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UCC को लेकर सोशल प्लेटफार्म पर ऐसी झूठी भ्रांतियां…निकाह में होंगे फेरे और सुपुर्दे खाक के बजाए होगा दाह संस्कार, फैक्ट चैक में जानिए असलियत, क्या है यूसीसी का सच और किसे होगा बंपर फायदा?

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यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) इन दिनों सुर्खियों में है। भारतीय संविधान में यूनिफॉर्म सिविल कोड का साफ-साफ जिक्र है, उसे लागू करने के लिए अब मोदी सरकार प्रतिबद्ध है। उत्तराखंड के बाद गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा सरकारों ने यूसीसी को अपने राज्यों में लागू करने की दिशा में कदम पहले ही बढ़ा दिए हैं। यूसीसी कितना महत्वपूर्ण है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसे लेकर अब तक 60 लाख से ज्यादा सुझाव लॉ कमीशन के पास आ चुके हैं। यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की दिशा में मोदी सरकार की तेजी के बीच अब सोशल मीडिया पर अनर्गल भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं कि इसे लागू होना चाहिए या नहीं ? और इसके लागू होने पर किसको, क्या फायदा होने वाला है? वर्ग विशेष को क्या नुकसान होने वाला है? जबकि हकीकत यह है कि देश को विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में यह बेहद मजबूत कदम साबित होगा। एक्सपर्ट बताते हैं कि यूसीसी मोटे तौर पर महिलाओं के सशक्तिकरण और उन्हें लेकर समानता पर फोकस्ड है। खासतौर से महिलाओं को सुदृढ़ और मजबूत बनाने की ओर ध्यान दिया जा रहा है। चाहे वे किसी भी समुदाय से हों। इसमें महिलाओं की धार्मिक मान्यताओं, उनके पहनावे के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होगी। सिर्फ आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से उन्हें मजबूत करने वाले कानूनों के दायरे में उन्हें लाया जाएगा।

अजब-गजब कुतर्क…यूसीसी आया तो हम पर भी ड्रेस में थोपा जाएगा धोती-कुर्ता
प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी ने जब से यूसीसी के बारे में बोला है, सोशल मीडिया पर #UniformCivilCode ट्रेंड कर रहा है। न्यूज चैनलों पर विश्लेषण हो रहा है कि यह कितना जरूरी है और इससे क्या कुछ बदल जाएगा। इन सबके बीच सोशल मीडिया पर ऐसी-ऐसी भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं, जिसे देखकर आप सिर पकड़ लेंगे। यूसीसी लागू होने से पहले ही बगैर जाने लोग सवाल उठा रहे हैं कि हिंदू और मुस्लिमों को एक ही तरह से शादी करनी होगी? क्या महिलाओं की शादी के लिए निर्धारित उम्र में बदलाव आ जाएगा? राज्यों को अपने हिसाब से ही यूसीसी के प्रावधानों में बदलाव का अधिकार होगा? यूसीसी से लिव-इन को कानूनी मान्यता मिल जाएगी? ऐसी न जाने कितनी कपोल-कल्पित बातें हैं। यूसीसी पर वायरल एक वीडियो में तो एक शख्स कहता है कि कानून बनाने से पहले आम जनता को शिक्षित किया जाए कि देखिए आपके लिए ये चीज है। वह आगे कहता है, ‘जैसे UC… ड्रेस का है मतलब एक ही जैसा ड्रेस पहनेंगे। जब आएगा तो…अगर मान लीजिए धोती-कुर्ता ड्रेस बना तो हम पर भी थोपा जाएगा, तो हम क्या धोती-कुर्ता पहनेंगे?’ वीडियो देखकर साफ लग रहा है कि इस शख्स ने यूसीसी में पहले शब्द यूनिफॉर्म का मतलब ड्रेस निकाला है।

आइए, यूनिफार्म सिविल कोड से जुड़े ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब तलाशते हैं, ताकि लोगों में मन में इसको लेकर जो भी भ्रांतियां हैं वो दूर हो सकें….

