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अयोध्या की राह पर काशीनगरी, शिवलिंग मिलने के बाद पूरे ज्ञानवापी परिसर के भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को मिली मंजूरी, अब सबको पता चलेगा शिवलिंग कितना प्राचीन है और मस्जिद कब बनी?

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बाबा विश्वनाथ की काशी नगरी अब प्रभु श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या के नक्शेकदम पर चल निकली है। अयोध्या को पांच सौ साल से ज्यादा के संघर्ष के बाद अब अगले साल राम लला का भव्य और दिव्य मंदिर मिलने जा रहा है। पीएम मोदी ने इस मंदिर का शिलान्यास किया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की जांच में ही राम लला के गर्भगृह पर, मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाने के प्रमाण मिले थे। अब वाराणसी के बहुचर्चित ज्ञानवापी परिसर में मिली शिवलिंग की आकृति ही नहीं, बल्कि पूरे विवादित स्थल का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से वैज्ञानिक पद्धति से जांच कराने की याचिका को जिला जज की अदालत ने मंजूरी दे दी है। अब पूरे ज्ञानवापी परिसर का एएसआई द्वारा सर्वे करके उस सच का पता पता लगाया जाएगा, जो कि सनातन हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले सभी लोग चाहते हैं। सबको यह मालूम होना चाहिए कि आदि विश्वेश्वर का मंदिर कितना ज्यादा प्राचीन है और ज्ञानवापी बाद में कब बनी? अदालत ने अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी और मुस्लिम पक्ष को आपत्ति दाखिल करने के लिए 19 मई तक का समय दिया है। मामले की अगली सुनवाई 22 मई को होगी।हमारे धर्मस्थलों को विदेशी आक्रांताओं ने तलवार के बल पर उजाड़ा था
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने छह याचिकाकर्ताओं की तरफ से सर्वे की गुहार लगाई है। उन्होंने कहा कि सनातन हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले सभी लोग यह चाहते हैं कि हमारे आराध्य आदि विश्वेश्वर से जुड़ा ज्ञानवापी का सच सामने आए। अधिवक्ता ने कहा कि अनादि काल से हमारी आस्था के केंद्र रहे हमारे धर्मस्थलों को विदेशी आक्रांताओं ने तलवार के बल पर उजाड़ा था। इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय ने पिछले साल ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में मिले शिवलिंग की कार्बन डेटिंग करके यह पता लगाने को कहा था कि आखिर वह शिला कितनी पुरानी है। हाईकोर्ट ने वाराणसी जिला जज को मामले की सुनवाई आगे बढ़ाने के निर्देश भी दिये थे। अब जिला अदालत ने याचिका सुनवाई के लिये स्‍वीकार कर ली है। माना जा रहा है कि आदि विश्‍वेश्‍वर ज्‍योतिर्लिंग का असली स्‍थान ज्ञानवापी ही था। जिसकी ओर काशी विश्‍वनाथ मंदिर परिक्षेत्र में मौजूद नंदी का मुख सदियों से विद्यमान है। नंदी की मूर्ति का मुख ज्ञानवापी मस्जिद की ओर होना सबसे बड़ा प्रमाण
ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे के दौरान साक्ष्‍य के तौर पर शिवलिंग मिलने के बाद वादी पक्ष के अधिवक्‍ताओं की ओर से अदालत में इस बाबत एक प्रार्थना पत्र दिया। जिसपर शिवलिंग की सुरक्षा को लेकर अदालत ने आदेश जारी किया है। हिंदू मान्‍यता के अनुसार नंदी का मुख सदैव शिवलिंग की ओर ही होता है। ऐसे में नंदी की मूर्ति का मुख ज्ञानवापी मस्जिद की ओर होने की वजह से ही हिंदू पक्ष की ओर से मस्जिद के सर्वे की मांग लंबे समय से उठ रही थी। इस बाबत अधिवक्ता हरिशंकर जैन की ओर से प्रस्तुत कार्रवाई की रिपोर्ट को प्रार्थना पत्र के साथ प्रस्‍तुत किया गया। प्रार्थना पत्र में कहा गया है कि 16 मई को शिवलिंग मस्जिद कांप्‍लेक्स के अंदर एडवोकेट कमिश्‍नर की कार्यवाही के दौरान पाया गया है। यह बहुत ही महत्वपूर्ण साक्ष्य है इसलिए सीआरपीएफ कमांडेंट को आदेशित किया जाए कि वह इसे सील कर दें। जिलाधिकारी वाराणसी को आदेशित किया जाए कि वहां मुसलमानों का प्रवेश वर्जित कर दें। मात्र 20 मुसलमानों को नमाज अदा करने की इजाजत दी जाए और उन्हें वजू करने से भी तत्काल रोक दिया जाए।

