आदि विश्वेश्वर महादेव के मित्रों की ओर से ज्ञानवापी मस्जिद पर दावा का केस दर्ज कराया गया। इसके बाद मामला कोर्ट की तारीखों में उलझ गया।

वर्ष 1998: हिंदू पक्ष की दलील पर सात साल बाद ज्ञानवापी मस्जिद के प्रबंधन ने जवाबी आवेदन दिया। इसमें मामले को खारिज करने की मांग इस आधार की गई। इसके 1991 के प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के प्रावधानों के अधीन आने का दावा किया गया। इसके बाद मामला करीब 21 सालों तक कोर्ट में झूलता रहा।

वर्ष 2019: स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से वकील विजय शंकर रस्तोगी ने दिसंबर 2019 में वाराणसी जिला अदालत में अपील की। याचिकाकर्ता ने पूरे ज्ञानवापी मस्जिद क्षेत्र का पुरातत्व सर्वेक्षण कराने की मांग की। उनका कहना था कि 1998 में साइट का धार्मिक चरित्र निर्धारित करने के लिए पूरे ज्ञानवापी क्षेत्र से सबूत जुटाने का आदेश दिया गया था। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने निचली अदालत का निर्णय स्थगित कर दिया। बाबरी मस्जिद- राम जन्मभूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के ठीक एक महीने बाद यह याचिका दायर की गई।

वर्ष 2020: अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी मस्जिद प्रबंधन ने एएसआई सर्वेक्षण की मांग करने वाली याचिका का विरोध किया। याचिकाकर्ता ने निचली अदालत का दरवाजा फिर से खटखटाया। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने स्टे को नहीं बढ़ाया था, इसलिए सुनवाई फिर से शुरू करने का अनुरोध किया गया।

वर्ष 2021: वाराणसी कोर्ट ने अप्रैल 2021 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को परिसर का सर्वे कराने और उसके नतीजों को कोर्ट के सामने रखने का आदेश दिया। यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने कोर्ट के इस फैसले का विरोध किया। इस मामले की सुनवाई इलाहाबाद हाई कोर्ट में हुई। हाई कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद एसआई सर्वे पर अंतरिम रोक लगा दी।

18 अप्रैल 2021: पूरे मामले में गर्मी तब आई जब लक्ष्मी देवी, सीता साहू, मंजू व्यास और रेखा पाठक ने श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश, भगवान हनुमान और नंदी की दैनिक पूजा-अर्चना करने की अनुमति मांगी। इतना ही नहीं उन्‍होंने मांग की कि मुस्लिम पक्ष को विवादित ज्ञानवापी क्षेत्र में मौजूद मूर्तियों को नुकसान पहुंचाने से रोका जाए।

26 अप्रैल 2022: इन पांच महिलाओं की याचिका पर सुनवाई करते हुए वाराणसी के सिव‍िल जज रवि कुमार दिवाकर ने काशी विश्‍वनाथ-ज्ञानवापी परिसर और उसके आसापास, श्रृंगार गौरी मंदिर की वीडियोग्राफी करने का आदेश दिया।

6 मई 2022: वकीलों की एक टीम की देखरेख में ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर वीडियोग्राफी शुरू हुई। मसाजिद कमेटी ने इसका विरोध किया। परिणाम यह हुआ कि सर्वे को बीच में ही रोकना पड़ा।

12 मई 2022: वाराणसी कोर्ट ने कहा, सर्वे जारी रहेगा। इतना ही नहीं कोर्ट ने 17 मई तक सर्वे की रिपोर्ट सौंपने को कहा। सर्वे में 16 मई को हिंदूपक्ष ने दावा किया कि ज्ञानवापी परिसर में मौजूद वजूखाने में शिवलिंग मिला है। इस पर वाराणसी जिला कोर्ट ने क्षेत्र को सील कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस जगह को संरक्षित करने का आदेश दिया।

11 नवंबर 2022: सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि ज्ञानवापी के वजूखाने में मिली उस संरचना को संरक्षित किया जाए जिसे हिंदू पक्ष शिवलिंग कह रहा है। कहा गया कि यह आदेश अगले आदेश तक लागू रहेगा। इस संरचना की सुरक्षा के लिए पुलिस की तैनाती की व्‍यवस्‍था बरकरार रखी गई।

21 जुलाई 2023: 21 जुलाई को जिला जज डॉ. अजय कृष्ण ने सील वजूखाने को छोड़कर ज्ञानवापी परिसर में सर्वे का आदेश दिया था और चार अगस्त तक रिपोर्ट देने को कहा।

18 दिसंबर 2023: एएसआई ने साइंटिफिक सर्वे के आदेश को वाराणसी जिला कोर्ट में पेश किया। इसके बाद जिला कोर्ट ने 21 दिसंबर को अगली सुनवाई की तारीख निर्धारित की। इस दिन पक्षकारों को एएसआई सर्वे की रिपोर्ट दिए जाने पर अहम सुनवाई होगी।

19 दिसंबर 2023: मुस्लिम पक्ष की ओर से ज्ञानवापी मस्जिद केस में दायर पांचों याचिकाओं को खारिज कर दिया गया। इन याचिकाओं में 1991 के ज्ञानवापी केस की पोषणीयता को चुनौती दी गई थी। हाई कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए वाराणसी कोर्ट को छह माह में मामले की सुनवाई कर आदेश जारी करने को कहा है। वहीं, एएसआई सर्वे की प्रक्रिया पर रोक लगाने संबंधी याचिका को भी हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया।

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