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मणिपुर की घटना पर पीएम मोदी और 1984 के सिख विरोधी दंगे पर राजीव गांधी की संवेदनशीलता में फर्क देखिए

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पद तो एक होता है, लेकिन उसको धारण करने वाले व्यक्ति अलग होते हैं। उनकी विचारधारा, सोच और पृष्टभूमि में अंतर होता है। यही अंतर उनके व्यवहार,नजरिए और संवेदना को प्रभावित करता है। यह प्रभाव ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राजीव गांधी को व्यवहार और विचार में अलग करता है। किस घटना को देखने और उस पर प्रतिक्रिया देने में फर्क लाता है। आज देश की बागडोर एक ऐसे प्रधानमंत्री के हाथों में जो गरीबी, हर तरह के दु:ख और पीड़ा को सहता हुआ अपने परिश्रम और प्रतिभा से आगे बढ़ा है। अपने निजी स्वार्थ को त्याग कर राष्ट्रहित को सर्वोपरि माना है। उसके अंदर मानवीय संवेदना कूट-कूट कर भरी हुई है। देशवासियों की पीड़ा और दर्द को अपना समझता और इसकी झलक उसकी बातों में मिलती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मणिपुर में महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने की घटना पर अपनी जो पीड़ा व्यक्त की है, वो कोई संवेदनशील प्रधानमंत्री ही व्यक्त कर सकता है। 

प्रधानमंत्री मोदी में दिखा मणिपुर की घटना को लेकर पीड़ा और आक्रोश

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “मेरा हृदय पीड़ा से भरा है, क्रोध से भरा हुआ है। मणिपुर की जो घटना सामने आई है, वह किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्मसार करने वाली घटना है। पाप करने वाले, गुनाह करने वाले, कितने हैं-कौन हैं, यह अपनी जगह है, लेकिन बेइज्जती पूरे देश की हो रही है। 140 करोड़ देशवासियों को शर्मसार होना पड़ रहा है। मैं सभी मुख्यमंत्रियों से आग्रह करता हूं कि वे अपने राज्य में कानून व्यवस्थाओं को और मजबूत करें। खासकर माताओं-बहनों की रक्षा करने के लिए कठोर से कठोर कदम उठाएं। घटना चाहे राजस्थान की हो, छत्तीसगढ़ की हो या मणिपुर की हो, इस देश में, हिन्दुस्तान के किसी भी कोने में, किसी भी राज्य सरकार में  राजनीतिक वाद-विवाद से ऊपर उठकर कानून व्यवस्था और नारी के सम्मान का ध्यान रखें। मैं देशवासियों को विश्वास दिलाना चाहता हूं किसी भी गुनहगार को बख्शा नहीं जाएगा। कानून पूरी शक्ति से एक के बाद एक कदम उठाएगा। मणिपुर की इन बेटियों के साथ जो हुआ है, उसे कभी माफ नहीं किया जा सकता।”

पीड़ितों के प्रति संवेदना और अपराधियों के प्रति सख्ती

मणिपुर की घटना को लेकर प्रधानमंत्री मोदी के मन में कितनी पड़ा और आक्रोश है, उनके इस बयान से महसूस किया जा सकता है। उन्होंने अपने बयान में जहां पीड़ितों के प्रति संवेदना जताई है, वहीं आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आश्वासन दिया है। उन्होंने मणिपुर की राज्य सरकार का बचाव किए बिना जिस तरह अपनी भावना व्यक्ति की उसकी अपेक्षा नरेन्द्र मोदी जैसे संवेदनशील प्रधानमंत्री से ही की जा सकती है। उन्होंने महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराध को पूरे देश के लिए कलंक बताया। उन्होंने स्पष्ट किया कि महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराध किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। उन्होंने इन घटनाओं को रोकने के लिए सभी राज्य सरकारों से सहयोग मांगा। देशवासियों को आश्वासन दिया कि राज्यों के साथ मिलकर इस दिशा में कानून और व्यवस्था को सख्ती से लागू करने का काम करेंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने राजनीतिक स्वार्थ से ऊपर उठकर अपना राष्ट्रधर्म निभाया और देश की नारीशक्ति की रक्षा के लिए अपनी पूरी प्रतिबद्धता जताई।

