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मोदी राज में यूरिया अन्य देशों के मुकाबले 10 गुना सस्ता! अमेरिका में 3 हजार, चीन में 2100 और भारत में 270 रुपये प्रति बैग

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मोदी सरकार ने कोरोना महामारी और यूक्रेन में जारी युद्ध के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजारों में उवर्रकों की बढ़ी कीमतों से देश के किसानों को प्रभावित नहीं होने दिया। मोदी सरकार ने यह सुनिश्चित करने के पूरे प्रयास किए कि किसानों पर यूरिया की बढ़ती कीमतों का बोझ न पड़े। यूरिया की एक बैग पर 3500 रुपए की लागत आती है जो किसानों को 270 रुपए में उपलब्ध कराई जाती है। किसानों को राहत देने के लिए सरकार प्रति बोरी 3200 रुपए की लागत वहन करती है। अगर यूरिया की कीमत की तुलना विदेशों से करें तो अमेरिका में 3 हजार रुपये प्रति बैग और चीन में 2100 रुपये प्रति बैग है। इस तरह से देखें तो भारत में किसानों को यूरिया अन्य देशों के मुकाबले 10 गुना सस्ते दामों पर मिल रहा है। इससे किसानों को कम लागत में अधिक पैदावार मिल रही है और उनका लाभ बढ़ रहा है। इसके साथ ही सरकार ने इस साल खरीफ सत्र के लिए यूरिया के लिए 70 हजार करोड़ रुपये की सब्सिडी को मंजूरी दी है। इसके अलावा डीएपी एवं अन्य उर्वरकों के लिए 38,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी को स्वीकृति दी है। इस तरह अप्रैल 2023 से मार्च 2024 के खरीफ सत्र में उर्वरक सब्सिडी पर कुल 1.08 लाख करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।

पीएम मोदी के विजन से यूरिया उत्पादन में आत्मनिर्भरता की ओर भारत
पीएम मोदी के विजन से यूरिया उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिए भारत तेजी से तरल नैनो यूरिया की ओर बढ़ रहा है। नैनो यूरिया, कम खर्च में अधिक पैदावार का माध्यम है। एक बोरी यूरिया की जरूरत अब नैनो यूरिया की एक छोटी सी बोतल से पूरी हो जाती है। भारत का सबसे अधिक खर्च जिन चीजों को आयात करने में होता है, उनमें खाद्य तेल, उर्वरक और कच्चा तेल शामिल हैं। इनको खरीदने के लिए हर वर्ष लाखों करोड़ रुपये दूसरे देशों को देने पड़ते हैं। अब कुछ सालों में भारत यूरिया में आत्मनिर्भर होने की ओर बढ़ रहा है तो करोड़ों रुपये विदेश जाने से बच जाएंगे और किसानों को सस्ते दाम पर यूरिया मिलेंगे।

मोदी सरकार ने किसानों की बेहतरी के लिए कई कदम उठाए हैं। इस पर एक नजर-

यूरिया सब्सिडी योजना 3 साल के लिए बढ़ी, 3.70 लाख करोड़ के विशेष पैकेज को मंज़ूरी
मोदी सरकार ने किसानों को करों और नीम कोटिंग शुल्कों को छोड़कर 242 रुपये प्रति 45 किलोग्राम की बोरी की समान कीमत पर यूरिया की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए यूरिया सब्सिडी योजना को जारी रखने की मंजूरी दे दी है। पैकेज में तीन वर्षों के लिए (2022-23 से 2024-25) यूरिया सब्सिडी को लेकर 3,68,676.7 करोड़ रुपये आवंटित करने के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है। यह पैकेज हाल ही में अनुमोदित 2023-24 के खरीफ मौसम के लिए 38,000 करोड़ रुपये की पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (एनबीएस) के अतिरिक्त है।