‘नंदी जिनका बरसों से इंतजार कर रहे थे, वह शिवलिंग मिल गए हैं’
इस आदेश का जिला प्रशासन ने शाम चार बजे तक पालन भी करा दिया। अब यहां पर सुरक्षाबल किसी को भी जाने की अनुमति नहीं देंगे। ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में सुबह दस बजे तक कुल दो घंटे एडवोकेट कमिश्‍नर की कार्यवाही की गई। इसी के साथ तीन दिन तक ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे का कार्य पूरा हो गया। इस दौरान सर्वे में शामिल सभी सदस्‍य ज्ञानवापी परिसर से सर्वे के बाद वापस लौट गए। इस दौरान मीडिया से बातचीत के दौरान वादी पक्ष के सोहनलाल आर्य ने बताया, ‘नंदी जिसका इंतजार कर रहे थे वह बाबा मिल गए’। इतिहास कालखंड में जो भी लिखा था वह मिल गया है। इस दौरान उन्‍होंने हाथों से शिवलिंग मिलने का इशारा किया। इसके बाद शिवलिंग मिलने की चर्चाने जोर पकड़ा। अदालत में थोड़ी देर बाद ही शिवलिंग मिलने वाली जगह को सील करने के लिए प्रार्थना पत्र दिया गया, जिसपर अदालत ने आदेश भी दोपहर 12 बजे के बाद जारी कर दिया। वहीं आदेश जारी होते ही संबंधित क्षेत्र को तुरंत ही सील करते हुए लोगों का प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया है।

प्राचीन मंदिर को ध्वस्त कर उसके ऊपर तीन गुंबद कब बनाए गए?
ज्ञानवापी मस्जिद वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी हुई है। इस मस्जिद को लेकर दावा किया जाता है कि इसे मंदिर को तोड़कर बनाया गया था। हिंदू पक्ष का दावा है कि इस ढ़ाचे के नीचे 100 फीट ऊंची विशेश्वर का स्वयम्भू ज्योतिर्लिंग स्थापित है। पूरा ज्ञानवापी इलाका एक बीघा, नौ बिस्वा और छह धूर में फैला है। अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा कि देश की जनता को ज्ञानवापी से जुड़े इन सवालों के जवाब मिलने जरूरी हैं। ज्ञानवापी में मिला शिवलिंग कितना प्राचीन है? शिवलिंग स्वयंभू है या कहीं और से लाकर उसकी प्राण प्रतिष्ठा की गई थी? विवादित स्थल की वास्तविकता क्या है? विवादित स्थल के नीचे जमीन में क्या सच दबा हुआ है? मंदिर को ध्वस्त कर उसके ऊपर तीन कथित गुंबद कब बनाए गए? तीनों कथित गुंबद कितने पुराने हैं? कोर्ट में याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करीब 2,050 साल पहले महाराजा विक्रमादित्य ने करवाया था, लेकिन मुगल सम्राट औरंगजेब ने सन् 1664 में मंदिर को नष्ट कर दिया था। दावा किया गया कि इसके अवशेषों का उपयोग मस्जिद बनाने के लिए किया था, जिसे मंदिर भूमि पर निर्मित ज्ञानवापी मस्जिद के रूप में जाना जाता है।पहले भी मस्जिद में स्वास्तिक और कमल निशान और दीवारों पर मूर्तियां मिलीं 
इससे पहले भी काशी ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर जिस तरह की संभावनाएं हिंदू वर्ग की ओर से जाहिर की जाती रही हैं, उनको कोर्ट के आदेश पर किए जा रहे सर्वे में बल मिला था। वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद में पिछले साल अदालत के आदेश पर सर्वे करने वाली टीम के साथ गए कैमरामैन ने बड़ा दावा किया। उनके अनुसार, मस्जिद पर कमल के निशान हैं। दीवार पर स्वास्तिक के निशान हैं, दीवारों पर मूर्तियां उकेरी गई हैं। सर्वे उस दावे के आधार पर किया जा रहा है, जिसमें हिंदू पक्ष के एक वर्ग का मानना है कि बनारस में औरंगजेब ने काशी विश्वानाथ मंदिर को तोड़कर और उसके अवशेषों के जरिए ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण कराया था। जिसके आधार पर कोर्ट ने वीडियोग्राफी के साथ सर्वे के आदेश दिए थे। कोर्ट के आदेश पर परिसर के श्रृंगार गौरी और विग्रहों का सर्वे किया जाना है।