सिखों का कत्लेआम होता रहा, राजीव गांधी सोये रहे

मणिपुर की घटना पर प्रधानमंत्री मोदी की प्रतिक्रिया ने 1984 में हुए सिख विरोधी दंगे और उसके बाद राजीव गांधी की प्रतिक्रिया की याद ताजा कर दी है। इस दंगे में 3 हजार से ज्यादा सिखोंं को मौत के घाट उतार दिया गया था। सौकड़ों महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया था। सिखों के घर और दुकान को लूटपाट के बाद आग के हवाले कर दिया गया था। हजारों सिख परिवार बेघर हो गए थे। कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं की भीड़ ने सड़कों पर सिखों को जिंदा जला दिया था। कमलनाथ, जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार जैसे बड़े-बड़े कांग्रेसी नेता हिंसक भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे। दंगे की वजह से पूरे देश में अफरा-तफरी और सिखों में दहशत का आलम था। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी इन घटनाओं पर अपने आंखें मूंद ली थीं। हिंसक भीड़ को उनका मौन समर्थन था, जिसकी वजह से हिंसक भीड़ ने पूरे देश में तांडव किया। राजीव गांधी ने सिखों के खिलाफ हो रही हिंसा को रोकने की कोशिश नहीं की।

राजीव गांधी का वक्तव्य सिखों के ज़ख़्मों पर नमक छिड़कने जैसा था

राजीव गांधी ने सिखों के कत्लेआम पर अपनी संवेदनहीनता का परिचय उस समय दिया, जब बोट क्लब में इकट्ठा हुए लोगों की भीड़ को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “जब इंदिरा जी की हत्या हुई थी, तो हमारे देश में कुछ दंगे फसाद हुए थे। हमें मालूम है कि भारत की जनता के दिल में कितना क्रोध आया, कितना गुस्सा आया। और कुछ दिन के लिए लोगों को लगा कि भारत हिल रहा है। लेकिन जब भी कोई बड़ा पेड़ गिरता है, तो धरती थोड़ी हिलती है।” राजीव गांधी के इस बयान में कही भी मारे गए सिखों, उनकी विधवाओं, बलत्कार पीड़ित महिलाओं, अनाथ बच्चों, बेघर सिख परिवारों के लिए कोई पिड़ा, दर्द और अपराध बोध नहीं था। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की तरह उपद्रवियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आश्वासन भी नहीं दिया। उन्होंने राज्य सरकारों से हिंसक कांग्रेसियों पर सख्त कार्रवाई का निर्देश भी नहीं दिया। राजीव गांधी का वक्तव्य पीड़ित सिखों के ज़ख़्मों पर नमक छिड़कने जैसा था। 

राजीव गांधी ने सख्ती दिखाने की जगह हिंसक भीड़ का किया मौन समर्थन

राजीव गांधी के इस बयान से पूरे देश में यह संदेश गया कि मानो वो इन हत्याओं को सही ठहराने की कोशिश कर रहे हैं। उनके बयान और प्रयास से नहीं लगा कि वो इस हिंसा को लेकर वह दुखित है। उनके बयान से कांग्रेस के नेताओं और पुलिस को प्रोत्साहन मिला। कई जगह तो पीड़ित सिखों को ही गिरफ्तार किया गया। कई जगह तो पुलिस ने सिखों को पकड़कर भीड़ के हवाले कर दिया। कांग्रेसी भीड़ के पास इस बात की सूची थी कि किस घर में सिख रहते हैं। उन्हें हज़ारों लीटर केरोसीन मुहैया कराया गया। पुलिस भी कांग्रेस नेताओं के इशारों पर कठपुतली बनी गई थी। कांग्रेस सरकार ने दंगा करने वालों बड़े नेताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। कुछ गिरफ्तारियां कर सरकार ने खानापूर्ति कर दी। लेकिन सिखों के जख्म आज भी गहरे हैं। कांग्रेस के माफी मांग लेने से उनके जख्मों पर मरहम नहीं लग सकते हैं। जब कोई बड़ी घटना घटती है, 1984 के सिख दंगे और कांग्रेसियों का अमानवीय चेहरा नजर आने लगता है। 

जो काम कांग्रेस को करना चाहिए था, वो काम प्रधानमंत्री मोदी ने किया। 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद 84 के दंगा पीड़ितों को इंसाफ दिलाने की प्रक्रिया शुरू हुई। वहीं कांग्रेस आज भी दंगे के आरोपी नेताओं को पुरस्कार देने का कोई मौका नहीं छोड़ती है। आइए देखते हैं मोदी सरकार ने सिखों को इंसाफ दिलाने के लिए क्या-क्या कदम उठाए हैं…

