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कल रात पूरा शहर जल गया, लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी के ठेकेदार चुप हैं

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बेंगलुरु में मंगलवार में एक फेसबुक पोस्ट के बाद मुस्लिम समुदाय के लोगों ने शहर में आंतक का तांडव मचा दिया। मुस्लिम दंगाइयों ने दो थानों, कांग्रेसी विधायक के घर के साथ सैकड़ों गाड़ियों में आग लगा थी। शहर के कई इलाकों में जमकर तोड़फोड़ और आगजनी की। अल्लाह-हू-अकबर और नारा-ए-तकबीर के नारों के बीच ये लोग हिंसा का खेल खेलते रहे। लेकिन सबसे बड़ी बात है कि इस घटना पर वामपंथियों, कांग्रेस परस्त सेकुलर, लिबरल, अवार्ड वापसी और टुकड़े-टुकड़े गैंग के लोग चुप्पी साधे हुए हैं। भाईचारे की बात करने वाले ये लोग इस घटना को लेकर मौन हैं।

लेकिन यही सेकुलर-लिबरल गैंग के लोग हिंदुओं के देवी-देवाताओं के अपमान को फ्रीडम ऑफ स्पीच बता देते हैं। हिंदुओं की भावनाओं से खेलने वाले लेख और फिल्मों का बचाव करते हैं।

असम में भगवान राम के खिलाफ फेसबुक पर अपमानजनक टिप्पणी
हाल ही में असम के सिलचर स्थित असम विश्वविद्यालय के एक सहायक प्रोफेसर अनिंद्य सेन ने फेसबुक पर भगवान राम के संबंध में अपमानजनक टिप्पणी की। जब एवीबीपी के एक कार्यकर्ता ने उनके खिलाफ मामला दर्ज कराया तो अभिव्यक्ति की आजादी के लिबरल और सेकुलर ठेकेदार हो हल्ला मचाने लगे।

जेएनयू में मां दुर्गा को कहा गया सेक्स वर्कर
जेएनयू जैसे देश के प्रतिष्ठित शिक्षा के मंदिर में मां दुर्गा को सेक्स वर्कर कहा गया, लेकिन सेकुलर-लिबरल ने तब अभिव्यक्ति की आजादी बता हिंदू धर्म का अपमान करने वालों का मन बढ़ाया।

केरल में सेक्सी दुर्गा फिल्म के जरिए आस्था पर प्रहार
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर लिबरलों ने केरल की सेक्सी दुर्गा फिल्म का बचाव किया।

फिल्मों में आस्था का अपमान
बॉलीवुड की फिल्मों में आमतौर पर हिंदुओं, साधु-संतों और पंडितों को धोखेबाज और बलात्कारी दिखाकर बदनाम करने की कोशिश की जाती है। भगवान के नाम पर मजाक किया जाता है। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर हिंदुओं की भावनाओं के साथ खेला जाता है।

पैगंबर पर टिप्पणी के बाद अबतक हिंसा की कई वारदात

लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर जब कोई व्यक्ति बेंगलुरु में पैगंबर पर कोई टिप्पणी करता है तो हजारों की संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग घर से बाहर निकल जमकर आगजनी करते हैं और कथित सेकुलर-लिबरल अवार्ड वापसी गैंग के लोग चु्प्पी साध लेते हैं। वैसे यह पहली बार नहीं है कि जब अल्लाह या पैगंबर मुहम्मद पर टिप्पणी के बाद मुसलमानों की भीड़ सड़कों पर उतर आई हो।

कमलेश तिवारी हत्याकांड
साल 2015 में पैगंबर मुहम्मद पर विवादित टिप्पणी के कारण हिंदू महासभा के अध्यक्ष कमलेश तिवारी की 18 अक्टूबर 2019 को हत्या कर दी गई।

अखबार में कहानी छापने पर दंगा
साल 1986 में डेक्कन हेराल्ड में पैगंबर मुहम्मद पर एक छोटी सी स्टोरी के कारण हिंसा भड़क गई। इसमें 17 लोगों को मौत हो गई। बाद में अखबार ने रेडियो और टेलीविजन के जरिए समुदाय से माफी माँगी।

अखबार में सिर्फ एक कोट लिखने पर हिंसा
न्यू इंडियन एक्सप्रेस अखबार को सन 2000 में 700 साल पुरानी एक किताब से एक कोट लेकर आर्टिकल लिखना भारी पड़ गया। मुस्लिम समुदाय के लोग हिंसा पर उतर आए। पूरे बेंगलुरु शहर में दंगाइयों ने उत्पात मचाना शुरू कर दिया।

इतना ही नहीं ये ठेकेदार हिंदुओं के पर्व-त्योहार पर भी हो-हल्ला मचाते हैं लेकिन मुस्लिमों के ईद-बकरीद पर मौन हो जाते हैं।

दीवाली मनाने से रोकने के लिए हिन्दुओं को ज्ञान और बकरीद पूरी आजादी
हाल ही में दीपावली और होली पर प्रदूषण का ज्ञान देने वाली आरजे सायमा  कोरोना काल में बकरीद पर पूरी आजादी चाहती थी। बकरीद के नाम पर लाखों बेजुबान पशुओं को काटना चाहती थी। आरजे सायमा की ट्विटर पर बकरीद को लेकर लिखा कि ये बहुत शर्मनाक बात है कि एक समुदाय के लोगों को उनका त्योहार शांति से नहीं मनाने दिया जा रहा।

लेकिन सायमा दीपावली-होली के समय किस तरह का ट्वीट करती रही हैं, यह भी देख लीजिए। सेकुलरों और लिबलरों ने इनका पूरा साथ भी दिया

सवाल यह भी है कि यही सेकुलरवादी लोग तब चुप रह जाते हैं जब –

  • बिग बॉस नामक एक कार्यक्रम में हिना खान नामक कट्टरपंथी मुसलमान ने पूजा की थाली पकड़ने से इनकार कर दिया। तब किसी सेक्यूलर ने इस कट्टरपंथी मुसलमान को कम्यूनल नहीं बताया
  • देश में कोई मुस्लिम दीपावली मना ले तो उसके खिलाफ कई मौलवी मौलाना फतवे दे देते हैं, तब उनको कम्यूनल नहीं बताया जाता

  • देश के उपराष्ट्रपति रहे हामिद अंसारी तो दशहरे पर पूजा की थाली पकड़ने से इनकार कर देते हैं, तब नहीं उठते कोई सवाल?
  • देश के संवैधानिक सत्ता के शीर्ष पर रहे हामिद अंसारी ने जब अपने मजहब के लिए वन्दे मातरम कहने से इनकार कर दिया तो भी उन्हें सांप्रदायिक नहीं बताया गया

  • सवाल उठता है कि क्या सारा सेकुलरिज्म हिंदुओं को ही दिखाना है? जब सबको अपनी धार्मिक आजादी का अधिकार है तो हिंदुओं को भी है। मस्जिद का इमाम माता की चुनरी नहीं बांध सकता, वो तिलक नहीं लगा सकता, मुसलमान मंदिर का प्रसाद नहीं लेता, उन्हें वन्दे मातरम और भारत माता की जय बोलने में भी परेशानी होती है। हमारे सामने हजारों उदाहरण हैं जहां पर एक विशेष समुदाय द्वारा मजहबी कट्टरपंथ की सीमा पार की जाती है, लेकिन इन सेकुलरों, लिबरलों द्वारा उनपर कोई सवाल नहीं उठाया जाता देखिये ये वीडियो…

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