मस्जिद में हिंदू धर्म से जुड़े प्रतीक चिन्हों को देखने का कैमरामैन का दावा
श्रृंगार गौरी मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में बड़ा खुलासा हुआ है। टाइम्स नाउ नवभारत पर ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर सर्वे करने वाली टीम के कैमरामैन ने बड़ा दावा किया है। कैमरामैन गणेश शर्मा का दावा है कि उन्होंने मस्जिद की दीवार पर स्वास्तिक के निशान देखे हैं। गणेश शर्मा के मुताबिक परिक्रमा करते वक्त उन्होंने नंदी की मूर्ति भी देखी है। गणेश शर्मा ने मस्जिद के दीवारों पर हिंदू धर्म से जुड़े प्रतीक चिन्हों को देखने का दावा किया। सुप्रीम कोर्ट के वकील विष्णु ने भी दावे को सही ठहराया है। श्रृंगार गौरी के पास आकृतियां भी हैं।

ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में सर्वे को बाधित करने की भी कोशिश की गई
ज्ञानवापी परिसर में सर्वे को बाधित करने की भी कोशिश की गई। हिंदू पक्ष का दावा था कि मुस्लिम समुदाय के लोगों ने रास्ता रोका। दूसरी ओर अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी के वकील रईद अहमद ने कहा कि हमने (अदालत) आयुक्त के खिलाफ एक आवेदन दायर किया क्योंकि वह पक्षपाती हैं और उन्हें हटाया जाना चाहिए। कोर्ट अर्जी पर सुनवाई करेगी और उसके आदेशों का पालन किया जाएगा। काशी विश्वनाथ मंदिर के वकील विजय शंकर रस्तोगी ने कहा कि आवेदन को दुर्भावनापूर्ण कहा गया है और इसे खारिज कर दिया जाना चाहिए। आदेश अभी तक सुरक्षित है। यदि कोई गलत रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है या इसे समय से पहले प्रस्तुत किया जाता है, तो विपरीत पक्ष इस पर आपत्ति कर सकता है और अदालत इस पर विचार करेगी।32 साल पहले पुजारियों ने कोर्ट से मांगी थी पूजा की अनुमति
यह करीब 32 साल पुराना मामला है, जब साल 1991 में पुजारियों के समूह ने बनारस की कोर्ट में याचिका दायर की थी। जिन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद क्षेत्र में पूजा करने की अनुमति मांगी थी। इन लोगों ने कोर्ट में यह दलील दी कि औरंगजेब ने काशी विश्वानाथ मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण कराया था। ऐसे में उन्हें परिसर में पूजा की अनुमति दी जाय। इस मामले में मस्जिद की देखभाल करने वाली अंजुमन इंतजामिया मसाजिद को प्रतिवादी बनाया गया।अयोध्या की तरह अब काशी-मथुरा विवाद का भी हल निकलना चाहिए
करीब 6 साल के सुनवाई के बाद 1997 में कोर्ट ने दोनों पक्षों के पक्ष में मिला-जुला फैसला सुनाया। जिससे दोनों पक्ष हाईकोर्ट चले गए और इलाहाबाद कोर्ट ने 1998 में लोअर कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। अयोध्या को लेकर राम मंदिर निर्माण का फैसला आया और उसके बाद ज्ञानवापी केस को लेकर सरगर्मियां शुरू हो गईं। उसे देखते हुए इस फैसले का भारतीय राजनीति पर बड़ा असर दिख सकता है। असल में अयोध्या की तरह भले ही भाजपा ने काशी-मथुरा को लेकर प्रस्ताव पारित नहीं किया हो, पर पार्टी के नेताओं का यह मानना है कि काशी-मथुरा विवाद का भी हल निकलना चाहिए।