सिख विरोधी दंगा: कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को उम्रकैद

दिल्ली हाईकोर्ट ने सिख विरोधी दंगा मामले में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को दोषी ठहराया। दिल्ली हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा सुनाई। हाईकोर्ट ने सज्जन कुमार को दिल्ली कैंट इलाके में 5 लोगों की हत्या के मामले में आपराधिक साजिश और भीड़ को उकसाने का दोषी पाया। सज्जन कुमार पर पांच लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया।

सज्जन कुमार के अलावा नौसेना के रिटायर्ड अधिकरी कैप्टन भागमल, पूर्व कांग्रेस पार्षद बलवान खोखर और गिरधारी लाल को भी दोषी करार दिया गया। इन तीनों को निचली अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इनके अलावा पूर्व विधायक महेंद्र यादव और किशन खोखर को भी दोषी करार पाया गया, जिन्हें निचली अदालत ने तीन साल की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट ने इन सभी पांचों दोषियों को 10-10 साल की सजा सुनाई। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि साल 1947 के विभाजन के दौरान सैंकड़ो लोगों का नरसंहार हुआ था, 37 साल बाद दिल्ली में वैसा ही मंजर दिखा और आरोपी राजनीतिक संरक्षण के चलते ट्रायल से बचते रहे।

कमलनाथ को सीएम बनाकर राहुल ने छिड़का सिखों के जख्मों पर नमक
1984 में सिखों का कत्लेआम करने वाले नेताओं को कांग्रेस लगातार बड़ी जिम्मेदारी देती जा रही है। मध्य प्रदेश के नव नियुक्त मुख्यमंत्री कमलनाथ पर भी सिख विरोधी हिंसा में शामिल होने का आरोप है। इसके बावजूद कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी ने कमलनाथ को इतनी बड़ी जिम्मेदारी दे दी। इससे समुदाय भड़का गया और कांग्रेस को नतीजे भुगतने की चेतावनी दी। 

सिख विरोधी दंगों को लेकर भाजपा के दिल्ली प्रवक्ता तजिंदर सिंह बग्गा ने ट्वीट किया, ‘सुना है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी 1984 में हुए सिख नरसंहार के हत्यारे कमलनाथ को बतौर सीएम नियुक्त करना चाहते हैं। यह वही शख्स हैं, जिन्होंने गुरुद्वारा रकाबगंज (हिंद दी चादर गुरु तेग बहादुर जी का दाह संस्कार स्थल) में आग लगा दी थी। यह चीज एक बार फिर से दर्शाती है कांग्रेस सिख विरोधी पार्टी है।’

एक अन्य ट्वीट में बग्गा ने कहा, ‘जब राहुल गांधी ने 1984 के सिख हत्याकांड के जिम्मेदार कमलनाथ को पंजाब विधानसभा चुनाव का इंचार्ज बनाया था तो कैप्टन अमरिंदर सिंह ने विरोध जताया था, जब तक की उन्हें हटा नहीं लिया गया। अगर राहुल गांधी सिखों के हत्यारे कमलनाथ को मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री नियुक्त करते हैं तो कैप्टन अमरिंदर को विरोध जताया जताते हुए इस्तीफा दे देना चाहिए।’

1984 के गुनहगार हैं कमलनाथ 
कमलनाथ को सीएम बनाने का सबसे बड़ा विरोध पंजाब में हो हुआ। आम आदमी पार्टी के कंवर संधू और वरिष्ठ नेता एच एस फूलका ने भी विरोध करने का ऐलान किया। संधू ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता का दावा करने वाली कांग्रेस पार्टी को ये नहीं भूलना चाहिए कि 1984 के सिख विरोधी दंगों को लेकर कमलनाथ के बारे में क्या आम राय है।

वहीं फूलका ने कहा कि भले ही कमलनाथ को 1984 के सिख विरोधी दंगों को लेकर किसी कानूनी कार्रवाई का सामना नहीं करना पड़ा हो लेकिन ऐसे गवाह हैं जिन्होंने कमलनाथ को दिल्ली के गुरुद्वारा रकाबगंज के पास भीड़ को उकसाते देखा है।

