कांग्रेस में आखिरकार काफी नौटंकी और 24 साल के बाद गैर-कांग्रेसी अध्यक्ष मिल ही गया। यह अलग बात है कि मल्लिकार्जुन खड़गे के नए अध्यक्ष बनते ही पांच महीने कांग्रेस के उदयपुर चिंतन शिविर में लिए गए संकल्प हवा में उड़ते नजर आए। इस शिविर के समापन भाषण में कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी ने संकल्प दोहराया था कि पार्टी में युवाओं को आगे बढ़ाने पर सीनियर नेता फोकस करें। युवाओं को हर सूरत में आगे लेकर आना है। लेकिन सोनिया गांधी ने ही पार्टी को चलाने के लिए किसी युवा के बजाए अस्सी बरस के खड़गे को जिम्मेदारी सौंप दी। खड़गे से युवा शशि थरूर ने चुनाव लड़ने की इच्छा सोनिया गांधी के समक्ष पहले ही जाहिर कर दी थी, लेकिन युवा कार्यकर्ताओं की पसंद थरूर को दरकिनार कर सोनिया गांधी ने वयोवृद्ध खड़गे को अपना वरदहस्त देकर उदयपुर संकल्प की खुद ही धज्जिया उड़ाकर रख दीं। ऐसा शायद इसीलिए हुआ, क्योंकि वे जानती थीं कि शशि थरूर ‘कठपुतली अध्यक्ष’ तो नहीं बनेंगे और उन्हें सिर्फ ऐसे ही अध्यक्ष की दरकार है।थरूर पहले ही कह चुके हैं पार्टी नहीं बदलेगी, यह अपने पुराने ढर्रे पर ही चलती रहेगी
कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव हार चुके शशि थरूर के अगले कदम का अब सबको इंतजार है। थरूर खुद ही पहले कह चुके हैं अगर उनको चुनाव में जीत मिली तभी यह सबसे पुराना पार्टी बदलेगी, नहीं तो यह अपने पुराने ढर्रे पर ही चलती रहेगी। तो अब यह तो तय है कि पुराने ढर्रे पर चलना कांग्रेस पार्टी की नीयति बन गई है। लेकिन, गौर करने लायक तथ्य यह भी है कि कांग्रेस के एक हजार से अधिक जिन डेलीगेट्स ने शशि थरूर को अध्यक्ष बनाने के लिए वोट दिया, वो नेता अब खड़गे के जीतने के बाद क्या रुख अपनाते हैं ? क्या वे कठपुतली अध्यक्ष की दासता स्वीकार लेंगे या फिर जी-23 की तरह अब जी-1072 समूह अस्तित्व में आएगा और पार्टी के वास्तविक हितों के लिए आवाज उठाएगा।उदयपुर संकल्प लागू करने में अस्सी बरस के मल्लिकार्जुन खड़गे खुद ही खरा नहीं उतरते
दिलचस्प तथ्य यह है कि अब खड़गे की चुनौती उदयपुर चिंतन शिविर के घोषणापत्र को लागू करने की है, जिस पर अस्सी बरस के खड़गे खुद ही खरा नहीं उतरते। इसमें युवाओं को आगे लगाने का संकल्प लिया गया था। राहुल गांधी उदयपुर चिंतन शिविर के बाद आश्वस्त रहे होंगे कि अक्टूबर में वे ही अध्यक्ष बनेंगे, लेकिन बाद में तेजी के बदल घटनाक्रम से राजनीतिक परिस्थितियां बदल गईं। अब खड़गे की पहली प्राथमिकता होगी पार्टी में पहले से बने युवा नेताओं को टूटने से रोकें। उसके बाद ही खड़गे नए युवाओं को पार्टी से जोड़ने की सोच सकते हैं। डिप्लोमैट से नेता बने थरूर की इमेज यूथ आइकॉन जैसी होने के बावजूद उनपर खड़गे को तवज्जो देने से युवा कांग्रेस से नाराज ही होंगे।खड़गे अध्यक्ष बनने के बाद भी गांधी परिवार उर्फ हाईकमान के इशारों पर नाचने को मजबूर होंगे
दिलचस्प यह देखना होगा कि बदली हुई परिस्थितियों में सोनिया गांधी और राहुल गांधी क्या खुद को मार्गदर्शक मंडल में सीमित रखेंगे? या फिर कांग्रेस में कोई हाईपावर कमेटी बनेगी, जो बड़े-बड़े फैसले लेगी और क्या इसमें गांधी परिवार का सदस्य (सोनिया-राहुल-प्रियंका) शामिल होगा? कांग्रेस के इतिहास पर गौर करें तो याद आएगा कि जिस समय पीवी नरसिंहराव पीएम थे और सीताराम केसरी कांग्रेस अध्यक्ष तो क्या गांधी परिवार का दखल नहीं था? जवाब है, हां पूरा-पूरा था। इसीलिए खड़गे पर गांधी परिवार का असर ही नहीं होगा, बल्कि वे इस कथित हाईकमान के इशारों पर नाचने को मजबूर होंगे।राहुल की यात्रा पर सवाल…यह यूंही चलती रही तो खड़गे को अध्यक्ष बनाने का क्या औचित्य ?
एक बड़ा सवाल यह भी है कि अब जबकि कांग्रेस को नया अध्यक्ष मिल गया है, तो राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का क्या होगा? क्या इसका समापन हो जाएगा ? या फिर यह नए सिरे से, नए अध्यक्ष की सरपरस्ती में, नए विचारों और नए रूप में शुरू होगी ? यदि यह यात्रा पुराने रूप से ही चलती रही तो खड़गे के अध्यक्ष बनने का कोई औचित्य ही नहीं रह जाएगा और शशि थरूर की बात सही साबित होगी कि अगर वह हारे तो पार्टी पुराने ढर्रे पर ही चलती रहेगी। राहुल गांधी की सोच पर इसलिए भी तरस आता है कि जब कांग्रेस पार्टी के लिए सवाल हिमाचल और गुजरात में चुनौती देने का है, उस समय में राहुल कहां घूम रहे हैं! कन्याकुमारी से चलते हुए जो रूट तय किया है उसे समझना मुश्किल है। खड़गे के लिए इस रूट को परिवर्तित कराना भी बड़ी चुनौती है।