राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े गवाह हैं कि देश में सबसे ज्यादा किसानों की अप्राकृतिक मौत उस राज्य में होती है, जहां कांग्रेस समर्थित सरकार चल रही है। एनसीआरबी के मुताबिक वर्ष 2020 में 4,006 किसानों द्वारा आत्महत्याओं के साथ महाराष्ट्र एक बार फिर लिस्ट में सबसे ऊपर रहा। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी किसान आंदोलन के दौरान कथित रूप से मरे किसानों को लेकर तो निर्रथक विलाप तो कर रहे हैं, लेकिन उनकी ही सरकार में किसान आंदोलन से छह गुना ज्यादा मरे किसानों के लिए उनके मगरमच्छी आंसू तक नहीं निकल पा रहे हैं। किसी भी इंसान की मौत निश्चित रूप से परिवार, समाज के लिए दुर्भाग्यपूर्ण होती है, इसे किसी रूप में उचित नहीं ठहराया जा सकता। लेकिन अकारण मौतों का सियासी तमाशा बनाना, अपने स्वार्थ में शवों का राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश करना…नीचता की सबसे निचली श्रेणी में ही आता है।
बड़ा सवाल : किसान आंदोलन में न गोलियां चलीं, न लाठियां बरसीं…फिर 700 लोग कैसे मरे ?
अब किसान आंदोलन पर आते हैं। केंद्र सरकार तीनों कृषि कानूनों को निरस्त कर चुकी है। इसी मांग को लेकर यह किसान आंदोलन शुरू हुआ था। स्वाभाविक न्याय तो यही है कि कानूनों के निरस्त होने के तत्काल बाद ही आंदोलन को समाप्त हो जाना चाहिए था, लेकिन केवल स्वार्थ की राजनीति करने वाले मुद्दे को जीवित रखने के लिए कथित रूप से आंदोनल में मरे किसानों के परिवारों को मुआवजा देने की मांग करने लगे हैं। जरा सोचिए, इतने लंबे किसान आंदोलन के दौरान कभी गोली चली….नहीं। कभी पुलिस ने लाठियां बरसाईं…नहीं। किसी भी धरनास्थल पर प्रशासन ने डंडे फटकारे….नहीं। जब सरकार के ओर से कोई किसानों के खिलाफ कोई एक्शन ही नहीं लिया गया तो 700 से से ज्यादा किसान आंदोलन में कैसे मारे गए ?कांग्रेस, विपक्ष, किसान संगठन सबकी नीयत केंद्र सरकार की छवि धूमिल हो
जी हां, फर्जी ही सही, लेकिन दावा इतने ही किसानों की मौतों का किया जा रहा है। सबसे पहले तो यह स्पष्ट कर दें कि 700 किसानों की मौतों की संख्या का इस्तेमाल विपक्ष, किसान संगठनों, प्रोपेगेंडाबाज और वामपंथी झुकाव वाले मीडिया संस्थान केंद्र सरकार की छवि धूमिल करने की नीयत से कर रहे हैं। कॉन्ग्रेस इसका दुष्प्रचार न केवल किसानों के विरोध-प्रदर्शन, बल्कि कृषि कानूनों को निरस्त किए जाने के बाद भी राजनीतिक हथियार के तौर पर कर रही है। अब यह निर्रथक शोर उन कथित मौतों को लेकर है, जो इन कानूनों के विरोध में हुए किसानों के प्रदर्शन के दौरान हुई बताई जाती हैं।
राहुल ने कानून निरस्त होने से पहले मौतों पर सवाल क्यों नहीं उठाए ?
