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INDIRA से तीन कदम आगे गहलोत, राजस्थान में लाए MISA जैसा कानून, अन्याय के खिलाफ शव रखकर आवाज उठाई तो दो साल और साथ देने वाले नेताओं को मिलेगी पांच साल की जेल, BJP चुनाव में बनाएगी मुद्दा

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सत्ता में चाहे कितने ही चेहरे बदलते रहें, लेकिन कांग्रेस पार्टी का डीएनए एक ही रहा है। वह डीएनए है- बगैर अपराध करने वाले, अपने हक की आवाज उठाने वाले लोगों और नेताओं के उत्पीड़न का। कांग्रेस ने 1971 में लागू किए गए आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम यानी मीसा का इस्तेमाल आपातकाल के दौरान विपक्षी नेताओं, पार्टी के विरोधियों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को दो साल तक के लिए जेल में डालने के लिए किया था। इंदिरा गांधी की निरंकुश सरकार ने मीसा के जरिए अपने राजनीतिक विरोधियों को कुचलने का काम किया। बगैर किसी गुनाह के तब मीसा कानून के तहत विपक्ष के तमाम नेताओं को जेल में डाल दिया गया, जिनमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर लाल कृष्ण आडवाणी, अरुण जेटली, सुशील मोदी, जॉर्ज फर्नांडिस, रविशंकर प्रसाद तक शामिल थे। अब पार्टी के उसी डीएनए का इस्तेमाल करते हुए राजस्थान की कांग्रेस सरकार मीसा जैसा ही कानून लेकर आई है। इसमें भी अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वालों, उनका साथ देने वालों को दो से पांच साल तक की सजा देने का प्रावधान किया गया है। विधानसभा से लेकर आदिवासी बहुल इलाकों में इस कानून के खिलाफ विरोध के स्वर अभी से उठने लगे हैं।कांग्रेस सरकार ने चुनाव से चार माह पहले अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मारी
राजस्थान में इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं और कांग्रेस सरकार ने चुनाव से चार माह पहले अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मार ली है। कांग्रेस सरकार ने विधानसभा में 20 जुलाई को ‘राजस्थान मृतक शरीर के सम्मान का विधेयक’ पास कराकर आदिवासियों की सदियों पुरानी परंपराओं को खुलेआम चुनौती दे दी है। बीजेपी विधायकों ने इस बिल में सजा के प्रावधानों का विरोध किया। बिल पर बहस के दौरान आदिवासी जिलों के बीजेपी विधायकों ने इसका विरोध करते हुए कहा कि आदिवासी क्षेत्रों में किसी की हादसे में मौत पर मौताणा (मौत के बाद दूसरे पक्ष की ओर से मिलने वाला मुआवजा) का प्रावधान है, जिसमें फैसला होने तक डेड बॉडी को रखा जाता है। इस बिल ने आदिवासी कल्चर के खिलाफ काम किया है।मीसा कानून में भी इसी तरह आवाज दबाने की कोशिश की गई थी-बीजेपी
नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने कहा कि गहलोत सरकार ने इस बिल में डेड बॉडी के साथ प्रदर्शन पर सजा का प्रावधान करके आपातकाल के मीसा और डीआरआई जैसे कानूनों की याद दिला दी है। उन्होंने कहा कि भला कौन ऐसा व्यक्ति होगा जो अपने परिजन की मौत के बाद डेड बॉडी रखकर प्रदर्शन करना चाहेगा। जब किसी व्यक्ति के साथ भारी अन्याय होता है तभी मजबूरी में उनको ऐसा कदम उठाने को बाध्य होना पड़ता है। ऐसे मजलूम व्यक्ति का, जो सरकार के अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना चाहता है, यदि इसी तरह प्रदर्शन में कोई नेता चला जाएगा तो उसके लिए पांच साल तक की सजा का प्रावधान किया है। सरकार जाते-जाते ऐसा कानून लेकर आई है, जो जनता की आवाज को दबाने वाला है, इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। मीसा कानून में भी इसी तरह आवाज दबाने की कोशिश की गई थी और सब जानते हैं कि इसके दुरुपयोग के बाद केंद्र की कांग्रेस सरकार को किस कदर जनता ने नकार दिया था।