किसानों को यूरिया खरीद के लिए अब ज्यादा खर्च करने की जरूरत नहीं
किसानों को यूरिया की खरीद के लिए अतिरिक्त खर्च करने की आवश्यकता नहीं होगी और इससे उनकी इनपुट लागत को कम करने में मदद मिलेगी। वर्तमान में, यूरिया की एमआरपी 242 रुपये प्रति 45 किलोग्राम यूरिया की बोरी है (नीम कोटिंग शुल्क और लागू करों को छोड़कर) जबकि बैग की वास्तविक कीमत लगभग 2200 रुपये है। यह योजना पूरी तरह से भारत सरकार द्वारा बजटीय सहायता के माध्यम से वित्तपोषित है। यूरिया सब्सिडी योजना के जारी रहने से यूरिया का स्वदेशी उत्पादन भी अधिकतम होगा।

मोदी राज में यूरिया सब्सिडी 73 हजार करोड़ से बढ़कर 2.50 लाख करोड़ पहुंचा
लगातार बदलती भू-राजनीतिक स्थिति और कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि के कारण, पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक स्तर पर उर्वरक की कीमतें कई गुना बढ़ रही हैं। लेकिन भारत सरकार ने उर्वरक सब्सिडी बढ़ाकर अपने किसानों को उर्वरक की अधिक कीमतों से बचाया है। किसानों की सुरक्षा के प्रयास में मोदी सरकार ने उर्वरक सब्सिडी को 2014-15 में 73,067 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2022-23 में 2,54,799 करोड़ रुपये कर दिया है।

वर्ष 2025-26 तक आठ नैनो यूरिया संयंत्र चालू हो जाएंगे
2025-26 तक, 195 एलएमटी पारंपरिक यूरिया के बराबर 44 करोड़ बोतलों की उत्पादन क्षमता वाले आठ नैनो यूरिया संयंत्र चालू हो जाएंगे। नैनो उर्वरक पोषकतत्वों को नियंत्रित तरीके से रिलीज करता है, जो पोषक तत्वों के उपयोग की दक्षता को बढ़ता है और किसानों की लागत भी कम आती है। नैनो यूरिया के उपयोग से फसल उपज में वृद्धि हुई है।

देश में 6 यूरिया प्लांट चालू, जल्द आत्मनिर्भर होगा भारत
वर्ष 2018 से 6 यूरिया उत्पादन यूनिट, चंबल फर्टिलाइजर लिमिटेड, कोटा राजस्थान, मैटिक्स लिमिटेड पानागढ़, पश्चिम बंगाल, रामागुंडम-तेलंगाना, गोरखपुर-उत्तर प्रदेश, सिंदरी-झारखंड और बरौनी-बिहार की स्थापना और पुनरुद्धार से देश को यूरिया उत्पादन और उपलब्धता के मामले में आत्मनिर्भर बनाने में मदद मिल रही है।

यूरिया का स्वदेशी उत्पादन लगातार बढ़ रहा
यूरिया का स्वदेशी उत्पादन 2014-15 के 225 एलएमटी के स्तर से बढ़कर 2021-22 के दौरान 250 एलएमटी हो गया है। 2022-23 में उत्पादन क्षमता बढ़कर 284 एलएमटी हो गई है। नैनो यूरिया संयंत्र के साथ मिलकर ये यूनिट यूरिया में हमारी वर्तमान आयात पर निर्भरता को कम करेंगे और 2025-26 तक हम आत्मनिर्भर बन जाएंगे।

धरती माता की उर्वरता की बहाली के लिए पीएम-प्रणाम
धरती माता ने हमेशा मानव जाति को भरपूर मात्रा में जीविका के स्रोत प्रदान किए हैं। यह समय की मांग है कि खेती के अधिक प्राकृतिक तरीकों और रासायनिक उर्वरकों के संतुलित/सतत उपयोग को बढ़ावा दिया जाए। प्राकृतिक/जैविक खेती, वैकल्पिक उर्वरकों, नैनो उर्वरकों और जैव उर्वरकों को बढ़ावा देने से हमारी धरती माता की उर्वरता को बहाल करने में मदद मिल सकती है। बजट में यह घोषणा की गई थी कि वैकल्पिक उर्वरक और रासायनिक उर्वरक के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देने के लिए राज्यों को प्रोत्साहित करने के लिए ‘धरती माता की उर्वरता की बहाली, जागरूकता, पोषण और सुधार हेतु प्रधानमंत्री कार्यक्रम (पीएम-प्रणाम)’ शुरू किया जाएगा।