किसी भी धर्म के लोगों के लिए धार्मिक पहनावे पर कोई पाबंदी नहीं लगेगी
भ्रांति: यूसीसी को लेकर इस तरह की दावे सोशल मीडिया पर किए जा रहे हैं कि इसके लागू होने के बाद मुस्लिमों को भी अग्नि के फेरे लेकर निकाह करना होगा। ईसाइयों को भी शादी के तौर तरीकों को बदलना पड़ेगा। शवों को दफनाने की जगह जलाना होगा। दाढ़ी रखने और कुर्ता-पायजामा पहनने पर पाबंदी लगेगी।
हकीकत : यूसीसी का किसी भी धर्म की धार्मिक मान्यताओं, पहनावे या पूजा-पाठ पर कोई असर नहीं होगा। बुरका और गाउन दोनों पहनने में कोई परहेज नहीं होगा। यूसीसी लागू होने से किसी भी धर्म की धार्मिक मान्यताओं, पहनावे या पूजा-पाठ पर कोई असर नहीं होगा। यूसीसी का मतलब यह कतई नहीं है कि सभी धर्मों की रस्में, रीति-रिवाज एक जैसे हो जाएंगे। इसका सीधा सा अर्थ ये है कि जिस तरह चोरी, डकैती, लूट, हत्या या दुष्कर्म जैसे मामलों में सभी के लिए एक कानून लागू होता है। ठीक उसी तरह शादी, तलाक, संपत्ति पर अधिकार, उसका बंटवारा, गार्जियनशिप, गोद लेना, गुजारा भत्ता वगैरह के लिए सभी पर एक कानून लागू होगा।यूसीसी में लिव-इन-रिलेशनशिप को कानूनी जामा नहीं पहनाया जाएगा
भ्रांति: यूसीसी में लिव-इन को कानूनी जामा पहनाने के साथ ही शादी की उम्र बदली जाएगी
हकीकत : विशेषज्ञों के मुताबिक यह तय है कि लिव इन रिलेशनशिप जैसे कंसेप्ट को यूसीसी के तहत नहीं लिया जाएगा। लिव-इन को कोई कानूनी जामा नहीं पहनाया जाएगा। अबतक इस मसले को कंसीडरेशन में नहीं लिया गया है। लिव इन को वैध करने की भी इस कानून के तहत कोई योजना नहीं है। जहां तक शादी की उम्र का सवाल है तो इसको सभी समुदायों के लिए एक समान किया जा सकता है। इसमें पुरुषों की उम्र 21 ही रहेगी। मगर महिलाओं की उम्र को 18 से बढ़ाकर 21 साल की जा सकती है। वहीं, शादी का रजिस्ट्रेशन वर्तमान की ही तरह जरूरी होगा। इसे और सख्त और सुनिश्चित करने का मसौदा तैयार हो रहा है।आदिवासी समुदाय की प्रैक्टिसेज के साथ भी छेड़छाड़ नहीं की जाएगी
भ्रांति: आदिवासी समुदायों को सदियों से जारी अपनी परंपराएं बदलनी होंगी
हकीकत: विशेषज्ञ बताते हैं कि आदिवासियों को संविधान में जो संरक्षण प्राप्त है। उन्हें ज्यों का त्यों रखा जाएगा। सभी जनजातियों का संरक्षण यथावत रखेंगे। आदिवासी समुदाय और उनकी प्रैक्टिसेज के साथ यूसीसी में छेड़छाड़ नहीं की जाएगी। यूसीसी के कानूनों से ट्राइब्ल्स को छूट मिलेगी। उनकी प्रैक्टिसेज पर किसी प्रकार से यूसीसी से कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। हालांकि उनकी स्वेच्छा रहेगी कि यूसीसी की प्रैक्टिस को वे अडॉप्ट करना चाहते हैं या नहीं। संविधान के आर्टिकल 371 के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी। इसे लेकर यह तर्क भी रखे गए हैं कि ट्राइबल्स में प्रोग्रेसिव प्रैक्टिसेज हैं, उनकी परम्पराएं प्रगतिशील विचारों की हैं, ऐसे में उन्हें छेड़ने की जरूरत नहीं है।50 से ज्यादा देशों ने पॉलिगैमी बैन, भारत कैसे पिछड़ा रह सकता है
भ्रांति: मुस्लिम वोट बैंक के लिए बहू-पत्नी प्रथा को जारी रखा जाएगा
हकीकत: जानकारों का तर्क है कि 50 से ज्यादा देशों ने पॉलिगैमी को बैन किया हुआ है। ऐसे में भारत कैसे पिछड़ा रह सकता है। सूत्रों का कहना है कि पॉलिगैमी या बहू-पत्नी प्रथा को पूरी तरह से यूसीसी में बैन कर दिया जाएगा। यह फिर चाहे किसी भी धर्म या प्रैक्टिस की वजह से हो, मगर इसे बैन कर दिया जाएगा। जहां तक बाल विवाह और विधवा विवाह का सवाल है तो इससे संबंधित जो कानून अभी बने हैं, वो उसी तरह चलते रहेंगे। चाइल्ड मैरिज एक्ट यथावत काम करेगा। इसे और मजबूती से लागू करने की पैरवी की जाएगी। विधवा या तलाकशुदाओं की शादी को लेकर फिलहाल जो कानून बने हुए हैं, उसी अनुसार यूसीसी में भी सभी के लिए वही कानून मान्य होंगे। विधवा या तलाकशुदा महिलाएं शादी कर सकेंगी।यूसीसी में महिलाओं को सुदृढ़ और मजबूत बनाने पर पूरा फोकस
भ्रांति: महिलाओं की मान्यताओं के साथ छेड़छाड़ करेगा नया कानून
हकीकत: यूनिफॉर्म सिविल कोड की हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। यूसीसी में खासतौर से महिलाओं को सुदृढ़ और मजबूत बनाने की ओर ध्यान दिया जा रहा है। यूसीसी के एक्सपर्ट बताते हैं कि पहले फेज में यूसीसी मोटे तौर पर महिलाओं के सशक्तिकरण और उन्हें लेकर समानता पर फोकस्ड है। चाहे वे किसी भी समुदाय से हों। इसमें महिलाओं की धार्मिक मान्यताओं, उनके पहनावे के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होगी। सिर्फ आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से उन्हें मजबूत करने वाले कानूनों के दायरे में उन्हें लाया जाएगा। सभी धर्म की महिलाओं को गार्जियनशिप अधिकारों की मजबूती मिलेगी। संभावना है कि फिलहाल महिलाओं को जो एक सीमा तक गार्जियनशिप का अधिकार मिलता है, उसमें उन्हें पुरुषों के साथ बराबरी का हक मिले। गार्जियनशिप के नजरिए से बहुत बड़ा कदम होगा। गार्जियनशिप, अडॉप्शन में वुमन को बराबरी के राइट मिलेंगे। इसके अलावा अभी जो अधिकार हिंदू महिलाओं को मिल रहा है, वो दूसरे धर्म के महिलाओं को भी मिलेगा। पुश्तैनी जमीन में जहां भी बराबर का हक नहीं दिया जाता है वहां बराबर का हक मिलने लगेगा।