इस दावे के बाद जेहन में यह स्वाभाविक सवाल आते हैं कि यदि वास्तव में दिनों-दिन इतने किसान मर रहे थे, तो कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पहले क्यों चैन की बंसी बजाते रहे ? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा कानूनों को निरस्त करने की घोषणा से पहले उन्होंने मौतों पर सवाल क्यों नहीं उठाए ?उन्होंने और किसान संगठनों ने सरकार के तत्काल मुआवजे की मांग क्यों नहीं की ? क्या वे और किसानों की मौत का इंतजार कर रहे थे ? या फिर उन्हें कानून वापसी के बाद भी अपनी राजनीति के लिए मुद्दे को जीवित रखना था ? सवाल और भी कई उठेंगे, जब इन 700 किसानों की मौत की पड़ताल में जाएंगे।
कोई कहीं भी, कैसे भी मरा…. सबकी मौत किसान प्रदर्शन के नाम लिख दी
पड़ताल करें तो पता चलेगा कि संयुक्त किसान मोर्चा की आंदोलन के दौरान मारे गए 702 किसानों की सूची ही विवादित है। जब केंद्र ने कहा तो दिखाने भर के लिए यह सूची आनन-फानन में ही तैयार की गई लगती है। क्योंकि इस सूची में शामिल कई नाम ऐसे हैं जो किसी बीमारी से मरे…या फिर कोई नहर में डूब गया, कोई हिट एंड रन के केस में ट्रैक्टर, बसों से कुचला गया तो कोई ट्रेन के नीचे आ गया…लेकिन इन सबकी मौत किसान प्रदर्शन के नाम लिख दी गई। किसान मोर्चा या कांग्रेस को लगता था कि कोई भी नाम या कारण लिख दें, इसकी तस्दीक कौन करेगा ? जब सूची की मोटे तौर पर ही जांच की गई तो 700 से ज्यादा मौतों की हकीकत कुछ और ही निकली।
A Super Exclusive Thread That You Should Not Miss
1. Decoding propaganda of ‘700-750 farmers died in farmer protest’ claim
There are so many fact-checkers in India. But, none of them had fact-checked this claim.
— Vijay Patel?? (@vijaygajera) January 12, 2022
3. Rahul Gandhi has put the list of farmers in the parliament. Almost all media houses were sharing that news without verifying the data. pic.twitter.com/y2v5wo1gEH
— Vijay Patel?? (@vijaygajera) January 12, 2022
पड़ताल से पता लगा कि कांग्रेसी और किसान नेता कितना नीचे तक गिर सकते हैं
एक्टिविस्ट और इंवेस्टीगेटर पत्रकार विजय पटेल ने इस रिकॉर्ड का गहन अध्ययन कर कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने रखे हैं। विजय ने एक लंबे थ्रेड में इन मौतों की प्रकृति के बारे में पता लगाया है, जिससे साफ है कि ये सारी मौते सीधे तौर पर विरोध-प्रदर्शन से जुड़ी नहीं है। कुछ मौतें संदिग्ध आत्महत्या हैं तो कुछेक कोरोना संक्रमण से जुड़ी हैं। जो तथ्य विजय ने सामने रखे हैं और मृतकों की सूची की पड़ताल के दौरान सामने आए, उससे साफ जाहिर है कि जिन 700 मौतों को किसानों के विरोध-प्रदर्शन से जोड़कर सामने रखा जा रहा है, उनमें कितनी सत्यता है ? यह भी पता चलता है कि राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए कांग्रेसी और किसान नेता कितना नीचे तक गिर सकते हैं।
8. People who had returned to their homes and died there have their names on this list. pic.twitter.com/9o2YaVVOJP
— Vijay Patel?? (@vijaygajera) January 12, 2022
9. People who were died while traveling to the protest. And people who were died while returning from the protest also have their names on the list! pic.twitter.com/67ooUmj96v
— Vijay Patel?? (@vijaygajera) January 12, 2022
सूची में शामिल आधे लोगों की मौत विरोध-प्रदर्शन स्थल से घर लौटने के बाद हुई