मंत्री धारीवाल अपने ही आंकड़ों में घिरे, कांग्रेस सरकार में सबसे ज्यादा केस
संसदीय कार्यमंत्री शांति धारीवाल ने ‘राजस्थान मृतक शरीर के सम्मान का विधेयक’ को पास कराने के लिए जो तर्क और आंकड़े दिए, वो उसी में फंसकर रह गए। धारीवाल ने कहा कि प्रदेश में आए दिन मृत शरीर को सड़क पर रखकर सरकार से सौदेबाजी की घटनाएं सामने आ रही हैं। पिछली राजे सरकार के दौरान डेड बॉडी लेकर विरोध प्रदर्शन की 82 घटनाएं हुईं और अब गहलोत सरकार के दौरान 2019 से 2023 तक 306 घटनाएं हो चुकी हैं। इस पर बीजेपी नेताओं ने कहा कि संसदीय कार्यमंत्री के खुद के आंकड़ों से ही यह साबित हो रहा है कि कांग्रेस सरकार में लोगों की आवाज नहीं सुनी जा रही है। तभी तो उन्हें मजबूरन अपने परिजन की डेड बॉडी लेकर प्रदर्शन करने को बाध्य होना पड़ रहा है। गहलोत सरकार के कार्यकाल में 306 घटनाएं बताती हैं कि परिजन की मौत की पीड़ा से जूझ रही जनता का आवाज भी सरकार के समक्ष नक्कारखाने में तूती की तरह दबाई जा रही है। तभी जनता को विरोध का यह तरीका मजबूरी में उठाना पड़ता है।मीसा में दो साल की सजा थी,  इस कानून में बढ़ाकर पांच साल कर दी 
बीजेपी नेताओं का आरोप है कि कांग्रेस शुरू से ही आदिवासी और उनकी परंपराओं के खिलाफ रही है। यही वजह है कि वो आदिवासियों को डराने के लिए उनकी सदियों से चली आ रही प्रथा के खिलाफ कानून लेकर आई है। इस कानून में प्रावधान किया गया है कि मृतक के परिवार का सदस्य अगर डेड बॉडी का इस्तेमाल सरकार का विरोध करने के लिए करेगा या किसी नेता या गैर-परिजन को ऐसा करने की अनुमति देगा तो उसे 2 साल तक की सजा होगी। इतना ही नहीं मीसा कानून की तरह अपने विरोधियों को निशाने पर लेने के लिए कांग्रेस सरकार ने इस कानून में ये भी प्रावधान किया है कि अगर कोई नेता या गैर-परिजन किसी डेड बॉडी का इस्तेमाल विरोध प्रदर्शन के लिए करेगा तो उसे 5 साल तक सजा हो सकती है। यानि गहलोत सरकार तो इंदिरा सरकार से भी तीन कदम आगे निकल गई। मीसा कानून में दो साल की सजा का प्रावधान था और इस कानून में बढ़ाकर पांच साल कर दिया गया है। इसके अलावा अगर परिजन शव लेने से मना करते हैं तो उन्हें भी एक साल तक की सजा हो सकती है।नया कानून आदिवासी कल्चर के खिलाफ, विधानसभा चुनाव में सिखाएंगे सबक
गहलोत सरकार का यह ‘काला कानून’ अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने वाला इसलिए साबित होगा, क्योंकि आदिवासी इलाकों में इसका अभी से विरोध शुरू हो गया है। राजस्थान की दो सौ में से 25 आदिवासी बहुल सीटें हैं। इसके अलावा करीब 10 सीटों पर आदिवासियों का प्रभाव है। पिछले तीन विधानसभा चुनाव के परिणाम साफ बताते हैं कि आदिवासी और एससी सीटों को जीतने वाली पार्टी ही सत्तासीन हुई है। राजस्थान में उदयपुर, मेवाड़, मारवाड़ और हाड़ौती अंचल की कई सीटों पर आदिवासियों का प्रभाव है। विधानसभा में कानून पारित करके कांग्रेस ने आदिवासियों की नाराजगी मोल ले ली है। आदिवासियों ने इसे अपनी सदियों की परंपरा के खिलाफ बताया है। ऐसे में यह कानून विधानसभा और लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के खिलाफ बड़ा मुद्दा बनेगा।

आदिवासियों के खिलाफ पहले भी फूट डालो और राज करो की कांग्रेस साजिश

अंग्रेजों ने ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति का पालन करते हुए लंबे समय तक भारत पर शासन किया। आजादी के संघर्ष के बाद अंग्रेज तो देश छोड़कर चले गए, लेकिन अपनी इस नीति को विरासत के रूप में कांग्रेस को सौंपकर चले गए। यही वजह है कि कब, कितना और कहां फूट डालना है, यह कांग्रेस को पता है। सात दशकों से भी अधिक समय से कांग्रेस यही करती आई है। इसी राजनीति के बूते वह देश की सत्ता पर साठ वर्षों तक विराजमान भी रही है। कांग्रेस आज भी इस नीति का पालन करते हुए राजस्थान में आदिवासी समुदाय को हिन्दू धर्म से अलग करने की साजिश कर रही है। लेकिन इस साजिश को अब करारा जवाब मिलने लगा है।