आधी आबादी को आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से सशक्तिकरण
देश में पर्सनल लॉज को लेकर समानता लाने के लिए इसे बनाने की तैयारी है। संविधान के आर्टिकल 44 में इसका जिक्र है। इसमें भारतीय नागरिकों के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड की बात कही गई। बीजेपी के कोर इश्यूज में शामिल यूसीसी के लागू होने से देश में लैंगिक समानता कायम होगी। इस कोड के जरिए देश में सभी जाति और धर्म की महिलाओं के अधिकारों की रक्षा हो सकती है। पीएम मोदी के नेतृत्व में 2014 में केंद्र में सत्ता में आने के बाद बीजेपी संवैधानिक प्रक्रिया को अपनाते हुए अनुच्छेद 370 को हटाने और अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के वादे को पूरा कर चुकी है। अब उसके लिए तीन बड़े वादों में से सिर्फ यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा ही बचा है, जिसे लागू करने के लिए केंद्र गंभीरता से मंथन कर रहा है। जानकार मानते हैं कि जिस प्रकार से कई समुदायों में महिलाओं के साथ असमानता है। उस असमानता को दूर करते हुए देश की आधी आबादी को आर्थिक, सामाजिक, और शैक्षिक दृष्टि से सुदृढ़ करने के लिए यह लाया जाएगा। पर्सनल लॉज से जुड़े कायदों में एकरूपता होगी। यूसीसी किसी भी व्यक्ति को धार्मिक रूप से किसी चीज के लिए बाध्य नहीं करेगा। इसका मकसद सिर्फ महिलाओं से जुड़े कानूनों में यूनिफॉरमिटी लाना होगा। किसी की भी धार्मिक मान्यताओं के साथ छेड़छाड़ नहीं होगी।कौन तैयार कर रहा है यूसीसी का ड्राफ्ट, क्या रहेगी इसकी प्रक्रिया
यूसीसी का ड्राफ्ट भारत का लॉ कमीशन तैयार कर रहा है। यूसीसी लागू करने के लिए लॉ कमीशन की ओर से देशभर से सुझाव मांगे गए। अब तक देश के अलग-अलग तबके और हिस्से से लाखों सुझाव लॉ कमीशन को मिले हैं। इसके बाद कमीशन इन सुझाव पर गौर करेगा। सुझावों के आधार बैठकें की जाएगी। इसमें स्टेकहोल्डर्स, धर्मगुरु, बुद्धिजीवी सहित तमाम महत्वपूर्ण श्रेणी के लोग होंगे। उनसे चर्चा की जाएगी। इसके बाद इसका ड्राफ्ट तैयार कर सरकार को भेज दिया जाएगा। सरकार फिर इसे अपने तरीके से बिल के रूप में लोकसभा, राज्यसभा में पेश कर कानून बनाएगी। यूसीसी का ड्राफ्ट विशेष तौर से लॉ कमीशन के चेयरमैन जस्टिस रितुराज अवस्थी, लॉ कमीशन के सदस्य जस्टिस केटी संकरन और प्रोफेसर आनंद पालीवाल तैयार कर रहे हैं। इनके अलावा लॉ कमीशन से जुड़े अन्य अस्थाई सदस्य और विशेषज्ञ शामिल हैं। जानकार बताते हैं कि यूसीसी क्रिमिनल लॉ, एडमिनिस्ट्रेशन लॉ, गर्वनेंस लॉ और लैंड लॉ को नहीं छेड़ेगा। फिलहाल यूसीसी में जिन चीजों को शामिल करने की बात चल रही है उनमें यूसीसी को सिर्फ पर्सनल लॉ तक ही सीमित रखा गया है।धारा-370 और राम मंदिर के बाद यूनिफॉर्म सिविल कोड की ओर बढ़े कदम
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि धारा-370 और राम मंदिर के बाद यूनिफॉर्म सिविल कोड की ओर मोदी सरकार ने कदम बढ़ा दिए हैं। पहले दोनों अहम वादे बीजेपी पूरा कर चुकी है। ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार यूसीसी को लाना चाहती है। संविधान के भाग चार में जिस यूनिफॉर्म सिविल कोड का जिक्र किया गया है, उसे अब लागू करने के लिए बीजेपी कटिबद्ध है। इसी दिशा में भाजपा शासित कुछ राज्य सरकारों ने कदम बढ़ा दिए हैं। उत्तराखंड की पहल के बाद गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा और कर्नाटक की सरकारों ने यूनिफॉर्म सिविल कोड अपने राज्यों में लागू करने के लिए एक्सपर्ट कमेटियों का गठन करके ड्राफ्ट की तैयारियां शुरू कर दी हैं। बीजेपी के कोर इश्यूज में शामिल यूनिफॉर्म सिविल कोड के लागू होने से देश में लैंगिक समानता कायम होगी। इस कोड के जरिए देश में सभी जाति और धर्म की महिलाओं के अधिकारों की रक्षा हो सकती है। पीएम मोदी के नेतृत्व में 2014 में केंद्र में सत्ता में आने के बाद बीजेपी संवैधानिक प्रक्रिया को अपनाते हुए अनुच्छेद 370 को हटाने और अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के वादे को पूरा कर चुकी है। अब उसके लिए तीन बड़े वादों में से सिर्फ यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा ही बचा है, जिसे लागू करने के लिए राज्यों के साथ केंद्र भी गंभीरता से मंथन कर रहा है।तीन तलाक पर कानून बनने के बाद यूसीसी की उम्मीद बढ़ी भारतीय जनता पार्टी काफी वर्षों से समान नागरिक संहिता को लागू करने के पक्ष में है। पहली बार 1989 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में समान नागरिक संहिता को जगह दी थी। तभी से इस पर बहस हो रही है। 2014 और 2019 के घोषणापत्र में भी बीजेपी ने इसे शामिल किया। बीजेपी ने दिल्ली में अप्रैल 2019 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी में पार्टी मुख्यालय में इस संकल्प पत्र को जारी किया। ऐसे में पिछले पांच साल से देश का एक बड़ा तबका समान नागरिक संहिता को लागू करने की मांग कर रहा है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2017 में मुस्लिम समाज में एक बार में तीन तलाक बोल कर शादी को खत्म करने की परंपरा (तलाक-ए-बिद्दत) पर ऐतिहासिक फैसला देते हुए इसे असंवैधानिक बताया। इसके बाद जुलाई 2019 में संसद से तीन तलाक के दंश से छुटकारा देने के लिए मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) कानून बना। इसके जरिए तीन तलाक को अवैध मानते हुए अपराध माना गया। तीन तलाक पर संसद से कानून के बनने के बाद सियासी हल्कों से लेकर आम लोगों के बीच यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने पर बहस तेज हो गई।उत्तराखंड: सीएम की पहल पर कोड पर मसौदा बनाने के लिए तीन लाख से अधिक सुझाव मिले
केंद्र सरकार की ओर से तो समान नागरिक संहिता लाने की कवायद के बीच बीजेपी शासित कुछ राज्यों में इस साल यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की पहल पर तेजी से काम शुरू कर दिया है। सबसे पहले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस कोड का मसौदा बनाने के लिए 27 मई 2022 को रिटायर्ड जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया। ये समिति इस पर तेजी के काम करते हुए राज्य के लोगों से जनसंवाद करते हुए राय ले रही है। समिति ने तीन लाख से अधिक सुझाव प्राप्त कर लिए हैं और इसके बाद वह इन सुझावों पर अपनी रिपोर्ट तैयार करने का काम करेगी। उत्तराखंड में अगले साल मई तक समान नागरिक संहिता की ड्राफ्ट रिपोर्ट आने की उम्मीद है।