शिरोमणि अकाली दल ने भी कांग्रेस पर सिख दंगों के जिम्मेदार नेताओं को पुरस्कृत करने का आरोप लगाया। दिल्ली में  मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा, ‘जब भी गांधी परिवार सत्ता में आता है तो ये लोग 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों के जिम्मेदारों को बचाने का काम करते हैं। अब राहुल कमलनाथ को सीएम पद से नवाज रहे हैं। राहुल गांधी शायद ये संदेश देना चाहते हैं कि सिखों की हत्या में शामिल लोगों को अब चिंता करने की जरूरत नहीं है, वे उनके साथ हैं और उन्हें ईनाम भी देंगे।’ 

कांग्रेस ने नहीं होने दी जांच
आम आदमी पार्टी के नेता और जाने माने वकील एचएस फूलका ने वर्ष 2006 में एक गवाह अदालत के सामने पेश किया जिसका नाम मुख्त्यार सिंह बताया जाता है। इस गवाह के बयान के आधार पर ही कमलनाथ का नाम सिख विरोधी दंगों से जुड़े मामलों में शामिल किया। लेकिन कांग्रेस ने अपनी चालों से कमलनाथ को फंसने नहीं दिया। एनडीए शासनकाल में सिख विरोधी दंगों की जांच कर रहे नानावटी कमीशन के सामने कमलनाथ की पेशी भी हुई थी। रंगनाथ मिश्रा कमेटी के सामने भी कमलनाथ की पेशी हो चुकी है। तब पत्रकार संजय सूरी ने बतौर गवाह ने कमलनाथ की पहचान की थी।

मोदी सरकार ने दिलाया सिखों को इंसाफ
30 साल से इंसाफ के लिए तरस रहे 1984 सिख विरोधी हिंसा पीड़ितों को मोदी सरकार में 3 साल में इंसाफ मिल गया। दिल्ली की पटियाला हाऊस कोर्ट ने दो सिख युवकों की नृशंस हत्या के मामले में यशपाल सिंह को फांसी और नरेश सहरावत को उम्र कैद की सजा दी। हैरत की बात ये है कि 1994 में कांग्रेस सरकार के दबाव में दिल्ली पुलिस ने ये केस बंद कर दिया था। लेकिन मोदी सरकार ने 2015 में सिखों को इंसाफ दिलाने के लिए एसआईटी बनाई और एक केस में सजा भी दिला दी।

दरअसल 1984 की सिख विरोधी हिंसा देश के इतिहास में काला अध्याय है। इस हिंसा में देशभर में हजारों सिखों का कत्लेआम हुआ, हजारों मां-बहनों की आबरू से खिलवाड़ किया गया और अरबों रुपये की संपत्ति लूटी गई, लेकिन इसमें शामिल कांग्रेस नेताओं को सरकार लगातार बचाती रही। और तो और तब के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अमानवीय बयान देकर इस हत्याकांड को सही ठहराने की कोशिश भी की। बहरहाल सिख संगठनों और पीड़ितों को इंसाफ दिलाने की सबसे गंभीर पहल वाजपेयी सरकार ने साल 2000 में शुरू की लेकिन 2004 में कांग्रेस की सरकार बनने के साथ ही ये प्रक्रिया पटरी से उतर गई। नरसंहार के सबसे बड़े गुनहगार सज्जन कुमार और जगदीश टाइटलर को कांग्रेस ने 2004 में न केवल सांसद बनाया बल्कि सिखों के जख्मों पर नमक छिड़कने के लिए टाइटलर को 2005 में मंत्री भी बना दिया।

1984 दंगों से साजिश का सिलसिला !  

31 अक्टूबर को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई
एक नवंबर से पूरे देश में सिखों के खिलाफ हिंसा शुरू
कांग्रेस नेताओं ने लोगों को सिखों के खिलाफ भड़काया
वेद मारवाह कमीशन, रंगनाथ मिश्रा कमीशन के नाम पर लीपापोती
2013 में निचली अदालत ने सज्जन कुमार को किया बरी
एक और मुख्य आरोपी जगदीश टाइटलर को भी क्लीन चिट
21 साल बाद मनमोहन सिंह ने संसद में देश से माफी मांगी

मोदी सरकार में क्या हुआ ?  

2015 में सिख हिंसा की जांच के लिए एसआईटी बनाई
एसआईटी ने दंगों के 280 केसों की छानबीन की
छानबीन के बाद 52 केस को अपने हाथ में लिया
शुरूआती तौर पर 5 केस की जांच तेजी से की
सज्जन कुमार को उम्र कैद की सजा मिली

 

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