पत्रकार पटेल ने जिन 702 मौतों की पड़ताल की है उनमें से केवल 191 की मौत दिल्ली की सीमा के विरोध-प्रदर्शन स्थलों पर हुई। 340 लोगों की मौत विरोध-प्रदर्शन स्थल से घर लौटने के बाद हुई । यह स्पष्ट नहीं है कि क्यों किसान संगठन फिर इनकी मौतों को भी विरोध-प्रदर्शन से जोड़ रहे हैं। क्या केवल इसलिए कि जिनकी मृत्यु हुई वह दिल्ली की सीमा के विरोध-प्रदर्शन स्थलों पर मौजूद थे अथवा मौत से पहले वहाँ आए थे? साफ है कि इन लोगों की मौत को विरोध-प्रदर्शनों से जोड़ना बेतुके आरोप के सिवा कुछ नहीं है। इनके अलावा 108 लोगों की मौत विरोध-प्रदर्शन स्थल से घर लौटते वक्त रास्ते में हुई। इसमें हिंट एंड रन के केस भी शामिल हैं। ऐसे में सवाल यह भी है कि दुर्घटना में मौत को कैसे किसानों के विरोध-प्रदर्शन से जोड़ा जा सकता है? इसके अलवा 63 लोगों की मौत दिल्ली की सीमा से इतर अन्य प्रदर्शन स्थलों या अन्यत्र हुई है।
12. If you read the reason for unknown illness given by farmer unions, you will understand that most of these cases are of Corona. Just because they want to hide it, they didn’t mention it in most similar cases. pic.twitter.com/rGCM1FccZt
— Vijay Patel?? (@vijaygajera) January 12, 2022
11. Now let me decode the complete list ‘reasons of deaths’ wise pic.twitter.com/dY4VJGxPKS
— Vijay Patel?? (@vijaygajera) January 12, 2022
सुखपाल नदी में डूबा, गुरलाल ट्रेन से कटा, लेकिन किसानों की सूची में हाजिर
किसान मोर्चा द्वारा दी गई सूची में एक नाम सुखपाल सिंह नाम के किसान का भी है। पोस्ट के अनुसार, सिंह ने कई बार दिल्ली सीमा पर विरोध-प्रदर्शनों में भाग लिया था। मगर मृत्यु के समय वह अपने पैतृक स्थान पर थे। रिकॉर्ड में कहा गया है कि सिंह अपने खेत की तरफ गए थे। इसी दौरान गलती से ब्यास नदी में डूब गए। इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं है कि उनकी मृत्यु को एक प्रदर्शनकारी की मृत्यु क्यों कहा गया, जबकि वह अपने खेत में काम करने के दौरान मरे थे। इसी प्रकार किसान गुरलाल सिंह, जो बहादुरगढ़ रेलवे स्टेशन पर एक दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना का शिकार हो गए। वह घर लौटते समय ट्रेन में चढ़ने की कोशिश कर रहे थे, मगर उनका पैर फिसल गया और यह दुर्घटना घट गई। प्राय: ऐसे हादसे तभी होते हैं जब कोई चलती ट्रेन में चढ़ने की कोशिश करता है। हालाँकि यह उल्लेख नहीं है कि ट्रेन चल रही थी या नहीं, मगर यह स्पष्ट है कि 47 वर्षीय गुरलाल की मृत्यु रेलवे स्टेशन पर हुई थी, न कि विरोध स्थल पर।
14. The second most deaths were due to heart failure.
See this data. According to this data, more than 192 people per Lakh die every year due to heart failure in Punjab and Haryana. pic.twitter.com/dhSU86c8Qs— Vijay Patel?? (@vijaygajera) January 12, 2022
17. Lakhimpur hit and run case was discussed all over the media because the target was UP and Yogiji.
But do you know there was a similar hit and run case in Punjab too!
But media will not discuss it. pic.twitter.com/vE54elqmFs— Vijay Patel?? (@vijaygajera) January 12, 2022
कोई ट्रेन से गिरा, कोई ट्रैक्टर से कुचला…नाम मौत की एक ही सूची में दर्ज
विवादित सूची में एक अन्य प्रदर्शनकारी परमा सिंह नाम के किसान की ट्रेन दुर्घटना में मृत्यु हो गई। सिंह टिकरी सीमा से लौटते समय कथित तौर पर ट्रेन से गिर गए और उनकी मौके पर ही मौत हो गई। विरोध-प्रदर्शन बंद होने के बाद दिल्ली सीमा से लौटते समय जसविंदर सिंह नाम के एक अन्य किसान की मौत हो गई। वह कथित तौर पर एक ट्रैक्टर से गिर गए और उससे कुचल कर उनकी मौत हो गई। वहीं सुखविंदर सिंह नाम के एक अन्य प्रदर्शनकारी ने सड़क दुर्घटना में घायल होने के बाद दम तोड़ दिया। पीजीआई चंडीगढ़ में इलाज के दौरान उनकी मौत हुई।
10. People who were died due to alleged suicides need proper investigation. let me show you one example of why it needs to investigate properly.