गुजरात: यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए सीएम भूपेंद्र पटेल ने विशेषज्ञ समिति बनाई
गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्रभाई पटेल ने अक्टूबर में यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए विशेषज्ञ समिति बनाने का निर्णय लिया। बीजेपी शासित राज्यों में उत्तराखंड के बाद गुजरात दूसरा राज्य है, जिसने यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए विशेषज्ञ समिति बनाने का फैसला किया है। बीजेपी ने 26 नवंबर को गुजरात चुनाव के लिए संकल्प पत्र जारी किया था। उसमें भी बीजेपी ने गुजरात में जल्द यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने का वादा किया है। नवंबर में हिमाचल प्रदेश में हुए चुनाव के लिए जारी संकल्प पत्र में भी बीजेपी ने समान नागरिक संहिता लागू करने का वादा किया था। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी प्रचार के दौरान कहा था कि राज्य में सत्ता वापसी पर बीजेपी इसे लागू करेगी।मध्य प्रदेश: सीएम शिवराज बोले कि एक देश में दो विधान क्यों चलें, लागू करेंगे कोड
मध्य प्रदेश में भी बीजेपी यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने की तैयारी में है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक दिसंबर को समान नागरिक संहिता के लिए कमेटी बनाने का ऐलान किया है। उन्होंने सेंधवा में कहा कि वे देश में समान नागरिक संहिता लागू करने के पक्ष में हैं। मध्यप्रदेश में इसके लिए कमेटी बनाई जा रही है। उन्होंने कहा, अब समय आ गया है कि भारत में एक समान नागरिक संहिता लागू होनी चाहिए। एक से ज्यादा शादी क्यों करे कोई, एक देश में दो विधान क्यों चलें, एक ही होना चाहिए। समान नागरिक संहिता में एक पत्नी रखने का अधिकार है तो एक ही पत्नी होनी चाहिए। इससे पहले इसी वर्ष अप्रेल में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भोपाल दौरे के समय समान नागरिक संहिता पर बात की थी। तब उन्होंने कहा था कि भाजपा शासित राज्यों में सामान नागरिक संहिता कानून लाएंगे।हरियाणा : खट्टर सरकार की भी कोड लागू करने की तैयारी
बीजेपी शासित इन राज्यों की तर्ज पर अब हरियाणा भी इस कोड को लागू करने पर विचार कर रहा है। हरियाणा के गृह मंत्री अनिज विज ने कहा है कि जिन प्रदेशों में नागरिक समान संहिता लागू करने की योजना पर काम हो रहा है, उनसे हम सुझाव ले रहे हैं। ताकि राज्य में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू किया जा सके। उत्तराखंड चुनाव से ठीक पहले समान नागरिक संहिता कानून लाने का ऐलान करने वाला पहला राज्य बना था।देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने के पक्ष में है सर्वोच्च न्यायालय
देश की शीर्ष अदालत भी यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के पक्ष में है। कोर्ट ने कहा गया है कि देश में अलग-अलग पर्सनल लॉ की वजह से भ्रम की स्थिति बन जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2019 में भी कहा कि देश में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए ठोस कोशिश की जानी चाहिए। इससे पहले अक्टूबर 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था केंद्र सरकार एक समान कानून बनाकर पर्सनल लॉ की विसंगतियों को दूर कर सकती है। इसके बाद केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया था।