बीजेपी के राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने दौसा में आदिवासियों की एक सभा में सभी से हाथ खड़े करवाकर हिंदू होने का ऐलान करवाया। हाथ खड़े करने वालों में कांग्रेस के तीन आदिवासी विधायक भी शामिल थे। आदिवासी दिवस पर आयोजित सभा में बीजेपी सांसद किरोड़ी लाल मीणा और कांग्रेस विधायक मुरारी मीणा एक ही बैल गाड़ी पर साथ नजर आए। किरोड़ी लाल मीणा ने कांग्रेस विधायकों की मौजूदगी में गहलोत सरकार को आंदोलन की धमकी दी और सरकार को ललकारा।

दौसा के नांगल में आयोजित आदिवासियों की महापंचायत ने एक प्रस्ताव पारित कर ऐलान किया कि आदिवासी हिंदू हैं। हिंदू धर्म में आस्था रखते हैं। भगवान राम की पूजा करते हैं। हजारों की संख्या में जुटे आदिवासियों में इस दौरान कांग्रेस के विधायक मुरारी मीणा, जौहरी मीणा और जीआर खटाना एक मंच पर नजर आए। किरोड़ी लाल मीणा ने कहा कि आदिवासी समुदाय के कुछ नेता आदिवासियों में यह भ्रम फैला रहे है कि वो हिंदू नहीं हैं उन्हें भड़का रहे हैं। मीणा ने कहा कि नांगल में भव्य मंदिर बनाएंगे जिनमें सभी हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित की जाएंगी।

बीजेपी नेताओं का आरोप है कि यह आदिवासियों को अलग-थलग करने की साजिश है। वहीं सनातनी आदिवासी संस्था के अध्यक्ष पंकज मीणा कहते हैं कि प्रदेश के दक्षिणी हिस्से में कई मिशनरीज़ धर्मांतरण के काम को लेकर सक्रिय हैं। मीणा ने राजस्थान सरकार से धर्मांतरण रोकने के लिए राज्य में भी कठोर कानून बनाने और धर्मांतरण कराने वाले को सख्त सजा देने की मांग की है। पूर्व विधायक रमेश मीणा के मुताबिक आदिवासियों को दूसरे धर्म में लाने के लिए ईसाई मिशनरियों से पैसा आ रहा है। उन्होंने कहा कि खाड़ी देशों से भी भारी मात्रा में इस पर पैसा खर्च किया जा रहा है।

इससे पहले कथित तौर पर कांग्रेस समर्थित निर्दलीय विधायक रामकेश मीणा ने आमागढ़ फोर्ट पर फहराए गए भगवा झंडा को फाड़ दिया था। उस समय उन्होंने कहा था कि अगर फोर्ट में फिर झंडा लगाया जाएगा तो फिर हटवा देंगे। उनके इस बयान के बाद से मामला तूल पकड़ता जा रहा है। अब इसी बीच किरोड़ी लाल मीणा ने मीणा समाज का झंडा आमागढ़ किले पर फहरा दिया। किरोड़ी लाल मीणा को पुलिस रोक पाती उससे पहले वो झंडा फहरा चुके थे। इस पूरे मामले में जयपुर पुलिस ने बीजेपी सांसद को हिरासत में ले लिया था।

गौरतलब है कि कांग्रेस समर्थित निर्दलीय विधायक रामकेश मीणा ने दावा किया है कि आदिवासी हिन्दू नहीं है और उनका अलग धर्म है। उन्होंने अपनी मौजूदगी में जयपुर के आमागढ़ किले की प्राचीर से भगवा ध्वज को हटवाया दिया था। उन पर इसे फड़वाने का भी आरोप है। रामकेश मीणा राजस्थान आदिवासी मीणा संघ के अध्यक्ष भी हैं। कांग्रेस रामकेश मीणा को आगे रखकर हिंदुओं को टुकड़ों में बांटकर और अपमानित कर अपनी राजनीति तो चमका ही रही है, साथ ही हिंदुओं को इस देश से जड़ मूल से सफाये का बड़ा षडयंत्र भी रच रही है। हिंदुओं को जातियों और समुदाय में बांटने का कांग्रेस का यह षड्यंत्र कामयाब हो गया तो राजनीति तो अवश्य जीत जाएगी, लेकिन सनातन धर्म और भारत देश जरूर हार जाएगा।

 

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