This case is described as a suicide but if you see the face. you can see the injuries on it. pic.twitter.com/WrPiTPcaPz
— Vijay Patel?? (@vijaygajera) January 12, 2022
किसानों की सूची में 40 ऐसे नाम है जिन्होंने आत्महत्या की। इनमें से कई आत्महत्या की जाँच की जरूरत है। विजय ने एक किसान की तस्वीर शेयर की, जिसकी कथित तौर पर आत्महत्या से मौत हो गई थी। लेकिन उसके चेहरे पर चोट के निशान साफ नजर आ रहे थे।
11. Now let me decode the complete list ‘reasons of deaths’ wise pic.twitter.com/dY4VJGxPKS
— Vijay Patel?? (@vijaygajera) January 12, 2022
किसान आंदोलन के दौरान पहली बार आत्महत्या की खबर 16 दिसंबर, 2020 को संत बाबा राम सिंह की आई। उन्होंने कथित तौर पर खुद को गोली मार ली और एक सुसाइड नोट छोड़ा, जिसमें उन्होंने दावा किया कि सरकार की आँखें खोलने के लिए आत्महत्या की। हालाँकि उनकी मौत को लेकर कई तरह के सवाल उठे थे।। इसके अगले ही दिन 17 दिसंबर, 2020 को बताया गया कि एक समाचार चैनल के एक एंकर से बात करते हुए चंडीगढ़ की अमरजीत कौर नाम की एक नर्स ने इस आत्महत्या पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि यह असंभव है कि संत राम सिंह आत्महत्या करे। सुसाइड नोट की हैंडराइटिंग भी मेल नहीं खाती है। कौर ने कहा कि लोगों को समस्याओं से बाहर निकलने के लिए वह लोगों से कहते थे कि आत्महत्या करना किसी बात का हल नहीं है, वह खुद ऐसा कैसे कर सकते हैं।
18. Also, see the occupation of the people whose names have in this list. pic.twitter.com/wQtpoEysfN
— Vijay Patel?? (@vijaygajera) January 12, 2022
21. In the end, see the irony. In 11 months 2270 farmers had committed suicide in Maharastra. And no outrage for them! Why? pic.twitter.com/1IKfEgFv9D
— Vijay Patel?? (@vijaygajera) January 12, 2022
इसके अलावा आत्महत्या की दूसरी रिपोर्ट की गई मौत कुलबीर सिंह की थी, जिसने विरोध स्थल से वापस आने के बाद आत्महत्या कर ली थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, वह कर्ज के चलते बहुत ही तनाव में था। बढ़ते कर्ज के दबाव में किसान द्वारा की गई तीसरी आत्महत्या दिसंबर 2020 में दर्ज की गई थी। गुरलभ सिंह ने विरोध स्थल से लौटने के बाद आत्महत्या कर ली। उन पर 6 लाख रुपए का कर्ज था। एक अन्य किसान रंजीत सिंह ने भी फरवरी 2021 में धरना स्थल से लौटने के बाद आत्महत्या कर ली थी। उन पर 15 लाख रुपए का कर्ज था। रिपोर्ट्स की मानें तो उन्हें बैंक से कुर्की का नोटिस मिला था। लखविंदर सिंह कॉमरेड ने भी आत्महत्या की। उन पर 15 लाख रुपए का कर्ज था। यहाँ तक कि रिपोर्ट्स में कहा गया था कि कर्ज के चलते उन्होंने खुदकुशी कर ली।