आखिर बीजेपी के प्रमुख मुद्दों में शामिल यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या है?
यूनिफॉर्म सिविल कोड का संबंध सिविल मामलों में कानून की एकरूपता से है। देश के हर व्यक्ति के लिए सिविल मामलों में एक समान कानून यूनिफॉर्म सिविल कोड की मूल भावना है। इस कोड के तहत देश के सभी नागरिकों पर विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, पैतृक संपत्तियों में हिस्सा, गोद लेने जैसे मसलों के लिए एक ही कानून होते हैं। इसमें धर्म, संप्रदाय, जेंडर के आधार पर भेदभाव की कोई गुंजाइश नहीं होती है। समान नागरिक संहिता होने पर धर्म के आधार पर कोई छूट नहीं मिलती। देश में फिलहाल धर्म के आधार पर इन मसलों पर अलग-अलग कानून हैं। हिंदुओं, मुस्लिमों और ईसाइयों के लिए भारत में संपत्ति, विवाह और तलाक के कानून अलग-अलग हैं। अलग-अलग धर्मों के लोग अपने पर्सनल लॉ का पालन करते हैं। मुस्लिम, ईसाई और पारसियों का अपना-अपना पर्सनल लॉ है. हिंदू सिविल लॉ के तहत हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध आते हैं।