गोबरधन संयंत्रों से जैविक उर्वरकों के लिए 1451.84 करोड़ रुपये स्वीकृत
किसानों के विशेष पैकेज में धरती माता की उर्वरता की बहाली, पोषण और बेहतरी के नवीन प्रोत्साहन तंत्र भी शामिल है। गोबरधन पहल के तहत स्थापित बायोगैस संयंत्र/संपीड़ित बायो गैस (सीबीजी) संयंत्रों से उप-उत्पाद के रूप में उत्पादित जैविक उर्वरक अर्थात किण्वित जैविक खाद (एफओएम)/तरल एफओएम /फास्फेट युक्त जैविक खाद (पीआरओएम) के विपणन का समर्थन करने के लिए 1500 रुपये प्रति मीट्रिक टन के रूप में एमडीए योजना शामिल है।

पराली की समस्‍या के समाधान साथ किसानों को आय का अतिरिक्त स्रोत मिलेगा
जैविक उर्वरकों को भारतीय ब्रांड एफओएम, एलएफओएम और पीआरओएम के नाम से ब्रांड किया जाएगा। यह एक तरफ फसल के बाद बचे अवशेषों का प्रबंध करने और पराली जलाने की समस्‍याओं का समाधान करने में सुविधा प्रदान करेगा, पर्यावरण को स्‍वच्‍छ और सुरक्षित रखने में भी मदद करेगा। साथ ही किसानों को आय का एक अतिरिक्‍त स्रोत प्रदान करेगा। ये जैविक उर्वरक किसानों को किफायती कीमतों पर मिलेंगे।

प्राकृतिक खेती से किसानों की लागत कम हो रही
टिकाऊ कृषि पद्धति के रूप में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने से मृदा की उर्वरता बहाल हो रही है और किसानों के लिए इनपुट लागत कम हो रही है। 425 कृषि विज्ञान केन्‍द्रों (केवीके) ने प्राकृतिक कृषि पद्धतियों का प्रदर्शन किया है और 6.80 लाख किसानों को शामिल करते हुए 6,777 जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए हैं। जुलाई-अगस्‍त 2023 के शैक्षणिक सत्र से बीएससी तथा एमएससी में प्राकृतिक खेती के लिए पाठ्यक्रम भी तैयार किए गए है।

मिट्टी में सल्फर की कमी को दूर करेगा यूरिया गोल्ड
पैकेज की एक और पहल यह है कि देश में पहली बार सल्फर कोटेड यूरिया (यूरिया गोल्ड) की शुरुआत की जा रही है। यह वर्तमान में उपयोग होने वाले नीम कोटेड यूरिया से अधिक किफायती और बेहतर है। यह देश में मिट्टी में सल्फर की कमी को दूर करेगा। यह किसानों की इनपुट लागत भी बचाएगा और उत्‍पादन एवं उत्‍पादकता में वृद्धि के साथ किसानों की आय भी बढ़ाएगा।

प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केन्‍द्र की संख्या एक लाख हुई
देश में लगभग एक लाख प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केन्‍द्र (पीएमकेएसके) पहले ही कार्यरत हैं। किसानों की सभी जरूरतों के लिए एक ही जगह पर उनकी हर समस्या के समाधान के रूप में यह केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं।

एफआरपी में वृद्धि का फायदा 5 करोड़ गन्ना किसानों को होगा
मोदी सरकार ने जून 2023 में गन्ने के एफआरपी में 10 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी का ऐलान किया और गन्ने की नई एफआरपी अब 315 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। गन्ने के एफआरपी में बढ़ोतरी का फायदा 5 करोड़ गन्ना किसानों को होगा। साथ ही गन्ना मिलों और उससे जुड़े एक्टिविटी में काम करने वाले 5 लाख कर्मचारियों को भी इस फैसले का फायदा होगा। सरकार ने बताया कि गन्ने का एफआरपी 315 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है जबकि उत्पादन की लागत 157 रुपये प्रति क्विंटल है। यानि 10.25 फीसदी के रिकवरी रेट के हिसाब से प्रोडक्शन कॉस्ट से 100.6 फीसदी ज्यादा गन्ना किसानों को एफआरपी दिया जा रहा है।

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