जानिए, कितना प्राचीन है शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर
दुनिया की सबसे प्राचीन नगरी वाराणसी में है भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर। वाराणसी को बनारस या काशी भी कहते हैं। हिंदू धर्म में वाराणसी का और वाराणसी में काशी-विश्वनाथ मंदिर का विशेष महत्व है। मान्यता है कि काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर टिका है। पवित्र गंगा नदी के किनारे बसे देवों के देव महादेव की इस नगरी में लोग मोक्ष प्राप्त करने आते हैं। काशी का उल्लेख हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथों में भी किया गया है। मान्यता है कि महादेव शिव और माता पार्वती का यह आदि स्थान है। भगवान भोले शंकर के वरदान के कारण यहां शरीर त्यागने वाला व्यक्ति तत्काल मोक्ष को प्राप्त करता है। यहां पवित्र गंगा नदी में स्नान करने के बाद बाबा विश्वनाथ का दर्शन करने मात्र से लोगों के सभी पाप मिट जाते हैं। हिंदू धर्म के श्रद्धालुओं में इस तीर्थ स्थान को लेकर खास आस्था है। इसी आस्था को मिटाने के लिए विदेशी आक्रमणकारियों ने कई बार बाबा विश्वनाथ के मंदिर को तोड़ने की कोशिश की।राजा हरिशचन्द्र के बाद सम्राट विक्रमादित्य ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया

द्वादश ज्योतिर्लिंगों में शामिल काशी विश्वनाथ मंदिर को विश्वेश्वर नाम से भी जाना है। मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ अनादि काल से ही यहां विराज रहे हैं। इसीलिए आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर को ही प्रथम लिंग माना गया है। बताया जाता है कि राजा हरिशचन्द्र के बाद सम्राट विक्रमादित्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। इस भव्य मंदिर को 1194 में मुस्लिम आक्रमणकारी मुहम्मद गौरी ने लूटने के बाद तुड़वा दिया।

इतिहासकारों के अनुसार मुहम्मद गौरी के तोड़ने के बाद इस मंदिर का निर्माण फिर से कराया गया, लेकिन जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने इसे दोबारा तुड़वा दिया। इसके बाद अकबर के नवरत्नों में से एक राजा टोडरमल ने 1585 में इसका पुनर्निर्माण किया। यहां बाबा विश्वनाथ के भव्य मंदिर को देखकर मुगल शासक शाहजहां को जलन होने लगी और उसने सन् 1632 में इसे तोड़ने के लिए सेना भेज दी। हिन्दुओं के प्रतिरोध के कारण मुगल सेना मुख्य विश्वनाथ मंदिर को तो तोड़ नहीं सकी, लेकिन काशी के 63 अन्य मंदिर तोड़ दिए गए।शाहजहां के विफल रहने के बाद मुस्लिम शासक औरंगजेब में 18 अप्रैल, 1669 को काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त कर एक मस्जिद बनाने का आदेश दिया। बताया जाता है कि यह फरमान एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में आज भी सुरक्षित है। उस समय के लेखक साकी मुस्तइद खां के ‘मासीदे आलमगिरी’ में इस ध्वंस का वर्णन है। औरंगजेब के आदेश पर यहां मंदिर तोड़कर एक ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई।

बार-बार मंदिर तोड़े जाने से हिंदुओं में काफी नाराजगी थी। सन 1752 के बाद मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया और मल्हारराव होलकर ने मंदिर मुक्ति के प्रयास किए, लेकिन उस समय काशी पर ईस्ट इंडिया कंपनी का राज होने से मंदिर के पुनर्निर्माण का काम रुक गया। आखिरकार इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने 1777-78 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। अहिल्याबाई होलकर द्वारा वर्तमान विश्वनाथ मंदिर बनवाने के बाद 1835 में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने इसके शिखर पर सोने का छत्र बनवाया। इसके बाद यहां नेपाल के राजा ने विशाल नंदी की प्रतिमा स्थापित करवाई।

पीएम मोदी ने किया भव्य-दिव्य और अकल्पनीय काशी कॉरिडोर का लोकार्पण

प्रधानमंत्री मोदी 13 दिसंबर को अलौकिक, अद्भुत और अकल्पनीय काशी विश्वनाथ धाम का लोकार्पण किया। औरंगजेब के समय विश्वनाथ मंदिर परिसर से दूर हो गए ज्ञानवापी कूप और विशाल नंदी को एक बार फिर विश्वनाथ मंदिर परिसर में शामिल कर लिया गया है। अब काशी विश्वनाथ मंदिर को भव्य आधुनिक रूप देने का काम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया है। वाराणसी के सांसद प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में श्रीकाशी विश्वनाथ कॉरिडोर श्रद्धालुओं को अपनी दिव्यता और भव्यता का एहसास कराया है।

 

 

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