यूनिफॉर्म सिविल कोड महिलाओं, धार्मिक अल्पसंख्यकों कमजोर वर्गों को सुरक्षा देगा
दरअसल देश में जाति-धर्म के आधार पर अलग-अलग कानून और मैरिज एक्ट हैं। इसके कारण सामाजिक ढ़ांचा बिगड़ा हुआ है। यही कारण है कि देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड की मांग उठती रही है जो सभी जाति, धर्म, वर्ग और संप्रदाय को एक ही सिस्टम में लेकर आए। एक कारण यह भी है कि अलग-अलग कानूनों के कारण न्यायिक प्रणाली पर भी असर पड़ता है। वर्तमान समय में लोग शादी, तलाक आदि मुद्दों के निपटारे के लिए पर्सनल लॉ बोर्ड ही जाते हैं। इसका एक खास उद्देश्य महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों सहित डा. अम्बेडकर द्वारा परिकल्पित कमजोर वर्गों को सुरक्षा प्रदान करना है, साथ ही एकता के माध्यम से राष्ट्रवादी उत्साह को बढ़ावा देना है। जब यह कोड बनाया जाएगा तो यह उन कानूनों को सरल बनाने का काम करेगा जो वर्तमान में धार्मिक मान्यताओं जैसे हिंदू कोड बिल, शरीयत कानून और अन्य के आधार पर अलग-अलग हैं।

संविधान में भी है यूनिफॉर्म सिविल कोड का प्रावधान, अब बीजेपी करेगी लागू
संविधान के भाग 4 में यूनिफॉर्म सिविल कोड पर अनुच्छेद 36 से लेकर 51 तक राज्य के नीति निर्देशक तत्व को शामिल किया गया है। इसी हिस्से के अनुच्छेद 44 में नागरिकों के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड का प्रावधान है। इसमें कहा गया है “राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा।” सवाल उठता है कि जब संविधान में इसका जिक्र है ही, तो आजादी के बाद अब तक इस पर कोई कानून क्यों नहीं बना ? दरअसल संविधान के भाग 3 में देश के हर नागरिक के लिए मूल अधिकार की व्यवस्था की गई है, जिसे लागू करना सरकार के लिए बाध्यकारी है। वहीं संविधान के भाग 4 में जिन नीति निर्देशक तत्वों का जिक्र किया गया है, उसे लागू करना सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं है। लेकिन सरकार चाहे तो इस दिशा में कदम उठा सकती है। आजादी के बाद की कांग्रेस सरकारों ने इस बेहत अहम मुद्दे पर ध्यान ही नहीं दिया। अब बीजेपी ने यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं।

 

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